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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, November 10, 2022

ट्रेवलर डॉ (सुश्री) शरद सिंह | हरसिद्धि माता मंदिर रानगिर यात्रा

😎 09.11.2022 को दोपहर 11:55 पर मैंने रानगिर के लिए घर से यात्रा आरम्भ की। 🚙 यूं तो रानगिर पहुंचने का सीधा रास्ता भी है लेकिन पता चला कि उस रास्ते पर चौड़ीकरण का कार्य चल रहा है इसलिए उस रास्ते को छोड़कर फोरलेन हाईवे का रास्ता चुना। इस रास्ते को चुनने का एक कारण यह भी था कि मुझे ड्राइविंग करनी थी और मैंने लगभग 80 किलोमीटर लगातार ड्राइविंग की भी। यानी हम लोग सीधे रास्ते न जाकर यहां-वहां चक्कर काटते, घूमते हुए रानगिर तक पहुंचे। दरअसल, भीड़ भरे संकरे रास्तों की अपेक्षा हाईवे पर ड्राइविंग करने में मैं  माहिर हूं। वहां मुझे इस बात का ख़तरा महसूस नहीं होता कि अचानक कोई बच्चा दौड़ कर सड़क पर आ जाएगा या कोई जानवर अचानक आपकी गाड़ी के सामने आ खड़ा होगा। सामने से आने वाली गाड़ियों का भी कोई टेंशन नहीं रहता है।  (✌️ यदि हाईवे पर ड्राइविंग के लिए बतौर ड्राइवर मुझे कोई हायर करना चाहे तो वह इस पर विचार कर सकता है 😃) वरना शहर के अंदर तो मुझे पसीने छूटने लगते हैं। अब आप समझ सकते हैं मेरा ड्राइविंग कौशल।
      वैसे, सीधे रास्ते से रानगिर सागर शहर से एक घंटे का रास्ता और लगभग 40 km दूर है। कुछ वर्ष पूर्व यह रास्ता निहायत उबड़-खाबड़ और गिट्टियों से भरी हुई सड़क के रूप में था।  फिर गढ़ाकोटा क्षेत्र के 8 बार  के विधायक  एवं वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार में लोक निर्माण विभाग मंत्री पं गोपाल भार्गव जी ने इस मार्ग का डामरीकरण कराया। तब से यह मार्ग काफी सुविधाजनक हो गया है। यद्यपि इस मार्ग के भी चौड़ीकरण किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि निजी गाड़ियों, किराए की गाड़ियों और बसों से श्रद्धालु यहां आते हैं और ऐसी स्थिति में इकहरा मार्ग असुविधा उत्पन्न करता है। 
      रानगिर में हरसिद्धि माता का प्राचीनतम मंदिर है। सिद्धक्षेत्र के रूप में इसकी मान्यता है। कहा जाता है कि हरसिद्धि माता की प्रतिमा सुबह, दोपहर, शाम - अपने तीन रूप में दिखाई देती है। सुबह बालावस्था, दोपहर युवावस्था और शाम को प्रौढ़ावस्था। अर्थात संपूर्ण जीवन की तीनों अवस्थाएं।
      सच्चाई यह है कि मेरा रानगिर जाने का कोई धार्मिक उद्देश्य नहीं था। मैं प्रकृति प्रेमी हूं और हमेशा जंगल, पहाड़ मुझे आकर्षित करते हैं। जब रानगिर चलने का प्रस्ताव मिला तो मैं मना नहीं कर सकी। रास्ते में मिलने वाले सागौन के वृक्ष हमेशा बांहें पसारे मुझे अपनी और बुलाते हुए लगते हैं। उनके बड़े-बड़े पत्ते देखकर मुझे हमेशा बहुत खुशी होती है। जंगली पेड़-पौधे, झाड़ियां और इनमें रंगों की विविधता प्रकृति की सुंदरता का बोध कराती है।      
       रानगिर पहुंचकर हमने पाया कि वहां मेला लगा हुआ था। रंग बिरंगी वस्तुओं से दुकानें सजी हुई थीं। काफी भीड़ थी। फिर भी एक दुकानदार ने हमें अपनी गाड़ी उसकी दुकान के सामने खड़ी करने की अनुमति दे दी, शर्त यह थी कि हम चढ़ावे और पूजा की सामग्री उसकी दुकान से खरीदें। हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं थी, आखिर किसी न किसी दुकान से तो हमें वह सब खरीदना ही था। 🚗🚙🚧
    मंदिर के बाहरी प्रांगण में अलग-अलग समूहों में लोग बाटियां सेंक रहे थे जिससे प्रांगण परिसर बाटियों की सोंधी सुगंध से महक रहा था। बुंदेलखंड में पिकनिक के दौरान बाटी और बैंगन का भरता  बनाकर खाने का चलन है। यूं तो बाटी के साथ दाल भी खाई जाती है लेकिन दाल बनाने की सुविधा न होने पर बैंगन का भरता और बाटी से ही काम चलाया जाता है। लेकिन एक बात तो तय है कि जो स्वाद गोबर के कंडे को जलाकर सेंकी गई बाटियों में होता है वह ओवन में सिंकी हुई बाटियों में नहीं होता। राजस्थान में भी बाटियां खाई जाती हैं और मालवा में यह बाफले के रूप में बनती है। बाटियों के चूरमे के लड्डू भी बनाए जाते हैं। 🍪🥘🥣
   🐒 मंदिर के बाहरी प्रांगण में बाटियां सेंकने वालों के साथ ही बंदरों के झुंड भी मौज़ूद थे। वे  अवसर पाकर खाने की वस्तुएं झपट कर ले जाने से चूक नहीं रहे थे। प्रसाद के पैकेट भी छुपा कर रखने की ज़रूरत थी वरना वह हाथ से छीन कर ले जाते। मैं उन बंदरों की तस्वीरें खींचना चाहती थी लेकिन यह सोच कर मुझे अपना इरादा बदलना पड़ा कि कहीं वे मेरे हाथ से मेरा मोबाइल ही छीन न ले जाएं। यद्यपि मुझे यह बताया गया कि यहां के बंदर सिर्फ खाने की वस्तु ही छीनते हैं, लेकिन बंदर तो आख़िर बंदर हैं। अगर उनका मूड बदल जाता तो मेरा मोबाइल तो चला जाता मेरे हाथ से।🐒🙆🤷
    मंदिर के आंतरिक प्रांगण में महिलाएं उत्साहपूर्वक नृत्य कर रही थीं।  कुछ महिलाएं मनौतीपूर्ण होने पर भी नृत्य करती हैं और कुछ आंतरिक उमंग और उत्साह से भर कर नाच उठती हैं। उन महिलाओं को नृत्य करते देखकर मेरा भी मन उनमें शामिल हो जाने का हो रहा था किंतु वे मनौती पूरी होने पर नृत्य कर रही थीं, इसलिए मुझे उनमें शामिल होना उचित नहीं लगा।  ढोल, मृदंग और नगड़िया का स्वर ही ऐसा होता है कि व्यक्ति अपने आप नाच उठता है। 🚩💃🚩
     ⤵️ लौटते समय मैंने पुराने सागौन (सागवान) के कटे हुए ठूंठ पर बैठकर  सागौन के पत्तों के साथ अपनी तस्वीर खिंचवाई। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं प्रकृति के किसी सिंहासन पर बैठी हूं। 👑Just like a Queen 👑
     हरियाली से भरा रास्ता और छोटे-छोटे खेत में जलाई जा रही खरपतवार से उठता सफेद धुआं मन मोह रहा था। फिर फोरलेन पर लौटते ही मेरा शरारती मन जाग उठा और गाड़ी से उतर कर मैं सड़क पर जा बैठी। मस्ती से सड़क पर बैठकर बगल से गुजरती हुई बड़ी-बड़ी ट्रकों और ट्रेलर्स को देखना एक अलग ही किस्म का अनुभव होता है। (📌 मगर ऐसा अनुभव सुरक्षित दूरी से लें) एक ट्रेलर का ड्राइवर मेरे बगल से अपना ट्रेलर निकालते समय मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। शायद वह मेरे पागलपन पर हंसा भी होगा। वैसे  मुझे उसके ट्रेलर से ख़तरा नहीं था और न मैं उसके मार्ग में बाधा बन रही थी क्योंकि मैं एक लेन में थी और वह दूसरी लेन में।
       उधर से निजी गाड़ियों में गुजरते हुए परिवार बड़ी उत्सुकता से मेरी ओर देखते जा रहे थे, जब मैं सड़क पर आलथी- पालथी मारकर भजन गाने की मुद्रा में हाथ हिला रही थी। मैं शर्त लगा सकती हूं कि उनके मन में भी इस तरह की कोई हरकत करने की इच्छा ज़रूर जागी होगी। लेकिन संकोचवश वे ऐसा नहीं कर पा रहे थे। क्योंकि कई बार मैंने विभिन्न आयोजनों के दौरान यह देखा है कि मन में इच्छा होते हुए भी लोग अपने मोबाइल से तस्वीरें उतारने तक में हिचकते हैं। और, ऐसे अवसर पर जब भी पहल करते हुए मैंने कहा कि "एक यादगार तस्वीर तो हो जानी चाहिए!" और फोटो खींचनी शुरू कर दी, तो चंद मिनट में सभी के मोबाइल अपनी जेबों से निकल आए और सब उत्साहपूर्वक तस्वीरें उतारने में जुट गए। मैं तो यही मानती हूं कि उमंग और उत्साह को अपने भीतर दबाए नहीं रखना चाहिए। साथ ही, सुंदर-रोचक यादों को इकट्ठे करते चलना चाहिए क्योंकि वह समय फिर कभी लौट कर नहीं आता। 🚙🚛🚜🚚
     हां, यदि रास्ते में मिलने वाली प्रसिद्ध मुंगोड़ियों और दहीबड़ों की बात न की जाए तो यह यात्रा विवरण अधूरा रह जाएगा। इस रास्ते में मुंगोड़ियों और दहीबड़ों की कई दुकानें हैं लेकिन उसमें से एक दुकान सबसे अधिक चलती है। वाकई उसकी मुंगोड़ियां और दहीबड़े बेहद स्वादिष्ट होते हैं। चूंकि मैं खट्टी दही खाना नहीं चाहती थी इसलिए मैंने सादे बड़े खाने का निर्णय लिया। उस समय तक मुगौड़ियां नहीं बनी थीं। अतः मुंगोड़ीवाले से हमने यह वादा लिया कि वह हमारे लिए मुंगोड़ियां अलग बचा कर रखेगा, जिन्हें हम लौटते समय खाएंगे। क्योंकि अधिक भीड़ होने पर पूरी मुंगोड़ियां बिक जाने का डर था। जब हम लौटते समय उसकी दुकान पर पहुंचे तो उस समय वह ताजा में मुंगोड़ियां तल रहा था। गरमागरम मुंगोड़ियों से बढ़ कर और  बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता।
       📖 शाम तक घर वापसी हुई।... और मेरी यादों की डायरी में यात्रा-अनुभव का एक और पन्ना जुड़ गया।📙
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