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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, September 16, 2022

बतकाव बिन्ना की | कागा की जांगा डिबेट वारन खों बुला लेओ | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात


 "कागा की जांगा डिबेट वारन खों बुला लेओ"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की
कागा की जांगा डिबेट वारन खों बुला लेओ
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘काए भैयाजी, कुल्ल दिनां लगा दए लौटबे में। आंठें की बोल के गए रए औ अबे करै दिनां में लौटे हो!’’ मैंने भैयाजी खों उलाहना दओ।
‘‘अरे का कहो जाए बिन्ना! तुमाई भौजी को कोनऊं ठिकानों नइयां। मनो आंठें की लौटबे की तय रई पर तुमाई भौजी खों लगो के दमोए लों आएं हैं सो पन्ना निकर चलें। पन्ना पौंचें सो कहन लगीं के अब सतना वारी चाची से मिलबे खों इतई से सतना चलो। चाची ऊंसईं सयानी ठैरीं, मनो उम्मर हो चली है उनकी। हमें सोई लगो के फेर के आबे खों टालबी सो कहूं मिलीं के ने मिलीं। सो, उतई से सतना निकर गए। अब सतना पौंचें सो तुमाई भौजी कहन लगीं के इते लो आए औ मैहर ने गए सो शारदा मैया नराज हो जेहें। अब ने तो तुमाई भौजी को नराज करो जा सकत्ते और ने शारदा मैया खों। बस, जेई-जेई में देर होत चली गई। मनो, इते का होत रओ? इते की कछु सुनाओ।’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘इते कछू खास नई भओ! बाकी आप ओरन की कमी खटकत रई। हिम्मा की मताई सोई आपके लाने पूछ रईं हतीं। हऔ, बाकी नई बात जेई आए के हिम्मा की मताई व्हाट्सअप्प चलान लगी आएं।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘बा डोक्को? सांची कै रईं?’’ भैयाजी अचरज में पड़ गए।
‘‘हऔ, कसम से! मोए सो खुदई यकीन नई हो रओ हतो। बाकी अब सो उन्ने मोए सोई अपने ग्रूप में जोड़ लओ आए औ संझा-संकारे देवी-देवता की फोटुएं भेजत रैत आएं। औ इत्तई नईं, उने राजनीति की सोई अच्छी जानकारी हो आई आए। मैं तो सोच रई कि अगली चुनाव में उनई को ठाड़ो करा दओ जाए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, बात तो तुम ठीक कै रईं, मनो आए अचरज की बात!’’ भैयाजी को यकीन ने होरओ हतो।
‘‘ख्ुादई देख लइयो।’’ मैंने कही। बाकी मोए लगो के भैयाजी को ध्यान कहूं औरई आए। बे इते-उते मुंडी घुमा-घुमा के देख रए हते। सो मैंने पूछई लई,‘‘जे आप इते-उते का हेर रए? औ कछू चिन्ता-फिकर में दिखा रए! का हो गओ?’’
‘‘नईं कछु नई भओ! बाकी परेसानी की बात जे आए के करै दिन सो चल रए, मनो कागा एक नईं दिखा रए। हमें सो जे समझ में नईं आ रई के सबरे कागा किते चले गए? जब हम छोटे हते सो इते एक नींम को पेड़ हतो, ऊमें मुतके कागा बैठे रैत त्ते। औ जो कहूं कोनऊं कछू उनके लाने खाबे खों देत्तो सो बे नीचे उतर आउत्ते। अब एकऊं नईं दिखात। अब करै दिनां में कागा खों रोटी, बरा सबई कछु खिलाने परत आए, सो मोए समझ में ने आ रई के का करो जाए?’’ भैयाजी फिकर करत भए बोले।
‘‘अब कागा काए ने आ रए ईको उत्तर सो आप ई ने दे दओ।’’ मैंने कही।
‘‘हमनें का उत्तर दे दओ?’’ भैयाजी अचरज से पूछन लगे।
‘‘आप ई सो बोल रए के जब आप छोटे हते सो इते एक नींम को पेड़ रओ औ ऊपे कागा बैठे रैत्ते। सो अब अपाई ओरन ने नीम को पेड़ कटा डारो, सो कागा काए पे आ के बैठें? अपन ओरन के मूंड़ पे आ के सो ने बैठहें। नींम के पेड़ पे बे ओरें अपनो घोंसला बनाऊत आएं, रैत आएं अब उन ओरन को घर नई रओ सो बे काए के लाने इते ढूंकहें? आपई बताओ?’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ बिन्ना कै सो तुम सांची रईं, मनो अब का करो जाए? तुमाए कहे से हमने परकी साल एक पेड़ सो लगा दओ आए, पर ऊको बड़े होने में टेम लगहे। अबे का करो जाए? कछु आईडिया देओ के कागा हरों को कैसे बुलाओ जाए? छत पे बरा डाल देओ सो चिरइयां खा रईं, ने तो गिलरियां खा जात आएं। अब कागा ने खैहें सो पुरखन खों कैसे मिलहे?’’ भैयाजी के माथा पे चिन्ता की लकीरें दिखान लगीं।
‘‘अरे कछु नईं भैयाजी! आप फिकर ने करो! मोरे पास आइडिया है न!’’
‘‘कोन सो आइडिया? कैसो आइडिया? तनक जल्दी बताओ।’’ भैयाजी जल्दी मचात भए पूछन लगे।
‘‘आप बे पंख वारे कागा खों छोड़ो आप सो टीवी के डिबेट वारे कागा बुला लेओ जिमाने के लाने।’’ मैंने कही।
‘‘का मतलब? हमें कछू समझ में ने आई?’’ भैयाजी मोरो मों हेरन लगे।
‘‘ईमें ने समझ पाने वारी कोनऊ बात नइयां।’’ मैंने कही।
‘‘नईं, सो टीवी के डिबेट वारन को कागा से का मेल?’’ भैयाजी को कछु समझ में ने आ रओ हतो।
‘‘ भैयाजी, सुनो आप! जे बताओ के कागा हरें कोन टाईप से बोलत आएं?’’
‘‘कांव-कांव करत आएं, जे सो सबई खों पतो आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘औ टीवी के डिबेट में बैठन वारे का करत आएं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बे सोई कांव-कांव करत रैत आंए! सबरे एकई संगे ऐसे चालू हो जात आएं के कोनऊं की एकऊ बात पकर में ने आत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, हमने अभई दो दिनां पैले एक टीवी चैनल में एक डिबेट देखी रई। बाकी आजकाल मैंने छोड़ रखो आए, काए से जे कांव-कांव में मोरो जी नई लगत। पर ऊ दिनां अपने सागर की सीएम राईज स्कूल की घटना पे डिबेट हती, सो मैंने सोची के देख लओ जाए।’’
‘‘कोन सी घटना?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे, बोई वारी, जीमें शिक्षक दिवस पे स्कूल वारन ने बैनर पे सर्वपल्ली राधाकृष्णन की फोटू लगाबे के बजाए राधा-कृष्ण की फोटू लगा दई रई।’’
‘‘हैं? मोय नई पतो! शिक्षक दिवस पे हम इते कोन हते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, बड़ो बवाल मचो रओ। अखबार में छपो, टीवी पे आओ। औ ओई पे डिबेट रखी गई रई। एक हते कांग्रेस के, सो एक हते भजपा के। दोई जो चालू भए सो बेफालतू की बातन पे बहस करन लगे। एक ने दूसरे खों यार बोल दओ, सो दूसरे ने बोई शब्द पकर लओ। असली मुद्दा गओ चूला में, औ बे दोई परिवार औ पुरखा पे पौंच गए। मोए सो ऐसो लग रओ हतो के कहूं दोई बाहरे से तै कर के सो नई आए के अपन ओरन खों मुद्दा की बात पे कछु बोलनेई नइयां। ऊंसई-ऊंसई टेम पूरो कर दओ। ऊ एंकर कछू बोलई ने पा रओ हतो। मोरो तो मूंड पिरान लगो रओ।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘हऔ, मोरो सोई मूंड पिरान लगत आए उनकी कांव-कांव से।’’ भैयाजी सहमति में मुंडी हिलात भए बोले।
‘‘जेई से तो मैं कै रई के कागा ने मिलें सो डिबेट वारन खों बुला लेओ। इते सोई एक डिबेट करा दइयो, सो बे ओंरें इतई कांव-कांव करन लगहें। आपको काम बन जेहे। कहो कैसी कई?’’
‘‘तुमाए ई आईडिया में दम तो कहानो! मनो जे ओंरे मिलहें कहां?’’ भैयाजी खों आइडिया जम गओ।
‘‘कछु सो त्राहिमाम भैया जैसे नेशनल चैनल वारे अपने इते मिल जेहें, बाकी जो उन्ने मना करो, सो यूट्यूब पे न्यूज चैनल चलाबे वारे सो कहूं गए नइयां।’’ मैंने कही।
‘‘चलो, हम पूछ के देखत आएं उमेश त्राहिमाम से, मनो बे बड़े टीवी चैनल वारे ठैरे, सो उनको मानबो मुस्किलई आए। पर जे यूट्यूब के न्यूज चैनल वारे सो अपनी इतई गली में चार ठइयां आंए। उने सो माननेई परहे।’’ कहत भए भैयाजी यूट्यूब के न्यूज चैनल वारन से बात करबे चल परे, काए से उने कागा सो जिमानेई आए।                   
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए भैयाजी खों यूट्यूब के न्यूज चैनल वारे मिलें, चाए नेशनल चैनल वारे, मोए का करने? बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!  
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(16.09.2022)
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