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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, June 15, 2022

चर्चा प्लस | विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (15 जून) | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (15 जून)    
 - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
           भारतीय संस्कृति में बुजुर्गों के लिए सदा आदर-सत्कार की भावना रही है किन्तु एकल परिवार के चलन ने बुजुर्गों को एकाकी कर दिया है। जहां तक बुजुर्गों से दुर्व्यवहार का प्रश्न है तो आए दिन ऐसी घटनाएं समाचारपत्रों में पढ़ने को मिल जाती हैं जिनमें थोड़े से पैसों के कारण बेटे ही अपने वृद्ध माता-पिता को शारीरिक चोट पहुंचाने से नहीं चूकते हैं। खाना, कपड़ा आदि को तरसाने, घर से निकाल देने अथवा वृद्धाश्रमों में पहुंचा देने की घटनाएं आम होती जा रही हैं, जो कि सामाजिक चिंता का विषय है।
20 अप्रैल को अपनी मां की प्रथम पुण्यतिथि पर मैंने वृद्धाश्रम जा कर वृद्धों को भोजन कराने का निश्चय किया। इस सिलसिले में मेरे शहर सागर में वृद्धजन की सेवा के लिए चर्चित ‘‘सीताराम रसोई संस्था’’ में मैं गई। वह वृद्धाश्रम नहीं है किन्तु संस्था द्वारा बुजुर्गों को दोनों समय निःशुल्क भोजन कराया जाता है। वहां मैंने पाया कि भोजन और सफाई की गुणवत्ता उच्चकोटि की है। वहां के सेवादार मिलनसार एवं उदार हैं। किन्तु वहां भोजन के लिए आए वृद्ध स्त्री-पुरुषों को देख कर मन भर आया। यह सोचना दुखी कर गया कि इनके परिजन इन्हें दो रोटी भी नहीं दे पा रहे हैं। संस्था से बाहर आ कर आस-पास चर्चा करने पर पता चला कि उनमें कुछ बुजुर्गों को घर से निकाल दिया गया है तो कुछ को घर में भोजन नहीं दिया जाता है। उनमें कुछ ऐसे भी थे जिनके परिजन सचमुच आर्थिक रूप से विपन्न थे। फिर भी यह सब जानना पीड़ादायक था। वह तो भला हो ऐसी संस्थाओं का जो इन वृद्धों को भरपेट भोजन करा रही है अन्यथा इनके पास भीख मांगने अथवा भूखे करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रहता। उन बुजुर्ग महिलाओं को देख कर मुझे अपनी मां की स्मृति ताज़ा हो गई। उन्होंने 93 वर्ष की आयु में हृदयाघात से संसार त्यागा। मैंने और मेरी बड़ी बहन डाॅ. वर्षा सिंह ने अपनी मां की यथाशक्ति सेवा की। समय पर भोजन, समय पर दवाएं, उन्हें प्रसन्न रखने का पूरा प्रयास। उनकी चिरविदा के बाद यही संतोष हमें रहा कि हमने उन्हें कभी कोई कष्ट नहीं होने दिया। वहीं, उन लाचार बुजुर्गों को देख कर यही प्रश्न कौंधा कि क्या इनकी संतानों के सीने में दिल नहीं है?
 
अपने माता-पिता अथवा परिवार के बुजुर्गों के साथ कैसे कोई दुर्व्यवहार कर सकता है? यह प्रश्न उस समय में मन में उठता है जब खबर पढ़ते हैं कि चंद रुपयों की लालच में बेटे ने मां को मार दिया अथवा पिता को मौत के घाट उतार दिया। बहुत से बुजुर्ग तो ऐसे हैं जिन्हें घर से तो नहीं निकाला जाता है किन्तु उनके साथ घोर उपेक्षा भरा व्यवहार किया जाता है। उन्हें भोजन, कपड़ा, दवा आदि के लिए भी तरसाया जाता है। उन्हें ‘‘बेकार की वस्तु’’ समझा जाता है। एकल परिवारों के चलन ने इस तरह की विपरीत भावना को और अधिक बढ़ावा दिया है। जबकि हमारी भारतीय संस्कृति बुजुर्गों की सेवा करने को ईश्वर की सेवा के समान मानती है। श्रवण कुमार की कहानी माता-पिता की सेवा के उदाहरणस्वरूप सुनाई जाती है। किन्तु अब स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। बुजुर्ग बच्चों रहते हुए भी अकेले छूट रहे हैं। यदि साथ रहते हैं तब भी अकेलेपन के शिकार रहते हैं और कभी-कभी हिंसा के भी। वस्तुतः यह समस्या हमारे देश में ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में है।
 
प्रतिवर्ष 15 जून को दुनिया भर में ‘विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस’ का आयोजन किया जाता है। यह संपूर्ण विश्व में हमारे बुजुर्गों के प्रति होने वाले दुर्व्यवहार एवं कष्टों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करने के लिए जागरूकता का दिवस है। इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर द प्रिवेंशन ऑफ एल्डर एब्यूज के अनुरोध के बाद, इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने संकल्प 66/127, दिसंबर 2011 में आधिकारिक तौर पर मान्यता दी थी, जिसने पहली बार जून 2006 में स्मरणोत्सव की स्थापना की थी। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस का मुख्य लक्ष्य दुनिया भर में हमारे समुदायों को वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा के बारे में बेहतर जानकारी प्राप्त करने का अवसर प्रदान करना है। यह एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है जिसमें न केवल वृद्ध लोगों के स्वास्थ्य बारे में बल्कि उनके अधिकारों के बारे में भी चर्चा की जाती है। वर्ष 2022 के लिए थीम है ‘‘ सभी उम्र के लिए डिजिटल इक्विटी’’ (डिजिटल इक्विटी फाॅर आॅल ऐज़)।

विश्वभर में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है। बुजुर्गों के साथ होने वाले दुव्र्यवहार की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो रही हैं। बुजुर्ग दुव्र्यवहार एक महत्वपूर्ण सामाजिक समस्या है। वर्ष 2017 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर साठ वर्ष की आयु एवं उससे अधिक आयु वर्ग के पंद्रह दशमलव सात प्रतिशत लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया था या पिछले वर्ष विश्वभर भर में लगभग छह में से एक बुजुर्ग व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार किया गया है। भारत में लगभग 104 मिलियन बुजुर्ग हैं तथा वर्ष 2026 तक इस संख्या में 173 मिलियन की वृद्धि होने की संभावना है।

यह कल्पना करना कठिन हो सकता है कि कोई जानबूझकर किसी बुजुर्ग व्यक्ति को नुकसान पहुंचाना चाहेगा, लेकिन दुर्भाग्य से, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक व्यापक समस्या है। कुछ दुर्व्यवहार का उद्देश्य व्यक्ति का आर्थिक रूप से शोषण करना होता है। आए दिन वरिष्ठों को निशाना बनाने वाले घोटालों के बारे में एक न एक समाचार मिलता रहता है। इसके अलावा आजकल कई लोग अपने बुजुर्गों को बुनियादी आवश्यकताएं प्रदान नहीं करते हैं, जैसे पौष्टिक भोजन, उचित दवा, सुरक्षा, स्वच्छता एवं सहायता। यदि सोचें कि बुजुर्गों की मुख्य समस्या क्या है? तो उत्तर मिलेगा कि मुख्य समस्या शारीरिक बीमारी है। नेशनल काउंसिल ऑन एजिंग के अनुसार, लगभग 92 प्रतिशत वरिष्ठों को कम से कम एक पुरानी बीमारी होती है और 77 प्रतिशत में कम से कम दो बीमारियां अवश्य रहती हैं। हृदय रोग, स्ट्रोक, कैंसर और मधुमेह सबसे आम बीमारियां हैं।
हमारे देश में बुजुर्गों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (एनपीओपी), 1999 में वित्तीय और खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आश्रय और वृद्ध व्यक्तियों की अन्य जरूरतों को सुनिश्चित करने, विकास में समान हिस्सेदारी, दुर्व्यवहार और शोषण के खिलाफ सुरक्षा, और सेवाओं की उपलब्धता में सुधार के लिए राज्य सहायता की परिकल्पना की गई है।
‘‘राष्ट्रीय वयोश्री योजना’’ बीपीएल श्रेणी से संबंधित वरिष्ठ नागरिकों के लिए शारीरिक सहायता और सहायक-जीवित उपकरण प्रदान करने की योजना है। यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जो पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है। योजना के क्रियान्वयन का व्यय ‘‘वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष’’ से किया जाता है। भारत सरकार ने कई वर्षों की बहस के बाद अंततः जनवरी 1999 में वृद्ध व्यक्तियों की राष्ट्रीय नीति को घोषित किया था। प्रधान मंत्री वय वंदना योजना (पीएमवीवीवाई) भारत सरकार द्वारा घोषित सेवानिवृत्ति सह पेंशन योजना है। योजना को सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है और इसे मई 2017 में लॉन्च किया गया था। वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष की स्थापना वित्त अधिनियम, 2015 के तहत की गई है, जिसका उपयोग वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की योजनाओं के लिए किया जाता है जो वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति के अनुरूप है।

ज़रा देखें कि हमारे देश में वरिष्ठ नागरिक की परिभाषा क्या है? कानून के अनुसार, ‘‘वरिष्ठ नागरिक’’ का अर्थ भारत का नागरिक होने वाला कोई भी व्यक्ति है, जिसने साठ वर्ष या उससे अधिक की आयु प्राप्त कर ली हो। बुजुर्ग और वरिष्ठ नागरिक की मदद करने के लिए 5 सरकारी योजनाएं लागू हैं जिनके बारे में पता होना आवश्यक है- वरिष्ठ नागरिक बचत योजना, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना, वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना, राष्ट्रीय वयोश्री योजना तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना। इन योजनाओं की जानकारी बुजुर्गों को भी होनी चाहिए। जैसे, प्रधानमंत्री वय वंदना योजना भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा प्रदान की जाती है। भारत सरकार प्रधान मंत्री वय वंदना योजना वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय द्वारा संचालित की जाती है। कोई भी वरिष्ठ नागरिक जो 60 वर्ष का है, 80 वर्ष की आयु तक राष्ट्रीय बीमा वरिष्ठ मेडिक्लेम पॉलिसी के लिए पात्र है। नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा भारत में इस ऑनलाइन वरिष्ठ मेडिक्लेम पॉलिसी को खरीदने के लिए अधिकतम आयु सीमा 80 वर्ष है और पॉलिसीधारक इसे 90 वर्ष की आयु तक नवीनीकृत कर सकते हैं। बुढ़ापा हर व्यक्ति के जीवन में आता है, जिसे आमतौर पर कालानुक्रमिक उम्र से मापा जाता है और एक परंपरा के रूप में, 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्ति को अक्सर ‘‘बुजुर्ग’’ कहा जाता है। जैविक बुढ़ापा -यह उम्र बढ़ने का प्रकार है जिससे अधिकांश लोग परिचित हैं, क्योंकि यह उन विभिन्न तरीकों को संदर्भित करता है जो मानव शरीर समय के साथ स्वाभाविक रूप से बदलता है, इसके अतिरिक्त  मनोवैज्ञानिक बुढ़ापा और सामाजिक बुढ़ापा।

यदि सुशिक्षित बुजुर्ग हैं तो उन्हें अपनी शारीरिक क्षमताओं में कमी आने से पूर्व ही शासकीय सहायताओं एवं योजनाओं के बारे में जानकारी एकत्र कर लेनी चाहिए। बुजुर्गों का भरण-पोषण और सेवा कानूनन संतान का दायित्व मानी कई है अतः संतान द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर चुपचाप सहने के बजाए प्रताड़ना का विरोध करना उचित है। यदि माता-पिता अपढ़ अथवा कम पढें-लिखें है तो उन्हें भी उनके अधिकार पता होने चाहिए। दरअसल, यह ध्यान रखना चाहिए कि यदि एक युवा माता-पिता अपने बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित या उपेक्षित करते हैं तो उनके इस व्यवहार से उनके बच्चे भी यही शिक्षा ग्रहण करेंगे और आगे चल कर वे भी अपने माता पिता के साथ वैसा ही कठोर व्यवहार करेंगे।  इस तथ्य को भी याद दिलाता है ‘विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार  जागरूकता दिवस’।
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(15.06.2022)
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1 comment:

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