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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, April 7, 2023

बतकाव बिन्ना की | मोय बतइयो के कोन-कोन की मुंडी कन्फुजिआई ? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"‘मोय बतइयो के कोन-कोन की मुंडी कन्फुजिआई"  मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
मोय बतइयो के कोन-कोन की मुंडी कन्फुजिआई               
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

जो मैं भैयाजी के घरे पौंची सो बे कोनऊं से गिचड़ करत मिले।
‘‘सो उन्ने जे काय नईं कै दई सूदी-सूदी के जे सब कछू बीपीएल वारी लुगाइयन के लाने आए। बेफालतू में सबरी उचकत फिर रईं। जभईं उने पतो परत आए के बे तो हजार रुपैया पाने के जोग नइयां सो उनखों मों टुंइयां सो रै जात आए। मनो कोनऊं की भावनाओं से ऐसो नई खेलो जाओ चाइए।’’ बे दूसरे भैयाजी की पीठ मोरी तरफी हती सो मैं एकदम पैचान ने पाई। बाकी आवाज सो पैचानी-सी लगी।
‘‘का बैस चल रई भैयाजी?’’ मैंने दोई जने से पूछी। बे दूसरे भैयाजी ने मोरी आवाज सुनी सो मुड़ के मोरी तरफी देखी।
‘‘अरे आओ बिन्ना! कां से अवाई हो रई?’’ बे रायकवार दाऊ हते।
‘‘कहूं से नईं। घरई से चली आ रई। बाकी आप ओरन की का गिचड़ चल रई? उते नुक्कड़ लो आवाजें सुनाई पड़ रईं।’’ मैंने पूछी।
‘‘अरे, जे दाऊं खों कछू समझ में सो आत नइयां, बस, लगे रैत आएं दोंदरा देबे में।’’ अब की भैयाजी बोले।
‘‘सो हो का गओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘भओ जे आए बिन्ना, के जो अबे चल रओ ने, के सबई बहनों खों हर माह हजार रुपैया सरकार की तरफी से दै जैहें। हमाई घरवारी की उम्मर अबई साठ की होबे में पांच मईना बाकी आए, सो ऊने ठेन करी के जाओ औ हमाए लाने फारम ला के भर देओ। अब हमें नई मिलो टेम। मनो बेई टेम पे हमाए मोहल्ला में जे फारम भरवाबे के लाने शिविर लगाओ गओ। हमाई घरवारी बड़ी सज-संवर के उते शिविर में जा पौंचीं। इते मोय कछू खबर नईं। उन्ने सोची के अब हम सो कर नई पा रै, सो शिविर में जा के बेई अपनों फारम-वारम भर-भरा देबें।’’ रायकवार दाऊ तनक सांस लैबे खों रुके।
‘‘फेर का भओ? भर गओ उनको फारम?’’ मैंने दाऊ से पूछी।
‘‘अरे कां! बे पैले उते भीड़ में धक्का-मुक्का खाउत रईं। फेर लेन लगवा दई गई, सो चार घंटा लेन में ठाड़ी रईं। करत-करत जो उनको टेम आओ सो बा शिविर वारो अधिकारी पूछन लगो के तुमाओ ब्याओ हो गओ? सो जे तन्ना के बोलीं के ईसे तुमें का? तब ऊ अधिकारी ने बताई के जे उन्हई लुगाइयन खों मिलने आए जिनको बयाओ हो गओ होय। जे लाने हमने तुमसे पूछी, औ कोनऊं मतलब नईं हमाओ। जे सुन के हमाई घरवारी को गुस्सा तनक ठंडो भओ। ईके बाद ऊ अधिकारी ने कुल्ल बातें पूछीं। मने तुमाए इते खेती जोग जमीन कित्ती आए? तुमाए इते मोटर सायकिल तो नइयां? तुमाए कुल्ल कुनबा में कोनऊं के पास चार पहिया गाड़ी तो नइयां। मने जेई टाईप के मुतके सवाल। हमाई घरवारी जित्ती जानत्ती उत्ती बतात गई। ऊने बिचारी ने बता दई के हमाओ लोहरो देउरा उते दिल्ली में रैत आए जीके पास चार पहिया गाड़ी पाई जात आए। कुल्ल पूछा-पांछी के बाद ऊ अधिकारी ने कै दई के तुमें जे रुपइया नईं मिल सकत। तुम ईके जोग नइयां। जे सुन के हमाई घरवारी को मनो चक्कर आ गओ। बे उतई धड़ाम से गिर परीं।’’ रायकवार दाऊ बतात जा रए हते।
‘‘अरे? ऐसो भओ? चक्कर काय आ गओ उनको?’’ मैंने पूछी।
‘‘अब चक्कर ने आहे सो का आहे? धनी उते घंटा भर भीड़ में ठुकत रईं, फेर लेन में चार घंटा ठाड़ी रईं औ अखीर में पतो परो के कछू नईं मिलने। मनो खाओ ने पियो औ गिलास फोड़ो बारा आना।’’ रायकवार बोले।
‘‘अरे रे रे! जे तो बड़ो बुरौ भओ!’’ मैंने रायकवार दाऊ के लाने दुख प्रकट करो।
‘‘जेई से तो हम कै रै के दुनिया भरे की सल्ल से अच्छो रैतो के पैलई बता देते के जे योजना गरीबी रेखा से नीचे वारन के लाने आए।’’ रायकवार दाऊ भड़कत भए बोले।
‘‘हऔ, जैसे जे पैलई बता दओ के जे जो योजना आए, जे सिरफ 23 साल से 60 साल तक की बहनों के लाने आए। ऊमें भी जोन को ब्याओ हो गओ होय।’’ भैयाजी बोल परे।
‘‘काय भैयाजी, मोरी घांईं बहनों ने सरकार को का बिगारो के जोन को ब्याओ नई हो पाओ? क्वांरी बहनों के लाने सो औरई ज्यादा जरूरत कहाई, काय से के उनको सो पूछबे वारो कोऊ नइयां। मनो कई घरों में सो भौजी हरें अपनी बिनब्यायी ननद को जीनों हराम करो रैत आएं। सो अगर उनें हजार रुपैया मिलते सो उनकी भौजी उनें प्रेम से राखतीं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सो का! बाद में सरकार ने बिनब्यायी बहनों के लाने सोई घोषण कर दई आए। अब तुम खुस हो जाओ।’’ भैयाजी मोसे बोले।
‘‘काय खों खुस हो जाओं? बाकी नियम सो बेई रैने। जैसे दाऊ बता रै के उनके इते भौजी खों ठेंगा मिलो, ऊंसई मोय ठेंगा मिलहे।’’ मैंने कई।
‘‘सो तुमाए इते कोन चार पहिया ठाड़ी?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो का? मुतकी बातें आएं ऊमें आपखों पतो नइयां।’’ मैंने भैया जी से कई।
‘‘जेई सो हम इनसे कै रए के दिखाबे के दांत और औ खाबे के और।’’ रायकवार दाऊ ताव खात भए बोले।
‘‘ई बारे में सो आप कछू ने कओ दाऊ! का है के मैंने पढ़ी रई के अपने इते सरकार ने घोषणा करी हती के मताई-बाप के ने रैने पे उनकी बिनब्यायी मोड़ियन खों 25 बरस की उमर के बाद बी परिवार पेंशन दई जैहे। मैंने पता करी सो पता परी के जे अपने मुख्यमंत्री जी ने घोषणा भर करी रई। मनो ऊ घोषणा पे कोनऊं आदेश नई निकारो गओ। मैंने सो इते से ले के भोपाल में सचिवालय लों तरे-ऊपरे कर दओ रओ। मनो नतीजा रओ ठनठन गोपाल।’’
‘‘जो 25 बरस को का? हमें समझ नईं परी!’’ रायकवार दाऊ ने पूछी।
‘‘पैले जे नियम बनाओ गओ रओ के बिनब्यायी बिटियन खों 25 की उमर लौं पेंशन दई जैहे। ईके बाद उनको चाय ब्याओ होय, चाय ने होय, उनकी पेंशन बंद कर दई जैहे। मनो 25 के बाद सो बे हवा पी के जिंदा रैहें।’’ मोय सोई बतात-बतात गुस्सा सो आन लगो।
‘‘सो ईमें बी तो जोई आए के 23 के पैले सो मनो जो हुइए सो हुई, मनो 60 के बाद का हुइए? औ जोन को ब्याओ नई भओ बे का हजार रुपैया पाबे के लाने अपनो ब्याओ कराबे के लाने घूमहें?’’ रायकवार दाऊ बोले।
‘‘अरे जे सब छोड़ो तुम ओरें! जित्तो बतकाव करहो, उत्तई मुंडा खराब हुइए। तुम ओरें सो उनकी सोचो के भाजपा वारे नेता के कांग्रेसी भैया ने उन बहनन खों पंद्रा-पंद्रा सौ रुपइया बांट दए, जोन खों ईको लाभ मिल नई पाने हतो। सो भजपा वारे भैया खों नगर निगम के पद से बाहरे को रास्ता दिखा दओ गओ।’’ भैयाजी बतान लगे।
‘‘जे सो वई बात भई के कोऊ करे औ कोऊ भरे।’’ रायकवार दाऊ बोले।
‘‘औ का, तुम ओरे जे सब में ने परो! जो तुमाए लिंगे होय सो ऊमेंई मौज करो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, हमें सोई पता परी रई के अब बिनब्यायी बहनों के लाने सोई पइसा दओ जाने आए सो हमने इंटरनेट पे वा के बारे में पूरी जानकारी लई। ऊकी योग्यता के नियम पढ़त-पढ़त मोरी सोई मुंडी कन्फुजिया गई। जे कओ के मोए चक्कर ने आए। ने तो कोनऊं पानी छिड़कबे वारो बी ने हतो मोरे लिंगे।’’ मैंने कई।
‘‘बेफालतू की बातें ने करो! अच्छी-अच्छी बात करो! कछू की जरूरत परे सो हमसे कइयो। हम सो बैठे तुमाए लाने। हम कोनऊं राजनीति वारे भैया नोईं।’’ भैयाजी मूंछन पे ताव देत भए बोले।
‘‘जो का कै रै भैयाजी? सम्हर के!’’ मैंने भैयाजी खों टोकीं।
‘‘अईई! तुम ओरन के चक्कर में हम सोई कछू के कछू कैन लगे। चलो, अब तुम ओरे बढ़ लेओ इते से। फेर कछू देर बाद भले चले आइयो, मनो अबई टरो।’’ भैयाजी हड़बड़ात भए बोले।
उनकी दसा देख के मोरी औ रायकवार दाऊ की हंसी फूट परी।  
‘‘हंस लेओ, हंस लेओ! कर लेओ दंत निपोरी! तुम दोई ने मिल के हमाओ मुंडा सोई कन्फुजिया दओ। जे नईं के कछू फिल्मन की बातें करो, कछू धरम-करम की बातें करो। जब देखों राजनीति के पांछू लट्ठ लिए घूमत रैत आओ।’’ भैयाजी अपनी खीझ मिटाबे के लाने हम दोई को घुट्टी पिलान लगे।
‘‘अरे आप काय के लाने इत्ते घबड़ा रै? हम ओंरे सो ऊंसई बतकाव कर रै हते। अब का बतकाव बी ने करें?’’ मैंने कई।
‘‘ऐसी बतकाव कोन काम की के कोनऊं को गटा बिंधा देबे।’’ भैयाजी कैसऊं बी सम्हर नई पा रए हते। सो मैेने उते से बढ़बे में मेईं भलाई समझी।
रायकवार दाऊ सोई समझ गए सो बे सोई बोले,‘‘अब जा रए। फेर आबी।’’
भैयाजी कन्फुजिआए से ठाड़े रए औ हम दोई जने अपनी-अपनी गैल सरक लिए।
बाकी, औ मोय बतइयो के कोन-कोन की मुंडी कन्फुजिआई? मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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