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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, January 13, 2023

बतकाव बिन्ना की | काए, संकरात की बुड़की कां लगा रए? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"काए, संकरात की बुड़की कां लगा रए?"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में। (लेख के अंत में मैंने कुछ शब्दार्थ भी  दिए हैं।)
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बतकाव बिन्ना की  
काए, संकरात की बुड़की कां लगा रए?                                                                                 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह  
          एक जमानो रओ के मैं सोई तिली के लड़ुआ बनाउत्ती। मोंमफली की पट्टी औ तिली के लड़ुआ ने होंय सो संकरात काय की? बाकी अब जमानो तनक एडवांस हो गओ कहानो। अब जे सबरे बनाने होय सो बनाओ ने तो हल्दीराम, धनियाराम, मिर्चीराम हरें बनाई रैं आएं। अब को तिली लाए, को धोए-सुकोय, को साफ करे, को भूने, को कूटे-पीसे? इसे तो नोनो आए के कहूं माॅल-वाल में पौंचों औ एक के संगे एक फ्री वारो लड़ुअन को पैकेट ले आओ।
बाकी मोय याद आ रई के जब मोसे लड़ुआ बनात नई बनत रओ औ मैंने सोची के बना के देखो जाए। मोरी मताई जिनको हम नन्नाजू कैत्ते, बे गई रईं स्कूले पढ़ाबे औ जिज्जी मने दीदी ऊ टेम पे काॅलेज में पढ़ रई हतीं। बे रईं साईंस वारीं, सो उनको ऊ दिनां प्रेक्टिकल रओ। सो घर में मोरोई राज हतो। मैंने धुली धुलाई धरी तिली निकारी। गुड़ निकारो। कढ़इया स्टोव पे चढ़ाई। ऊ टेम पे बा पंप वारो स्टोव चलत्तो। कढ़इया में गुड़ डारो। तनक पानी किन्छों। चलात-चलात गुड़ पिघल गओ। दो-चार मिनट मेंई ऊमें तार बंधन लगे। मोय लगी के बन गई दो-तार की चाशनी। सो, मैंने उठाई तिली औ डार दई ऊमें। फेर मोय ऐसो लगो के बा तो जमन लगी आए। सो मैंने ऊको एक थाल में डारो औ लड़ुआ बांधबे के लाने ऊको उंगरिया से उठा लओ। रामधईं! दिन में तरइयां दिखा गईं। इत्तो गरम रओ के उंगरियां जर गईं। गरम गुड़ हतो सो उंगरियां में चिपक गओ। तुंरतईं पानी के मग्गा में उंगरियां डारीं। लगो के फफोला से पर गए। मगर बा मसाला को कछु तो करने परतो, सो मैंने एक और थाल लई, ऊमें घी लगाओ औ मोंमफली की पट्टी घांई फैला दओ ऊको। चपटो करबे के लाने बेलन पे घी मल के ऊपे बेलन सोई फेर दओ। नन्नाजू को ऐसो करत देखो रओ। बाकी बा कहनात आए न के नकल के लाने अकल सोई चाउने परत। सो जब संझा की बिरियां नन्नाजू औ दीदी घरें लौटीं सो उन्ने मोरो कारनामा देखो। दीदी सो बड़ी खुस भईं। उन्ने तुरतईं थाल अपनी तरफी खेंची औ तिल की बा पट्टी निकारबे की कोसिस करन लगीं। चमचा, छुरी, चक्कू सबई कछू से खुरच के देख लओ मगर मोरी जमाई पट्टी हिलबे को नांव नईं ले रई हती। नन्नाजू ने देखी सो बे सोई रै गईं। उन्ने ऐसी पट्टी ने कभउं बनाई रई औ ने देखी रई। फेर उन्ने बा थाली जलत चूला पे धर दई। जब तनक गुड़ नरम परो सो पट्टी अपनी जांगां से तनक हिली-डुली। ऊ टेम पे हमाए इते एक बिलौटा पलो रओ। चीकू नांव हतो ऊको। पट्टी की तनक सी खुरचन मैंने ऊके आंगूं धर दई के बो सोई तनक चख लेय। मगर काय को? ऊने बा खुरचन सूंघी औ गुर्रान लगो। जा देख के दीदी औ नन्नाजू हंस-हंस के पेट पिरान लगो औ मोरे अंसुआं बहन लगे।
ऐसो नइयां के मैंने हार मान लई। बाद में मैंने अपनी दीदी से लड़ुआ बनाबो सीखो औ फेर अच्छो बनान लगी। जे सब सोचत-सोचत मोय खयाल आओ के भौजी सोई लड़ुआ बना रई हुइएं। या कओ उनके इते बन गए होंय। हो सकत के बे ओंरे संकरात की बुड़की के लाने कहूं जा रए होंए। सो मैं पता करबे भैयाजी के घरे जा पौंची।
‘‘आओ बिन्ना! ठीक टेम पे आईं। हम ओरें जेई गुठिया रए हते के ई बेरा बुड़की के लाने कां चलो जाए।’’ भौजी मोय देख के चहकत भईं बोलीं। मैंने सोची के जोन लुगाइयन खों घर से बाहरे जाने को ज्यादा मौका नईं मिलत उनके लाने ऐसे त्योहार फायदे के कहाय। जेई बहाने उने घरे से निकरबे, घूमने को मोंका तो मिल पात आए।
‘‘सो, का तै भओ भौजी? कां जा रईं बुड़की के लाने?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘अबे कछु तै नईं भओ! हम सो कै रए के बरमान चलो। नरबदा जी में बुड़की लगाबी।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ, आपने सोची तो नोनी आए। बाकी भैयाजी, आपको का विचार बन रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम तो सोच रए के कोनऊं रैली-मैली में हो आएं। उते फोकट को जाबो, फोकट को खाबो औ फोकट को ठैरबो मिल जेहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! औ कहूं कोनऊं बात बिगर गई सो फोकट के डंडा खाबे खों औ मिल जेहें।’’ भौजी भिनकत भईं बोलीं।
‘‘अरे, ऐसे कहूं नईं पर रै डंडा- मंडा।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो, कोन सी रैली में जा रए आप?’’मैंने भैयाजी से पूंछी।
‘‘कोनऊं बी। ई टेम पे सो मुतकी रैलियां चल रईं। कहूं भारत जोड़ो, सो कहूं भारत मोड़ो, कहूं संस्कृति बचाओ सो कहूं जातिभेद बढ़ाओ। कोनऊं में ठस जाबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘रैन देओ! हमें कऊं नईं ठंसने। हमें सो तुम जे बताओ के बरमान चल रै के नई?’’ भौजी भैयाजी खों धमकात भई बोलीं।
‘‘औ ने चलें सो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘सो सोच लइयो कि ई बेरा संकरात की सवारी तुमई पे बैठ के निकरहे।’’ भौजी ने सोई अपनी धमकी की वजनदारी बढ़ा दई।
बे ओरें गिचड़ रए हते औ मोय याद आन लगी के जब मैं लोहरी हती औ पन्ना में रैत्ती, सो हम ओरें धरम सागर जाओ करत्ते। धरम सागर बड़ो गहरो रओ, सो नन्नाजू हम ओरन खों ऊमें नहाउन नईं देत्तीं। बाकी हम ओरे उते मेला घूमबे खों जात्ते। उते माटी की चकिया, पुतरियां, चका वारे घोड़ा बिकबें खों आत्ते। कागज की फिरकी (पिन व्हील) सोई मिलत्ती। सो हम मेला घूमबे खों जाबे के पैलऊं चूला में पानी गरम कर के, तिल को उबटन लगा के नहा लेत्ते। मनो हमाई बुड़की बाल्टी के पानी में हो जात्ती। अबे सोई जेई होत आए। मैंने अपनी जिनगी में कुल्ल चार दफा खुले में, मने नदी में नहाओ आए- एक दफा अमरकंटक में नरबदाजी में, दूसरी दफा रीवा की बिछिया नदी में, तीसरी दफा मंडला में फेर के नरबदा जी में औ चौथी दफा उज्जैन की क्षिप्रा में कुंभ के टेम पे। तला में सो कभऊं नहीं नहाओ-सपरो।

‘‘सो बिन्ना, हमने ओरन ने तै कर लओ के अपन सब जने बरमान जा रए बुड़की लगाबे खों।’’ भौजी खुस होत भई बोलीं। उनके मों पे जीतबे की खुसी चमक रई हती। भैयाजी ने अपने हथियार डार चुके हते।
‘‘पर उते तो बड़ी भीड़ हुइए।’’ मैंने भौजी से कही।
‘‘हऔ,? जेई सो हम समझा रए हते तुमाई भौजी खों।’’ भैयाजी सोई बोल परे।
‘‘हऔ, बिन्ना कहे सो ठीक, मनो आप काय कै रए? आपके लाने उते रैली में भीड़ ने हुइए? बड़े आए भीड़ की कैन वारे? उते का कम्पूटर से भीड़ की फोटुएं जोड़ी जेहें। आप तो चुपई रओ।’’ भौजी ने भैयाजी खों ठांस दओ औ फेर मोंसे बोलीं,‘‘बिन्ना, तुम सो तैयारी करो। अपन ओरें बरमान चलहें, चाय कछू हो जाए। तुमें ज्यादा कछु नई रखने। बस, नहा के बदलबे के लाने हुन्ना-लत्ता धर लइयो। खाबे को सो हम रख लेबी। जे अपने बा ठलुआ की बलेरो ले आहें। बोई में चलहें।’’ भौजी बोलीं।
‘‘ऊको ठलुआ ने कओ! बा सुन लेहे सो अपनी बलेरो ने देहे।’’ भैयाजी ने टोकों।
‘‘ठलुआ खों ठलुआ ने कहें, सो का कहें? जो ऊने हमें गाड़ी ने दई सो हम इते अपने दोरे से ऊको कढ़न न देबी।’’ भौजी ताल ठोंकत सी बोलीं।
सो भैया-बहना हरों!, मैं तो ई बेरा बरमान जा रई ओ आप ओरें कां जा रए संकरात की बुड़की के लाने?
मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। बुड़की को प्लान मनो बन गओ आए। हो सकत आए के ई दफा नरबदा जी में एक बेरा औ नहाबे को मिल जाए। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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संकरात = संक्रांति
बुड़की = डुबकी लगा कर नहाना
मोंमफली = मूंगफली, लड़ुआ = लड्डू
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