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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, June 22, 2023

बतकाव बिन्ना की | एक दिना नईं, रोजीना किया करे | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"एक दिना नईं, रोजीना किया करे" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
एक दिना नईं, रोजीना किया करे          
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
  ‘‘भैयाजी, का हो गओ? जे कम्मर पे हाथ धरे काय कूल्ह रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
भओ का के, मैं जो भैयाजी के इते पहुंचीं, सो भौजी ने दरवाजा खोलो। इत्ते में उनके पांछू भैयाजी दिखाने। बे अपने कम्मर पे हाथ धरे सरकत-सरकत से चले आ रए हते।
‘‘काय, अब तुम सोई इते लों चले आए? बिन्ना खों हम उतई तुमाए कमरा मे लिवाए लाते, तुम काए पलकां से उठे। फेर के दरद होन लगे सो समझ मे आ जेहे।’’ भौजी ने भैयाजी खों फटकारो।
‘‘हऔ, भौजी सई कै रईं, आपको उठो नईं चाइए, बाकी हो का गओ आपको? काए भौजी, जे भैयाजी खों का हो गओ?’’ मैंने भैयाजी और भौजी दोई से पूछी।
‘‘अब इन्हईं से पूछो! गए हते नेता हरों के आंगू-पीछूं घूमबे के लाने।’’ भौजी बोलीं। फेर भैयाजी से कैन लगीं,‘‘हो गई चिनारी? लग गई ठंडक? अब परे रओ पलकां पे, हमई तुमाई कम्मर सेंकबी। बे नई आ रए कोनऊं, तुमाए चिनारी वारे!’’
‘‘अरे हऔ, हम समझ गए तुमाई बात, धना! काल संझा से हमाएं हड़काएं फिर रईं। दूबरे औ दो असाढ़। एक तो हमाई ऊंसई कम्मर पिरा रई औ ऊपे तुम हो के हमें सहूरी बंधाबे की जांगा लुघरिया छुबाए फिर रईं।’’ भैयाजी कूल्हत भए भौजी से बोले।
‘‘हऔ! हमने अबे लुघरिया छुबाई कां? जोन दिनां छुआबी, सो समझ में आ जेहे।’’ भौजी भैयाजी पे तिनक के बोलीं। फेर मोसे कैन लगीं,‘‘अब बिन्ना तुमई इनके लाने समझाओ के जोस में होस नईं गंवाओ जात! खींसा में नईयां धेला, औ बऊ चलीं मेला! तुम इने समझाओ जो लों हम इनके लाने हल्दी वारो दूध उबाल लाएं। औ संगे अपन ओरों के लाने चाय बना लेंवे। इनकी कूल्हा-काखी के मारे हम सो अब लों चाय नई पी पाए। अब तुम इनके लिंगे बैठो, जो लो हम दूध, चाय ले आएं।’’
भौजी रसोई मंे चली गईं सो मैंने भैयाजी से पूछी,‘‘जे का हो गओ? औ कैसे हो गओ? काल संकारे सो आप ठीक हते। जल्दी में कहूं जा रए हते।’’ मैंने भैया खों याद करात भए, उनकी पीरा पूछी।
‘‘अब का कओ जाए बिन्ना! काल संकारे जब तुमने हमें जात भए देखो रओ, तक लों सब ठीक हतो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर बाद में का हो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बादई में सो सब कछू भओ। हाय!’’ भैयाजी बोलत भए कराह उठे।
‘‘अच्छे से बैठ लेओ आप औ फेर पूरी बात बताओ मोए, के कल का भओ?’’ मैंने कई।
‘‘तुम गई रईं कहूं योगा करबे के लाने। कल विश्व योग दिवस रओ।’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नईं! मैं कहूं नईं गई। काय से आप सो जानत आओ के मोय वायरल हो गओ रओ सो, अबे लौं कमजोरी गई नईंयां। सो मोरी हिम्मत ने परी।’’ मैंने भैयाजी खों बताई। फेर मैंने भैयाजी से पूछी,‘‘ सो कल आप योग करबे के लाने जा रए हते का?’’
‘‘हऔ! उते सबरे नेता हरों खों आने रओ, सो हमने सोची के उनके संगे योगा करबे पौंचबे से उन ओरन से मिलबो सोई हो जेहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘फेर?’’ मैंने पूछी।
‘‘फेर का? उते तो मुतके लुगवा-लुगाई हते। अच्छो इंतजाम करो गओ रओ। अच्छी फट्टी बिछाई गई रई। लेन से सब ओंरो खों ठाड़ो कराओ जा रओ हतो। हम सोई उन ओरन के बीच में जा के ठंस गए। ऐसी जांगा हमने चुनी के जां पे नेता हरन की नजर हम पे पर जाए। उते बड़े सयाने से, बड़े अच्छे से योगाचार्य हते। जब सब ओरें जुड़ गए, मनो वीआईपी हरें आ गए सो योगा श्ुारू कराओ गओ। बे योगाचार्य जी आसनों को नांव सोई बतात जा रए हते। बाकी हमें सो कछू पल्ले पड़ नई रओ हतो। हम तो उने देखत जा रए हते औ करत जा रए हते। बे अपनी जान में सरल वारे आसन करा रए हते। मनो हमाए लाने सो सबई कठिन हते। उन्ने एक आसन कराओ जीमें धनुष घंाईं कमर से मुड़ने हतो। उन्ने कई बी, के जोन से ने बने, बा न करे। मगर हमें सो चढ़ो रओ जोस। सो हमने सोई धनुष घांईं कमर मोड़ी औ तुमाई कसम बिन्ना! हम तो घबड़ा गए। काए से के हमाई कम्मर सो ऊंसई के ऊंसई रै गई। हम धनुषई बन के रै गए। हमसे सीधे होत नहीं बन रओ हतो। हमें लगो के अब तो गई हमाई कम्मर! औ अब निकरे हमाए प्रान!’’ भैयाजी जे बतात बतात कंपा से गए। मनो उने फुरूरी हो आई।
‘‘फेर का भओ? आपकी कम्मर कैसे सीधी भई? का बा खुदई सीधी हो गई?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काए को खुद से सीधी होती? बा तो धनुष घांई मुड़ी, सो मुड़ई के रै गई। फेर योगाचार्य खुदई मंच से उतर के हमाए लिंगे आए औ बे नेता हरें सोई उनके संगे चले आए। सबने मिलके हमें सीधे करो। तब कऊं जा के हमाई कम्मर सीधी भई। मनो तभई से ऐसो दरद उठो के तुमें का बताएं। बाकी ऊ टेम पे सो हमें दरद कम और शरम ज्यादा आ रई हती। काए से के जोन नेता हरों की नजर में आने के लाने हम उते गए रए, बेई ओरें हमाई ओर देख देख के मुस्क्या रए हते। हमाई तो पूरी बेइज्जती खराब हो गई।’’ भैयाजी को गलो भर आओ।
‘‘अरे, आप ई सब दिल पे ने लेओ! जे सब सो चलत रैत आए। आप तनक सोचो के आप जोन काम के लाने गए हते, बा तो चकाचक हो गओ।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘मनें?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मने जे के आप उन ओरन से ऊंसई मिलते, दुआ-सलाम होती औ बे अपने रस्ते, आप अपने रस्ते। को कोऊ खों याद रखतो का? बाकी अब जे घटना के मारे आपको बे ओरें कभऊं ने भूलहें।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे जे ने कओ बिन्ना, जे नेता हरों की याददाश्त बड़ी कच्ची रैत आए। उने कोन याद रैने?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो आप उनके लाने याद दिला सकत हो के हम बोई आएं, जोन की कम्मर विश्व योग दिवस पे धनुष बन गई रई और आपने धनुष भंग कर के हमें सीधो करो रओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुम दिल से कै रईं के हमाओ मजाक बना रईं?’’ भैयाजी ने मोपे शक करत भए पूछी।
‘‘हम काए के लाने आपको मजाक बनाहें? ऐसई सो याद कराओ जात आए। कोनऊं कोऊ से रेलगाड़ी में मिलत आए सो बाद में जेई कैत आए के आपसे हम रेल में मिले हते। कोऊ हवाई जहाज में मिलत आए सो बो कैत आए हमाई आपसे हवाई जहाज में भेंट भई रई। ऐसई आप याद कराइयो के हमाई आपसे विश्व योग दिवस पे भेंट भई रई, जब हम धनुष बन गए रए। अब कोनऊं रोजीन तो धनुष बनत नईयां, सो उनको तुरतईं याद आ जेहे।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, कै तो तुम ठीक रईं! तुमाई बात सुन के मनो हमाई कम्मर को दरद सोई कम सो लगन लगो।’’ भैयाजी कछु सोचत भए बोले।
‘‘ऐसो का? अबे लौं मैंने सुनी रई के कोनऊं-कोनऊं को दिमाग घुंटना में रैत आए, बाकी आपको तो कम्मर में कहानो।’’ कैत-कैत मोय हंसी आ गई।
‘‘माने तुम हमाओ मजाक बना रईं?’’ भैयाजी फेर के दुखी होत भए बोले।
‘‘अरे नईं! मैं सो आपकी कम्मर की तारीफ आ कर रई। बाकी एक बात जरूर मोय आपसे कैने,  के जे योग वगैरा रोजीना किया करे, जो जे एक दिना दिवस देख के करहो, सो ऐसई हुइए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाईश देई दई।
‘‘जेई सो हम तुमाए भैया जी खों ऊ बेरा से समझा रए हते जोन बेरा इन्ने हमें बताओ रओ के जे योग करबे के लाने जेहें। अरे, लुटिया सो पकरबे आई नईं, औ चले कुंइयां से पानी भरबे।’’ भौजी बोलीं। फेर उन्ने भैयाजी खों हल्दी वारो दूध को मग्गा पकराओ औ मोय चाय को मग्गा। तीनों जने चाय-दूध सुड़कन लगे।
आप ओरें सोई रोजीना योग किया करे। ईसे सेहत अच्छी रैहे। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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