Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, August 17, 2022

चर्चा प्लस | राजनीतिक दलबदल | अध्याय-1 | हम और हमारा लोकतंत्र | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
 राजनीतिक  दलबदल: अध्याय-1
    हम और हमारा लोकतंत्र
  - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह                                                                                             
        महाराष्ट्र, बिहार, मध्यप्रदेश, गोवा, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश या कई अन्य राज्यों के नाम लिए जा सकते हैं जिन्होंने दल-बदल के ऐसे उदाहरण सामने रखें कि अपने लोकतंत्र पर तरस आने लगा। प्रश्न यह है कि क्या लोकतंत्र में यह दलबदल रोग नया है या इसकी जड़ें कहीं बहुत गहराई में हैं? तो चलिए खंगालते हैं ‘चर्चा प्लस’ में दलबदल के चाल, चेहरा, चरित्र को। चूंकि इस विस्तृत चर्चा को एक लेख में नहीं समेटा जा सकता है अतः अलग-अलग अध्यायों के रूप में धरावाहिक चर्चा करूंगी। आरंभ कर रही हूं लोकतंत्र के स्वरूप को पहचानने से।  

(डिस्क्लेमेयर: इस पूरी धारावाहिक चर्चा का उद्देश्य किसी भी नए या पुराने राजनीतिक दल, जीवित अथवा स्वर्गवासी राजनेता अथवा राजनैतिक विचारकों की अवमानना करना नहीं है, यह मात्र इस उद्देश्य से लिख रही हूं कि भारतीय राजनीति की चाल, चेहरा, चरित्र के बदलते हुए स्वरूप का आकलन करने का प्रयास कर सकूं। अतः अनुरोध है कि इस धारावाहिक आलेख को कोई व्यक्तिगत अवमानना का विषय नहीं माने तथा इस पर सहृदयता और खुले मन-मस्तिष्क से चिंतन-मनन करे। - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह)
हमने समय-समय पर राजनीति में बड़े उतार-चढ़ाव आते देखे हैं। एक व्यक्ति, किसी दल के कुछ सदस्य या फिर कभी-कभी पूरा का पूरा दल ही दूसरे दल के पक्ष में जाते देखा है। इसे हमने हमेशा अपने लोकतंत्र की विशेषता माना है। क्योंकि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही संभव है कि मतदाता यदि एक राजनीतिक दल की नीतियों से रुष्ट हो कर दूसरे राजनीतिक दल के उम्मीदवार को अपने अमूल्य मतदान से विजय दिलाता है, इस आशा के साथ कि वह उसकी आशाओं पर खरा उतरेगा और पराजित दल की खामियों को दूर करेगा। किन्तु अचानक मतदाता को यह पता चलता है कि उसके द्वारा जिताया गया उम्मीदवार न केवल अकेले अपितु अपने दल-बल सहित उसी राजनीतिक दल की शरण में चला गया जिसे मतदाता ने पराजय का मुंह दिखाया था। तब मतदाता स्वयं को ठगा हुआ अनुभव करता है और यह सोच कर स्वयं को दिलासा देने का प्रयास करता है कि यही तो लोकतंत्र है। किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को कोई भी दल अपनाने की छूट है। इसलिए इस स्थिति में आवश्यक है कि पहले हम अपनी लोकतांत्रिक प्रणाली को एक बार फिर समझ-बूझ लें।

चलिए सैद्धांतिक दृष्टि से देखते हैं कि क्या है लोकतंत्र? तो राजनीतिक विचारकों के अनुसार लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं। नागरिक समाज निर्माण करने की आकांक्षा ने मनुष्य को लोकतंत्र की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया क्योंकि यही ऐसी व्यवस्था है जिसमें सर्वसाधारण को अधिकतम भागीदारी का अवसर मिलता है। इससे केवल निर्णय करने की प्रक्रिया ही में नहीं अपितु कार्यकारी क्षेत्र में भी भागीदारी उपलब्ध होती है। ग्रीस, दुनिया का पहला लोकतांत्रिक देश है और सन् 1947 के बाद भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश बनने का गौरव मिला। वैसे भारत सहित अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया समेत केवल 56 देशों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया का पालन किया जाता है। लेकिन भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली बुनियादी रूप से कुछ तत्वों में उनसे भिन्न है।

लोकतंत्र शब्द बोलने में छोटा परंतु इसका अर्थ उतना ही बड़ा और जटिल निकलता है। ‘‘डेमोक्रेटिक’’ शब्द यूनानी भाषा के ‘‘डेमोस’’ और ‘‘क्रेटिया’’ यह 2 शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है लोग और शासन। इसीलिए डेमोक्रेटिक का शाब्दिक अर्थ में जनता का शासन। लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार यह “जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है”। लोकतंत्र को ‘‘प्रजातंत्र’’ के नाम से भसी पुकारा जाता है। एक ऐसी शासन प्रणाली है, जिसके अन्तर्गत जनता अपनी इच्छा से निर्वाचन में आए हुए किसी भी दल को अपना वोट देकर अपना प्रतिनिधि चुन सकती है और उनकी सरकार बना सकती है। विभिन्न युगों के विचारकों ने लोकतंत्र की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं-
“लोकतंत्र वह होगा जो जनता का, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो।” यूनानी दार्शनिक वलीआन।
“लोकतंत्र शासन के क्षेत्र में केवल एक प्रयोग है।’’ विचारक लावेल।
”लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा शासन है।” अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन।
“प्रजातंत्र वह शासन प्रणाली है जिसमें की शासन शक्ति एक विशेष वर्ग या वर्गों में निहित न रहकर समाज के सदस्य में निहित होती है।” लॉर्ड ब्राइस।
“प्रजातंत्र शासन का वह रूप है जिसमें प्रभुसत्ता जनता में सामूहिक रूप से निहित हो।” जॉनसन।
“प्रजातंत्र वह शासन है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का भाग होता है।” सिले।

अनेकानेक परिभाषाएं हैं लोकतंत्र की जिनका सार यही है कि यह राजनीतिक व्यवस्था शासन में जनता की भूमिका सुनिश्चित करती है। अर्थात् जनता अपना शासक खुद चुनती है। लोकतांत्रिक सरकार का तात्पर्य है कि ऐसी सरकार जिसे जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता के हित में चुना जाता है उसे ही लोकतांत्रिक सरकार कहते हैं। संवैधानिक कानून के भीतर नियम के अनुसार एक लोकतांत्रिक देश में सत्ताधारी सरकार सर्वोपरि नहीं होती है। अपितु यह विधायी निकाय है जो देश के संविधान द्वारा निर्धारित सर्वोच्च शक्ति रखता है। चूंकि एक नई सरकार एक निश्चित अवधि के बाद चुनी जाती है, उसके पास केवल कुछ स्थापित कानूनों में संशोधन करते हुए निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की शक्तियां होती हैं। ऐसी सभी गतिविधियां देश के कानून की देखरेख में ही की जा सकती हैं, जो सत्ताधारी सरकार से स्वतंत्र होती है और देश के लोगों द्वारा उनकी योग्यता और कौशल के आधार पर पदों पर कब्जा किया जाता है।

लोकतंत्र में भाषण, अभिव्यक्ति और पसंद की स्वतंत्रता होती है। एक लोकतंत्र जो जनता की आवाज को दबाता या रोकता है, वह वैध नहीं है। यदि कोई लोकतांत्रिक सरकार ऐसा करती है तो वह लोकतंत्र की बुनियादी विशेषताओं में से एक का उल्लंघन करती है। जनता की आवाज, भले ही वह सत्ताधारी पार्टी के लिए विपरीत हो, उसे स्वतंत्र रूप से प्रकट होने का अधिकार होता है। लोगों को उत्पीड़न के डर के बिना, अपने विचारों और अभिव्यक्तियों को प्रस्तुत करने का अधिकार होता है। यद्यपि इसका अर्थ यह नहीं है कि नागरिक अपने अधिकारों का उदंडता से प्रयोग करें। एक लोकतांत्रिक देश के नागरिक को अपने विवेक के आधार पर स्वतंत्र निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए, ताकि उसके विचार देश के कानूनों एवं प्रतिष्ठा को या किसी अन्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधा न पहुंचाएं। अभिव्यक्ति की यह स्वतंत्रता ही लोकतंत्र को सफल बनाती है। लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को गलत का विरोध करने का कानूनी अधिकार होता है जिससे आमजन शासक वर्ग को उसके कार्यों और नीतियों को जनहित विरोधी बनने से रोक सके।

लोकतंत्र में सभी के लिए समान कानून व्यवस्था होती है। यह व्यवस्था समाज में समानता स्थापित करती है जिसमें जाति, वर्ग, धर्म अथवा आर्थिक स्थिति से परे समान अधिकार और कानून प्रदान किया जाता है। लोकतांत्रिक प्रावधान के अनुसार किसी भी राजनेता, विशेष श लोकप्रिय व्यक्ति या सरकारी निकाय के साथ विशेष व्यवहार नहीं किया जाता है। देश के आम लोगों पर लागू कानून मशहूर हस्तियों या प्रसिद्ध व्यक्तियों पर भी समान रूप से लागू होता है। भारतीय संविधान के अनुसार देश में हर परिस्थिति में कानून सभी लोगों के लिए एक समान रखा गया है।

लोकतंत्र में न्यायपालिका स्वायत्त निकाय की भांति कार्य करती हैं। हमारे देश में भी न्यायपालिका प्रणाली या न्यायालय एक स्वायत्त निकाय हैं और किसी भी सरकारी संगठन या पार्टी के नियंत्रण में नहीं हैं। भारत के न्यायपालिका निकाय द्वारा पारित राय, कानून या कार्य किसी भी विधायिका प्राधिकरण और उनके स्वतंत्र निर्णय से प्रभावित नहीं होते हैं।

वैसे लोकतंत्र के भी कई प्रकार हैं। के मुख्य रूप से दो प्रकार माने जाते हैं। जिनमें दो प्रमुख लांकतांत्रिक व्यवस्था है- विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र। दूसरी लोकतांत्रिक व्यवस्था है- प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र। इन दोनों बुनियादी स्वरूपों के अतिरिक्त लोकतंत्र के अन्य भी गई रूप हैं जो विश्व के विभिन्न देशों में क्रियाशील हैं। जैसे- सत्तावादी लोकतंत्र, राष्ट्रपति लोकतंत्र, संसदीय लोकतंत्र, भागीदारी प्रजातंत्र, सामाजिक लोकतंत्र तथा इस्लामी लोकतंत्र आदि। इन सभी की बुनियाद में प्रत्यक्ष लोकतंत्र और अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ही है। इसलिए कुछ पंक्तियों में यह समझना आवश्यक है कि लांकतंत्र के ये दोनों बुनियादी स्वरूप अखिर हैं क्या? तो पहले विशुद्ध या प्रत्यक्ष लोकतंत्र को देखते हैं। वर्तमान में स्विट्जरलैंड में प्रत्यक्ष लोकतंत्र चलता है। इस प्रकार का लोकतंत्र प्राचीन यूनान के नगर राज्यों में पाया जाता था। प्रत्यक्ष लोकतंत्र से तात्पर्य है कि जिसमें देश के सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से राज्य कार्य में भाग लेते हैं। इस प्रकार उनके विचार विमर्श से ही कोई फैसला लिया जाता है । प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो ने ऐसे लोकतंत्र को ही आदर्श व्यवस्था माना था।
दूसरा है प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र। कई देशों में आज का शासन प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र है जिसमें जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा निर्णय लिया जाता है। इसमें देश की जनता सिर्फ अपना प्रतिनिधि चुनने में अपना योगदान देती है, वह किसी शासन व्यवस्था और कानून निर्धारण  लेने में भागीदारी नहीं निभाती है। इसे ही प्रतिनिधि सत्तात्मक या अप्रत्यक्ष लोकतंत्र कहते हैं। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता खुद कानून बनाती है और उसे लागू करती है ,प्राचीन यूनान में अपनाया गया था। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और वह प्रतिनिधि कानून बनाता है ज्यादातर देशों में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाया गया है। प्रत्यक्ष लोकतंत्र को आसानी से नहीं अपनाया जा सकता, वह केवल वही अपनाया जा सकता है जहां की  जनसंख्या कम होती है। प्राचीन समय में जनसंख्या 500 से 600 लोगों की हुआ करती थी, इसलिए आपस में ही मिलकर कानून बनाते थे और उसे लागू करते थे। परंतु आज के समय में कोई भी छोटे से छोटा देश या राज्य ऐसा बिल्कुल नहीं कर सकता, वर्तमान में प्रत्येक राज्य या देश की संख्या लाखों और करोड़ों में है। इसलिए वर्तमान में अधिकतर अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को अपनाया गया है। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में प्रणालीगत सुविधा यह है कि इसमें देश के राज्य की जनता अपने मनपसंद प्रतिनिधियों को चुनती है और वह प्रतिनिधि देश के लिए  कानून बनाते हैं और उसे लागू करवाते हैं।

इससे समझा जा सकता है कि हम भारतीय अप्रत्यक्ष लोकतंत्र प्रणाली के भागीदार हैं। लेकिन इसका अर्थ यह भी कदापि नहीं है कि भारतीय नागरिकों के अधिकार कमतर हैं। यह रूमरणीय है कि आमचुनावों द्वारा जनता के द्वारा अपना प्रतिनिधि अपने हित के अनुसार चुना जाता है। जनता जब चाहे उसका विरोध कर के उसे सत्ताच्युत कर सकती है। किसी भी योजना के सफल या असफल होने पर सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। लोकतांत्रिक सरकार में कोई व्यक्ति स्वतंत्र रूप से निर्णय नहीं ले सकता है। सभी जनप्रतिनिधि मिल कर बहुमत के आधार पर कोई भी निर्णय को पूर्णता देते हैं। लोकतंत्र में स्वतंत्रता, समानता, अधिकार, धर्मनिरपेक्षता और न्याय जैसी अवधारणाओं का प्रमुख स्थान है।

लोकतंत्र को जॉन स्टूअर्ट मिल ने जनता का शासन बताया कहा है। उन्होंने अपने सुप्रसिद्ध किताब ‘‘रिप्रेजेंटेटिव गवर्नमेंट’’ में लोकतंत्र के बारे में लिखा है कि ‘‘किसी भी सरकार में गुण दोषों का मूल्यांकन करने के लिए दो मापदंडों की आवश्यकता होती है। उसकी पहले कसौटी यह है कि क्या सरकार का शासन उत्तम है अथवा नहीं? और उसकी दूसरी कसौटी है कि उसके शासन का प्रजा के चरित्र निर्माण पर अच्छा प्रभाव पड़ रहा है अथवा बुरा।’'

        कुछ और भी गहराई से लोकतंत्र को टटोलते हुए हम आगे देखेंगे कि हमारा भारतीय लोकतंत्र अपनी दलबदल की राजनीति के आधार पर किस सांचे में रखा जा सकता है और हम अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा क्या सचमुच छले जा रहे हैं? पढ़िए अगली किस्त में।
   ----------------------------
#DrSharadSingh #चर्चाप्लस #सागर_दिनकर #डॉसुश्रीशरदसिंह #राजनीतिक_दलबदल #दलबदल #हम_और_हमारा_लोकतंत्र #अध्याय_1
#IndianPolitics #Defection #IndianRepublic #Republic

No comments:

Post a Comment