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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 11, 2023

बतकाव बिन्ना की | जे, जे दे रए - बे, बे दे रए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"जे, जे दे रए - बे, बे दे रए" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
जे, जे दे रए - बे, बे दे रए              
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
     ‘‘तुम अच्छी आ गईं, बिन्ना! अब तनक अपनी भौजी खों समझाओ!’’ भैयाजी मोए देखतई बोले।
‘‘काय? का हो गओ? अब आप दोई के बीच मैं कैसे कछू बोल सकत? अपनो मामलो आप दोई खुदई सुलटा लेओ!’’ मैंने भैया जी से कई।
‘‘अरे, काय को अपनो मामलो! इते तो बड़ी सल्ल परी आए, बिन्ना!’’ भैया जी ने कई।
‘‘काय की सल्ल?’’ भैयाजी की बात सुन के भौजी बोल परीं,‘‘इते कोनऊं सल्ल नोईं, बिन्ना।’’
‘‘हऔ, तुमें नईं दिखा रई सल्ल? बे हरें तुमें बेवकूफ बना रए। तुम समझ नईं रईं।’’ भैयाजी भौजी से बोले।
‘‘हमें काए? सबई के लाने आए बा प्लान। आप सो ऐसे कै रए मनो कोनऊं अकेले हमाए लाने होय!’’ भौजी बोलीं।
‘‘कोन सो प्लान?’’ अब मोय समझ में आई के जे मियां-बीवी को झगड़ा नोईं, कोनऊं औरई बात आए।
‘‘अपने भैयाजी से पूछ लेओ! इने सो चार पईसा घर आए में खटकत आएं।’’ भौजी ने भैयाजी खों ताना मारो।
‘‘जे भौजी कोन से प्लान की बोल रईं?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब इनकी कछू ने पूछो! जे ठैंरीं भोली जनता। इने सो कोऊ कछू पकड़ा देबे बोई खों हेरत बैठी रैंहे।’’ भैयाजी ने कही।
‘‘हऔ, सो तुम तो चतुर सयान ठैरे, फेर बी तुमें कछू समझ में ने आ रई।’’ भौजी बमकत भईं बोलीं। बे जब भैयाजी के लाने आप से तुम पे आ जाएं तो मानो के बस, बम फूटनेई वारो आए।
‘‘आप ओरें कछू मोय बता रए के नईं? ने तो मैं जा रई।’’ मैंने भैयाजी औ भौजी दोई से कई।
‘‘अरे तुम ने जाओ! तुमें सोई जे बताने है हमें। काय से के तुम सोई फारम भर दइयो।’’ भौजी ने मोसे कई।
‘‘काय को फारम?’’ आप ओरें का कै रए मोय सो कछू समझ में नईं आ रई, रामधई!’’ मैं अपनो मूंड़ पकर के उतई बैठ गई।
‘‘देखो, तुमने जे का करो! बिचारी बिन्ना घबड़ा गई!’’ भैयाजी ने भौजी खों डांटो।
‘‘काय, हमने ऐसी का कै दई? काय बिन्ना हमने तुमसे कछू गलत कई का?’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘अरे, आप ओरें मोसे कछू कै नई रए जेई सो सल्ल आए! कछू बताओ तो के कोन सो प्लान? काय को फारम? जे आप ओरन की गिचड़ सुनत-सुनत मोरो तो मुंडा चकरा गओ, बाकी पल्ले कछू नई परो!’’ मैंने दोई से कई।
‘‘चलो हम समझा दे रए तुमें!’’ भौजी ने कई औ बे सोई मोरे लिंगे बैठ गईं। फेर कैन लगीं,‘‘बिन्ना तुमने सोई सुनी, पढ़ी हुईए के बे कांग्रेस वारे सबई लुगाइयन खों बारा सौ रुपइया देबे के लाने बोल रए और उके लाने फारम भरो जा रओ।’’
‘‘सो?’’
‘‘सो का? हम सोच रए के बा लाड़ल़ी बहना योजना में सो अपन ओरें आए नईं, जबकि ईमें अपन दोई खों फायदा मिल सकत आए। तुमई सोचो के बिना कछू करे, धरे बारा सौ रुपइया मईना मिल लगें सो ईमें का बुराई आए? बस, इत्ती-सी बात तुमाए भैया खों समझ में ने आ रई।’’
‘‘सो तो ठीक कै रईं भौजी आप, मनो बे ओरें अबे सिरफ फारम भरा रए औ कै रए के फारम भरे की रसीद जतन से राखियो। जो कहूं बे ओरे जीत गए, तभईं देहैं रुपइया। बाकी जे ओरें सो अभई देन लगे।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘जेई सो हम तुमाई भौजी खों समझाबे टिके आएं के, भागवान! परमेसरी! कछू दिमाग लगाओ! जे सो जोन को देने सो दे रए, मनो बे सो कै रए के जबे नौ मन तेल हुइए तबे राधाजी को डांस हुइए!’’ भैयाजी बोले।
‘‘राधे-राधे! ऐसो तो ने बोलो! कछू तो सरम करो!’’ भौजी ने भैयाजी खों टोको।
‘‘अरे, जे सो हम कहनात आ कै रए, राधाजी की कोनऊं इंसल्ट नोईं कर रए। तुम सोई, कोई बी बात को कां से कां ले जान लगत हो!’’ भैयाजी घबड़ा के बोले।
‘‘हऔ भौजी! भैयाजी कहनात आ कै रए! मनो, आप जे सोचो के जबलौं लाड़ली बहना योजना ने आई हती, तबलौं जे भैया हरें कां हते? उने अपन ओरन की सुरता तभईं आई जबें अपने शिवराज भैया ने अपनी योजना चालू करी! जे सो ऊसईं बाहरे बैठे, इने सो पैलऊं सोचने चाइए रओ के कोन के लाने का करो जाए। औ उत्तई नईं, जे ओरें लाॅलीपाॅप बी नोईं थमा रए, खाली मों चला रए के जबें हम जीत जेबी, सो देन लगबी। मनें, बारा सौ रुपइया मईना जो चाउनें सो इन ओरन खों जिताओ!’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘तुम दोई भैया-बहन एकई से कहाने! दोई एक सी कै रए!’’ भौजी तनक उदास हो गईं।
‘‘दुखी ने हो भौजी, आप बात खों समझो! एक जने अपन ओरन मने लुगाइन में से कछू को एक हजार दे के उनको मना रए, औ कछू जने खाली मों चला के वोट पीटबो चात आएं। का अपन ओरें बिकाऊं दिखात आएं इने?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘नईं, ऐसो तो नइयां। बाकी बात सो तुम ठीक कै रईं। दोई जने तनक से रुपइया के कल्ला पे अपनी-अपनी गांकड़ें सेंक रए।’’ भौजी कछू सोचत भई बोलीं।
‘‘जेई सो हम इत्ती देर से तुमें समझा रए हते!’’ भैयाजी खुस होत भए बोले। काए से के उन्ने देखो के अब भौजी को असली बात समझ पर रई।
‘‘हऔ तो, का हमें समझ नईं परत? समझ सो मनो हम सोई रए पर संगे जे सोई सोच रए के फारम भरबे में का जा रओ? मनो कऊं कांग्रेस की लाटरी लग गई सो अपनी सोई लाटरी लग जेहे।’’ भौजी बोलीं।
बाकी भौजी को सोचबो गलत नईयंा, काय से के मैंगाई इत्ती चल रई के कऊं से चार पइसा मिलबे की उम्मींद दिखाए जाए सो लोग लेन लगा के ठाड़े हो जात आएं। रसोई गैस के दाम ग्यारा सौ रुपइया ये ऊंपरे चल रए, बिजली के दाम गरमी को मौसम आउत साथ बढ़ा दए जात आएं। सब्जी-भाजी, सबई कछू पे सो मैंगाई सवार आए। जेई से तो जे दसा हो गई के हजार-बारा सौ रुपइया के लाने सबरे मों बाए ठाड़ें हो जात आएं। सो, भौजी ऐसो सोच रईं सो कछू गलत नोईं सोच रईं। कभऊं कोनऊं ने सोची के जे इन ओरने के इत्ते बड्डे-बड्डे होर्डिंग कित्ते में बनत आएं। औ जो होर्डिंग पे कोनऊं को नांव छूट जात आए या के छोड़ दओ जात आए सो ऊंपे कटकटाव होन लगत आए। ऊं टेम पे जे ओरें नईं सोचत के जे दिखावा में पइसा फूकबे के बदले गरीबन को भलो करो जाए। बड़ी से बड़ी मूर्तियां बनत जा रईं मनो, पढ़ाई के लाने हर मोहल्ला में एक लाइबरेरी खोलत नईं बनत। काए से के लाइबरेरी में पढ़बे वारे कोन काम के?
‘‘का सोचन लगीं बिन्ना?’’ भैयाजी ने मोय टोकों।
‘‘मैं जे सोच रई के अखबार, टीवी वारे गेमिंग के नांव को जुआ खेला रए औ राजनीति वारे अपनों-अपनो पासा फेंक रए... आगे जाने का हुइए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘चलन दो, सब ऐसई चलत आए। अपन दोई के सोचबे से कछू नईं बदलो जा रओ।’’ भैयाजी बोले। फेर भौजी से बोले,‘‘औ तुम कां चल दीं?’’
‘‘चाय बनाबे खों जा रए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो फारम को का भओ?’’ भैयाजी चिड़कात भए बोले।
‘‘बा सो भरनेई आए, पैले तुमें चाय तो पिला दओ जाए। हो सकत के चाय पी के तुम मान जाओ!’’ कैत भईं भौजी हंस परीं।
हम दोई भैया-बहन सोई हंस परे।
अभईं सो देखत चलो के का-का हुइए! जे सबरे अपन ओरन की गदेली पे कोन-कोन से बतासा धरहें, आगे-आगे पता परहे। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..|||✓
    thanks for sharing

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