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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, September 22, 2022

बतकाव बिन्ना की | टाईगर के अंगना में चीता घूम रए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

 "टाईगर के अंगना में चीता घूम रए"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की
टाईगर के अंगना में चीता घूम रए
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        ‘‘काए बिन्ना! अपने इते चीता आ गए!’’ भैयाजी आतई साथ बोले।
‘‘अपने इते नईं, बे कूनो नेशनल पार्क में आए हैं। आप अखबार नईं पढ़त का?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काए नईं पढ़त? भुनसारे से जोई तो सबसे पैलो काम करत आएं। औ तुम कह रईं...बाकी छोड़ो जे सब! कूनो सो सोई अपने प्रदेश में आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! बरोबर!’’
‘‘हमने सुनी के अपने इते नौरादेही अभयारण्य में सोई लाए जेहें।’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, सुनी सो हमने सोई रही, बाकी ने आएं सो अच्छो!’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘काए? अपने ओरन खों दूर नईं जाने परहे चीता देखबे के लाने, इतई नौरादेही में दिख जाओ करहें।’’ भैयाजी उचकत भए बोले, मनो कल चीता उते लाए जा रए होंय औ भैयाजी खों उते चीफगेस्ट बना के बुलाओ गओ होय।
‘‘भैयाजी, तनक सोचो, अपन ओरें उनखों देखबे लाने जाएं सो तो ठीक, मनो जो बे ओरे अपन ओरन खों देखबे के लाने इते आ लगे सो का हुइए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काए हमें डरा रईं? बे ओरें काए आहें इते? बे अपने घरे रैहें, औ अपन अपने घरे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘उनको घर कुठरिया घांई नईं होत आए भैयाजी! उनके लाने खूब सारो लम्बो-चैड़ो जंगल चाउने परत आए। इते कोनऊ चिड़ियाघर नई बनाओ जा रओ। जो उन्हें लाहें, जंगल में ऊंसईं राखहें जोन टाईप से शेर, बाघ, तेंदुआ हरें रैत आएं। मने उन ओरन को इते छुट्टा रखो जेहे। सो जे दिना बे उते बोर होन लगहें सो घूमत भए अपन ओरन की तरफी निकर आहें।’’ मैंने सोची के भैयाजी खों तनक औ डराओ जाए।
‘‘हऔ, ऐसो ने हुइए।’’ भैयाजी डरात भए बोले।
‘‘काए ने हुइए? चीता हरें सो पेड़ पे चढ़ सकत आएं। उनकी दौड़ सबसे तेज होत आए। बे इते काए नईं आ सकत? कहो कोऊ दिनां आपकी अटारी पे बैठे दिखाहें।’’ मैंने कही।
‘‘अब हम समझ गए के तुम हमें चिड़का रईं।’’ भैयाजी मों बनात भए बोले।
‘‘अरे, नईं मोए का करने आपखों चिड़का के? बो तो आपने पूछी, सो मैंने बता दई।’’ मैंने सोची के उनखों तनक देर डरन तो देओ।
‘‘अच्छा बिन्ना जे बताओ के जे जो चिता लाए गए औ जो और लाए जेहें, सो जे अपने ओरन खों नमीबिया वारे गिफ्ट में दे रए, के अपने ओरें इने खरीद रए?’’ भैयाजी ने मोए चैंकात भए जे सवाल कर दओ।
‘‘आपको आम खाने से मतलब के गुठलिया गिनबे से? अब चाए फोकट में मिले होंए, चाए खरीदे गए होंए, आपको का करने?’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘नईं, मनो जे हमाए दिल में खयाल आओ के जो इने खरीदो गओ, सो कित्ते में खरीदो गओ हुइए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो जेई सो मैं कह रई भैयाजी के आपको का लेने-देने ईसे के खरीदे गए, के फोकट में आए। बात जे के चीता अपने इते आ गए। ने तो इते से तो मुतकी साल पैले बढ़ा गए रए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाई।
‘‘काए बिन्ना, हमें काए नईं लेने-देने? जो फोकट में आए होंए सो कोनऊं बात नईं, बाकी खरीदो गओ होय सो ऊमें अपन ओरन खों पइसा लगो कहानो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘येलो! जोन सी बात विपक्ष को नईं सूझ रई, बे बात आप कर रए? कोनऊं अपनी पार्टी बनाबे की सोच रए का?’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘लेओ अब ईमें अपनी पार्टी बनाबे की बात कहां से आ गई? का हम कछु पूछ नईं सकत?’’ भैयाजी उखड़त भए बोले।
‘‘अब आप काए तिन्ना रए?’’
‘‘काए ने तिन्नाएं? तुम बातई ऐसी कर रईं।’’ भैयाजी औरई बमक परे।
‘‘गम्म खाओ भैयाजी! मोए सो पतो नइयां ई बारे में, जो तुमें जानने होय सो कहूं और से पतो कर लेओ।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘जे बात तुम पैले नईं बोल सकत्तीं? बाकी काए बोलतीं? तुमाओ जी सो हमें डराबे में लगो रओ।’’ भैयाजी तनक ठंडे पड़त भए बोले। फेर कहन लगे,‘‘हमें जे समझ में ने आई के कूनो मेंई काए इन ओरन खों रखो गओ? उते का खास आए?’’
‘‘जेई तो बात आए! आपने पढ़ी नईं, औ मैंने पढ़ रखी आए।’’
‘‘मने?’’
‘‘मने जे, के जे जहां से आए हैं, नमीबिया से, उते के तापमान औ इते के तापमान में कोनऊं अंतर नईं आए। उते 31-32 डिग्री रैत आए औ इते कूनो में 30 रैत आए। औ जो इते-उते के और पेड़ कटत रैंहें सो इते सोई तापमान 35-40 लो पौंच जेहे। चीता के लाने ऊंची घास वारे मैदान चाउने परत आएं। सो कूनो में उने मिल जेहें। उते नमीबिया में सवाना के घास को मैदान 2.25 लाख वर्ग किलोमीटर को आए और इते अपने कूनो में पूरो नेशनल पार्क 3200 वर्ग किलोमीटर को आए।’’ मैं भैयाजी खों बता रई हती के बे मोए बीच में टोंकत भए बोल परे।
‘‘जो का कै रईं? उते सवा दो लाख वर्ग किलोमीटर आए औ अपने इते पूरो पार्कई 3200 वर्ग किलोमीटर को आए। सो उनके लाने जागां छोटी ने परहे?’’
‘‘हऔ, जो इते नौरादेही में आ गए सो और छोटी परहे जागां। जेई से सो मैं कह रई हती के बे ओरें जब बोर फील करहें, सो अपन ओरन खों देखबे के लाने आ जाओ करहें।’’ मैंने हंस के कही।  
‘‘जे सो बड़ी चिंता फिकर की बात कहानी।’’ भैयाजी फिकर करत भए बोले।
‘‘अरे आप फिकर ने करो भैयाजी! जोन लाएं हैं उन्ने कछू सोच रखो हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों तनक सहूरी बंधाई।
‘‘नई बिन्ना! मोय सो फिकर होन लगी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, ने डरो आप! मनो एक बात है भैयाजी!’’
‘‘का बात?’’
‘‘जे के अपने इते जे जो चीता आ गए, सो अपन ओरें कै सकत आएं के टाईगर के अंगना में चीता घूम रए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, अपने इते सो टाईगर प्रोजेक्ट पैलई से आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मैं बे प्रोजेक्ट वारे टाईगर की बात नईं कर रई। मैं सो अपने टाईगर भैया की बात कर रई!’’ मैंने ही।
‘‘जे को आ तुमाए टाईगर भैया?’’ भैयाजी चैंकत भए बोले।
‘‘लेओ आपखों नई पतो? अरे आप भूल गए बो डायलाग जब अपने शिवराज भैया ने कही रई के ‘अभी टाईगर जिंदा है’ तभई से मैं उने टाईगर भैया कहन लगी।’’
‘‘अरे हऔ, सो तुम उनकी बात कर रईं।’’
‘‘औ का, अपने टाईगर भैया के अंगना में चीता घूम रए। ठैरी ने मजे की बात?’’ मैंने कही।  
‘‘हऔ, कै तो ठीक रईं तुम! मनो अब मोए चलन देओ। काए से के तुमाई भौजी ने सेंधो नमक मंगाओ रओ। जो देर हो जेहे सो बे शेरनी नईं अब सो चीतनी बन जेहें।’’ कहत भए भैयाजी बढ़ लिए। मनो मोए उनकी ‘‘चीतनी’’ वारी बात पे खूबई हंसी आई।                        
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए चीता हरें प्रोजेक्ट एरिया में रएं चाए गांव, शहर में घूमें, मोए का करने? अपने लाने सो टाईगर भैया जिंदाबाद! बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(23.09.2022)
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