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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, June 9, 2022

बतकाव बिन्ना की | उनकी सो निकर परी | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

 "उनकी सो निकर परी" ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की
उनकी सो निकर परी
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
           ‘‘काए भैैयाजी का हो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी, काए से के बे भैराने से आ के मोरे आंगूं ठाड़े हो गए।
भैयाजी कछु ने बोले। अपने गमछा से अपने मों को पसीना पोंछन लगे। 
‘‘चलो आप पैले बैठ लेओ, ठंडो पानी पी लेओ। फेर बताओ के का भओ।’’
मैंने भैयाजी खों को मटको को ठंडो पानी दओ। बिजना सोई झलन लगी। काए से के ई दिना लाईट आवारा सी हो गई कहानी। जब मन परे आ जात आए, जब मन परे चली जात आए। ई टेम पे बी लाईट कहूं नैनमटक्का करबे गई हुइए। मैं सोई अपने लाने कुल्ल देर से बिजना डुला रई हती।
‘‘रैन दे बिन्ना, हाथ पिरान लगहें।’’ भैयाजी मोए रोकत भए बोले।
‘‘ने पिरेहें। बिजना सो डुलाने ई परहें। एक मिनट खों हवा ने लगें सो जी अकुलान लगत आएं। प्राण से कढ़त आएं। को जाने जे बारिस कबे हुइए?’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, अब की बेरा सो गजबई हो गई आए। हमें सो लगत आए के अब चुनाव बाद ई पानी गिरहे।’’
‘‘पानी को चुनाव से का लेबो-देबो? मौसम बदलबे की, पर्यावरण की बात कैते सो समझ में आती, जे चुनाव वारी बात हमाई समझ में ने आई।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘अरे बिन्ना, सूदी सी बात आए के जबे चुनाव आत आएं सो सबई कछु चुनाव के हिसाब से होन लगत आए। ने मानो सो अभईं कोनऊ सरकारी दफ़्तर में जा के देख लेओ। इना-गिना जने अपनी सीट पे मिलहें। ओ तनक उनसे पूछो के जे आपके बाजू वारे भैया कहां निकर गए? सो जेई जवाब मिलत आए के कहूं निकरे नईयां, चुनाव की टरेनिंग में गए हैं। सो, बारिस सोई टरेनिंग के डर से ने आ रई हुइए।’’ कैत भए भैयाजी हंसन लगे।
‘‘खूबई कही भैयाजी आपने! मनो, जे बाजू में कागज़ को बंडल सो का दबा रखो आए? कोनऊ कचेरी-अदालत के कागज आएं का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। 
‘‘जे! अरे हऔ बिन्ना, जेई कागज सो दिखाने आए तुमें!’’ भैयाजी अपने दोई हाथ से कागज सीधे करत भए बोले।
‘‘जो का आए? जे कचेरी के कागज सो नई दिखा रए। सरकारी बी नोईं! काए के कागज आएं?’’ मैंने पूछी।
‘‘तनक गम्म खाओ बिन्ना! तुमाए लाने सो लाए हैं, दिखाए बिना ने लौटहें।’’ भैयाजी गोलमोल सो बोल गए।
‘‘बाद में सीधो कर लइयो, पैले बताओ तो के ईमें है का? काए के कागज आएं जे?’’ मोए सो रहाई नई पर रई हती।
‘‘जे! जे देखो!’’ कैत भए भैयाजी ने कागज मोरे हाथ पे धर दए।
‘‘जे तो कछु कविता सी दिखा रई।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, कवितई आए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन की आए?’’ मैंने फेर पूछी।
‘‘कोन की का मतलब? हमाई आए!’’ भैयाजी शान से बोले।
‘‘आपकी? आप कब से कविता लिखन लगे?’’ मोए बड़ो अचरज भओ। काए से भैयाजी सो कविता लिखन वारन की खिल्ली उड़ात रैत आएं, औ अब खुदई कविता लिख लाए? भौतई गजब???
‘‘जे ऐसे आंखें फाड़ के काए देख रईं, का हम पे कविता लिखत नईं बनत?’’ भैयाजी बोले।
‘‘बनत हुइए, मनो मैंने सो कभऊं आपकी कविता ने पढ़ी, ने सुनी। सो अचरज हुइए ई।’’ मैंने सोई कही।
‘‘हऔ, जे बात सांची आए के स्कूल-कालेज के दिना में लव-लेटर के लाने दो-चार कविताएं लिखीं रईं, मनो उनसे कछु काम नई बनो सो सब छोड़-छाड़ दओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काए नई बनो काम? का आपने भौजी से लवमैरीज नईं करी हती? बाकी अब समझ में आई के आपने कविताएं लिख-लिख के भौजी खों मनाओ हुइए।’’ मैंने चुटकी सी लई।
‘‘अरे कहां बिन्ना, उने कविता-वमिता से कछु नई फरक परत रओ। बो तो एक दफा तुमाई भौजी किरोसिन लेबे के लाने राशन की लंबी लाईन में ठाड़ी हतीं। ठाड़े-ठाड़े उनके पांव दुखन लगे हते। इत्ते में हम उते पौंचे। हमसे उनको कष्ट ने देखो गओ। सो हमने उने लाई से बाहरे करो औ हम उनकी जांगा पे ठाड़े हो गए। हमें पूरे तीन घंटा उते ठाड़े रहने परो, मनो तुमाई भौजी हमाई ई तपस्या से प्रसन्न हो गईं। ऊके बाद किरोसिन की लाईन में तब तक हमई ने उनके बदले टांगें दुखाईं जब तक लों बे हमाए संगे शादी के लाने मान नई गईं। फेर कछु दिना बाद गैस को चूला आ गओ सो किरोसिन को काम ई खतम हो गओ।’’ भैयाजी कविता भूल के अपनी कहानी सुनान लगे।
‘‘फेर का भओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर जे भओ के तुम हमें बतकाव में ने उरझाओ, हमाई जे कविताएं पढ़ो औ बताओ के ईमें कोन सी काम की आएं और कोन सी फालतू आएं।’’ भैयाजी की गाड़ी फेर पटरी पे आ गई।
मैंने पैली कविता पढ़के ई चैंक परी। आप ओरें सोई पढ़ लेओ-
बेलन/ झाड़ू/मटका पे तुम बटन दबाओ।
पुरा, मोहल्ला, घर-घर में खुसियाली लाओ।

‘‘जे का है भैयाजी? जे कविता नईं, जे तो नारा आए, वो बी चुनावी नारा।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, सो नारा कै लेओ। जो चाओ सो कहो, पर जे बताओ के जो है कैसो?’’ भैयाजी अकुलाने से पूछन लगे। 
‘‘मनो नारा कहो सो ठीक आए, पर ईमें सो आपने तीन-तीन उम्मीदवारान के लाने एक संगे वोटे मांग लईं। बेलन/ झाड़ू/मटका... कोनऊ एक पे रहो आप।’’ मैंने कही।
‘‘नईं, हम सो एक पे ई रैबी। जे सो नमूना आए। जोन दम्मीवार हमसे जे कविता लैहे, ऊको चुनाव चिन्ह ईमें रख दओ जेहे, बाकी के हटा लए जेंहें। है न सही?’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, एकदम सही। मनो जे तो बताओ आप खों जे नारे लिखबे को आपको विचार आओ हां से?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब तुमने का छिपाने बिन्ना! ऊ दिना गोबिंद से हमाई गिचड़ हो रई हती के कोन की लुगाई चुनाव में ठाड़ी हुइए। तुमने देखी हती। मनो हम दोनों की लुगाइयन ने साफ कै दओ के चुनाव में खड़े होबे की कही सो घरे खाना-पानी बंद समझियो। सो, बात उतई बढ़ा के रै गई। मनो हमने देखी के गोबिंद जे ई टाईप की कविता लिख रओ आए। पूछबे पे ऊके मों से निकर आओ के जे चुनाव के लाने आए। ऐसो लिखबे के उम्मींवार हरें पइसा देते आएं। सो हमें सोई बात जम गई। चुनाव को सीजन आए, कछु कमाई कर लई जाए। चुनाव के बाद सो जीतन वारे कमाई करहें, तब अपन ओरन खों कौन पूछ रओ। हम तो कै रै के तुम सोई ई टाईप की कविताएं लिख डारो। तुमाई बी कछु कमाई हो जेहे।’’ भैया जी बोले।
‘‘रैन दो भैयाजी! आपई कमाओ! आप खुस, सो मैं खुस।’’ मैंने कही। 
‘‘बात जे है बिन्ना के जोन खों उम्मीदवार बनने खों मिल रओ, उनकी सो निकर परी, अब हमाई सोई तनक निकर परे। जे बाकी कविताएं सोई देख के बताइयो के ठीक आएं के नईं। हम संझा खों आ के ले जाहें।’’ कहत भए भैयाजी अपने चुनावी नारे मोरे हाथ पे टिका के बढ़ लिए। खैर, पढ़ लेबी। चुनाव को सीजन आए सो जे सोई करने पड़हे। 
मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए कोनऊ नारे लिखे, चाए वारे लिखे, मोए का? जीतबे वारे जीत बे के बाद कौन शकल दिखा हें। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(09.06.2022)
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