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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, January 4, 2023

चर्चा प्लस | नए साल के रेज्यूलेशन उर्फ़ खुद से किए चुनावी वादे | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
नए साल के रेज्यूलेशन उर्फ़ खुद से किए चुनावी वादे
 - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                      
       हर साल यही होता है कि नया साल शुरू होते ही हम अपनी लम्बी-चौड़ी रेज्यूलेशन लिस्ट बना कर तैयार हो जाते हैं। बिलकुल किसी चुनावी प्रत्याशी की तरह। फिर यह सोच कर प्रफुल्लित होते रहते हैं कि इस साल खुद को बदल कर रहेंगे। उन सारे रेज्यूलेशन्स पर अमल करेंगे जो मोबाईल की डिज़िटल डायरी में सूचीबद्ध कर लिए हैं। इस तरह अपनी सोच को नेतागिरी करने देते हैं और छोड़ देते हैं खुले चुनावी मैदान में। खुद को जनता मानते हुए वादों की झड़ी के समान अपने रेज्यूलेशन्स को खुद पर बरसने देते हैं। अंततः परिणाम क्या निकलता है, ज़रा सोचिए!  
   वर्ष 2023 का पहला ‘‘चर्चा प्लस’’ किसी सांसारिक गंभीर मुद्दे के बजाए एक आत्मावलोकन विषय पर रखूं, यह विचार मेरे मन में आया और मैंने उस पर अमल भी कर रही हूं। कारण यह कि मैं खुद भी आत्मावलोकन करना चाहती हूं कि मैं अपने खुद के प्रति कितनी डिप्लोमेटिक हूं और खुद से किए गए कितने वादे पिछले साल में मैंने पूरे किए हैं? वर्ष 2022 में अपने कितने रेज्यूलेशन यानी संकल्प मैंने पूरे किए हैं? इस विषय पर यदि सर्वे किया जाए तो बड़े ही दिलचस्प परिणाम सामने आएंगे। बहरहाल, मैं पिछले साल के अपने रेज्यूलेशन आप सब से साझा करने जा रही हूं ताकि आप भी अपने रेज्यूलेशन्स को याद कर के उन पर टिक या कट्स लगा सकें।

मेरे रेज्यूलेशन्स की लिस्ट में पहले नंबर था अपना वज़न कम करना। वज़न कम करने के लिए प्रतिदिन सवेरे जल्दी सो कर उठना। सुबह की सैर पर जाना। थोड़ा व्यायाम करना और योगा करना। तय किया था कि कम से कम आठ से दस किलो वज़न कम कर लूंगी। हुआ यह कि पहली जनवरी को ही कड़ाके की ठंड महसूस हुई। जैसे इस वर्ष की पहली जनवरी को मौसम रहा। एकदम चिल। बाहर का कोहरा देख कर प्रातः भ्रमण एक पल गंवाए बिना रद्द कर दिया था। इस बार भी ठीक यही हुआ है। गोया एक्शन रिप्ले। यूं भी पहली जनवरी को प्रातः देर से हो पाती है। रात देर तक जागने के बाद दिल का मुर्गा जल्दी बांग देने को राज़ी नहीं होता है। इस बार भी नहीं हुआ। खैर, बात होनी चाहिए पिछले साल की। सो, यही हुआ था मेरे साथ। साल के पहले ही दिन रेज्यूलेशन का पहला गुम्बद धड़ से नीचे आ गिरा। देर से सो कर उठी। सैर कैंसिल कर दी। घड़ी में आठ बजे का समय देखने के बाद दिल ने ज़ोर दे कर कहा कि अब आज एक्सरसाईज़ और योगा का समय निकल गया है। कल से शुरू करूंगी। पक्का! लेकिन संत कबीर ने मेरे जैसे लोगों को ध्यान में रख कर ही यह कहा होगा-
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।

प्रलय तो नहीं हुई लेकिन साल भर यही रवैया चलता रहा। कभी खुशी-कभी ग़म की तर्ज़ पर कभी प्रातः सैर, कभी व्यायाम, कभी योगा और कभी कुछ भी नहीं। मैं एक चुुनावी वादे की तरह अपने रेज्यूलेशन के पहले प्वाइंट को अगले चुनाव यानी अगले साल तक के लिए सरकाती चली गई। परिणाम यह हुआ कि मेरा वज़न कम होने के बजाए बढ़ गया। कितना? यह नहीं बताऊंगी। बहरहाल, इस बार 31 दिसम्बर 2022 की देर रात यानी 1 जनवरी 2023 की रात के प्रथम पहर में मैंने तय किया कि मैं जल्दी सो कर उठूंगी और अपने रेज्यूलेशन के पहले प्वाइंट यानी वज़न घटाओ अभियान पर जुट जाऊंगी। लेकिन शायद मौसम नहीं चाहता है कि मैं अपना वज़न घटाऊं। कोहरे ने मेरे मंसूबों पर पानी फेर दिया। तापमान को भी पहली जनवरी को ही गिरना था। बहाना तगड़ा था। दिल एक अच्छे वोटर की तरह मान गया और रजाई, कंबल ओढ़कर सो गया।
पिछले साल के मेरे रेज्यूलेशन लिस्ट के दूसरे बिन्दु पर था नया उपन्यास लिखना और किताबें पढ़ना। मन में उपन्यास के एक-दो नहीं बल्कि पचीसों प्लाट भ्रमण करते रहे, ठीक उसी प्रकार जैसे एक अच्छा उम्मीदवार अपने चुनाव क्षेत्र में भ्रमण करता रहता है। उसका उद्देश्य चुनाव जीतना होता है, मेरा उद्देश्य उपन्यास लिखना था। अपने मन को प्लाट्स के वादे पर वादे पकड़ाती गई ओर पूरा का पूरा वर्ष 2022 धूमधाम से निकाल दिया। वह तो भला हो कि हर सप्ताह एक किताब की समीक्षा लिखती हूं इसलिए हर सप्ताह एक किताब पढ़ती रही। वरना शायद पुस्तक-पठन का भी यही हाल होता। वैसे पिछले वर्ष कई अच्छी किताबें पढ़ने को मिलीं। निःसंदेह कुछ तो बेजोड़ थीं और कुछ ऐसीं कि उन्हें रिपेयरिंग की बहुत ज़रूरत थी। नाम किसी का नहीं लूंगी। न किसी को खुश करना चाहती हूं और न दुखी। उस पर पंगा लेने का मूड तो बिलकुल भी नहीं है। तो इस वर्ष के पहले दिन कड़कड़ाती ठंड में रजाई में दुबक कर रिज्यूलेशन नंबर दो के रूप में खुद को एक संकल्प पकड़ाया है कि इस वर्ष एक धमाकेदार उपन्यास लिखूंगी। अब यह धमाका सुलती बम बन पाएगा या चुनावी वादे-सा फुस्स हो कर रह जाएगा, यह तो अगले दिसम्बर तक पता चलेगा। वैसे एक बायोग्राफी लिखने का भी इरादा है।

वैसे ईमानदारी से अपने पिछले वर्ष का आकलन करने पर मैंने पाया कि सब एकदम नकारात्मक भी नहीं रहा है। खुद से किए गए कुछ वादे मैंने पूरे भी किए। जैसे दो किताबें लिखीं। एक क्लाईमेट चेंज पर और एक कविता संग्रह। दोनों प्रकाशित भी हुईं। इसके अलावा वृद्धाश्रम जा कर वृद्धजन को अपने हाथों से खाना परोसना, बाल अनाथश्रम जा कर बच्चों को खाना खिलाना आदि संकल्प पूरे किए। लेकिन सच तो ये है कि इन दोनों वादों को पूरा करने में मेरे आत्मीय जागरूक भाइयों ने सहयोग किया वरना, ये दोनों संकल्प भी पूरे हो पाते या नहीं, पता नहीं। यानी मैंने पाया कि कुछ संकल्प दूसरों के सहयोग से भी पूरे किए जा सकते हैं। इस तरह अपनी रेज्यूलेशन लिस्ट के कुछ रेज्यूलेशन तो पूरे हो सकेंगे। इस सिचुएशन पर साहिर लुधियानवी साहब से क्षमायाचना सहित दो शब्द बदलते हुए इस गाने को याद कर रही हूं-
साथी हाथ बढ़ना
साथी हाथ बढ़ना
एक अकेला सो जाएगा
मिलकर बोझ उठाना

इस वर्ष भी अपने प्रिय भाई, बहनों के सहयोग से कुछ अच्छा-अच्छा करने का खुद से वादा किया है। जिसमें अभ्यारण्य घूमना भी शामिल है क्योंकि मुझे बर्ड वाचिंग बहुत पसंद है। यूं भी मेरे शहर के पास वाले अभयारण्य में तो चिड़ियां ही मिलेंगी क्योंकि सुना है कि तेंदुआ तो आजकल विश्वविद्यालय कैंपस में घूम रहा है। जी हां, सचमुच का चार पैर और एक लम्बी पूंछ वाला चित्तेदार तेंदुआ (लियोपार्ड)।  विश्वविद्यालय की ओर से अलर्ट भी जारी किया गया है। मुझे लगता है कि यह तेंदुआ शायद पिछले जन्म में विश्वविद्यालय का ऐसा विद्यार्थी रहा होगा जिसका हर कक्षा में दो-दो, तीन-तीन साल रह कर भी मन नहीं भरा होगा। सो, इस जन्म में भी विश्वविद्यालय परिसर में रात्रिभ्रमण करता है। दिन में जूनियर छात्रों के सामने आने से शरमाता होगा, बेचारा।
      खैर, मैं बात कर रही थी अपने पिछले और अगले रेज्यूलेशन की। इस साल के रेज्यूलेशन में अपनी शाॅपिंग की आदत पर लगाम लगाना भी मैंने जोड़ा हुआ है। पिछले साल भी जोड़ा था। लेकिन ‘‘बस, यह एक बार, फिर नहीं!’’ -यह खुद से कहते-कहते शाॅपिंग करती रही। सस्ती हो या मंहगी, पर शॅपिंग तो शाॅपिंग होती है। जैसे वादा तो वादा होता है। चाहे वह दूसरे से किया जाए या खुद से किया जाए। वैसे पिछले साल कुछ डिज़िटल पेंटिंग की, फोटोग्राफी की। ये दोनों इच्छाएं सीधे-सीधे रेज्यूलेशन में शामिल नहीं थीं लेकिन मन के किसी कोने में आलथी-पालथी मार के बैठी थीं। लेकिन इस वर्ष के रेज्यूलेशन में मैंने इन्हें खुल्लम-खुल्ला शामिल कर लिया है। ताकि यदि एक-दो पेंटिंग्स बना लीं और आठ-दस फोटो खींच लीं तो कम से कम यह तो महसूस होगा कि मैंने अपने दो संकल्प पूरे किए। इससे उत्साह बढ़ेगा। यानी आपको भी इस तरह के आसान और रूचिकर संकल्प अपनी सूची में शामिल रखने चाहिए।

हां, रेज्यूलेशन में एक सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है जो मैंने पिछले साल के अनुभव के आधार पर इस बार जोड़ा है कि किसी के वादे पर भरोसा मत करो! आजकल अधिकांश वादे चुनावी वादों की तरह होते हैं, चाहे वादा करने वाला बंदा राजनीति में दखल रखता हो या नहीं इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वादे की प्रक्रिया त्रासद होती है। कोई आपसे पूरी वज़नदारी दिखाते हुए वादा करता है। आप मासूमियत के साथ उसके वादे पर भरोसा कर लेते हैं। जब आप को अनुभव होता है कि वह वादा भूले जा रहा है तो आप उसे फोन कर के, टैक्स्ट मैसेज कर के, ईमोजी भेज कर वादा याद दिलाने का प्रयास करते हैं। वह वादा याद रखने की हामी भरता है लेकिन पूरा नहीं करता है। आप स्वयं को ठगा हुआ अनुभव करते हैं और फिर स्वयं को कोसने लगते हैं कि फलां के वादे पर भरोसा ही क्यों किया। फिर दिल को यह समझाना बाकी रह जाता है कि -
रोने से नहीं हासिल कुछ ऐ दिल ऐ सौदाई
आंखों की भी बर्बादी दामन की भी रुसवाई

कहने का आशय ये है कि वादे अगर दूसरों के हैं तो खुद को दूध का जला हुआ समझना चाहिए और उन्हें छाछ की तरह फूंक-फूंक कर पीना चाहिए और उतना ही भरोसा करना चाहिए जितना चुनावी वादों पर भरोसा करते हैं। यह अनुभव के आधार पर कह रही हूं। रहा सवाल अपने आप से किए गए अपने वादों का तो उन्हें चुनावी वादे मत बनने दीजिए। कोशिश तो की ही जा सकती है। अपने वादे, अपना संकल्प यानी अपना रेज्यूलेशन ऐसे छोटे-बड़े मुद्दों का मिक्स्चर बना कर तैयार करिए कि कुछ संकल्प पूरे न हों तो दो-चार तो पूरे हो जाएं, जिससे उत्साह बना रहे और निराशा हावी न होने पाए। यह याद रखना जरूरी है कि जीवन की खुशियांे या सुख-शांति से बड़ा कोई भी रेज्यूलेशन नहीं होता है। रेज्यूलेशन जीवन के लिए होता है, रेज्यूलेशन के लिए जीवन नहीं। इसी बात पर अपना एक शेर अर्ज़ कर रही हूं, आपके लिए भी और अपने खुद के लिए भी-
जो छूट गया, सो छूट गया, जो नहीं मिला, सो नहीं मिला
जो  मिला  हमें,  उसको  सहेज,  पूरे  दिल से  अपनाएं।

पिछले साल के अनुभवों की नींव पर नए साल के रेज्यूलेशन बनाइए। चूंकि ठंड कड़ाके की पड़ रही है अतः ठंड से बचते हुए जो संभव हो, वह पूरा करिए। जैसे मेरा प्रातः भ्रमण तब तक के लिए स्थगित है जब तक ठंड कम नहीं हो जाती। यूं भी जब सूर्य देवता आजकल देर से जागते हैं तो फिर हम, आप तो इंसान हैं। गर्म कपड़े पहनिए, चाहे शादी-विवाह का रिसेप्शन ही क्यों न हो क्योंकि ठंड चुनावी वादे नहीं करती। वह तो जब जकड़ती है तो नानी, दादी सब याद करा देती है। सो, अच्छे मौसम में पतले कपड़ों के अपने सारे शौक पूरे करिए। रेज्युलेशन पूरे करने के लिए भी अच्छे मौसम की प्रतीक्षा करिए। मैं तो पहले से ही प्रतीक्षा की लाईन में लग गई हूं। इसका अर्थ यह भी नहीं कि अपना रेज्यूलेशन ठंडे बस्ते में डाल दें। अपना रेज्यूलेशन याद रखिए और ‘‘चर्चा प्लस’’ पढ़ते रहिए।  
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