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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, October 13, 2022

बतकाव बिन्ना की | ई बेरा जड़कारो नई कटने | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात | बुंदेली व्यंग्य

"ई बेरा जड़कारो नई कटने"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात (छतरपुर) में।
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बतकाव बिन्ना की         
ई बेरा जड़कारो नई कटने
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह       
          ‘‘का हो गओ बिन्ना! ऐसो मों लटकाए काए फिर रईं?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मों ने लटकाओं सो का करों? ’’
‘‘काए का हो गओ?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘ई दफा सो इत्ती लाईट जा रई, ऊपे मोरे इन्वर्टर की बैटरी चीं बोल गई। दो मिनट की लाईट ने दे पा रई हती। कछु बेकअप बचो सो नई हतो।’’ मैंने भैयाजी खों  बताई।
‘‘सो, फेर का करी?’’
‘‘करने का हती, बैटरी बदलवाई है कल्ल। अच्छी-खासी चपत घल गई। मनो अब करो का जाए, अंधेरे में रओ नई जात आए। अभई परों संझा की बिरियां झोर-झोर के पानी बरस रओ हतो, ऊपे से लाईट चली गई। सगरो अंदियारो छा गओ। ऊ अंधेरा में बिजुरिया ऐसी चमक रई हती के मनो कोनऊ हाॅरर फिलम होय। जे कहो के मोए डर नईं लगो। कोनऊं लोहरी मोड़ी होती सो डरा जाती। दो घंटा में लाईट आई हती।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘कोन खों बता रईं बिन्ना? हम सोई जेई मोहल्ला में रैत आएं। हम सोई अंदियारे में मोमबत्ती के लाने भगवानजी की अलमारी में थथोलत फिर रए हते के तुमाई भौजी चैका से एक मोमबत्ती जला के ई टाईप से आईं के हम सो सच्ची डरा गए हते। हमने सो उनखों डांटो बी के जे ऐसे मोमबत्ती ले के कहूं फिरो जात आए? हम तो समझे के कोनऊं भूतनी आ गई। सो बे कैन लगीं के हमाए रैत भए कोनऊ भूतनी तुमाए लिंगे आ के सो देखे, ऊके बाल पटा देबी, ऊकी दोई उल्टी टंागे सीधी कर देबी। तुमाई भौजी के जे बात सुन के मोय औ डर लगो के कहूं कोनऊं भूतनी ने सुन लओ सो पांछू लग जेहे। सो, हमने तुमाई भौजी खों ध्यान बटाओ। सो बे कैन लगीं के शरद बिन्ना घांई इन्वर्टर लगवा लेओ। जे मोमबत्ती ले के फिरने न परहे औ तुमे डर बी न लगहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सो सांची सो कै रईं भौजी! लगवा लेओ इन्वर्टर। काए से के अब लाईट पर से भरोसो उठो जा रओ। एक तो जे पानी पीछो नई छोड़ रओ, ऊपे जे लाईट घंटा-घंटा भर खों चली जात आए।’’ मैंने कही।
‘‘तुमाओ सो मुतको पुरानो आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ! जबे दिग्विजय सिंह अपने मुख्यमंत्री रए औ लाईट कभऊं-कभऊं आत्ती, तभईं लगवाने परो हतो इंवर्टर। मनो तब इत्तो मैंगो नहीं हतो, अब सो कुल्ल मैंगो हो गओ। मनो करो का जाए? पंखा सो चलानई परत आए। इत्तो पानी गिर रओ, मनो ठंडक नई आई। पंखा बंद होतई साथ पसीना चुअन लगत आए।’’ मैंने कहीं।
‘‘हऔ, सो ईमें पंखा चल जात आए, औ ब्लोअर चलहे के नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘इत्ती गरमी में आप खों ब्लोअर सूझ रओ?’’ मोए अचरज भओ।
‘‘अभई से सोचबो जरूरी आए, बिन्ना! काए से के ई बेरा जे जो इत्तो पानी बरस रओ, सो उत्तई जड़कारो परहे। मोए सो सोचई के डर लग रओ। तापने के लाने कोयला, कंडा जोड़ के रखने परहे। ने तो ठिठुर जेबी। तुम सोई कछु जुगाड़ कर लइयो। कहो सो तुमाए लाने सोई कोयला, कंडा ला देबी। तनक पानी ठैरे सो मोए गुरसी सोई बनवाने है। कहो सो तुमाए लाने सोई बनवा देबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे नई भैयाजी! मोए न कोयला कंडा चाउने औ न गुरसी-वुरसी। मोए सोई एक ब्लोअर ले लेने है। जोन खो जगत बेरा चला के कमरा गरम कर लेबी और सोत समै बंद देबी। मैं ऊंसई सोत बेरा हीटर, ब्लोअर कछु नईं चलात हूं।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘काए, पर तुमाए इते सो एक ब्लोअर पाओ जात्तो! बो कां गओ? खराब हो गओ का?’’ भैयाजी ने पूछीं
‘‘खराबई सो नई भओ। खराब हो गओ रैतो सो नोनो रैतो।’’ मैंने कही।
‘‘काए ऐसो काय कै रईं?’’
‘‘अब का कहों भैयाजी! भओ का के पर की साल सोई कड़ाके को जड़कारो पड़ो रओ। आप खों याद हुइए के एक मईना दिन में सोई ब्लोअर चलाने परो रओ। मैंने सोची के जान है सो जहान है, चलो, चला लेओ जाए ब्लोअर। जब बिल आहे सो देखो जेहे। औ जबे बिल आओ सो ऊको देख के मोए सो भरे जड़कारे में पसीना छूट गओ। बिजली को उत्तो बिल कभऊं ने आओ रओ। एक दिना मोए बो स्विच बदलने वारे लड़का खों बुलाने परो। मैंने बातई-बात में ऊसे अपनो बिल को बखान करो। ऊने मोसे कही के तनक अपनो ब्लोअर दिखाओ। मैंने ऊको दिखा दओ। बो कैन लगो, दीदीजी, आप ब्लोअर चला रईं के का चला रईं, ईमें सो असली मशीन कौन लगी। आपने एकाद बेरा सुधरवाओ हुइए सो ईमें ज्यादा पावर वारी मशीन लगा दई गई आए। जे सुन के मोए आग सी लग गई। जोन के इते से मैंने ब्लोअर सुधरवाओ रओ, ऊको मनई मन हजार-हजार गालियां दईं। सो, ई बेरा मोए सोई नओ ब्लोबर लेने परहे, जोन में बिजली को खर्चा कम होत होय।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ बिन्ना! मोय सोई ईको खयाल रखने परहे। मनो ई बेरा लग रओ के जड़कारो नईं कटने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, ऐसे ने डरो भैयाजी! तनक उन ओरन की सोचो जोन खों खुल्ला में डरे रैने परत आए। उनको सोई जिनगी काटने परत आए।’’ मैंने भैयाजी खों याद दिलाई।
‘‘हऔ बिन्ना, सांची कै रईं! उन ओरन के बारे में कोनऊ खों फिकर नई रैत। अभई देख लेओ। पैलऊं मैंगाई बढ़ी, फेर कर्मचारियन खों मैंगाई भत्ता बढ़ाबे की घोषण कर दई गई। औ बे ओरे मैंगाई से कैसे निपटहें जो कर्मचारी नइयां? उनके लाने का? ईसे तो साजो रैतो के मैंगाई कम करबे को उपाय करो जातो। पर चुनाव ड्यूटी देबे वारे कर्मचारियन को खुस रखबो ज्यादा जरूरी आए।’’ भैयाजी गुस्सा होत भए बोले।
‘‘अरे, अपनो दिमाग खराब ने करो भैयाजी, जे सब सो हमेसई से होत आ रओ। आप सो जे बताओ के आप जड़कारे के लाने औ का तैयारी करबे वारे हो?’’ बात बदलबे की गरज से मैंने भैयाजी पूछी।
‘‘तैयारी का करने, सोचत हों के अभई दो-चार दिनां में इंवर्टर लगवा लेहों, फेर दिवारी बाद एक ब्लोअर ले लेहों। बाकी तुमाई भौजी सोठ, अदरक वारी चाय सो बनतई रैहे। हौ, औ मेथी को लड़ुआ बनवा लेहों।’’ भैयाजी बोले।
‘‘गजब! आप ने सो सब पैलऊं से सोच रखो आए। अब काए डरा रए जड़कारे से?’’ मैं हंसत भई बोली।
‘‘अब लोहरी उम्मर नई रही बिन्ना! अब सो डरनेई परत आए।’’ भैयाजी तनक गंभीर होत भए बोले।
‘‘हऔ, सो आपकी उम्मर कितनऊं हो जाए पर आपको जड़कारो भगाने के लाने एक उपाय पक्को पाओ जात आए।’’ मैंने कही।
‘‘कौन सो उपाय?’’ भैयाजी चकित होत भए बोले।
‘‘भौजी को गुस्सा! जब ज्यादा जड़कारो लगे सो कछु ऐसो काज कर दइयो के बे बेलन ले के आपके पांछू दौड़ें, बस, सो आप को जड़कारो तुरतई छू हो जेहे।’’ मैं गंभीर बनबे की कोशिश करत भई बोली।
‘‘बिन्ना, जे तो बताओ के तुम हमाई बहना हो के दुश्मन? ऐसो उपाय सुझा रईं। तुमाई भौजी को गुस्सा झेलबे से अच्छो के जड़कारो झेल लेबी।’’ कैत भए भैयाजी सोई हंसन लगे।        
 बाकी मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब भैयाजी चाए ब्लोबर से जड़कारो मिटाएं चाय भौजी की डांट से, मोए का करने? रई ई बेरा जड़कारा कटने औ न कटने की, सो उन ओरन के लाने पैलऊं से कछू करो चाइए जिने खुल्ले में रात बिताने परत आए। है न! तो अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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(13.10.2022)
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