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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, March 15, 2023

चर्चा प्लस | आधुनिक बाज़ार के ख़तरे और उपभोक्ता जागरूकता | विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
आधुनिक बाज़ार के ख़तरे और उपभोक्ता जागरूकता
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                   
       प्रति वर्ष 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। विश्व का तो पता नहीं लेकिन हमारे देश में उपभोक्ता अपने अधिकारों को ले कितना जागरूक है, यह अभी भी विचारणीय प्रश्न है। विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस पर उपभोक्ताओं को उनके अधिकार बताए जाते हैं और ‘‘जागो ग्राहक जागो’’ की शपथ दिलाई जाती है लेकिन आज बाज़ार जिस तेजी से बदल रहा है, खतरे भी उतने अधिक बढ़ गए हैं। विचारणीय है कि आॅनलाईन शाॅपिंग ओर डिज़िटल पेमेंट का जितनी तेजी से चलन बढ़ता जा रहा है, क्या उतनी ही तेजी से उपभोक्ता जागरूक हो रहा है?  
ऑनलाईन शाॅपिंग ओर डिजिटल पेमेंट ने हमारी खरीददारी को आसान बना दिया है। इस तरह की खरीददारी करते समय हम स्वयं को एक आराम पसंद ग्राहक के रूप में महसूस करने के साथ ही इस बात से भी संतुष्ट रहते हैं कि हमने किसी भी सामग्री की वाईड रेंज देख कर, उसमें से छांट कर सामान खरीदा है। उदाहरण के लिए हम किसी दूकान में जाते हैं और उसे एक चादर दिखाने को कहते हैं। दूकानदार हमें चादर दिखाता है लेकिन कई बार हमें उसकी दिखाई चादरें पसंद नहीं आती हैं और हम उससे ‘‘और, इसके अतिरिक्त और दिखाइए’’ की मांग करते जाते हैं। यदि दूकानदार में पेशंस है तो वह बिना बुरा माने हमें चादर की वैरायटीज़ दिखाता जाता है। लेकिन सब दूकानदार पेशंस वाले नहीं होते हैं और चिढ़ कर कह उठते हैं कि ‘‘शायद आपको लेना-वेना नहीं है, नहीं तो इतनी वैरायटी में तो एकाध तो पसंद आ जाती।’’ आपको उसकी यह बात बुरी लगती है और आप अपमानित महसूस करते हैं क्योंकि आप के मन में यह भावना रहती है कि आप वह चादर मुफ्त में लेने नहीं आएं हैं, बल्कि खरीदने आए हैं। इसके ठीक उलट जब आप आॅनलाईन शाॅपिंग साईट पर होते हैं तो आप तब तक उस साईट पर अपनी पसंद की वस्तु छांट सकते हैं जब तक या तो आप थक न जाएं या फिर आपका इंटरनेट डाटा न खत्म हो जाए। इतना ही नहीं, चार-छः घंटे लगातार साईट सर्फिंग करने पर भी यदि आप कोई वस्तु पसंद नहीं कर पाते हैं तो वह साईट आपको बुरा-भला नहीं कहती है। इसलिए आॅनलाईन शाॅपिंग का क्रेज बढ़ना स्वाभाविक है। आप आधी रात को शाॅपिंग कर सकते हैं, आॅफिस के लंच टाईम में आॅफिस से निकले बिना शाॅपिंग कर सकते हैं। बाज़ार अब आपकी घर की दीवारों के भीतर मौजूद है। बड़ी और मल्टीनेशनल शाॅपिंग साईट्स सुई से ले कर मोटरकार तक आपके घर पर पहुंचाने को तैयार हंै। वह भी आकर्षक डिस्काउंट के साथ। लेकिन इस तरह की खरीददारी में जोखिम भी कम नहीं है।

खरीददारी के मामले में महिला उपभोक्ता सबसे अधिक समय लेने वाली मानी जाती हैं। दरअसल एक ही वस्तु को कई दूकानों में और उसकी कई वैरायटीज़ देखने के बाद वे सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें क्या खरीदना है। चाहे कामकाजी महिला हो या गृहणी हो, आज के समय में घर से बाहर बाज़ार के लिए बहुत अधिक समय दे पाना संभव नहीं हो पाता है। क्योंकि जो गृहणी है उसे अपने उन बच्चों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जो दोपहर में स्कूल से भूखे-प्यासे घर लौटते हैं। ये महिलाएं अपने बच्चों को अनदेखा करके बाजार करने नहीं जा सकती हैं लेकिन यदि बच्चों के प्रतीक्षा करने के दौरान बाजार ही उनके करीब आ जाए तो इससे बढ़कर सुविधाजनक और कुछ हो ही नहीं सकता है। इसीलिए गृहणियों में ऑनलाइन शॉपिंग बहुत लोकप्रिय हो गई है। पुरुष वर्ग भी इसमें पीछे नहीं है क्योंकि उन्हें तो बाजार जाकर खरीदारी करने में यूं भी कोफ़्त होती है। अतः जब सोफे पर लेटे-लेटे बाजार करने का अवसर मिल जाए तो वह भी पीछे कैसे हट सकते हैं? दरअसल बाजार अपने उपभोक्ताओं की जीवन शैली को भलीभांति समझता है। लेकिन इस बाजार में जहां ईमानदार व्यवसायी होते हैं, वही कुछ धोखेबाज भी घुसपैठ बना लेते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग में सबसे बड़ा जोखिम ऐसे ही घुसपैठियों से होता है। कई बार वे बड़े आकर्षक सामानों की नुमाइश इंटरनेट पर करते हैं और सबसे कम दाम में बेचने का दावा भी करते हैं। ग्राहक उनके झांसे में आकर बड़ी संख्या में सामान का ऑर्डर दे देते हैं। आमतौर पर ऐसी साइट्स पर प्रीपेमेंट यानी पहले भुगतान का प्रावधान होता है। अब ग्राहक पहले भुगतान कर चुका हो तो उसे किसी भी तरह की घटिया सामग्री आराम से पकड़ाई जा सकती है। बड़ी प्रतिष्ठित ऑनलाइन कंपनियां अपनी साख का ध्यान रखती हैं और इस तरह की धोखाधड़ी नहीं करती हैं लेकिन छोटी-छोटी अनेक साइट्स ऐसी होती हैं जो बहुत आसानी से ग्राहकों को ठग लेती हैं।

 आपको मैं एक सत्य घटना बताऊं कि मेरी एक सहेली ने एक ऑनलाइन शॉपिंग साइट से चार साड़ियों का ऑर्डर दिया। वह बिल्कुल उसकी पसंद की साड़ियां थीं। निश्चित रूप से उस शॉपिंग साइट के द्वारा मेरी सहेली द्वारा साइट पर ढूंढी जा रही साड़ियों की पसंद को ‘टारगेट’ कर लिया था। इसलिए उस शाॅपिंग साईट द्वारा मेरी सहेली को उसी तरह की साड़ियां उसके सोशल मीडिया अकाउंट्स पर विज्ञापन के रूप में दिखाई गई। उस साइड का इतना अधिक विज्ञापन उसके सोशल मीडिया साइट पर आने लगा था कि मेरी सहेली को वह साइट विश्वसनीय लगी और उसने अपनी पसंद की चार साड़ियों का एक साथ ऑर्डर कर दिया।  पेमेंट ऑप्शन में ‘ऑन डिलीवरी पेमेंट’ का भी ऑप्शन था इसलिए उसे संदेह या डर की गुंजाइश नहीं दिखी। जब उसका आर्डर आया तो उसने देखा कि पैकेट पूरा बंद था। सभी ओर से दुरुस्त था। कहीं से खुला हुआ नहीं था। उसने हाॅकर को डिजिटल पेमेंट कर दिया। बाद में जब उसने पैकेट खोल कर देखा तो उसमें बिल्कुल ही घटिया किस्म की मात्र एक साड़ी मौजूद थी जिसका आर्डर भी उसने नहीं दिया था। जबकि वह चार साड़ियों का पेमेंट कर चुकी थी। मेरी सहेली ने तत्काल उस ऑनलाइन शॉपिंग साइट के ऐप पर अपनी शिकायत दर्ज की। जिसका कोई उत्तर नहीं मिला। फिर उसने ‘कांटेक्ट अस’ ऑप्शन पर घंटी की। उस पर भी कोई रिप्लाई नहीं मिला। मेरी सहेली परेशान हो उठी। फिर उसे लगा कि शायद शाम तक उसकी शिकायत दर्ज कर ली जाए तो उसने शाम को फिर शिकायत दर्ज करने का ऑप्शन खोला। उस समय उसकी फिर से शिकायत दर्ज हो गई। इसके बाद उसके पास फोन आया और जिसमें कहा गया कि 3 दिन के अंदर वह उस गलत साड़ी को लौटा कर अपना पेमेंट वापस पा सकती है। मेरी सहेली बहुत खुश हुई और उसने 3 दिन तक प्रतीक्षा की तीसरे दिन शाम तक जब कोई नहीं आया तो उसने फिर से शिकायत दर्ज की। तब फिर उसके पास फोन आया कि ‘‘कल हमारा आदमी आपके पास आएगा।’’ इस तरह चौथे दिन एक हाॅकर साड़ी लेने मेरी सहेली के पास आया। लेकिन उसने चारों साड़ियों को वापस करने की मांग की। तब मेरी सहेली ने उससे कहा कि ‘‘मुझे चार साड़ियां नहीं मिली हैं, सिर्फ एक साड़ी मिली है जिसे मैं वापस करके अपने चारों साड़ियों का पेमेंट लेना वापस लेना चाहती हूं।’’
इस पर हाॅकर ने कहा कि ‘‘लेकिन मुझे चार साड़ियां कलेक्ट करने का आदेश दिया गया है। मैं सिर्फ एक साड़ी वापस नहीं ले जा सकता हूं।’’ फिर उसने कहा कि वह अपने अधिकारी से संपर्क करके फिर आएगा। इस तरह से वह हाॅकर लौट गया। मानसिक दबाव से जूझ रही मेरी सहेली ने शॉपिंग साइट की हेल्पलाइन नंबर पर फिर कांटेक्ट किया। वहां से फिर फोन से संपर्क करके मेरी सहेली को बताया गया की ‘‘आपकी साड़ी का पेमेंट वापस कर दिया जाएगा, जो कि सीधे आपके अकाउंट में वापस किया जाएगा। इसलिए अपने बैंक अकाउंट का डिटेल इसी एप्प के शिकायत खाने में लिख कर भेज दें।’’ तब मेरी सहेली को खटका हुआ कि मामला कुछ गड़बड़ है। इस तरह से अकाउंट डिटेल मांगा जाना गलत है क्योंकि अन्य प्रतिष्ठित शॉपिंग साइट पर ‘‘रिफंड’’ की स्थिति में उसी अकाउंट पर उसी बैंक के थ्रू वापस पैसा जमा करवा दिया जाता है जहां से उन्हें प्राप्त होता है। वे उपभोक्ता से बैंक डिटेल नहीं मांगते हैं। इस तरह से उपभोक्ता को सुरक्षित ढंग से पैसा वापस मिल जाता है। मेरी सहेली को यह अनुभव था और यही अनुभव उसके काम आया। उसने तय किया कि चाहे उसे चार साड़ियों का पैसा मिले या ना मिले वह अपना अकाउंट डिटेल शेयर नहीं करेगी। इस तरह से सिर्फ 4 साड़ियों का पैसे का नुकसान उठाकर उसने अपने बैंक अकाउंट के बाकी पैसों को सुरक्षित बचा लिया। यदि वह अपना बैंक अकाउंट डिटेल दे देती तो पता नहीं वह किस साइबरक्राइम में फंस जाती। हो सकता है कि उसका बैंक अकाउंट ही खाली कर दिया जाता। क्योंकि दो दिन बाद उसके पास फोन आया कि ‘‘आपने अभी तक अपना अकाउंट डिटेल नहीं किया है। यदि आप कल तक अपना अकाउंट डिटेल नहीं देंगी तो आपका पैसा वापस नहीं किया जाएगा।’’ मेरी सहेली ने उत्तर दिया कि ‘‘मुझे पैसा वापस नहीं चाहिए जो साड़ी मुझे मिली है मैं उसी से काम चला लूंगी।’’

यह सारी घटना उसने एक दिन मुझे बताई। मैंने जिज्ञासावश अपनी सहेली के फोन से उस हेल्पलाईन नंबर पर घंटी की जिस पर से कॉल आया था, परंतु वहां से उत्तर मिला कि यह नंबर सेवा में उपलब्ध नहीं है। इससे समझ में आ गया की निश्चित रूप से एक धोखाधड़ी वाली साइट थी। इस बात पर तब और भी विश्वास हो गया जब मेरी सहेली की सोशल मीडिया एकाउंट पर उस साइड का विज्ञापन दिखना भी बंद हो गया।
इस तरह के अनेक साइबर क्राइम हैं जो ऑनलाइन शॉपिंग के बाजार के जरिए किए जा रहे हैं। इनके प्रति आज उपभोक्ता को जागरूक होना, सजग रहना सबसे अधिक जरूरी है। क्योंकि आज उन दुकानदारों से उतना ख़तरा नहीं है जो हमारे शहर में दुकान खोल कर बैठे हैं। उन्हें भी पता है कि यदि वे धोखाधड़ी करेंगे तो उन्हें बड़ी आसानी से उपभोक्ता फोरम में पहुंचाया जा सकता है। उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है। लेकिन ऑनलाइन शॉपिंग साईट्स के अज्ञात दुकानदारों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करना न केवल कठिन है बल्कि उनसे पैसा वापस प्राप्त करना लगभग असंभव है। अतः उपभोक्ता को यह सजगता बरतनी ही होगी कि वह पहले शॉपिंग साइट की विश्वसनीयता और उसकी सेवा शर्तों को अच्छी तरह से परख ले।

हमारे देश में उपभोक्ता मामलों का एक अलग से ही विभाग है जिसे ‘‘डपिार्टमेंट आॅफ कंजुमर अफेअर’’ कहा जाता है। जिसके अंतर्गत उपभोक्ताओं के साथ की जाने वाली हर तरह की धोखाधड़ी के मामलों पर सुनवाई की जाती है। यह विभाग मुख्य रूप से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 का कार्यान्वयन, भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम 2016 का कार्यान्वयन, बाट और माप मानकों का कार्यान्वयन, विधिक मापविज्ञान अधिनियम 2009, उपभोक्ता संरक्षण (उपभोक्ता आयोग प्रक्रिया) विनियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (मध्यस्थता) विनियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (राज्य आयोग और जिला आयोग पर प्रशासनिक नियंत्रण) विनियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) नियम, 2020 और उपभोक्ता संरक्षण (सामान्य) नियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (ई-वाणिज्य) नियम 2020, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ( कार्य आवंटन और संचालन) विनियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (प्रत्यक्ष बिक्री) नियम 2021, उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिता नियम 2021, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (वार्षिक रिपोर्ट) नियम 2021, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (लेखाओं और अभिलेखों के वार्षिक विवरण का प्ररुप) नियम 2021, उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिता) नियम 2021, उपभोक्ता संरक्षण (केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा जांच-पडताल और जब्ती और अपराधों का संयुक्तीकरण और जुर्माना जमा करना) नियम 2021 के आधार पर कार्य करता है। इस विभाग का अपना एक पोर्टल है जिस पर उपभोक्ता मामले, उपभोक्ता संरक्षण, उपभोक्ता अधिकार, नियम, विनियम और अधिनियम, आवश्यक वस्तु, उपभोक्ता शिकायतें, मूल्य कि जांच के लिए सेल आदि से सम्बन्धित सूचनाएं प्रदान की गई हैं। इस पर जागो ग्राहक जागो अभियान, उपभोक्ता सलाह केन्द्र, उपभोक्ता कल्याण कोष, भारतीय मानक ब्यूरो(बीआईएस), राष्ट्रीय परीक्षण शाला (एनटीएच) से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

सरकार द्वारा प्रदत्त उपभोक्ता सुरक्षा के साथ ही जरूरी है स्वयं उपभेक्ता का जागरूक रहना क्योंकि अब बाज़ार पहले जैसा नहीं रहा। आज अनेक ठग घात लगाए बैठे रहते हैं जिनसे बच कर रहना ही सबसे बड़ी सुरक्षा-गारंटी है।
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