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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, July 1, 2022

बतकाव बिन्ना की | संगे फोटू खिंचा लइयो, काए सें के... | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

मित्रो, "संगे फोटू खिंचा लइयो, काए सें के..." ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" अंतर्गत साप्ताहिक "प्रवीण प्रभात" (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद #प्रवीणप्रभात 🙏
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बतकाव बिन्ना की
संगे फोटू खिंचा लइयो, काए सें के...
   - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘तनक हमाए ऐंगर बैठो बिन्ना! हमें कछु दिखाने है तुमाए लाने!’’ भैयाजी ने मोसे कही।
‘‘हऔ दिखाओ, का दिखा रए भैयाजी?’’ मैंने मोढ़ा खेंचो औ भैयाजी की ऐंगर बैठ गई।
‘‘जे देखो!’’ भैयाजी अपने मोबाईल पे एक लुगाई की फोटू दिखात भए बोले।
‘‘जो कोन की फोटू आए?’’ मैंने पूछी।
’’नईं पैचानो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मों देखो-देखो सो लग रओ, पर याद नई आ रई। को आ जे?’’ मैंने भैयाजी से फेर के पूछी।
‘‘अच्छा चलो, इनखों देखो। इने जानत हो?’’ भैया जी ने दूसरी फोटू दिखाई।
‘‘ऊहूं ! नईं, मोय नई पतो। जे कोन-कोन की फोटू दिखा रए आप?’’ मोए कछु समझ में ने आ रई हती के भैयाजी जे कोन की फोटुए मोए दिखाए जा रए।
‘‘औ देखो, जे इनखों पैचानों!’’ भैयाजी ने लुगवा की फोटू दिखाई। मने उन्ने सोई फोटुअन को बुझव्वल बना दओ।
‘‘मोए चिनारी में नई आ रई, आप आपई बता देओ के कोने-कोन की फोटू दिखा रए आप? औ जे इन ओरन के संगे आप काए ठाढे दिखा रए? जे ओरें कोनऊ वीआईपी आएं का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काए से के सबई फोटुअन में चाए वा लुगवा की होय या लुगाई की, भैयाजी संगे ठाढे दिखा रए हते।
‘‘जे सबरी फोटुएं उन उम्मीवारन की आएं जोन हमाए क्षेत्र में ठाढे भए आएं।’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘लेओ, सो इन ओरन के संगे काए फोटू खेंचा डारी? कोन जे सबई जीतहें।’’ मोए अचरज भओ।
‘‘हऔ, ने उने पतो, ने हमें पतो के उनमें से कोन जीतहे, कोन हारहे। जेई से तो हमने सबई के संगे अपनी फोटू खेंचवा लई। जे ओरे जब वोट के लाने कहबे आए सो हमने उनई के संग वारे को अपनो मोबाईल थमाओ औ कही के इनके संगे हमाई फोटू खेंचो।’’ भैयाजी अपनी मूंछन पे ताव देत भए बोले।
‘‘पर जे फोटुएं खिंचवाई काए के लाने?’’ 
‘‘जे लाने के इनमें से कोन जीतहे सो पतो नइयां। औ जीतबे के बाद इन ओरन को अपनो मों नई दिखाने आए अगली चुनाव लों। अब मनो मोए जीतबे वारे से कोनऊ काम पर गओ सो मोए बे चिनारी में कैसे आहें? काए से एक बार मों देख के जिनगी भर याद तो रै ने पाहे।’’ भैयाजी अपनी चतुराई बघारत भए बोले।
‘‘हऔ, सो इन ओरन खों कोन जिनगी भर पार्षद बने रैने आए? जे जो जीतबे के बाद अपनों मों ने दिखाहें सो अगली चुनाव में इनको मों को देख रओ!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘तुमाई बात ठीक आए बिन्ना, पर हम सो, ई चुनाव औ अगली चुनाव के बीच की सोच रए। मनो बीच में कोनऊ काम पर गओ सो ऊ बेरा उनखों याद दिलाबे के काम आहे जे फोटू, के देखो हम तुमाए क्षेत्र के रहवासी आएं। तुम हमाए घरे आए हते वोट मांगबे के लाने औ तुमने हमाए सबई काम करबे को वादा करो रओ।’’ भैयाजी बोले। 
‘‘आप सोई भैयाजी, बड़े भोले कहाने। इत्ती उम्मर हो गई। इत्ते चुनाव देख लए फेर बी वादन पे भरोसा कर रए? अरे, जे वादा तो फकाईं होत आए। जे जित्ते बी उम्मीदवार आएं सबरे अव्वल दर्जे के फाइकालाॅजिस्ट कहाने। आप बी कहां इन ओरन की बातन में आ रए। चुनाव बाद तो इने खुदई याद नई रैने के इन्ने कोन-कोन सो वादो करो रओ। ने तो आज अपनो क्षेत्र कहूं से कहूं ने हो गओ होतो?’’ मैंने भैयाजी खों समझाई। 
‘‘नईं, हम तुमाई बात समझ रए। बा सब सो हमें सोई पतो आए। हमें पिछले चुनाव वारन खें सबरे वादा याद आएं पर उने एकई याद नईं। कछु पूछो सो बेई सब काम गिना देत आएं जो प्रधानमंत्री जी की योजना में कराए जा रए। मनो जेई ने होंए प्रधानमंत्री।’’ भैयाजी मों सो बनात भए बोले।
‘‘जो आप सबई समझत हो तो काए के लाने इन ओरन की फोटुन को एल्बम बना के रख लओ? डिलीट-मिलीट करो इनखों। जे आपकी मोबाईल की मेमोरी घेरे बैठे रैहें।’’ मैंने कही।
‘‘देखो बिन्ना, तुम समझ नई रईं। अपनी मूंड़ की मेमोरी में इनकी सकल सेव कर के रखबे से तो जेई अच्छो के अपने मोबाईल की तनक सी मेमोरी पे इन ओरन को कब्जा कर लेन दओ जाए। अरे, मनो कभऊं कोनऊ काम पर गओ तो इन ओरन खों पैचानबी कैसे?’’ भैयाजी ने फेर अपनी बात दोहराई।
‘‘हऔ भैयाजी, बात तो सांची कै रए आप। ई बेरा मुतके नए चेहरा ठाड़े भए आएं, सो मोए सोई याद नईं रैने।’’ मोए भैयाजी की बात में दम दिखानी।
‘‘हओ, औ जे पम्प्लेट-मम्प्लेट को रख रओ जतन से। मौका परे पे हुन्ना-कपड़ा लों सो ढूंढत नई मिलत आएं, जे पम्प्लेट कहां से मिलहें? जेई लाने हमाई सलाह आए के अबे टेम है, जो कोनऊं वोट मांगबे के लाने आए, तुम सोई उनके संगे अपने मोबाईल पे अपनी फोटू खेंचवा लइयो।’’ भैयाजी खुसी दिखात भए बोले। आखीर मोए उनकी बात जो समझ में आ गई हती। 
‘‘भैयाजी, जित्तो आप सोच रए उत्ते तो उम्मीदवारन ने न सोची हुइए। पर जे सोचो के जो आप जीतबेवारी महिला उम्मींदवार के ऐंगर जा के जे फोटू दिखात भए जे कैसे कहोगे के आपने मोरे संगे जे फोटू खेंचाई हती?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब ईमें कोन सी परेसानी? उम्मर में हमाए बरोबर वारी हुइए सो ऊसे कहबी के काए बहनजी जे देखो अपने भैया के संगे जे तुमाई फोटू आए। औ जो लोहरी हुइए सो बोलबी के बिटिया तुम अपने मम्मा खों ने पैचान रईं? जे देखो तुमने हमाए संगे यानी अपने मम्मा के संगे फोटू खिंचाई रही। देखों बिन्ना, हमाओ कोनऊ ऐसो-वैसो इरादो सो है नइयां, सो हमें कोन को डर? जे फोटुएं तो मनो काम परे पे देखबे-दिखाबे के लाने आए। माने इने देख के हम उने पैचान लेबी औ उने दिखा के अपने क्षेत्रवारी रिश्तेदारी जता देबी।’’ भैयाजी ने तो सबई कछु सोच रखो रओ।
‘‘बो तो सब ठीक है भैयाजी, पर जे बताओ के जे सबरी महिला उम्मीदवारन की फोटू जो आपने अपने मोबाईल में रख लई आए, इने जो कहूं कोनऊ दिनां  भौजी ने देख लओ सो उने का कैहो?’’ मैंने भैयाजी की डर वारी बात पकर लई। 
‘‘राम-राम बोलो बिन्ना! जे का कै रईं? काए के लाने डरा रईं?’’ भैयाजी घबड़ा गए?ं मने उन्ने जे बारे में सोचई नई रओ।?
‘‘नईं, सोचने परत आए, भैयाजी! काए से के भौजी तो लुगाइयों के संगे आपकी जे फाटुएं देख के खुस तो ने हुइएं।’’ मैंने भेैयाजी खों तनक औ डराओ।
‘‘रामधई बिन्ना! तुमने तो हमाए लाने बखेड़ा कर दओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हमने का करी? आपई ने खिंचवाईं आएं जे फोटुएं। बाकी अब आप भौजी को बी जे ई सब समझा दइयो, जो आपने मोए समझाओ।’’ मैंने तनक औ चुटकी लई।
‘‘अरे, बिन्ना! बे ने समझ हें। बाकी मोए कछु तो करने पड़हे।’’ भैयाजी बड़बड़ात से बोले।
‘‘आप का उपाय करहो?’’
‘पतो नई। पर कछु ने कछु तो सोचनई परहे। सो अब तुम अपने घरे जाओ बिन्ना औ तुमाई भौजी के सुहागलों से लौटबे के पैले मोए ईके लाने कछु उपाय सोचन दो। काए से के बे अपनी सहेलियन से बातें करबे के लाने मोसे जे मोरो मोबाईल ले लेत आएं। जो उन्ने कहूं देख लओ तो बे तो बमक परहें।’’ भैयाजी सोच-फिकर में डूबत भए बोले।
‘‘ठीक है भैयाजी! जब सोच लइयो सो मोए सोई बताइयो!’’ कैत भई मैंने भैयाजी से विदा लई। बाकी भैयाजी की बात गलत नई हती के दुबारा दिखाने के जोन के चांस कम आएं उन उम्मीदवारन के संगे फोटुएं खिंचवा लओ चाइए। ताकि सनद रैहे।   
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए कोनऊ जीते, चाए कोनऊ हारे, मोए का करने? जो जीतहे वा क्षेत्र को तो नई पर खुद को विकास तो करई लैहे। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(01.07.2022)
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