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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, July 11, 2023

पुस्तक समीक्षा | बाल साहित्य को समृद्ध करतीं बाल कविताएं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 11.07.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई  कवि बृंदावन राय के काव्य संग्रह "बाल कविताओं का उपवन" की समीक्षा... 
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पुस्तक समीक्षा
बाल साहित्य को समृद्ध करतीं बाल कविताएं
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - बाल कविताओं का उपवन
कवि       - बृंदावन राय सरल
प्रकाशक  - शाॅपीज़ेन, 201, अश्वमेघ एलीजेंस-2, अम्बावडी मुख्य बाज़ार, कल्याण ज्वेलर्स के समीप, अम्बावडी, अहमदाबाद, गुजरात -380006
मूल्य       - 227/-
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    कवि बृंदावन राय सरल एक अरसे से साहित्य सृजन के क्षेत्र में हैं। उन्होंने बड़ों के लिए दोहा, चौपाई ग़ज़ल आदि लिखे हैं। साथ ही उन्होंने बच्चों लिए भी साहित्य सृजन किया है। बच्चों के लिए लिखना आसान नहीं होता है। एक बाल साहित्यकार के लिए प्राथमिक शर्त यही होती है कि वह बाल मनोविज्ञान को समझता हो और बच्चों के अनुरुप लिखने की क्षमता रखता हो। कवि सरल ने बालसृजन को बखूबी साधा है।

वयस्क जब अपने जीवन में उलझ जाते हैं तो उनसे जाने-अनजाने बच्चों की उपेक्षा होने लगती है। ठीक यही स्थिति साहित्य के क्षेत्र में है। हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य का अपना विशेष स्थान रहा है। लेकिन जब यथार्थवादी लेखन का दौर आया तो पराग, चंपक, चंदामामा जैसी कुछ पत्रिकाएं थीं जिन्होंने बाल साहित्य को उसके मौलिक स्वरूप में बचाए रखा तथा कई प्रसिद्ध रचनाकारों को बाल साहित्य सृजन करने के लिए प्रेरित किया। फिर भी साहित्य की मूलधारा में बाल साहित्य गौण होता चला गया। एक स्थिति तो यह भी आई कि बाल साहित्य के रचनाकारों को साहित्यकारों की श्रेणी में गिने जाने से भी परहेज किया जाने लगा। जबकि बाल साहित्य वयस्क साहित्य की नींव है। यहां वयस्क साहित्य का अर्थ ‘‘ए-क्लास’’ अथवा ‘‘मात्र वयस्कों के लिए’’ लिखे जाने वाले कामुक अथवा थ्रिलर साहित्य से नहीं है। यहां वयस्क साहित्य का अर्थ है वह साहित्य जो बालमनो श्रेणी से से ऊपर की आयु के व्यक्तियों को ध्यान में रख कर लिखा गया हो। वहीं बाल साहित्य 12-14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए लिखा जाता है। बालसाहित्य का उद्देश्य होता है कि किस्से, कहानियों, कविताओं, नाटकों आदि के माध्यम से बच्चों को शिक्षाप्रद बातें बताई जाएं। ठीक वैसे ही जैसे खेल-खेल में शिक्षा देना। इसीलिए गद्य में छोटे-छोटे सरल संवाद और कविताओं में तुकबंदी प्रधान छोटी-छोटी पंक्तियों को अपनाया जाता है। इससे बच्चे उन्हें आसानी से समझ सकते हैं, गुनगुना सकते हैं, याद रख सकते हैं। इसका सबसे श्रेष्ठ और बहुप्रचलित उदाहरण है-‘‘मछली जल की रानी है/ जीवन जिसका पानी है/हाथ लगाओ डर जाएगी/ बाहर निकालो मर जाएगी।’’ इन चार पंक्तियों में मछली के बारे में पूरी जानकारी दे दी गई है। यही सहजता, सरलता एवं उपादेयता बच्चों के लिए आवश्यक होती है।

कवि बृंदावन राय सरल के काव्यसंग्रह ‘‘बाल कविताओं का उपवन’’ बालपाठकों को ध्यान में रख कर ही लिखा गया है। इस संग्रह की भूमिका डॉ. विकास दवे ने लिखी है जो कि निदेशक, साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल हैं। डाॅ. दवे ने संग्रह की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि ‘‘सभी रचनाएं एक ओर बच्चों को सृष्टि से जोड़ने का काम करेंगी वही राष्ट्रीय चेतना से जुड़े विषय बच्चों को अपने देश के सरोकारों से जोड़ने का काम करेंगे।’’
इस संग्रह की कविताओं की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि उन्होंने उन विषयों को भी अपनी कविताओं में पिरोया है जो प्रायः छूट जाती हैं। संग्रह में भाषाई सरलता और सहजता के साथ विभिन्न विषयों को काव्य के रूप में प्रस्तुत किया हैै। जैसे ‘‘घड़ी’’ शीर्षक कविता में घड़ी की महत्ता को बताया है-
टिक टिक करती घड़ी हमारी।
अब भी हमको लगती प्यारी।
पल-पल का ये समय बताती।
मर्म समय का हमें सिखाती।
भिन्न-भिन्न आकार है इसके।
भिन्न भिन्न श्रृंगार हैं इसके।
इसमें तीन मिलेंगे कांटे।
अपने-अपने काम जो बांटे।
छोटा मुख्य समय बतलाए ।
बड़ा मिनट का पता दिखाए।
इसमें एक और है कांटा।
जो सैकिंड से हमें मिलाएं।

इसी तारतम्य में एक महत्वपूर्ण कविता है-‘‘मजदूर’’। आमतौर पर बालसाहित्य में मजदूरों पर बहुत कम लिखा जाता है। मजदूरों का जीवन वर्णन बड़ों के लिए पठनीय साम्रगी माना जाता है। किन्तु कवि सरल ने मजदूरों की दशा-दिशा पर ज्ञानवर्द्धक कविता लिखी है-
गांवों में जो सड़क बनाते।
नहरों से जो खेत सजाते।
खेतों से जो फसल काटते।
गड्ढे पथ के रोज पाटते ।
रोज पार्क में पानी देते।
पत्थर पर भी जो सो लेते।
एक बार जो दिन में खाते ।
फिर भी दिन भर जो मुस्काते।
ये सब ही मजदूर कहाते।
शहर गांव को स्वच्छ बनाते।
इनसे है शहरों में रौनक ।
इनसे है कस्बों में रौनक ।
इन पर निर्भर शहरी जीवन।
इनपर निर्भर शहरी साधन।
आओ इनको गले लगाएं।
इनको अपना मित्र बनाएं

इस प्रकार की कविताएं बालमन को जहां जीवन की विविधता से जोड़ती हैं, वहीं समाज में उपेक्षित वर्ग के प्रति सहानुभूति एवं सम्मान का बीज बोने का काम करती हैं। कवि सरल ने दैनिक जीवन में स्वच्छता के महत्व को बताने के लिए ‘‘बाथरूम’’ शीर्षक से बाथरूम एवं शौचालय पर भी कविता लिखी है जो आम बालकविताओं से हट कर नूतनता की परिचायक है-
बाथरूम हो घर का सुंदर।
साफ स्वच्छ हो जिसका परिसर ।
नल बिजली की सुविधाएं हों।
शौचालय की सुविधाएं हों।
पानी की मत हों बाधाएं।
फब्बारे की हों सुविधाएं ।
बदबू हरगिज तनक न आए।
ऐसी सभी व्यवस्था पाएं।
बाथरूम हो घर का सुंदर ।
साथ स्वच्छ हो जिसका परिसर ।
खिड़की शुद्ध हवा को हो इक।
गर्म पानी का भी हो नल इक।
बाथरूम हो इतना सुंदर ।
साफ स्वच्छ हो जिसका परिसर ।

बच्चों को उनकी बाल्यावस्था से ही यातायात के नियमों से परिचित कराना, यातायात सिग्नल्स की लाल एवं हरी लाईट्स का अर्थ समझाना आवश्यक होता है, जिससे वे स्कूल के लिए अकेले जाते समय तथा बड़े हो कर यातायात नियमों का पालन करें और स्वयं को सुरक्षित रखें। ‘‘बत्ती...सिग्नल....’’ कविता यातायात के बुनियादी नियम को सरल एवं रोचक शब्दों में समझाती है-
चौराहों पर बत्ती जलती।
जिससे कारें रुकती बढ़ती।
जो इनके नियमों को तोड़े।
पुलिस से अपना नाता जोड़े।
हरी का मतलब है बढ़ जाना।
लाल का अर्थ यहां रुक जाना।
इनसे नहीं हादसा होते ।
दुख से नहीं सामना होते ।
जनहानि से हम बच जाते।
यह सब नियम अगर अपनाते ।

कवि बृंदावनराय सरल पर्यावरण और जीव-जन्तुओं के प्रति बच्चों में जागरूकता लाना चाहते हैं। उनकी कविता ‘‘सांप’’ इसी बात की द्योतक है कि सांप भी प्रकृति का अभिन्न अंग है। प्राणिजगत में उनका भी विशेष स्थान है। इस कविता में कवि ने सांपों के प्रकार तथा उनके पाए जाने वाले स्थानों को भी लक्षित किया है। इस कविता की कुछ पंक्तियां देखें-
अद्भुत अद्भुत सांप धरा पर ।
खेतों वन में रहते अक्सर।
जहरीले भी सभी न होते।
ये भी हँसते ये भी रोते।
आपस में ही इनमें अंतर ।
खेत वनों में रहते अक्सर ।
सांप कोबरा अति जहरीला ।
जिसको डसता होता नीला।
सबसे बढ़कर होता अजगर ।
ये जंगल में रहते अक्सर ।
घर में कभी कभी आ जाते।
पानी में भी इनको पाते।

  इस तरह देखा जाए तो कवि बृंदावन राय सरल की कविताओं में विषय की विविधता के साथ ही विषय के चयन में अनूठापन भी है जो उनके इस संग्रह को महत्वपूर्ण बनाती है। ऐसे समय में जब बच्चों के लिए मौलिक साहित्य कम लिखा जा रहा है,‘‘बाल कविताओं का उपवन’’ का प्रकाशित होना स्वागत योग्य है। बालोपयोगी पुस्तक के अनुरुप मुद्रण एवं साज-सज्जा आकर्षक है। कुल इक्यावन बाल कविताओं का यह संग्रह कवि के बालसृजन के प्रति आश्वस्त करता है।
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