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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, August 3, 2023

बतकाव बिन्ना की | घोड़ा बदाम साई, पीछे देखी मार खाई | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"घोड़ा बदाम साई, पीछे देखी मार खाई" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की  
घोड़ा बदाम साई, पीछे देखी मार खाई             
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
         ‘‘काए बिन्ना, तुमने अपने बालपन में कभऊं कोनऊं गेम खेलों?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘जो का पूछ रए भैयाजी? कोन ऐसो हुइए के ऊंने अपने बालपन में कोनऊं गेम ने खेलो होय।’’ मैंने भैया खों उलाहना दओ।
‘‘सो बताओ के तुमने कोन-कोन से गेम खेले?’’
‘‘मुतके खेले! मने बैडमिंटन, टेबलटेनिस, वाॅलीबाल.....’’
‘‘बस-बस, जे वारे नोंई, अपने बुंदेलखंड वारे?’’ भैयाजी ने मोय टोंकत भए कई।
‘‘आपने गेम पूछी सो मैं गेम बता दई, आपने खेल पूछो होतो, सो खेल बताती।’’ मैंने भैया जी कई।
‘‘सो काय गेम औ खेल में का कोनऊं फरक आए?’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, फरक आए। मनो उत्तई फरक आए जित्तो मार्केट औ बाजार में, शाॅपिंग औ खरीदबे में, इंडिया औ भारत में।’’ मैंने कई।
‘‘जे तो भाषा को फरक आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो बात आए भैयाजी! के भाषा-भाषा मेंई तो मिठास में कमी-बेशी आ जात आए। अब आपई सोचो के जो कोनऊं जलेबी बोले, तो गोल-गोल चाशनी वारी जलेबियां दिखान लगत आएं। औ जो कोनऊं राउन्ड-राउन्ड स्वीट्स विथ शुगर सिरप बोले सो पहेली सी लगत आए के जे मालिक काए के बारे में कै रए? सो आपने गेम पूछी सो मैंने गेम बताई। जो आप खेल पूछते, सो मैं खेल बताउती।’’ मैंने भैयाजी खों अच्छो खासो लेक्चर पिला दओ।
‘‘तुमसे सो बहस करबो फिजूल आए। चलो, अब बताओ के तुमने अपने बालपन में कोन-कोन से खेल खेले।’’ भैयाजी हार मानत भए बोले।
‘‘अब आपने सई पूछीं! सो, मैंने घरे-बाहरे दोई वारे मुतके खेल खेले। जब पानी बरसत्तो या के खूबई घाम रैत्ती सो हम ओरें घरे भीतरे पुतरा-पुतरियां, काना-दुआ, अट्ठा-चईया, चपेटा, लंगड़ी धप्पा, लुका-छिपी खेलो करत्ते। औ जो मौसम ठीक रैतो, सो हम ओरें घोर-घोर रानी, घोड़ा बदाम साई, छुवा-छुअव्वल, खिपड़ी-गद्दा, कबड्डी, नदी-पहाड़, मूर्ती, खो-खो, कंचा खेलत्ते।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘मनो कंचा तो लड़कन को खेल आए!’’ भैयाजी ने टोंको।
‘‘सो का? हम ओरे सबई जने संगे खेलत्ते, चाए लड़का हरें होंए, चाए लड़कियां। बे ओरें हम ओरन के संगे पुतरा-पुतरियों को ब्याओ में हाथ बंटआउत्ते औ हम बिटियां हरें कंचा में उने हराया करत्तीं।’’ मैंने भैयाजी को बताओ।
‘‘सच्ची?’’ भैयाजी को मनो मोरी बात पे भरोसो नई हो पा रओ हतो।
‘‘सच्ची-मुच्ची! जो आपके लाने भरोसो नईं हो रओ सो मैं कंचा के बारे में बताए दे रई। छोटे औ बड़े दो तरा के कंचा होत्ते। अपने कंचा से दूसरे के कंचा पे निशाना मारो जात्तो। पैले ठाड़े-ठाड़े, फेर बैठ के अपनी तर्जनी उंगरिया को गुलेल घांई खेंच के मारने परत्तो। फेर छिंगली से सोई कंचा सरकाने परत्तो। औ हारबे की दसा में कोहनी से कंचा धकेलो जात्तो। मनो ऊमें कोहनी छिल जात्ती।’’ मैंने भैयाजी खों विस्तार से बताई, के उने यकीन हो सके के मैंने सोई कंचा खेलो रओ।
‘‘हऔ! मान लओ के तुमने कंचा खेलो रओ।’’ भैयाजी ने मान लओ।
‘‘मैंने गुलेल सोई चलाई!’’
‘‘कोन पे निशाना साधत्तीं?’’ भैयाजी ने हंस के पूछी।
‘‘आम पे, बेरी पे। मनो दोई मोसे कभऊं टूटे नईं। गुलेल के बदले सो मैं पथरा मार के आम तोड़ लेत्ती। मोरो पथरा बीस-बीस, पचीस-पचीस फुट की ऊंचाई लो जात्तो।’’ मैंने शान से बताई।
‘‘कोनऊं को मूंड़ सोई फोड़ो हुइए?’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘नईं, मूंड कोनऊं को नईं फोड़ो। मनो अमियां खूबई झराईं।’’ मोय बे लड़कोरे के दिन याद कर के बड़ो अच्छो सो लगो। फेर मैंने भैयाजी से पूछी,‘‘काए भैयाजी, आज आपको जे बालपन के खेल काए याद आ रए?’’
‘‘ऊंसई!’’
‘‘ऊंसई कैसई? कोनऊं तो बात हुइए!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बात तो कछू नईं मने, हम सोच रए हते के अपन ओरन ने बालपन में जो खेल खेले रए बे कऊं ने कऊं आज सोई खेलने परत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे बुझव्वल ने बुझाओ! साफ बोलो के आप कैबो का चा रए?’’ मैंने पूछी।
‘‘तुमें याद हुइए के घोर-घोर रानी कैसे खेलो जात्तो!’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! सबरे बच्चा घेरा बना लेत्ते औ ऊ घेरा के बीच में एक बच्चा ठाड़ो हो जात्तो। घेरा वारे पूछत्ते के घोर-घोर रानी, कित्ता-कित्ता पानी? और बीच वारो बच्चा या बच्ची जवाब देत्ती के घोर-घोर रानी इत्ता-इत्ता पानी। पैले वो पांव के पंजा लौं बताउत्ती, फेर घूंटा लौं, फेर कम्मर लौं, फेर छाती लौं, फेर गरदन लौं और फेर मूंड़ लौं। ईके बाद जब अपने मूंड़ के ऊपर हाथ उठाउत्ती के इत्तो-इत्तो पानी, मनो बो डूब रई होय। ईके बाद, बा मोड़ी घेरा तोड़ के भागबे को प्रयास करत्ती। मने अब पानी मूंड़ के ऊपरे चलो गओ, अब सहन ने हुइए। बा घेरा तोड़ के भगत्ती औ बाकी सबरे ऊको पकरबे के लाने ऊके पांछू भगत्ते।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘औ घोड़ा बदाम साई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘ऊमें सबरे लरका-बिटियां घेरा बना के बैठ जात्ते। फेर एक मोड़ी हाथ में लत्ता ले के कोड़ा घांई फटकारत भई घेरा के बाहरे घूमत्ती औ संगे गात्ती- घोड़ा बदाम साईं, पीछे देखी मार खाई! जो मोड़ा-मोड़ी पीछे देखत्तो ऊको ऊ लत्ता ये सोंटो जात्तो। औ जोन के पांछू बा लत्ता छोड़ दओ जात्तो, ऊको लत्ता से सूंट-सूंट के दौड़ाओ जात्तो। बड़ो मजो के खेल हतो।’’ मोय लगन लगो के अबईं कोनऊं खेलबे खों तैयार हो जाए सो मैं खेलन लगूं।
‘‘का सोचन लगीं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘जेई के बे खेल कित्ते नोने हते। अब सो कम्प्यूटर गेम औ मोबाईल गेम ठैरे, जीमें ठलुआ घांई बैठे-बैठ दिमाग औ उंगरियां दौड़ात रओ। ने कोनऊं कसरत, ने कोनऊं भागा दौड़ी। जेई से तो ऐसे गेम वारे बच्चा लोहरी उम्मर में बीमार से दिखात आएं।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, जे तो सांची कई। मनो हम जे कै रए हते के अपन ओरन की दसा घोड़ा बदाम साईं घाईं हो गई आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बो कैसे?’’ मैंने पूछी।
‘‘अब तुमई देखो! सबई जांगा कछू ने कछू दोंदरा मचो आए, पन, अपन ओरें चा के बी कछू बोल नईं सकत के कऊं कछू अपनो बुरौ ने हो जाए। कोनऊं-कोनऊं पे तो बिना पांछू देखे, लपाड़ा घलत रैत आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अब जे सो भैयाजी, अपने ऊपरे आए के अपन खों घोड़ा बनने के, कोड़ावारो बनने। जो आंख मींच के डरात भए बिड़े रैहें, सो कोड़ा खात रैहें। बाकी आप जे सब सोच काए रैए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘बस ऊंसई!’’
‘‘ऊंसई सो आप कभऊं ने पूछ हो! कछू तो बात हुइए!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘बात? बात जेई आए के घोड़ा बदाम साई, पीछे देखी मार खाई। तांगा को घोड़ा घांई आंखन के दोई तरफी पट्टा लगा के चलत रओ, नए-मांए ने देखो, सो सब साजो।’’ भैयाजी बोले।
बाकी भैयाजी ने मोए असल बात तो ने बताई, मनो जे समझ में आ गई के बालपन को खेल बाकी जिनगी को पाठ पढ़ा सकत आए जो कोनऊं पढ़े सके।
सो, आप ओरे सोई सोचो के आप कोन से खेल में उरझे आओ, औ मोए चलन देओ। काए से के बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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