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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, September 1, 2022

बतकाव बिन्ना की | आम के ब्याओ में सगौना फूलो | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

"आम के ब्याओ में सगौना फूलो"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
🌷हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की
आम के ब्याओ में सगौना फूलो
    - डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
       सांची कहौं, आजकाल जी सो नई लग रओ। काए से के मोरे भैयाजी भौजी के संगे देवी दरसन के लाने निकर गए आएं। अष्टमी लों लौटहें। सो मोए समझ में नई आ रई के कोन से बतकाव करी जाए? कैने को तो पूरो शहर कहानो, पर भैयाजी की बात अलग ठैरी। उनसे बतकाव करबे में मजो आत आए औ गिचड़ करे में सो कैने ई का! आनन्द ई आनन्द कहानो! जेई से बोरीयत सी हो रई। बाकी मोए कछु खास फिकर की जरूरत नईयां, काए से आप ओरें सो हो, बतकाव के लाने। सो ऐसो आए भैया, बहनों के काल मोए बीना जाबे को मौेका परो। उते मोरी मुलाकत भई एक नोनी-सी लिखबे वारी बहना से। उनको नांव आए डाॅ. संध्या टिकेकर। मराठी में खूबई नोनी कविताएं करत आएं। फेर उतई बीना में मिलबो भओ अपनी बुंदेली में गजलें कहबे वारे भैया महेश कटारे जी से। उन्ने हमाए भैयाजी की कमी पूरी कर दई। हम दोई बुंदेली बोली के व्याकरण खों ले के खूबई गिचड़े। बा तो संध्या जी संगे हती सो हमाई गिचड़-तान लम्बी ने ख्ंिाच पाई। बाकी दोई से मिल के भौतई अच्छो लगो। कभऊं-कभऊं ऐसे लोगन से मिलो करे चाइए।
बाकी जब मैं बीना जा रई हती सो रस्ता में मुतके सागौना दिखाने। आहा-हा! सबरे फूलन से पटे परे हते। उनकी ब्यूटी सो देखतई बन रही हती। जात बेरा सो तनक जल्दी हती। पर लौटत बेरा मैंने सगौना के संगे अपनी फोटू खेंचवाई। जोन खों देखने होय सो मोरे फेसबुक पे देख लइयो। काए से के आजकाल अपनो फेस उतई दिखाबे को चलन आए। सो, जब मैंने फूलन से लदे भए सगौना देखे सो मोए एक किसां याद आ गई। चलो, आज आप ओरन खों बोई किसां सुना रई। बाकी जा लोककथा आए। सो, हो सकत के आप ओरन में कुल्ल जने ने सुनी होय। किसां को नांव आए-‘‘आम के ब्याओ में सगौना फूलो’’। बाकी मैं जे पैलई बता दे रई के अपने देस में बड़े-बड़े सिंगल पर्सन आएं, सो उनसे जोड़ के ई किसां को ने देखियो, ने तो आप ओरें मोरी बैंड बजवा देओ!
खैर सुनियो! का भओ के एक गांव हतो। जेई अपने बुंदेलखंड में। सो उते रहत्ते सौंर जनजाति वारे। बाकी जब की किसां आएं तब उने ‘जनजाति’ नई कहो जात्तो। तब की व्यवस्था अलगई हती। सो, ऊ गांव में एक आम को पौधा उग आओ। सबई जने बड़े खुस भए। सब जने मिल के ऊको पालन-पोसन लगे। कोनऊं पानी डारत तो कोनऊं माटी गोड़त। कछू दिनां में आम को पौधा बढ़त-बढ़त बड़ो हो गओ। ज्वानी में कदम रखतई ऊ आम के पेड़ की पत्तियां झरन लगीं। गांव वारन ने देखी सो बे फिकर में पर गए। उने कछु समझ में ने आई के अच्छो खासो ज्वान आम के पेड़ खों का हो गओ? जे ठूंठ काए बनत जा रओ? सो गांव वारन ने पंचन से कही के कछू करो।
‘‘अब हम का करे? हमें सोई समझ में ने आ रई।’’ पंच बोले।
‘‘कछू सो करने परहे, ने तो जा पेड़ ने बच पाहे।’’ गांव वारन ने कही। ऊ टेम पे आजकाल घांईं ने होत्तो के पेड़ चाए मरें, चाए कटें हमें का करने। जे वारी सोच ऊ बखत पे ने हती। सो पंचों ने सोची के चल के आम से ई पूछ लओ जाए के तुमें का हो गओ औ तुमाए लाने का करो जाए?
‘‘काए आम भइया! ऐसे मुरझा काए रए? तुमाई सो पत्तियां झरी जा रईं। काए का हो गओ तुमें?’’ पंचन की ओर से सरपंच ने पूछी।
‘‘काए दिखा नई रओ का? अंधरा हो का? हमें इते अकेलो खड़ो कर दओ, ने कोनऊं बोलबे वारो, ने बतियाने वारो! हमाई सो जिनगी झंड कहानी।’’ आम ताना मारत सो बोलो।
‘‘सो तुमी बताओ के का करो जाए? बाकी हम ओंरें सो तुमसे बतियाबे के लाने आ जाओ करहें।’’ सरपंच ने कही।
‘‘तुम ओरन से का बतियाबी? तुम ओरें इते-उते फिरत रैत हो औ हम इते एकई जांगा ठाड़े रैत आंए।’’ कैत भओ आम को पेड़ चुप्पी मार गओ।
अब संरपंच ने पंचन से राय लई के का करो जाए? एक पंच ने कही के ‘‘इत्तई बड़ो एक औ पेड़ ला के इते लगा दओ चाइए, जीसे इको अपनो सो संगवारो मिल जाए।’’
‘‘हऔ, सबई खों अपनई जैसों से बतियाबे में मजो आत आए। सो, जेई करो चाइए।’’ दूसरो पंच बोलो।
गांव भरे को जे बात पोसा गई। सबरे निकर परे हारे की ओर। हारे पोंच के उन्ने उत्तई बड़ो पेड़ ढूंढ निकारो। बे ओंरे पेड़ ले आए औ लगा दओ आम के लिंगे।
आईडिया काम कर गओ। आम को पेड़ फेर के हरियान लगो। सबई ने देखो के कछु दिनां में आम पे बौरें आ गईं। पूरो पेड़ महकन लगो। गांव वारे बड़े खुस भए। पर जे खुसी ज्यादा दिनां ने टिकी। आम को पेड़ फेर के मुरझान लगो। गांव वारे अपने पंच, सरपंच हरों खों ले के ऊ के ऐंगर पोंचे।
‘‘काए भइया! अब का हो गओ तुमे? तुमने कही सो हमने तुमाए लाने तुमाओ संगवारो लान दओ। मगर तुम हो के फेर के छंछूदरा से लटकन लगे। अब का हो गओ, कछु बताओ!’’ सरपंच ने पूछी।
‘‘हऔ, हमने मान लओ के तुमने हमाए लाने एक संगवारो लान दओ, पर जे आम नोंई सगौना आए। हम ठैरे आम। अब हम ईसे बातई कर सकत आएं, ईके संगे हमाई जिनगी नईं कट सकत।’’ आम को पेड़ मों फुला के बोलो।
‘‘सो जे बात आए! अब हम समझ गए! ठैरो जल्दी कछु करत आएं तुमाए लाने।’’ सरपंच ने आम खों ढाढस बंधाई।
‘‘फेर का सोची सरपंच जी?’’ सबई ने एक संगे पूछी सरपंच से।
‘‘सोचने का? एक आम को पेड़ कहूं से और लाने पड़हे। सो सबरे ढूंढबे में लग जाओ।’’ सरपंच ने कही।
दो-चार दिनां में पतो परो के दो गांव छोड़ के तीसरे गांव में एक आम को पेड़ो लगो आए। फेर का, ई गांव वारे ऊ गांव पौंच गए। ऊ गांव लोहरो हतो। बे ओरे मना नईं कर सकत्ते। सो, उन्ने सोची के जेई बहाने जे बड़े गांव वारन से संबंध बना लओ जाए।
‘‘आप ओंरे हमाओ पेड़ ले जा सकत हो पर एक शर्त पूरी करने परहे।’’ लोहरे गांव वारन ने कही।
‘‘बोलो, का शर्त आए?’’
‘‘जे के तुमे हमाए पेड़ से अपने पेड़ को ब्याओ करने परहे।’’ शर्त  बताई गई।
ईमें कोनऊं खों तनकऊं दिक्कत ने हती। चट मंगनी, पट ब्याओ! लोहरे गांव से आम को पेड़ बड़े गांव में लाओ गओ औ दोई पेड़न को ब्याओ कर दओ गओ। ईके बाद दोई पेड़ इत्ते खुस भए, इत्ते खुस भए के फलन लगे औ गांव वारन की अंखियन के तारा बन गए। 
जे सब देख के सगौना को लगो के फूलबे से भौतई लाभ होत आए। आम फूलो सो ऊको अपनो सो संगवारो मिल गओ। सो, मोए सोई फूलने चाइए। सगौना ने सोची औ बो फूलन लगो। सगौना खों जे अकल में ने आई के खाली नकल करबे से कछु नईं होत। सो, जब गांव वारन ने सगौना खों फूलत भओ देखो, बे हंस-हंस के कैन लगे-‘‘देखो तो तनक, आम के ब्याओ में सगौना फूलो जा रओ।’’ 
सो भैया, बहनो! तभई से जे कहनात चल परी के आम के ब्याओ में सगौना फूलो। काए से के नकल के संगे अकल सोई चायने परत आए। खुदई-खुद फूलबे से कछू नईं होत। सगौना के लाने ऊको मेल को कोनऊं संगवारो ने लाओ गओ। मुतके बरस बा ऊंसई अकेलो ठाड़ो रओ। पंछियन ने ऊकी दसा उन सगौना हरों खों बताई जो हारे में ठाड़े हते। हारे के सगौना हरों ने कसम खाई के गांव-शहर में कभऊं ने रैबी। सो अब आम गांव-शहर में रैत आए औ सगौना हारे में।  
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए ई किसां खों कोऊ कोनऊं से जोड़े, मोए का? ऊंसई अपने इते पक्ष-विपक्ष दोई में सिंगल पर्सन पाए जात आएं, सो का कही जाए। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(01.09.2022)
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