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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, September 28, 2022

चर्चा प्लस | ज़रा सोचिए नवरात्रि के इन नौ दिनों में ! | डॉ. (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस 
ज़रा सोचिए नवरात्रि के इन नौ दिनों में !
            - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                        
   नवरात्रि आरम्भ अर्थात् देवी मां के नौ रूपों के नौ दिन। इन नौ दिनों में धर्मपरायण स्त्रियां अपनी भक्ति भावना के चर्मोत्कर्ष पर जा पहुंचती हैं। व्रत, उपवास और मनौतियों की पूर्ति में कोई कसर नहीं रहती है। देवी मां सभी हिन्दू स्त्रियों के लिए मानसिक संबल हैं। पूज्या हैं। किन्तु क्या इन नौ दिनों कोई भी स्त्री देवी मां के सम्मुख जाने से पहले या सामने पहुंच कर आत्ममंथन करती है कि उसने अपने स्त्री समुदाय के लिए क्या अच्छा कार्य  किया? यह प्रश्न मात्र स्त्रियों के लिए ही नहीं उन पुरुषों के लिए भी है जो सम्पूर्ण निष्ठा के साथ देवी मां की आराधना करते हैं। इसका उत्तर ढूंढे बिना क्या देवी मां से अपनी प्रार्थना स्वीकार किए जाने की उम्मीद हमें रखना चाहिए? ज़रा सोचिए!
नवशक्तिभिः संयुक्तं, नवरात्रं तदुच्यते ।
एकैवदेव देवेशि, नवधा परितिष्ठिता । ।
-अर्थात नवरात्रि नौ शक्तियों से संयुक्त है। ये आदिशक्ति के नौ रूपों की पूजा के नौ दिवस होते हैं। आदिशंकराचार्य ने यह श्लोक ’सौन्दर्य लहरी’ में लिखा है।
        नवरात्र का पहला दिन घटस्थापना से आरम्भ होता है और इस प्रथम दिवस में मां दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री का पूजन किया जाता है। शैल अर्थात पर्वत। पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण देवी को शैलपुत्री कहा गया।
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखरां।
वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीं।।
- अर्थात अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर सवार रहने वाली, शूलधारिणी और यशस्विनी मां शैलपुत्री के प्रति मेरी वंदना है जो मुझे मनोवांछित लाभ प्रदान करे। क्या मनोवंाछित लाभ एक क्रूर ससुराली बन कर दहेज प्राप्त करना है? क्या मनोवांछित लाभ गलत तरीके से धन कमाने के लिए अपने परिजन को उकसाना करना है? क्या किसी योग्य व्यक्ति का अवसर छीन कर अयोग्य व्यक्ति को दे कर स्वार्थ पूरा करना मनोवांछित लाभ है? क्या ऐसे व्यक्तियों को देवी मां मनोवांछित लाभ दे सकती हैं?
       नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के देवी ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार शैलपुत्री ने महर्षि नारद के कहने पर जगकल्याण के लिए महादेव को पति के रूप में पाने हेतु कठोर तपस्या की थी। कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा।
दधाना करपद्माभ्यां अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
-अर्थात जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमण्डल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणी रूपा देवी मां मुझ पर कृपा करें। विचार करने की बात यह है कि कठोर तपस्या करने वाली ब्रह्मचारिणी उन पर कृपा कैसे करेंगी जिन्होंने समाज सुधार या बालिका सुरक्षा की सिर्फ बातें ही की हों और कभी कोई ठोस कदम नहीं उठाया हो। क्या समाज उस स्त्री या बालिका को सम्मान दे पाता है जो बलात्कार की शिकार हुई हो या जो किसी धोखेबाज के कारण अविवाहिता गर्भवती हो गई हो? क्या कोई स्त्री ऐसी पीड़िता का साथ देती है? या कोई पुरुष साहस के साथ तमाम विरोधों का सामना करते हुए बिना अहसान जताए सामान्य भाव से ऐसी स्त्री को जीवन संगिनी बनाता हैै? अविवाहित मां को अपने नवजात का त्याग करने को विवश करने वाली सामाजिक व्यवस्था में रमें हुए स्त्री-पुरुषों पर मां ब्रह्मचारिणी कैसे कृपा कर सकती हैं?  
       नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गाजी के तीसरे रूप चंद्रघंटा देवी की पूजा करने का विधान है। मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्ध चंद्र, अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित दस हाथ। स्त्री शक्ति की प्रतीक-
पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।
- अर्थात सिंह पर सवार और चंडकादि अस्त्र-शस्त्र से युक्त मां चंद्रघंटा मुझ पर अपनी कृपा करें। प्रार्थना आसान है किन्तु माता कैसे कृपा करें उन भीरुओं पर जो निःसक्तजन पर अत्याचार होते देखते रहते हैं और कई बार स्वयं भी अत्याचारी के पक्ष में जा खड़े होते हैं। समझना कठिन है कि जातिगत, धर्मगत, आॅनर किलिंग, घरेलू हिंसा करने वालों पर माता कैसे प्रसन्न हो सकती हैं?
    नवरात्रि के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ रूप मां कूष्मांडा की पूजा और अर्चना की जाती है। माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी।  
सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां, कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।
-अर्थात अमृत से परिपूरित कलश को धारण करने वाली और कमलपुष्प से युक्त तेजोमय मां कूष्मांडा हमें सब कार्यों में शुभदायी सिद्ध हो। निश्चित रूप से मां कूष्माण्ड हम पर प्रसन्न होंगी यदि हम उनके बनाए ब्रह्मांड में मौजूद इस अपनी पृथ्वी के भविष्य को बचा लेंगे। हम अपने प्रयासों में तेजी ला कर, अपनी गलत आदतों को सुधार कर, जलवायु परिवर्तन की तेज गति को धीमा कर के, पृथ्वी सहित आने वाली पीढ़ियों को बचा लेंगे। यदि हम मां के सृजन की रक्षा नहीं करेंगे तो मां हम पर कैसे प्रसन्न होंगी?
      नवरात्र के पांचवे दिन दुर्गाजी के पांचवें रूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंद शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक नाम है। स्कंद की माता होने के कारण ही देवी का नाम स्कंदमाता पड़ा। चतुभुर्जी मां ने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ वाली निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वरद मुद्रा है और नीचे दूसरा श्वेत कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है। क्योंकि यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं इसलिये इनके चारों ओर सूर्य सदृश अलौकिक तेजोमय मंडल सा दिखाई देता है।
सिंहासनगता नित्यं, पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी, स्कंदमाता यशस्विनी।।
- अर्थात सिंह पर सवार, कमल पुष्प धारण करने वाली मां स्कंदमाता हमारा शुभ करें। लेकिन जब हम बालअपराध नहीं रोक पा रहे हैं। जलसंरक्षण के लिए ईमानदार प्रयास नहीं कर रहे हैं, वन्य पशुओं के प्रति क्रूरता बरत रहे हैं, जंगल काट रहे हैं, तो स्कंदमाता कैसे हमें शुभफल दे सकती हैं?
      नवरात्र के छठे दिन दुर्गाजी के छठे रूप मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। चूंकि देवी ने महर्षि कात्यायन की पुत्री रूप में जन्म लिया था इसीलिये इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर के ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में खड्ग अर्थात् तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन भी सिंह है।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा, शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यात, देवी दानवघातनी।।
- अर्थात् सिंह पर सवार देवी कात्यायनी असुर संहारिनी तथा कल्याण करने वाली हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार मां कात्यायनी का रूप धारण कर के देवी ने महिषासुर का वध किया था। ऐसी असुर संहारक माता उन व्यक्तियों पर कैसे कृपा कर सकती हैं जो हिंसा, बलात्कार, चोरी, ठगी, रिश्वतखोरी, परपीड़ा, अत्याचार, घरेलू हिंसा आदि आसुरी कर्म में संलग्न रहते हैं?  
       नवरात्र के सातवें दिन दुर्गाजी के सातवें रूप मां कालरात्रि की पूजा और अर्चना का विधान है। इन्हें तमाम आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है। इनके तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं जिनमें एक में खड्ग अर्थात् तलवार है तो दूसरे में लौह अस्त्र है, तीसरे हाथ में अभयमुद्रा है और चैथे हाथ में वरमुद्रा है। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है।
एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोह, लताकंटकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।
- अर्थात एक वेणी ( बालों की चोटी ) वाली, जपाकुसुम ( अड़हुल ) के फूल की तरह लाल कर्ण वाली, उपासक की कामनाओं को पूर्ण करने वाली, गर्दभ पर सवारी करने वाली, अपने बांये पैर में चमकने वाली लौह लता धारण करने वाली, कांटों की तरह आभूषण पहनने वाली, बड़े ध्वज वाली और भयंकर लगने वाली कालरात्रि मां हमारी रक्षा करें। तो क्या मां कालरात्रि उन लोगों की रक्षा करेंगी जो दूसरों का जीवन अंधकारमय बनाते हैं, जो दूसरों के रास्ते में कांटे बिछाते हैं, जो जीवित व्यक्तियों को मृत घोषित कर के उनके हिस्से का सरकारी पैसा खा जाते हैं, जो नकली दवाएं और मिलावटी खाद्य बेच कर दूसरों के जीवन को खतरे में डालते हैं?
      नवरात्र के आठवें दिन मां दुर्गा के आठवें रूप देवी महागौरी की पूजा की जाती है।
श्वेते वृषे समारूढा, श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यात महादेवप्रमोददाद।।
- अर्थात सफेद वस्त्राभूषण पहनने वाली, वृषभ अर्थात् बैल पर सवारी करने वाली, त्रिशूल और डमरू धारण करने वाली, अभय और वर प्रदान करने वाली मां महागौरी शुभ करें। अशुभ कार्यों को करने वालों, अशुभ कार्यों का विरोध नहीं करने वालों तथा अशुभ कार्यों को बढ़ावा देने वालों का मां कैसे शुभ करें? जो गौवंश को सड़को पर लावारिस छोड़ दें उनका शुभ कैसे करें, यह मां के लिए भी असमंजस की बात है।
      नवरात्र के नौवें दिन मां दुर्गा के नौवें रूप मां सिद्धदात्री की पूजा की जाती है। सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली देवी मां सिद्धिदात्री।
सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैः, असुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात, सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
- अर्थात सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, असुर और अमरता प्राप्त देवों के द्वारा भी पूजित किए जाने वाली और सिद्धियों को प्रदान करने की शक्ति से युक्त मां सिद्धदात्री हमें भी आठों सिद्धियां प्रदान करें। शास्त्रों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, और वशित्व नामक आठ सिद्धियां बताई गई हैं। ये आठों सिद्धियां मां सिद्धिदात्री की पूजा और कृपा से प्राप्त की जा सकती हैं। किन्तु मां उन लोगों पर कृपा क्यों करें जो स्वार्थवश दूसरों की महिमा और गरिमा को चोट पहुंचाते हैं, जो दूसरों की पीड़ा का मजाक उड़ाते हैं, जो किसी घायल या मरते हुए व्यक्ति की सहायता करने के बजाए उनका वीडियो बनाने में मशगूल रहते हैं, जो अपने माता-पिता को वृद्धाश्रमों में छोड़ आते हैं, जो अपने बच्चों को अपराध करने से नहीं रोक पाते हैं और जो स्वयं अपनी बुरी आदतों पर संयम नहीं रख पाते हैं? मां उन्हें सिद्धियां क्यों दें?
        इस बार की चर्चा का आशय यही है कि यदि हम मां के सभी रूपों सहित देवी मां को पूर्णता के साथ प्रसन्न करना चाहते हैं, उनकी कृपा पाना चाहते हैं तो यह हमें समझना होगा कि वर्ष के 365 दिन में 356 दिन मनुष्यत्व को भूल कर मात्र नौ दिन अपना पूर्ण समर्पण दिखा कर देवी मां को भ्रमित नहीं किया जा सकता है। जब हम उन्हें सर्वज्ञानी मानते हैं तो यह याद रखना जरूरी है कि उन्हें हमारे शेष 356 दिनों के कृत्यों का भी पता रहता है। अतः हम मां के नौ रूपों के सच्चे अर्थों को समझें और उनके प्रति अपने कत्र्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाह करें। यदि हम स्त्रियों, बच्चों, वृद्धों, निर्बलों पर होने वाले अत्याचारों को रोक सकें, यदि हम पर्यावरण और जलवायु की क्षति को रोक सकें, जल-थल-वायु के प्रत्येक जीव की रक्षा कर सकें, यदि जाति-धर्म-लिंग-रंग आदि के भेदभाव को समाप्त कर सकें और आपसी वैमनस्य को समाप्त कर सकें तो देवी मां हम पर सदा प्रसन्न रहेंगी, यह मुझे विश्वास है।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।  
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