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My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, April 1, 2023

ट्रेवलर डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बरमान घाट | नमामि नर्मदे

🚩 नरबदा मैया ऐसी तो मिलीं रें,
      ऐसी तो मिलीं रें,
      जैसे मिले मत मताई औ बाप रे...
      नरबदा मैया हो... 
    नर्मदा हमारे लिए माता पिता के समान है उनसे मिलने पर ऐसा लगता है जैसे अपने माता-पिता से भेंट हो गई हो... मुझे भी यह अनुभूति हमेशा होती है जब मैं नर्मदा जी के जल को स्पर्श करती हूं... पंचतत्व में एक तत्व जल भी तो है जिससे हमारा शरीर बना है... 
🚙🚶🚩 जी हां मार्च 2023 के अंतिम दिवस बरमान यात्रा .... बरमान सागर से लगे हुए नरसिंहपुर जिले में नर्मदा नदी के तट पर स्थित ऐसा तीर्थ स्थान है जो प्रकृति और धर्म दोनों ही दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जिन्हें प्रकृति से प्रेम है वे इस स्थान पर नर्मदा का प्राकृतिक सौंदर्य देखने खींचे चले आते हैं और जिन्हें धार्मिक भावना प्रेरित करती है वे नर्मदा नदी में अर्ध्य देने, अपने परिजनों का अस्थि विसर्जन करने, मुंडन कराने तथा स्नान करके पुण्य कमाने के लिए यहां आते हैं बुंदेलखंड में नर्मदा नदी का महत्व गंगा के समान है बल्कि लोकगीतों में नर्मदा को गंगा से भी श्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि भावना यह है की गंगा तो देवी मां है लेकिन नर्मदा मां हैं, जननी हैं...
    🌹 संदर्भ अवश्य मैं बताना चाहूंगी कि मेरे मामा श्री स्वर्गीय कमल सिंह चौहान का जीवन अधिकतम नर्मदा तट पर बसे हुए आदिवासी अंचलों में व्यतीत हुआ वह ट्राईबल वेलफेयर डिपार्टमेंट के हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए थे । उन्हें नर्मदा नदी से इतना अधिक लगा होता कि वह अक्सर कहा करते थे कि मैं तो इस दुनिया से जाने के बाद नर्मदा मां के निकट ही रहना चाहूंगा। जनवरी 2017 में उनके निधन के बाद उनकी अस्थियों का विसर्जन हमने बरमान घाट जाकर नर्मदा नदी में ही किया। यह मेरा भ्रम था यह सच्चाई मैं नहीं जानती अस्थिकलश लेकर मैं स्वयं बरमान घाट गई थी वहां मेरे मुंह बोले भाई साहब अशोक सिंह जी ने कर्तव्य निभाते हुए अस्थि विसर्जन किया... मैंने मामा जी की घड़ी, चश्मा इत्यादि प्रिय और निकटतम वस्तुएं नर्मदा जी में विसर्जित कर कीं... बरमान जाते समय बहुत भारीपन था मेरे मन में... लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ की अस्थि विसर्जन के उपरांत लौटते समय मेरे मन में एक अजीब शांति का अनुभव हो रहा था ऐसा लग रहा था कि वह अपने मामा जी को उनकी मां यानी अपनी अदेखी नानी के हाथों सौंप कर आ रही हूं...
     मैंने लौटते समय गाड़ी से ही वर्षा दीदी को फोन किया और अपनी अनुभूति उनसे साझा की। तो, दीदी ने यही कहा, "हां बेटू! तुमने भाई को उनकी मां तक पहुंचा दिया.. उन्हीं के पास तो वे जाकर रहना चाहते थे इसीलिए वे अब खुश हैं।" 
( हम दोनों बहनें बचपन से ही मामा जी को "भाई" कहकर संबोधित करती थीं। शायद इसीलिए हम दोनों बहनों को सगे  भाई की कमी कभी महसूस नहीं हुई। वह हमारे लिए मामा भी थे और भाई भी।)
🚩नर्मदा मां बुंदेलखंड के लोक मानस का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी महिमा और उनसे जुड़ी कथाएं यहां के बम्बुलियां लोकगीतों में ढल गई हैं। बम्बुलियां, राई, ददरिया व अन्य क्षेत्रीय लोकगीतों में नर्मदा के जन्म से लेकर उसके उल्टा बहने तक की कथाएं पूरी आत्मीयता के साथ गाई जाती हैं।
  🔶 पौराणिक कथाओं में नर्मदा को चिर कुंवारी नदी माना गया है और यह बात बुंदेली लोकगीतों में बहुत ही सुंदर ढंग से व्यक्त की गई है। यह पंक्तियां देखिए...
    नरबदा जू मोरी ठैरी क्वांरी रे
    ठैरी क्वांरी, 
    पानी छूबे जो माने भैन, माई रे
    नरबदा मैया हो...
   ..... यानी नर्मदा का जल वही छू सकता है जो नर्मदा को अपनी मां अथवा बहन मानता हो। ज़रा सोचिए कि यदि नदियों के प्रति हमारी यह पवित्र भावना सदा रहे तो कोई भी नदी गंदी या प्रदूषित कभी न हो। जब हमारी भावना प्रदूषित हो जाती है तो हम नदियों को भी प्रदूषण से नहीं बचा पाते हैं। बरमान से प्रवाहित होती नर्मदा स्वच्छ है सुंदर है और इसीलिए उसके जल को छूने से पवित्रता का भी अनुभव होता है...
🚙 31 मार्च 2023 को हमने सड़क मार्ग से 117km की यात्रा सुबह 09:00 आरम्भ की... 
🛣️ शहर से बाहर निकलते ही नेशनल हाईवे 44 पर हमारी गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ ली... सड़क के दोनों ओर खेत और तरह-तरह के पेड़ों के ख़ूबसूरत नज़ारे थे... इस क्षेत्र में मिश्रित वन होने के कारण कुछ पेड़ों पर पत्ते दिखाई दे रहे थे तो कुछ में पीले पत्ते हिल रहे थे तो वहीं कुछ हरे पत्तों से ढंके हुए थे.... मिश्रित वनों की यही तो सुंदरता होती है....
     रास्ते में बेबस नदी पड़ी... जी हां नदी का नाम 'बेबस' है... जब तक सागर शहर में पेयजल व्यवस्था के लिए राजघाट बांध नहीं बनाया गया था तब तक बेबस नदी से ही पेयजल की आपूर्ति होती थी... हम लोग मज़ाक में आपस में कहा करते थे कि बेबस का पानी पी-पीकर ही हम अपने को बेबस महसूस करते हैं... 🤷 लेकिन किसी नदी का नाम तो मनुष्य ही रखता है... नदी तो नदी होती है.... और वह हमेशा मनुष्यों की तथा तमाम जीवधारियों की प्यास बुझाती है। यहां तक की निर्जीव प्रतीत होने वाली भूमि को भी सिंचित करके उसे जीवंत करती है... 
🚙 जाते समय हमें ठीक-ठीक अनुमान नहीं था कि कितने बजे तक बरमान पहुंचेंगे? इसीलिए जाते समय रास्ते में कहीं भी नहीं रुके। बरमान के निकट पहुंचने पर ही एक ढाबे पर रुक कर चाय पी और बिस्कुट खाए इसके बाद बरमान घाट की ओर मुड़ गए...
     🚩 बरमान घाट की सुंदर सीढ़ियां उतरते हुए सामने नर्मदा को बहते देखना एक अद्भुत अनुभव रहता है मैंने जितनी बार भी उस घाट पर से नर्मदा नदी को देखा है, एक अलग ही सौंदर्य और आत्मीयता का अनुभव किया है... शायद इसलिए कि मुझे प्रकृति से असीम प्यार है... बड़े शहरों के बजाय मुझे नदी, पहाड़, जंगल आकर्षित करते हैं...
    🚩 बरमान पहुंचकर यदि नौकायन नहीं किया तो क्या मज़ा? नदी के मध्य पहुंचकर उसकी धाराओं को स्पर्श करना और उन्हें महसूस करना अपने आप में ऊर्जा से भर देता है... इसीलिए हमने एक नाववाले से मोलभाव करके किराया तय किया और  अंततः डेढ़ सौ रुपए में उसने एक चक्कर लगवना मंजूर किया। 
    नवरात्रि समाप्त हो चुकी थी इसलिए वहां अधिक भीड़ नहीं थी वरना नाववाला शायद इतने में राज़ी नहीं होता।
    🚩 उन्नति के बीच पहुंचकर नाववाले ख़ुशमिजाज़  युवक ने हम लोगों से पूछा कि " आप लोगों को यहां के ताज़े के भटे (बैंगन) खरीदने हैं क्या?"
    वह जानता था कि बरमान आने वाला व्यक्ति भटा खरीदे बिना नहीं रह सकता है। बरमान के भटे दूर-दूर तक मशहूर हैं। नर्मदा जल से सिंचित बड़े-बड़े भटे देखते ही मन ललच उठता है। यह भटे भर्ता बनाने के लिए बेहद आदर्श माने जाते हैं।
     घाट के किनारे नाववाले ने नाव लगा दी। उस किनारे पर स्थित भटे के खेत में दो महिलाएं काम कर रही थीं... उनमें से एक ने एक बहुत बड़ा-सा भटा दिखाकर  हमसे पूछा कि हमें कितने बड़े वाले चाहिए। मैंने अपने ओवन के साइज के हिसाब से मीडियम साइज का भटा चुना। जोकि 2 लीटर वाटर हीटर जग की ऊंचाई के साइज़ था। (फोटो देख सकते हैं) उस औरत ने नाव के निकट आकर ही हमें भटें सौंप दिए...  यानी नाव में बैठे-बैठे Veggie Shopping 😛🤪
     आप फोटो देख कर  इनके आकार का अनुमान लगा सकते हैं, जबकि ये मीडियम साईज़ है.. बड़ा  वाला तो और बहुत बड़ा था... 😀
♦️घाट पर एक प्यारी सी बच्ची मिली जिसने मेरे साथ सेल्फी खिंचवाई...🌹
🔶 हां मैं चीजों को राजनीतिक चश्मे से देखना पसंद नहीं करती हूं और इसलिए यह दावे से कह सकती हूं की "नमामि नर्मदे अभियान" के अंतर्गत शिवराज सरकार ने नर्मदा के घाटों का जो जीर्णोद्धार करवाया वह वास्तव में प्रशंसनीय है क्योंकि बरमान घाट की स्थिति मैंने जीर्णोद्धार के पहले भी देखी थी और बाद में भी देखती आ रही हूं...
🥤 हां, एक चीज की कमी जरूर खटकती रही वह यह थी कि सागर से बरमान के बीच 117 किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान नेशनल हाईवे 44 पर आईटीडीसी (India Tourism Development Corporation) का  एक भी लेटआउट नहीं मिला... जबकि सरकार धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है...
      रास्ते में छोटे-बड़े निजी ढाबे तो बहुत से हैं, सुविधाजनक भी हैं... लेकिन आईटीडीसी लेटआऊट होना मुझे ज़रूरी लगा...
🚙 वापसी रुक-रुक कर हुई ... कभी झोपड़ी... तो कभी हैण्डपम्प... तो कभी स्वागतद्वार... तो कभी माईलेज़ बोर्ड... सड़क पर आरामफ़र्माने में मुझे मज़ा आता ही है... और फिर कल तो बारिश के पानी से धुली हुई सड़क थी एकदम Neat & Clean ...🧘😀
🍪🥘वापसी में सुरखी के बड़े और मुंगौड़ियां खाए बिना यात्रा पूरी हो ही नहीं सकती थी...😋🥰
🌹 मैं तो यह मानती हूं कि जिंदगी में आप वह सब पॉज़िटिव काम करिए जो आपको खुशी दे.. आपके पॉज़िटिव काम दूसरों को भी पॉज़िटिविटी से भर सकते हैं...
😊 So take a tour of nature, And I'm sure it will be changed your life's nature. - Dr (Ms) Sharad Singh

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💠Traveling Date ..31.03.2023
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