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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, July 27, 2023

बतकाव बिन्ना की | इते की ने उते की, बात करो पते की | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"इते की ने उते की, बात करो पते की" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
इते की ने उते की, बात करो पते की           
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         ‘‘काए भैयाजी! अपने इते अब तो बड़े-बड़े नेता हरें आन लगे।’’ मैने भैयाजी से कई।
‘‘को आ गए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अबे आए नइयां, बाकी आने वारे आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अब सो आहें ई! चुनाव आत-आत सबरे आ जेहें। जे तो हर दफा हो रओ, ईमें नओ का? बे आहें इते बड़ी-बड़ी घोषणा करहें औ अपने ओरें धन्न हो जेहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘घोषणाओं की ने पूछो भैयाजी, बा सो आए दिना करी जा रई। घोषणा ने भई मनो हिलगन हो गई।’’ मैंने कई।
‘‘हिलगन से का मतलब तुमाओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे, मने हिलगा-हिलगा के करत जा रए। मनो लाड़ली बहना योजना खों ले लेओ। पैले 21 बरस की ब्याहता लुगाइयन खों छोड़ दओ गओ रओ, अब उनके लाने सोई घोषणा कर दई गई। पैलई बेरा में काय नई करी? काय से के लाड़ली बहना सीरियल को एपीसोड बनात चलने है। जे तो मने एक बात कई, बाकी सबई तरफी देख लेओ, जित्ती अवैध कालोनियां हतीं, सो सबई वैध भई जा रईं। भैयाजी, चलो न, अपन ओरें सोई कहूं कब्जा जमा लेवें। अगली चुनाव टेम पे वाको पट्टा अपन ओरन खों पक्के से मिल जेहे।’’ मैंने भैयाजी से कई। रोज की खबरें पढ़-पढ़ के मोय सोई लगन लगत आए के कहूं साजी सी मौके की जमीन पे झुपड़िया डार दई जाए।
‘‘औ जो कहूं सरकार बदल गई सो?’’ भैयाजी ने शंका जताई।
‘‘पैले तो जे, के अबे जो दशा आए, ऊमें सो सरकार बदलत दिखा नई रई, मनो चलो, बदलई गई, सो बे का पट्टा ने देहें? अरे, सौ मूंड़ के हो के देहें। उने का अगली चुनाव में वोट नईं चाउने? औ बे कोन दूध के धुले कहाने, का उनकी टेम पे अवैध झुग्गी वारन खों उनके कब्जा वारी जमीन को पट्टा नई दओ गओ रओ?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, कै तो तुम ठीक रईं, के कोनऊं की सरकार आ जाए मनो अवैध को वैध बनाने को काम चालू रैहे।’’ भैयाजी मुंडी हिलात भए बोले।
‘‘जेई से तो मैं कै रई के अपन ओरें सोई कहूं झुपड़िया डार दें। खुद ने रहबी, मनो किराए पे दे देबी। काए से जब अटल आवास तक के मकान किराए से चल रए सो, अपन अपने कब्जा वारी कुठरिया किराए पे काय ने चढ़ा सकत?’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘बिन्ना, हमें तुमाई नीयत ठीक नई दिखा रई।’’ भैयाजी खों तनक फिकर सी हो आई।
‘‘इते कोन की नीयत ठीक आए भैयाजी? देख नई रए के इते-उते की बातें कर कर के अपन ओरन खों बेवकूफ बनाओ जा रओ औ, अपन बनत जा रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! बा तो अपन हरेक पांच साल में बेवकूफ बनत रैत आएं। मगर करो का जाए?’’ भैयाजी तनक दुखी होत भए बोले।
‘‘सांची सो जे है भैयाजी, के अपन ओरन की दम नोंई, ने तो मोरे नानाजी हते बे सो ठक्का-ठाई खुल्लेआम कैत्ते। ऊ टेम पे जे चुनाव में कागज की वोटें पड़त्तीं। औ हम ओरें जब नानाजी खों ले के पोलिंग बूथ पे पौंचत्ते सो, चाय मोय, चाय दीदी खों उनके संगे वोट डारबे जान देओ जात्तो। काय से के नानाजी खों मोतियाबिंद के कारण ठीक से दिखात नईं रओ। औ बे नानाजी, बे उते पौंचत सात चिल्लान लगत्ते के हमाओ वोट कोनऊं लुको-छिपो नोंई, हमाई सील सो गाय-बछड़ा पे लगा दई जाए। बे कोन डरात्ते के बे दिया वारे सुन लेहें सो झगड़ा करहें। उनकी जे दम देख के बे दिया वारे सोई उनको पांव छुओ करत्ते। अब का आए, के अपन ओरें ने तो मों से बोल पाउत आएं औ ने सोंच पाउत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जा तो सही कई! हमाए बब्बा सोई ऐसई हते। बे सो जोन पार्टी को चाहत्ते, वोई के पक्ष में रैत्ते। फेर चाए बा पार्टी हारे के जीते। पर जे बी तो सोचो बिन्ना के ऊ टेम पे इत्ती पार्टियां ने रईं हुइएं जित्ती की ई टेम पे दिखात आएं। जे गठबंधन, बे गठबंधन। अब जो गठबंधन रैहे सो राजनीति साजी कैसे रैहे? जिते देखो उते गांठई-गांठ दिखात आएं। अब गांठ परे में जुड़ाव तो हो गओ कहानो, बाकी प्रेम कां से होय? तुमने रहीम की बे लाईनें सो सुनी हुइएं के-
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़ जाए।।
- मने बिन्ना, इते तो गांठई-गांठ दिखान लगी आए। लोहरो गठबंधन, मंझलो गठबंधन, महागठबंधन.....!’’ भैयाजी रहीम को दोहा सुनात भए बोले।
‘‘सो आप का कैबो चा रए के अपने इते राजनीति को गठिया हो गओ? मने अर्थराईटिस? औ जेई से जे कभऊं-कभऊं लंगड़ान लगत आए। बाकी अब उम्मर सोई हो चली अपने लोकतंत्र की। डाक्टर हरें सो कैतई रैत आएं के साठ की उम्मर के बाद गठिया होबे को चांस ज्यादा रैत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, औ गठिया ठीक करबे के लाने सबसे अच्छो आए के कसरत करी जाए औ खाबे-पीबे को ध्यान रखो जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सही कई भैयाजी! मनो अब दसा जे हो आई है के ई दफा सो पूरे पांच बरस से सबई की कसरत चलत रई, फेर बी गांठें कम होने की जांगा बढ़ गईं। औ रई खाबे की, सो खाबे वारे जी भर के खा रए और अपन ओरें टमाटरई खों टुकुर-टुकुर ताकत रैत आएं। काय से के अपन औरन पे सो मैंगाई डायन सवार रैत आए। औ कहो पीबे की, सो ऊके लाने आंख मींच के दारू को अहातो खुलवा दओ गओ आए। जे तक लो न देखो गओ के बा अहातो कोनऊं स्कूल के लिंगे आए के चाय बैंक औ एटीएम के ठीक आंगू आए। सो ऐसे गलत तरीका से खाबे-पीबे में गठिया कां से ठीक हुइए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बिन्ना, रामधई अब की बेर हमने सोच रखी आए के, अब की बेर सो कोनऊं वोट मांगने आए, हमें सो ऊंसे एकई बात कैनी के भैया! इते की ने उते की, बात करो पते की! मने जो तुमाए बस की होय, वोई कराबे की बोलो, फंकाई ने देओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ भैयाजी, कर लइयो एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ!’’ मैंने हंस के कई।
‘‘का मतलब तुमाओ?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे के जब आप उन ओरन से जे कैहो सो बे आपके पांव पे अपनो मूंड़ रख-रख के, कसमें खा-खा के अपनो वादो पूरो करबे की कैंहें औ चुनाव के बाद देखियो के का होत आए?’’ मैंने भैयाजी से कई।                                          
‘‘चलो देखो जेहे, बाकी हम सो जेई कैबी के सीधी बात करो, इते-इते की ने फेंको!’’ भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी आपकी इसी बात पे मैं सोई रहीम को एक दोहा सुना रई, तनक ध्यान से सुनियो औ सोचियो-
तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस।
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।’’
सो भैयाजी मोरे दोहा पे सोचन लगे औ मैं उनको सोचत भई छोड़ के बढ़ गई। काए से के मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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