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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 13, 2023

बतकाव बिन्ना की | "सो, भैयाजी ने बताओ मूत्रालय को विकासक्रम | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"सो, भैयाजी ने बताओ मूत्रालय को विकासक्रम" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
सो, भैयाजी ने बताओ मूत्रालय को विकासक्रम          
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         कुल्ल दिना से भैयाजी से बतकाव ने करी हती सो मन ऊंसई सो हो रओ हतो। काय से के भैयाजी से तनक नांय की-तनक मांय की बतकाव कर लेओ जो जी हल्को हो जात आए। सो, मैंने अपने घरे तारो डारो औ कढ़ चली भैयाजी के इते।
‘‘आओ बिन्ना, लिखा-पढ़ी में भौतई बिजी रई कां, जो अपने भैयाजी की याद ने आई?’’ भैयाजी ने मोए देखतई साथ बोले।
‘‘सो, आपको कोन सी मोरी याद आई? जो याद आई रई होती सो आ के हालचाल पूछते।’’ मैंने सोई भैयाजी खों सुना दई।
‘‘तुमाओ हाल सो मनो सोशल मीडिया से पतो चलत रैत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय? का मैंने कभऊं जे शेयर करी का, के मोरो हाल ठीक आए, के मोरो हाल ठीक नईयां?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘नईं, का आए के जो तुम इते-उते फिरत की अपनी फोटू-मोटू डारत रैत आओ सो समझ में आ जात आए कि हमाई बिन्ना ठीक-ठाक आएं, घूम-फिर रईं आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, जरूर! जो कछू दिखात आए, ओके पांछू की सोई कछू पता कर लेओ करे। अब सोशल मीडिया की सो जे ठैरी के जो नाचत-गात की फोटू कोनऊं डारे सो नुक्कड़ नाटक घांई भीड़ आ जात आए, मनो जो कऊं कोनऊं गंभीर टाॅपिक की पोस्ट होय सो सबरे डरात फिरत आएं के ईको लाईक करो जाय के ने करो जाए? मोय कैने को मतलब जे के सोशल मीडिया दिखात को सोशल आए। चार घर के आगे को हाल ने पूछो औ हजार मील पै बैठी को लाड़ लड़ा रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुमाओ का मतलब?’’ भैयाजी तनक चैंकत भए पूछ बैठे।
‘‘मैं सोई आपके सोशल मीडिया में ताक-झांक करत रैत आओं। मोय पतो आए के आपकी फ्रेंडलिस्ट में बा मैक्सिको की लूसियाना सोई आए। अब आपसे मैक्सिकन तो बनत नइयां, अंग्रेजी सोई आपकी कामचलाऊ आए, सो ऊसे चैट-मैट कैसे करत हो आप?’’ मैंने तनक चुटकी लई भैयाजी की।
‘‘हम काय को चैट-मैट करबी? तुम औ। बा तो ऊकी फ्रेंडरिक्वेस्ट आई रई, सो हमने सोची के एकाध बिदेसन हमाई फ्रेंड हुइए सो अपनी तनक सब पे धाक जम जेहे। चलो खैर, छोड़ो जे सब। तुम सोई कां की कां ले बैठती आओ।’’ भैयाजी खिजियात भए बोले।
‘‘आपई ने छेड़ी जे बात। जो आप मोरो हाल पता करबे आ गए होते सो इत्ती बात ने होती।’’ मैंने भैयाजी की टांग खिंचाई करई डारी।
‘‘अब का कहें, हम सो दो-चार दिनां से बड़ी सोच-फिकर में परे आएं।’’ भैयाजी बात बदलत भए बोले।
‘‘काय की सोच-फिकर?’’ मैंने पूछी।
‘‘जेई के जे मानुस की हमाई जिनगी ज्यादा दिनां की नोईं। देखियो एक दिनां अपन ओरें अमीबा बन जेहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अमीबा?’’ भैयाजी की बात सुन के मोरी मुण्डी चकरा गई। मैंने पूछी,‘‘अब जे अमीबा को आ?’’
‘‘तुमें नईं पता अमीबा? काय तुमने सो सोई हायर सेकेंड्री लों जूलाॅजी पढ़ी रई। औ जे सो जरनल नाॅलेज की बात आए के अमीबा एक कोशीय प्राणी होत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बा अमीबा? बा प्राणी की बात कर रए आप? बा तो माइक्रोस्कोप से दिखात आए, ऐसे सो दिखतई नइयां। सो अपन ओरें इत्ते बड़े हो के अमीबा कैसे बन जेहें?’’ मोय कछू समझ ने परी।
‘‘बो का आए बिन्ना के अपन इंसानों में कई जने जानवर बने जा रए। अब देखों अपनो विकासवाद जेई कैत आए के पैले एक कोशीय जीव बने, ऊके बाद मछरिया, मेंढक, फेर पंछी, बंदरा। औ, बंदरा से पूंछ घिसा के अपन इंसान हरें बन गए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ तो? ईसे का?’’ मैंने पूछी।
ईसे जे के अबकी बेरा बिकास को क्रम उल्टो चलन लगो आए।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘बो कैसे?’’ मैंने पूछी।
‘‘अब तुम देख तो रई आओ, के कोनऊं सुनहा कुत्ता घांई, मने जंगली कुत्ता घांई कोऊं अकेले जने खों घेर-घार के कूटन लगत आए। मनो सुनहा कुत्ता हरें सो खाबे के लाने ऐसो करत आएं, पर जे आजकाल दिखाबे के लाने ऐसो हो रओ। चार ने मिल के एक जने को कूटो और पांचवें ने मोबाईल पे वीडियो बना लई। फेर कर दई वायरल। लेन लगे सबरे मजा। अब जे सुनहा कुत्ता घांई काम नई भओ सो का भओ? बे ओरें कम से कम वीडियो सो नईं बनात आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, कै सो आप सांची रै हो। कछू सुनहा कुत्ता बन रए, सो कछू गली-मोहल्ला के कुत्ता घांई कर रए, के जां जी करो सेा टांग उठाई औ मूत दओ! अब जो का आए?’’ मैंने सोई कई।
‘‘जेई सो हम कै रए बिन्ना! के इंसान जानवर बनो जा रओ। मनो विकास को क्रम उल्टो भओ जा रओ। अब पैलऊं कछू जने कुत्ता बने जा रए। ईके बाद कछू मेंढक औ मगरमच्छ बन्ने लगहें। औ ईके बाद कोनऊं दिनां देखियो अमीबा लों पौंच जेहे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘पौंचई जाने चाइए, भैयाजी! काय से एक जने मानो कोनऊं नशा में कुत्ता घांई मूत मारो, सो ऊके ऊपरे केस कर कुरा के मामलो खतम हो सकत्तो। अब वोई पे राजनीति होन लगी के बो को हतो जीपे मूतो गओ? औ बो को हतो जीके पैर धोए अपने मुख्यमंत्री जी ने? मनो चलो जे बी अपन छोड़ देबें, सो ओई में चैन नईयां! जेई पे बहस हो रई के जे मूतबे वारी घटना कोन के जमाने की आए? अब की, के तब की? गजबई हो रओ भैयाजी!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘गजब सो तुम सोई कर रईं, के बेर-बेर मूतबो शब्द बोल रईं, अरे पढ़ी-लिखी घांई यूरिन बोलो। जेई मीडिया बोल रओ, जेई सबरे बोल रए। जे जो तुम बोल रईं का अच्छो लगत आए?’’ भैयाजी ने यूरिन-कांड छोड़ के मोरे बोल पकर लए।
‘‘जे बताओ भैयाजी के दोई शब्द में का फरक आए? जो देसी भाषा में बोलो सो गंदो कहा गओ औ बोई बिदेसी भाषा में बोलो सो अच्छो कहा गओ, जे कोन सी बात भई?’’ मैंने सोई बिगरत भई भैयाजी से पूछी।
‘‘अब ऐसो आए बिन्ना के पैले मूत्रालय जात्ते, गुसलखाने जात्ते, हल्को होने जात्ते, फेर बाथरूम जान लगे औ अब वाशरूम जान लगे। सो समझो के जो बोलो जा रओ होय, बोई बोलो चाइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, बो सब तो ठीक आए, मनो जे अपन ओरे का करन लगे? कां तो आप प्राणियों के विकासक्रम की बात कर रए हते और अब मूत्रालय के विकासक्रम बतान लगे।’’ कैत भई मैं हंसन लगी। काय से के मोय हंसी आई गई।
‘‘तुम सोई!’’ कैत भए भैयाजी सोई हंसन लगे।
‘‘बाकी आपकी बात सच आए भैयाजी, के चाए अपनी भाषा बदलत-बदलत एलियन की भाषा में बदल जाए, मनो जेई हाल रओ सो अपनो विकासक्रम उलटत-उलटत अमीबा लों जा पौंच जेहे। अबई जानवर पना के सबरे लच्छन दिखान लगे आएं। औ जो बचे-खुचे ठैरे बे चुनाव आत-आत जाग जेहें।’’ मैंने कई।
‘‘जेई सोच के सो हमाओ जी बैठन लगत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब आप अपनो जी ने बैठाओ। ई सब रोकबे वारो कोनऊं दिखात नईंयां। सो अपन ओरें का कर लैंहे? आप सो भाषा के विकास के बारे में सोचो, सो मन लगो रैहे औ अभई सितम्बर आओ जा रओ, सो हिन्दी पे भाषण पैलबे में काम आहे।’’ मैंने भैयाजी से कई औ घरे भीतरे भौजी के ऐंगर बढ़ लई।
काए से के मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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