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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 11, 2022

बतकाव बिन्ना की | ईडी बुलाइले कसम से पिया, जिगरमां बड़ी आग है | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | साप्ताहिक प्रवीण प्रभात

बतकाव बिन्ना की
ईडी बुलाइले कसम से पिया, जिगरमां बड़ी आग है ...
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
               आज भुनसारे मंदिर जात बेरा भैयाजी के दुआरे से निकरी सो भैया जी अपने दांतन में बुरुश घिसत-घिसत गुनगुनात जा रए हते-
ईडी बुलाइले ले कसम से पिया
जिगर मा बाड़ी आग है ...

‘‘जो का गा रए भैयाजी?’’ मैंने भैयाजी से पूछी। काए से के मोए अच्छे से पतो आए कि जो गानो ऐसो नइयां। गाने में ईडी-मीडी की नईं, बीड़ी की बात करी गई आए।
‘‘कछु नईं, ऊंसई!’’ भैयाजी उतई कुर्सी के धरो मग्गा के पानी से कुल्ला करत भए बोले।
‘‘अब जो का कर रए, भैयाजी? पैलऊं गानों तोड़-मरोड़ के गाओ औ अब हमरई आगे कुल्ला कर रए। जे ठीक नइयां!’’ मोए भौतई गुस्सा आओ।
‘‘अरे बिन्ना, गुस्सा ने करो! गलती हो गई। मनो तुम तनक बैठो हम अभईं मों धो के आ रए।’’ कैत भए भैयाजी ने मग्गा उठाओ औ घरे भीतरे दौड़ लगा दई।


नईं! आपई ओरें सोचो के जे का अच्छो लगत आए के सड़क पे कुल्ला-मुखारी करत आप ठाडे हो गए। अरे, कछु लिहाज, सरम सोई रखो चाइए।
जोन पे मग्गा धरो रओ, बोई कुर्सी खों मैंने अपने हाथन से तनक फटको औ बैठ गई। कछु देर में भैयाजी जी चाय के दो कप धरे प्रकट भए।
‘‘लेओ बिन्ना, चााय पियो! तुमाई भौजी ने तुमाई आवाज सुन लई रई सो उन्ने मोरे कहबे से पैलऊं तुमाए लाने चाय बना दई।’’ भैयाजी ने एक कप मोए पकराओ औ एक कप ठाड़े-ठाड़े खुद सुड़कन लगे।
‘‘आप बैठ लेओ भैयाजी! मोरे आगे आप ठाड़े रहो, जे नईं हो सकत।’’ मैंने कुर्सी से तनक उठत भए कही।
‘‘अरे, नईं-नईं, तुम बैठो! हमें बैठने हुइए सो हम अपने लाने कुर्सी का, पलकां उठा लाहें।’’ कैत भए भैयाजी हंसन लगे।
‘‘बा तो सब ठीक आए, आप तो जे बताओ के जे बाहरे कुल्ला-मुखारी काए कर रए हते? काए आपके लाने का जे साजो लगत आए?’’ मैंने भैयाजी खों फेर टोंकी।
‘‘अरे, बो का बताएं, बिन्ना! हम सो भीतरई गुसलखाने में बुरुश कर रए हते, तभई बो बरेदी आ गओ। ऊने आवाज लगाई सो हम बुरुश करत भए, हाथ में मग्गा उठाए बाहरे चले आए। अब हमें का पता हती के तुम टपक परहो औ भुनसारे से खिंचाई करन लगहो।’’ भैयाजी खिसियात भए बोले।
‘‘अच्छो, चलो छोड़ो! आप सो जे बताओ के आप भुनसारे से ऐसो गानो काए गा रए हते? मानुस हरें सो सुबै-सुबै रामनाम जपत आएं औ एक आप हो के बा बीड़ी वारो गानो गा रए हते, वा बी गल्त-सल्त।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘अरे बो गानो! बा तो हमें सोई पतो आए के असली गानो कैसो आए, मनो कल हमने ऊको जे वारो वर्जन सुन लओ, सो तभई से हमाए मूंड़ में जो घुस गओ। बाकी जे बनाओ अच्छो गओ आए...
ईडी बुलाइले ले कसम से पिया
जिगर मा बाड़ी आग है’’
... भैयाजी गानोई गान लगे।

‘‘कां सुन लओ जे वर्जन?’’ मैंने पूंछी।
अरे, कल्ल संझा खों तुमाई भौजी बोलीं के दो दिना हमें उपास राखने आए, सो तुम जाओ औ जमुना मिठिया के इते से चिरौंजी की बर्फी तौला लाओ। सो हम जमुना मिठिया के इते गए। उते हमें मिश्राजी और सोनीजी मिल गए। अब तुम तो जानत हो बिन्ना के बे दोई ठैरे एन्टी पार्टी के। मिश्राजी भाजपा के आएं सो सोनीजी कांग्रेस के। दोई में राजनीति को ले के खिचखिच हो रई हती।’’ भैयाजी बोले।
‘‘का दोई लड़ रए हते?’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, राम को नाम लेओ! काए खों आपस में लड़हें बे ओरें? दोई चिरौंजी के बर्फी संगे सूंट रए हते औ मों-जबानी बक-झक कर रए हते। मिश्राजी कै रए हते के ज्यादा ने उड़ो सोनीजी, एकाद दिना तुमाए इते ईडी को छापो पड़वा देबी सो समझ में आ जेहे। सो सोनी जी बोल रए हते के हऔ, पड़वा के सो देखो, कछु निकर आए सो हमें सोई बता दइयो। मने उन ओरन के बीच जे टाईप की बहस हो रई हती। उत्तई पे हम पौंच गए सो दोई ने हमें घेर लओ। मिश्राजी हमें चिड़कात भए कहन लगे के जे आ गए अपने खेजरीवाल। हमने कही के हमें खेजरीवाल काए बुला रए? तुमे सोनीजी खों जो कैने होय सो कहो, पर हमें ने छेड़ो। जो हम छिड़ गए ना, सो तुमे भागबे की गैल ने मिलहे।’’ भैयाजी बतात जा रए हते।
‘‘आप सोई भैयाजी...’’ मोए तनक झेंप लगी।
‘‘अरे, कोनऊं ऐसी-वैसी बात नोई। हमाई बात खों गल्त ने समझियो। वा तो एक बेर हम धन्नू की टपरिया पे ठाड़े हते के मिश्राजी ने पांछू से आ के हमाए पीठ पे जम के धौल जमा दई हती। हमें बड़ो गुस्सा आओ औ हमने उने जो दौड़ाओ के बे भगतई फिरे। बोई की हमने उने याद कराई। बाकी हमने दोई से पूछी के काए गिचड़ रए? तुम ओरन खों और कोनऊं काम नईंया का? जो कछु नइयां सो जे बीच सड़क पे बैठो बैलवई भगाओ, जे सब्जी के ठेलावाले हरों के लाने कछु अच्छी सी जांगा तलाश करो। इते ठाड़े-ठाड़े मों चलाबे से कछु ने हुइए। हमने इत्तई बोलो के उते बो खसुआ आ गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कौन खसुआ?’’ मैंने पूछी। काए से खसुआ कोनऊ निठल्ला घाईं तो फिरत नइयां।
‘‘अरे बोई, राधे-राधे वारो! बो मानो असली खसुआ नइयां पर घांघरा-चोली पैन के, चुन्नी डारे रैत आए। अरे, तुमने सोई देखो हुइए, ऊके लाने। कभऊं-कभऊं बो अपने हाथ में एक गड़ई-सी लओ रैत आए। और बोई गड़ई बजा-बजा के गानो गान लगत आए।’’ भैयाजी ने याद दिलाबो चाहो।
‘‘हऔ-हऔ, मोए याद आ गई। बो तिलक-चंदन सो लगाए रैत आए। का नांव आए ऊको,...अरे...हऔ राधे तो नांव है ऊको।’’ मोए अब याद आ गई हती।
‘‘हऔ राधे! मनो ऊको असल नांव कछु और आए, हमें अभई याद नईं पड़ रई, बाकी बो राधे-राधे कैत रैत आए सो सबई ऊको राधे के नांव से पुकारत आएं। सो, बोई राधे उते आ गओ। औ सोनीजी की चुटकी लेत भओ मिश्राजी के बगल में ठाड़े हो के जेई गानो गान लगो के - ईडी बुलाइले काम से पिया, जिगर में बड़ी आग है... जे सुन के तुमाई घांई हमने सोई ऊको टोंको के तुम जे गल्त गानों गा रए। जो ऐसो नइयां। ऊमें बीड़ी आए ईडी नोईं।’’ भैयाजी ने बताई।
‘‘फेर?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर का, राधे बोलो के बीड़ी औ ईडी में फरकई का आए? दोई जिगरा जलाबे को काम करत आएं।’’
‘‘ऐसो नईयां!’’ भैयाजी बोले,‘‘हमने ऊको समझाओ के ऐसो नइयां, राधे! बीड़ी से अपनो करेजा फंुकत औ ईडी से दूसरे को करेजा फंुकत आए। बीड़ी पीबे में अपनो पइसा लगत आएं औ ईडी पौंचबे से दूसरो का पइसा निकरत आए। तनक समझो दोई में फरक।’’
‘‘फेर, का बोलो राधे!’’मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बो कैन लगो के सो ईमें का? आजकाल सो बीड़ी को नईं ईडी को जमानो आए। मनो तनक सोचो के हमाई भौजी की अपनी पड़ोसन से लड़ाई हो जाए औ हमाई भौजी के बस में ईडी को छापो परवाने को पावर होय सो बे अपने कलेजा में ठंडक पारबे के लाने अपनी पड़ोसन के घरे ईडी को छापो परवाबे में कभऊं ने चूकहें। आजकाल सो जिगर की आग ईडी सेई बुझत आए।’’
‘‘कै सो सांची रओ हतो।’’ मैंने समर्थन करी।
‘‘हऔ, तभई सो हमाए मूंड़ में जो गानो घुस गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो आप गानो गाओ, भौजी खों सुनाओं, औ मोए देओ इजाजत!’’ मैं उठ के ठाड़ी भई और मैंने अपनी गैल थाम लई। पांछूं से भैयाजी को गुनगुनाबे की आवाज सुनाई पड़ रई हती। सच्ची, आजकाल कोनऊ खों अपने जिगर की आग बुझवाने होय सो अपने बैरी के इते ईडी को छापो परवा देओ। औ जे नेता हरें कर सकत आएं, हम-आप ओरें नईं।
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए बात बीड़ी की होय, चाय ईडी की, मोए का? मोरी दसा सो बा कहानी के, मोरे घरे सो भूंजी भांग नईं, नशा काए को चड़हे? बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!   
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(11.08.2022)
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