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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 28, 2022

बतकाव बिन्ना की | जे तुमाए लाने हमाओ स्पेसल ऑफर आए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात


 "जे तुमाए लाने हमाओ स्पेसल ऑफर आए "... मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की
जे तुमाए लाने हमाओ स्पेसल ऑफर आए !
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
       मैंने किराना वारे खों फोन कर दई हती के एक-एक किलो के चार पैकेट पिसो पिसाओ गहूं को आटो, एक किलो राहर की दाल औ एक किलो दलिया घरे भिजवा दइयो। किराना वारे ने तीनों सामान भिजवा दओ। मनो जब सामान पौंचाबो वारो लड़का घरे आओ, उत्तई बेरा भैयाजी आन टपके। बे देखन लगे के मैंने कोन-कोन सो समान मंगाओ आए। आटो को पैकेट देख के भैयाजी ने ऊ लड़का से पूछी,‘‘काए गिरधारी, आटो का भाव चल रओ? नई वारी जीएसटी अबे लगी के नई?’’
‘‘को जाने? हमें पतो नोई।’’ गिरधारी ने कही। अब ऊको का पतो हुइए। बो ठैरो नौकर, दाम सो मालिक को पतो हुइए।
‘‘ईको जान तो देओ भैयाजी, जबे उते दूकान पे जाइयो सो उतई पूछ लइयो।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘हऔ! कै तो तुम ठीक रई बिन्ना, जे गिरधारी खों का पता हुइए। मनो, गिरधारी तुम तो कर्रापुर के रहबे वारे हो न?’’ भैयाजी ने गिरधारी को पीछा ना छोड़ो।
‘‘हऔ दाऊ!’’ गिरधारी ने सोई बड़े आराम से उत्तर दओ। हो सकत के बा तनक टेम पास करबे के मूड में होय। अभईं दुकान लौटहे सो, मालिक कहूं और दौड़ा देहे।
‘‘सो इते कहां रैत हो?’’ भैयाजी ने गिरधारी से आगे पूछी।
‘‘इते हम पुरानी मकरोनिया में रैत आएं, दाऊ!’’ गिरधारी सोई दीवार से टिक के बतियान लगो।
‘‘पुरानी मकरोनिया! हूं! सो तुमाए घरे औ को-को आ रैत आए?’’ भैयाजी ने मनो ऊको इन्टरव्यू लेबे की ठान लई हती।
‘‘इते, औ कोनऊ नई रैत।’’
‘‘सो अकेले रैत हो? किराए को कमरा ले रखो हुइए। कित्तो किराओ देने पड़त आए?’’ भैयाजी के सवाल रुकई नई रए हते।
‘‘छः सौ रुपइया।’’
‘‘इत्तो ज्यादा? सो तुमपे हो जात आए?’’ भैयाजी ने अचरज करत पूछी।
‘‘नईं, इत्तो हम अकेले कहां दे पाबी? फेर सो कछु बचहेई ना।’’ गिरधारी ने कही।
‘‘फेर?’’
‘‘फेर का? हम ओंरे चार जने संगे रैत आएं। सो डेढ़-डेढ़ सौ रुपइया सबई में बंट जात आए।’’ गिरधारी ने बताई।
‘‘हऔ सो, जे ठीक आए। सो, बे ओंरे सोई कर्रापुर के आएं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नईं, एक जने दलपतपुर को आए, एक मालथौन को औ एक गढ़ाकोटा को।’’ गिरधारी ने जानकरी दई।
‘‘सो, बे ओरे कहां काम करत आएं?’’ भैयाजी रुकबे को नांव नई ले रए हते।
‘‘एक सो हमाए संगे, सेठजी की दूकान पे काम करत आए। औ दो जने अलग-अलग होटलन में काम करत आएं।’’ गिरधारी बोलो।
‘‘हऔ सो, तुम ओरे खुदई खाना पकात हुइयो?’’ भैयाजी ने पूछीं
‘‘हऔ, औ को पकाहे?’’ गिरधारी हंसत भओ बोलो।
अब मोए खीझ होन लगी हती। काए से के जे बेफालतू की जानकारी ले के भैयाजी करहें का? ऊको बी टेम खराब कर रए औ मोरो बी।
‘‘अब जान तो देओ ईको!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, सो हमने कोन बांध रखो आए? जे सो खुदई ठाड़े-ठाड़े बतात जा रओ।’’ भैयाजी मासूमियत दिखात भए बोले।
‘‘हौ रैन तो देओ, आप दोनों जने।’’ मोए अब गुस्सा सो आन लगो हतो।
‘‘तो गिरधारी, तुमें सोई आटो खरीदने परत हुइए।’’ भैयाजी ने अगलो सवाल करो।
‘‘हऔ, औ का! खरीदनेई पडत आए।’’ गिरधारी ने कही।
‘‘सो मैंगो परत हुइए?’’
‘‘हऔ, मनो अब पिसी ले के को साफ कर रओ, को पिसा रओ?’’ गिरधारी बोलो।
‘‘कौन सो आटो लेत हो? खुलो के पैकेट वारो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘खुलो सो मनो ठीक नईं रैत, सो पैकेट वारो लेत आएं, पर सस्तो वारो।’’ गिरधारी बोलो।
‘‘बेटा गिरधारी, अब तुमाओ सस्तो वारो सोई सस्तो ने रैहे। काए से के पचीस किलो से नीचे के सबई पैकेटन पे जीएसटी बढ़ा दई गई आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ अब का कर सकत आएं, आऊ?’’ खाने सो पड़हेई। रोटी ने खाबी सो काम कैसे करबी?’’ गिरधारी दुखी होत भओ बोलो। जे देख के मोए अच्छो नई लगो।
‘‘आप ओरन खों गपियाने होय सो गपियाओ। मोए माफ करो!’’ मैंने तनक कर्रे ढंग से कही।
‘‘राम-राम दाऊ!’’ कैत भओ गिरधारी ने अपनी मोपेड चालू करी। मनो ऊकी काए की मोपेड, सेठजी ने दे रखी है ऊको सौदा पौंचाबे के लाने। सो गिरधारी समझ गओ के अब औ ठाड़े रैबो ठीक नइयां, सो वो बढ़ा गओ। पर भैयाजी सोचत भए बोले,‘‘बिन्ना, जे सरकार को कछू समझ में नईं आत आए का? जे गरीब-गुरबा तनक-तनक सो आटो ले के काम चलात आएं। जे ओरें कैसे जे मैंगाई झेलहें?’’
‘‘सही कही भैयाजी! मोए सोई एक-एक किलो को पैकेट लेने परत आए। इकट्ठो ले लेओ सो इत्तो जल्दी उठत नइयां ओ खराब होन लगत आए। बढ़ो भओ दाम सो मोए सोई चुकाने परहे। औ को जाने, जेई बेरा जुड़ गओ होय सो का पतो?’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘सुनो बिन्ना! तुम फिकर ने करो। ई बेरा सो तुमने आटो मंगा लओ, बाकी अगली बेरा ने मंगाइयो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, रोटी काए की बनाबी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘ऐसो है के हमाए इते तो हम महीना तीसेक किलो पिसी पिसवानेई परत आए, सो ऊमें से तुम सोई ले लइयो। तुमें बा पचीस किलो से ऊपर वारी घटी रेट पे मिलहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो मतलब जे के मोए आपसे आटो खरीदने परहे?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जेई समझ लेओ। बाकी, जब मन होए दे दओ करियो, औ मन ने होय सो कछू नईं, तुमसे का चार रोटियन को आटो को पइसा लेबी?’’ भैयाजी उदार होत भए बोले।
‘‘हऔ अगली बेरा की अगली बेरा देखी जेहे।’’ मैंने टरकाओ। काए से के आपसी में पइसन को लेन-देन ठीक नई रैत आए। मैंने भैयाजी से कही,‘‘मनो बात ठीक कै रै आप के सरकार को गरीबन पे तनऊ रहम नईं आउत आए? पच्चीस किलो से ऊपर को पैकेट बंद सामान सो सेठई हरें लेहें, छोटी तनखा औ छोटो परिवार वारो का करहे, एकई बेरा में इत्तो सारो ले के? मनो जे व्यवस्था सो हम ओरन को बजट बिगाड़ देहे।’’
‘‘जेई तो बात आए बिन्ना! अपन ओरें सो लतरौंदा आएं, जबे चाए पांव के नेचे कुचरो औ बढ़ लए आगे...अच्छे दिनन की ओर। बाकी, तुमाए लाने हमाओ जे स्पेसल ऑफर आए, याद राखियो। औ जबे चायने होय सो बता दइयो, आटो तुमाए घरे पौंचा देबी।’’ भैयाजी चलत भए बोले।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए आटो मैंगो होय, चाय नमक, खाने सो पड़हेई? मनो भैयाजी ने स्पेसल ऑफर दे के मोए सहूरी सोई बंधा दई। ऐसी सहूरी सो सरकार नई पोंचा रई।  बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(28.07.2022)
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