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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, September 9, 2022

बतकाव बिन्ना की | अपडेट अम्मा औ लप्सी के भाव | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

"अपडेट अम्मा औ लप्सी के भाव"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम-लेख "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।

🌷हार्दिक धन्यवाद "प्रवीण प्रभात" 🙏
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बतकाव बिन्ना की
अपडेट अम्मा औ लप्सी के भाव
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
          ‘‘का कर रईं अम्मा?’’ बजरिया से लौटत बेरा हिम्मा की मताई अपने आंगने में बैठी दिखानीं, सो मैंने उनसे पूछ लई। भलऊं हमें कित्तऊं दिखा रओ होय के को का रओ, मनो ऐसो पूछो जात आए के ‘‘का कर रईं?’’
‘‘आओ बिन्ना! बजरिया से आ रईं?’’ अम्मा ने मोसे पूछी।
‘‘हऔ! मनो कछु खास तो नई लेने हतो पर सोची के जेई बहाने घूम आबी।’’ मैंने अम्मा से कही।
‘‘हऔ ठीक करो! अभईं तुमाए भैयाजी नईं लौटे?’’ अम्मा ने पूछी।
‘‘अभई कहां? उने सो आंठें के बाद आने। बाकी तुम का कर रईं? औ जे घुन्ना काए टेसुआ बहा रओ?’’ मैंने अम्मा से पूछी।
‘‘हमाओ नांव घुन्ना नोई मुन्ना आए!’’ मुन्ना ने रोबो छोड़ मोरी गलती पे मोए टोंको। बाकी मोए पतो आए के ऊको नांव मुन्ना आए, पर मैंने जान के ऊके लाने छेड़ो हतो जीसे बो रोबो भूल जाए। औ जेई भओ।
‘‘अरे हऔ! हमें सो तुमाओ नांव घुन्ना याद रओ।’’ मैंने मुन्ना से कही। फेर बोई से पूछी,‘‘सो तुम रो काए रए?’’
‘‘अम्मा हमें नव टाईप को बाल कटान नईं दे रईं।’’ मुन्ना ने अपनो मसलो बताओ।
‘‘नव टाईप को? मनें?’’ मोए कछु समझ में ने आई।
‘‘अरे, बोई तरहा जोन में खपड़िया के बाल सूजा घांई ठाड़े रैत आएं। हम सो कभऊं ऊ तरहा के बाल ने कटवान देहें।’’ अम्मा बमकत भईं बोलीं।
कै सो सांची रई हतीं अम्मा। ऊ टाईप के बाल सबई पे साजे नईं दिखात। कोनऊं-कोनऊं ठीक दिखात आए, पर कोनऊं लफरा टाईप दिखान लगत आए। औ जे मुन्ना पे सो कभऊं सूट ने करहें ऐसे बाल।
‘‘आजकाल के मोड़ा कोन सुनत आएं, अम्मा! कर लेन देओ अपने मन की ईको। जब मन भर जेहे सो स्टाईल बदलवा लेहे।’’ मैंने अम्मा खों समझाई। मोरी बात सुन के मुन्ना खिल उठो।
‘‘देखो, अपने जी की बात सुन के कैसो मुस्कान लगो! मनो हम सो ने कटान देहें। जे थोड़ी हो सकत के जो अपनो मूंड़ पटा लेवे औ हम देखत रैहें।’’ अम्मा बड़बड़ात भईं बोली।
‘‘सो आप का कर लेहो? आज काल बड़े नईं देखत-सुनत, सो जे तो लोहरो मोड़ा आए।’’ मैंने अम्मा से कही।
‘‘को नईं देखत-सुनत? कोन की कै रईं।’’ अम्मा को मनो तनक जिज्ञासा भई।
‘‘अरे, अम्मा कोन को नांव लेऊं? चाए मुन्ना कओ, चाए पप्पू कओ, मनो जिद करने ई आए, चाए पतो कछू ने होय। किलो को लीटर औ लीटर को किलो बता रए। जे सो कहो को के पिसी खों मीटर में ने नाप दओ। देख नईं रईं अम्मा! कोन टाईप को माहौल चल रओ।’’ मैंने अम्मा से कही।
‘‘जे सब तुम का कै रईं बिन्ना? मोए सो कछू समझ में ने आ रई।’’ अम्मा झुंझलात भई बोलीं। अब अम्मा को जे सब कहां पतो हुइए? बे ने तो अखबार पढ़त आएं, ने तो टीवी में समाचार देखत आएं औ ने तो बे सोसल मीडिया चलाउत आएं। बे का जाने के कोन ने का बक दओ औ कोन काए पे ट्रोल हो रओ?
‘‘अरे, कछू नईं अम्मा! अपने इते के एक नेता आएं, उन्ने अपने भाषण में आटा को भाव 40 रुपइया लीटर बोल दओ! अब कहूं आटा लीटर में नपत आए? उने इत्तो लो पतो नइयां औ बे सयाने राजनीति करबे की अड़ी में ठाड़े।’’ मैंने को बताई।
‘‘अरे, सो ईमें का बिन्ना? पैलऊं जे बताओ के उन्ने सूको आटो के लाने कही के गीलो आटो के बारे में?’’ अम्मा ने उलट मोए से पूछ लओ।
‘‘सूको ई के बारे में कहो हुइए।’’ मैंने कही।
‘‘हुइए नोईं। ठीक-ठीक बताओ!’’ अम्मा ने फेर के पूछी।
‘‘गीलो, सूको सो नईं कहो उन्ने!’’ मोए बतानई परो।
‘‘सो हमें लगत आए के ऊने गीलो आटा के बारे में कहो हुइए। काए से के ऐसो कोनऊं नईंयां के जोन खों आटा के बारे में पतो ने होय। पक्को ऊने गीलो आटा के बारे में कहो हुइए। औ कओ, लप्सी वारो आटा के बारे में बोलो होय।’’ अम्मा बोलीं।
‘‘लप्सी वारो आटा कां बिकत आए, अम्मा? मैंने सो कभऊं ने सुनीं।’’ मैंने कही।
‘‘हऔ, सो बिकबे में का आए? जोन जे तुमाएं नेता हरें आजकाल बिकत रैत आएं सो लप्सी को आटो काए नईं बिक सकत?’’ अम्मा को तर्क ने मोए चौंका दओ? मैं  समझत्ती के अम्मा को ई राजनीति-माजनीति के बारे में कछु पतो नइयां, मनो उन्ने सो मोए अचरज में डार दओ।
‘‘तुमने खूब कही अम्मा! लप्सी को आटा काए नईं बिक सकत! ऊंसई ऊकी पार्टी की दसा ऊ कहनात घांई हो गई आए के -गरीबी में आटा गीलो। सो बे गीलो ई आटे के बारे में ई बोलहे, सूको के बारे में नोंई। ट्रोल ब्रिगेड वारन ने फालतू ई में उनखों ट्रोल कर डारो।’’ मोसे कै आओ।
‘‘का कही? टरोल? जो का कहाउत आए?’’ अम्मा पूछन लगीं।
‘‘अरे, तुमाए मतलब को नईं जे सब।’’ मैं टरकात भई बोली।
‘‘काए हमाए मतलब को काए नईंयां? तुम जे ई लाने कै रईं के हम बुढ़ा गए कहाने?’’ अम्मा तिनकत भईं बोलीं।
‘‘अरे नईं अम्मा! अभईं तुमाई उमरई का आए! अभईं सो तुम ज्वान ठैरीं!’’ मैंने अम्मा से कही।
‘‘हऔ, मस्का ने मारो! हमें पतो आए के हमाई उम्मर का आए!’’ अम्मा ठसक के बोलीं।
उनकी जे मस्का मारबे वारी बात ने मोए फेर के चौंका दओ।
‘‘तुम का सोच रईं? हमें सब पतो आए। हमाए मुन्ना ने, बो का कहाउत आए वाटसअप पे हमाओ खातो खोल दओ आए। हमाई दो-चार संगवारी ऊमें हमाए संगे बात करत रैत आएं। कभऊं-कभऊं हम ओरें अपनी फोटू सोई डार देत आएं। अभई दो दिना पैलऊं ममता की मताई चित्रकूट कई रई, सो ऊने उतई से मुतकी फोटुएं डारी हतीं हमाए खाते में। सो हमें घर बैठे रामजी के दरसन हो गए।’’ अम्मा गदगद होत भईं बोलीं। औ उनकी बातें सुन के मोरी दसा जे हती, के मोए पे पानी छिड़कबे की जरूरत हती।
‘‘काए तुमाओ सोई खातो आए वाटसअप पे? ने होय सो हमें बताइयो, हम मुन्ना से कै के तुमाओ खातो सोई खुला देबी। फेर तुमें सोई भगवान जी की फोटुएं भेज दई करबी।’’ अम्मा बोलीं।
‘‘अम्मा तुमाई जै हो! तुमाए पांव कहां आएं, तनक आंगू खों करो औ हमें पांव पड़ लेन देओ।’’ मोरे मों से खुदई जे सब कै आई।
‘‘काए का हो गओ?’’ अम्मा चौंक परीं।
‘‘होने को का बचो? तुम सो सबई जानत आओ! तुमें औ कछू जानबे की जरूरत नईंयां। जो तुमाई घांई मताई ऊकी बी होती सो ऊ बेचारो कभऊं ट्रोल ने हो पातो।’’ मैंने अम्मा से कही और उनको घूटां दबान लगी।
‘‘पांव ने मिले सो घूंटा दबान लगीं? बाकी आजकाल घूंटां पिरात रैत आएं।’’ अम्मा हंसत भईं बोलीं।
मैंने अम्मा से बिदा लई, काए से के अब कछू बोलने के लाने बचो नई हतो। यूनीवर्सिटी के लाने अनवरसिटी घांईं व्हाट्सअप्प के लाने वाटसअप सुन के ऊंसई जी जुड़ा गओ हतो।       
बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब चाए ऊने सूको आटा के लाने कहो होय चाए गीलो लाने, मोए का? बाकी अम्मा खों अपडेट पा के मोरो सो मूंड चकरा गओ। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम! 
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(09.09.2022)
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