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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 2, 2023

बतकाव बिन्ना की | बजट मनें आधो हरिया, आधो सूको पत्ता | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"बजट मनें आधो हरिया, आधो सूको पत्ता"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
बजट मनें आधो हरिया, आधो सूको पत्ता                                                     
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
        टीवी पे बजट को हाल देखत-देखत मूंड़ पिरान लगो रओ मोरो। बे एंकर हरें ऐसो चिचिंयांत आंएं के मनो के बजट नोई भूकंप आ गओ होय। उत्तई पे चैन नईयां, बे विशेषज्ञ हरें सोई ऐसे अपनो ज्ञान बघारत आएं के मनो उनके समझाए से सब कछू अच्छो हो जेहे। मैंगाई सो कम करत बनत नईयां कोनऊं से, बाकी हल्ला ऐसो देत आएं के मैंगाई मों दिखाबे जोग ने बची होय। सो, जब मोरो मूंड़ पिरान लगो सो मैंने भैैयाजी की घरे की गैल पकरी। मोय पतो आए के भैयाजी सोई जागरूक नागरिक आंए। बे सोई ग्यारा बजे से टीबी के आंगू बैठे हुइएं औ उनको सोई मूंड़ दुखन लगो हुइए।
मैं भैयाजी के घरे पोंची सो भीतर बैठक में टीवी चल रई हती औ भैयाजी बाहरे आंगन में मूंड़ पे गमछा बांधे ऊंघत से बैठे मिले।

‘‘उते टीवी चल रई औ आप इते बैठे? बजट को हाल नईं देख रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘देख लओ बिन्ना, देख लओ! बोई से तो मूंड़ पिरान लगो। भैयाजी अपनो माथा ठोंकत भए बोले। अब मैंने उनको ने बताई के मोरी सोई जेई दसा आए।
‘‘सो उते बैठक में को आ? भौजी टीवी देख रईं का?’’ मैंने पूछी।
‘‘नईं, तुमाई भौजी हमाए लाने चाय बना रईं। उते बैठक में कोनऊं नइयां। तुमाई भौजी सो हमसे कै रई हतीं के इत्ते लग के ने देखों, मूंड़ पिरान लगहे, औ बोई भओ। कल अखबार में सब आई जेहे। बाकी अब कोनऊं चीज चल रई होय, सो देखे बिना चैन कोन परत आए? तुमई कहो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, कै सो आप ठीक रए। मैं सोई देखत रई।’’ मैंने कई।
‘‘तुमें कैसो लगो बजट?’’ भैयाजी ने पूछी।  
‘‘मोरी छोड़ो, पैले आप बताओ के आपको जो कैसो लगो बजट?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘सौ बातन की एक बात के पूरो हरिया पत्ता ने मिलो!’’ भैयाजी ने अपनी राय कहनात में बोल दई।
‘‘मने? पूरो हरिया पत्ता से का मतलब आपको?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अरे बिन्ना, मोय लग रओ हतो के चुनाव से पैले को जो बजट आए सो कोनऊं बड़ो वारो लाभ हुइए, मनो ऐसो होत भओ मोय तो नई लगो। तुमई बताओ के तुम ओरन के लाने का लाभ दओ गओ?’’ भैया जी ने पूछी।
‘‘अरे भैयाजी बजट में हम साहित्य वारे कां गिने जात आएं? कोनऊं नई पूछत हम ओरन खों।’’ मोरी दुखती रग पे उंगरिया धर दई भैयाजी ने। सच्ची, बजट के टेम पे मोय इम्फीरियरटी फील होन लगत आए। लिखबे वारन खों इनकम टैक्स छोड़ के कोनऊं गिनती में नई रखो जात आएं। रामधई राईटर बनबे से तो बिल्डर बनबो ज्यादा अच्छो! लोगन की उनसे अटकत तो आए। लोग उनसे डरात तो आएं। फेर चाए बे बिल्डिंग बनाबे वारे बिल्डर होंय, चाए बाॅडी बिल्डर। मोरे घांई कबिता-कहानी बनाबे वारन की कोनऊं पूंछ-बकत नईं रैत।
‘‘का सोच में पर गईं? हम तुम लिखबे वारन की नोंई तुम महिलाओं की बात कर रए। तुम ओरन के लाने कोन सी बड़ी राहत दई गई?’’ भैयाजी ने क्लियर करी।
‘‘अरे, हम ओरन को बी कोन सी बड़ी राहत मिली? जो कछु मिलो बो स्व सहायता समूह वारी लुगाइन खों मिलो आए। बाकी लुगाइन के लाने सो मैंगाई को तोफा आए।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘हऔ, जेई लाने तुमाई भौजी हमसे कै रई हती के जो अपन ओरन खों अच्छे दिन देखने होय सो मोय समूह बना लेने दइयो। हमने पूछी के कोन सो समूह? सो बे बोलीं के स्व-सहायता समूह। हमने उनसे कही के भागवान! तुमें स्व-सहायता की कोन सी जरूरत आन परी, तुम तो मोहल्ला भर की सहायता करत रैत हो। सो, बे भड़क के बोलीं के तुम टीवी देख रए के मोबाईल टिपिया रै? तुमने सुनी नईं के बा न्यूज वारी स्व-सहायता समूह के बारे में का बोल रई हती। अब सांची जे के हमने सुनी तो, मनो समझ में कछू नई आओ रओ। सो हम मों चिंमा के बैठे रै। पर, अब तुमने कई सो हमें समझ में आ गई के तुमाई भौजी स्व-सहायता समूह की बात काय कर रई हतीं।’’ भैयाजी खुस होत भए बोले।  
‘‘हऔ, महिलाओं को दो लाख की बचत पर 7.5 प्रतिशत को ब्याज दओ जेहे औ महिला सम्मान बचत पत्र स्कीम चलाई जेहे। मनो जे सब कछू स्व-सहायता समूह वारियन के लाने। ईसे सो नोनी रैती के मैंगाई कछू कम कर देते। रसोई गैस को सिलेंडर मंगाओं सो अंसुवां आ जात आंए। मनो एक काम मोय अच्छो लगो के फुंकनी पे टैक्स बढ़ा दओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘फुंकनी? कोन सी फुंकनी?’’ भैयाजी खों मोरी बात समझ में ने आई।
‘‘अरे, फुंकनी मने सिगरेट। जो सिगरेट पे टैक्स बढ़ा के भलो करो। सिगरेट पीबे वारे खुद को करेजा सो फूंकत आएं औ सामने वारो को बी अपने करेजा से निकरो धुंआं पियात रैत आएं। मोय सो बड़ो बुरौ लगत आए। बस, जे काम ई बजट में अच्छो लगो मोय।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘औ कछू अच्छो नई लगो?’’ भैयाजी ने हैरान होत भए पूछी।
‘‘नईं, मनो अच्छो सो और आए बाकी बात बोई आप वारी के पूरो हरीरा पत्ता ने मिलो। आधो हरो औ आधो सूको। हीरा के दाम घट गए सो सोना मैंगो हो गओ। अब सबरे हीरा सो पैनत नइयां और हीरा के दाम चढ़-गिरे से बाजार को कोनऊं फरक नईं परत जबके सोना के दाम शेयर मार्केट पे सीधो असर डारत आएं। हऔ जे जरूर आए के अब बिजली वारे वाहान के दाम ने बढ़हें औ सायकिलें सस्ती मिलहें। बाकी ईके बाद राज्य सरकारें बिजली वारे वाहनों के लाने बिजली पे कोन सी राहत देहें, ईपे सब कछू टिको आए। अबे तो अपने इते इत्ते चार्जर स्टेशन नोईं के मनो घर से पूरो चार्ज करे बिना निकर परे औ बीच में बिजली चुका गई, सो स्टेशन पे चार्ज कर लें। अब बिजली कोनऊं डीजल-पेट्रोल नोंई के जां गाड़ी की टंकी खाली भई, वईं गाड़ी खड़ी करी औ दौर परे पेट्रोल पंप खों औ कुप्पा में डीजल-पेट्रोल भरवाओ औ ले आए अपनी गाड़ी के लाने।’’ मैंने भैयाजी से कही।
‘‘मनो, एक दिना हम सोई ई बारे में सोच रए हते तो हमें लगो के बिजली वारी गाड़ियन वारों खों एक्स्ट्रा बैटरी रखो चइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कै सो आप ठीक रए। चार पहिया के लाने सो जे उपाय ठीक रैहे मनो स्कूटी वारे कां रखहें?’’ मैंने पूछी।
‘‘हऔ, जे सो हमने सोची नईं।’’ भैयाजी झेंपत भए बोले।  
‘‘आप भैया बहन की का बतकाव हो रई?’’ भौजी चाय को कप धरे आ गईं।
‘‘कछू नईं! बो स्व-सहायता समूह वारी बात कर रए हते बिन्ना से।’’ भैयाजी शान मारत भए बोले।
‘‘अरे, हऔ बिन्ना! हम का सोच रए हते के हम मोहल्ला की कछू लुगाइन खों जोड़ के एक स्व-सहायता समूह बना लैंहें, सो तुम सोई ऊमें जुड़ जइयो। बड़ो फायदो हुइए। तुमें सोई चार पैसे मिल जैहें।’’ भौजी बड़े प्यार से बोलीं। उनको ऊंसई बड़ी फिकर रैत आए मोरी।
‘‘नईं हो सकत भौजी! मोरी इनकम कछू नइयां मनो मोय इनकम टैक्स भरने परत आए, सो समूह में नईं जुड़ सकत।’’ मैंने सांची बात बता दई भौजी खों।
‘‘सो, काए? लिखबे से इत्ते पइसा मिल जात आएं?’’ भौजी भौचक्की रै गईं।
‘‘अरे कहूं नईं, लूघरा नईं मिलत! बा तो एक बेरा एक सम्मेलन में बिदेस जाबे की बात चल रई हती सो, बोई टेम पे कोनऊं नासपिटे ने मोरो इनकम टैक्स रिटर्न भरा दओ, तभई से जो फंदा मोरे गले पर गओ। बाकी ऊ टेम पे कछू अच्छी इनकम रई बी। अब सो कोरोना को टेम को रोना रो-रो के रायल्टी देबे वारन ने मों बिचका लए आएं। खैर, जे सब छोड़ो, आप सो अच्छो समूह बनाओ औ जो कछू सरकार देवे सो ले लइयो।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘अरी मोरी बिन्ना! तुम सोई कां फंसी लिखबे-पढ़बे में।’’ भौजी खों मोरी बात सुन के मोपे बड़ी दया उमड़ी।
‘‘अब का करो जाए भौजी! जो बदो रैत, बोई होत आए! मुतकी बेरा सो मोय खुदई समझ में नईं आत के साहित्य की सहायता करों के खुद की सहायता करों। बाकी इत्ती कट गई, बाकी बी कट जेहे! बस, जे बजट के टेम पे तनक पीरा होन लगत आए।’’ मैंने भौजी से कही।
‘‘ने घबड़ाओ बिन्ना! हमाओ समूह चल परहे सो हम तुमाई सोई सहायता करबी।’’ भौजी ने बड़े प्यार से मोय सहूंरी बंधाई। मोय अच्छो लगो। बजट नोई बल्कि सहूंरी।  
सो, मोए सोई बतकाव करनी हती सो कर लई। अब बजट सो बनई गओ। हमाई-तुमाई बतकाव से ऊमें फेरबदल सो हो नईं सकत। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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