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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, September 12, 2023

पुस्तक समीक्षा | स्मृतियों के गलियारों से गुज़रती पुस्तक ‘‘सदा अटल’’ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 12.09.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई श्री अभिषेक तिवारी द्वारा संपादित पुस्तक "सदा अटल" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा
स्मृतियों के गलियारों से गुज़रती पुस्तक ‘‘सदा अटल’’
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक     - सदा अटल
संपादक    - अभिषेक तिवारी
प्रकाशक    - अटल फाउण्डेशन, 63, प्रकृति एन्क्लेव, इन्दौर, मध्यप्रदेश - 452016
मूल्य       - मुद्रित नहीं
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आज जब भारतीय राजनीति दल-बदल का पर्याय बनती जा रही है, ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री और ‘‘भारत रत्न’’ अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक दृढ़ता तीव्रता से याद आती है। अटल जी के राजनीतिक जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, उन्हें जेल भी जाना पड़ा किन्तु उन्होंने न तो अपने दल को छोड़ा और न विचारों को बदला। इसीलिए उन्हें सदैव अटल रहने वाले राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्मरण किया जाता है। हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशित हुई ‘‘सदा अटल। इसे प्रकाशित किया है इन्दौर के अटल फाउण्डेशन ने तथा इसका संपादन किया है अभिषेक तिवारी ने। कुल 130 पृष्ठों की यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण है तथा गागर में सागर की भांति सम्पन्नतापूर्ण है। इस पुस्तक की सामग्री का श्रमसाध्य संकलन किया है पूर्वा मिश्रा तिवारी ने।
अटल बिहारी वाजपेयी का नाम मैं भी अपनी बाल्यावस्था से सुनती आई थी किन्तु मैंने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समग्रता पूर्वक जाना और समझा था जब ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व’’ श्रृंखला के अंतर्गत मैंने अटल बिहारी वाजपेयी जी की जीवनी लिखी, जो सन् 2016 में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई थी। एक लंबे अंतराल के बाद ‘‘सदा अटल’’ पुस्तक के रूप में उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से मेरा एक बार फिर गुज़रना हुआ। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अटल जी के जीवन के अनछुए एवं अनमोल किस्से सहेजे गए हैं। अटल जी के परिजन एवं समकालीन लोगों के उनसे जुड़े संस्मरण हैं तथा कई महत्वपूर्ण एवं लगभग दुर्लभ छायाचित्र हैं।
पुस्तक के प्रथम ब्लर्ब में अटलजी की दृढ़निश्चयी काव्य पंक्तियां दी गई हैं- ‘‘टूटे हुए सपनों की /कौन सुने सिसकी /अन्तर की चीर व्यथा /पलकों पर ठिठकी /हार नहीं मानूंगा /रार नहीं ठानूंगा /काल के कपाल पर /लिखता-मिटाता हूं/गीत नया गाता हूं।’’ सचमुच, ‘‘भारत रत्न’’ अटल बिहारी ने हार कभी नहीं मानी। उनकी दृढ़ता को देखते हुए उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे।
‘‘सदा अटल’’ पुस्तक के नाम में भी एक रोचक तथ्य मौजूद है जिसके बारे में पुस्तक के संपादक अभिषेक तिवारी ने अपने संपादकीय में उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा है कि -‘‘अटल जी के जीवन में उनके बड़े भाई सदा बिहारी वाजपेयी जी का अहम योगदान है। अटल जी को स्कूली शिक्षा से लेकर राष्ट्रीय मंच तक लाने में उनका अमूल्य योगदान है। सदा बिहारी वाजपेयी जी का ग्वालियर में कमल प्रकाशन मंदिर के नाम से प्रकाशन का कार्य रहा है। पिता के गुजरने के बाद बड़े भाई ने अटल जी का लालन-पालन पिता के रूप में किया, अटल जी के इस व्यक्तित्व में उनके बड़े भाई सदा बिहारी वाजपेयी जी के योगदान को हम नमन करते है।’’
वस्तुतः अटल जी के बड़े भाई का नाम था सदा बिहारी वाजपेयी। अतः दोनों भाइयों के नाम के मिलाप से भी ‘‘सदा अटल’’ बनता है। यानी अटल जी के व्यक्तित्व, विचार एवं परिवार तीनों के तत्व पुस्तक के नाम में समाहित हैं।
पुस्तक में प्रथम संस्मरण अटल जी की भतीजी माला वाजपेयी तिवारी का है। उन्होंने अटल जी को अपने चाचा के रूप में याद करते हुए अपने पिताजी अर्थात् सदा बिहारी जिसे अटलजी के संबंधों के बारे में लिखा है कि -‘‘अटल बिहारी वाजपेयी जी के बड़े भाई श्री सदा बिहारी वाजपेयी जी जिन्हे छोटे भाई-बहिन ‘छोटे दादा’ कहकर सम्बोधित करते थे वे अटल जी से 6 साल बड़े थे पूरे परिवार को एक डोर मे बांधे रहे, सारे त्यौहार शिंदे की छावनी के हमारे घर पर सब मिल कर मानते थे। वो भी क्या दौर था जब दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट के भोजन के बाद पूरा परिवार 8-10 तांगों में बैठ कर फिल्म देखने जाते थे। श्रद्धेय सदा बिहारी वाजपेयी जी की हम 6 बेटियां थी हर बेटी के लिए अलग ही प्रेम था, अटल जी ने अपने बड़े भाई को कभी भी बेटे की कमी महसूस नहीं होने दी। दोनों भाइयों में अटूट प्रेम एवं सम्मान था दोनों का वार्तालाप-पत्राचार साहित्यिक भाषा में होता था, बड़े भाई ने अटल जी को पुत्र की तरह लालन पोषण किया, हर पहलू पर दोनों एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे। यह कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि सदा के लिए अटल और अटल के लिए सदा बने हों।’’
इस संस्मरणात्मक लेख के बाद अटल बिहारी वाजपेयी जी का संक्षिप्त जीवन परिचय दिया गया है जो उन सभी पाठकों के लिए उपयोगी है जो उन्हें एक राजनीतिज्ञ एवं प्रधानमंत्री के रूप में तो जानते हैं किन्तु उनके बारे में पूर्ण ज्ञान नहीं है।
     अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को लश्कर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित कृष्ण बिहारी बाजपेयी था जो अध्यापन का कार्य करते थे और अटल बिहारी की माता का नाम कृष्णा देवी था जो कि गृहणी थी। शिशु का नाम बाबा श्यामलाल वाजपेयी ने अटल रखा था। पिता का नाम पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी था। वे हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी तीनो भाषा के विद्वान थे। पं. कृष्णबिहारी वाजपेयी ग्वालियर राज्य के सम्मानित कवि थे। उनके द्वारा रचित ईश प्रार्थना राज्य के सभी विद्यालयों में कराई जाती थी। जब वे अध्यापक थे तो डॉ. शिवमंगल सिहं सुमन उनके शिष्य थे। ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है। अटल जी अपने माता- पिता की सातवीं संतान थे। उनसे पहले उनके तीन बड़े भाई और तीन बहने थी। अटल बिहारी वाजपेयी के बड़े भाइयों को अवध बिहारी वाजपेयी जी, सदा बिहारी वाजपेयी जी तथा प्रेम बिहारी वाजपेयी जी के नाम से जाना जाता है। तीन बहने विमला मिश्रा जी, उर्मिला मिश्रा जी, कमला दीक्षित जी के नाम से जाना जाता है वाजपेयी अपने पूरे जीवन अविवाहित रहे। उन्होंने लंबे समय से दोस्त बी. एन. कौल और राजकुमारी कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को उन्होंने दत्तक पुत्री के रूप में स्वीकार किया। राजकुमारी कौल की मृत्यु वर्ष 2014 में हुई थी। अटल जी के साथ नमिता और उनके पति रंजन भट्टाचार्य रहते थे।
अटल जी को अपने परिवार से बहुत लगाव था वह परिवार के सभी भतीजे-भतीजीयो, भांजे-भांजियों, नाती-पोतों को बहुत प्यार करते है थे उनके पढ़ाई के बारे में चिंता रखना, भतीजीयो के विवाह में परिवार का फर्ज अदा करना साथ ही किसी भी सदस्य के बीमार होने पर उन्हें उचित इलाज के लिए अपने पास दिल्ली बुला लेना। अमूमन सभी नाती-पोतों को वे नाम से पुकारते थे उन्हें विशेष तौर पर परिवार की सबसे छोटी बिटिया माला वाजपेयी से स्नेह था दोनों में चाचा भतीजी के साथ-साथ दोस्तों जैसा व्यवहार था ताँगा में बैठकर फिल्म देखने जाना हो या ग्वालियर, दिल्ली में व्यंजनों के चटखारे लेना हो हमेशा परिवार के साथ जाने में पसंद करते थे ।
अटल बिहारी वाजपेयी जी की प्रारंभिक शिक्षा बड़नगर के गोरखी विद्यालय से पूरी हुई। इस विद्यालय में अटल जी ने 8वीं तक की शिक्षा प्राप्त की। उन्हें एक अच्छे वक्ता के रूप में इसी स्कूल से पहचान मिली थी। जब वे कक्षा 5 में पढ़ते थे। तो पाठयक्रम गतिविधियों के चलते उन्होंने पहली बार भाषण दिया था, लेकिन बड़नगर में उच्च शिक्षा व्यवस्था न होने के कारण उन्हें ग्वालियर जाना पड़ा। उनका नामांकन विक्टोरिया स्कूल में हुआ और नौवी कक्षा से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई इसी स्कूल में की। इंटरमीडिएट करने के बाद अटल जी ने श्विक्टोरिया कॉलेजश् में स्नातक स्तर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रवेश लिया। स्नातक स्तर की शिक्षा के लिए उन्होंने तीनों विषय भाषा पर आधारित लिए जो संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी थे। अटल जी की साहित्यिक प्रकृति थी, जिससे वह तीनों भाषाओं के प्रति आकृष्ट हुए। कॉलेज जीवन में ही उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। शुरूआत में वे छात्र संगठन से जुड़े। नारायण राव ने इन्हें काफी प्रभावित किया, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख कार्यकर्ता थे। ग्वालियर में रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शाखा प्रभारी के रूप में अपने दायित्वों की पूर्ति की। कॉलेज जीवन में उन्होंने कविताओं की रचना करना शुरू कर दिया था। इनकी साहित्यिक अभिरुचि उसी समय काफी परवान चढ़ी। उनके कॉलेज में अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलनों का भी आयोजन होता था। इस कारण से कविता की गहराई समझने में उन्हें काफी मदद मिली। 1943 में वाजपेयी जी कॉलेज यूनियन के सचिव रहे और 1944 में उपाध्यक्ष भी बने।
पुस्तक में इसके बाद अटल जी का राजनीतिक जीवन, कार्यकाल, प्रमुख रचनाओं के नाम, अन्य महत्वपूर्ण कार्य, उनका कवित्व पक्ष, पुरस्कार आदि की भी संक्षेप में जानकारी दी गई है। अटल जी के संबंध में उनके निकटतम रहे लालकृष्ण आडवाणी के रोचक संस्मरण दिए गए हैं। जिसका एक अंश इस प्रकार है-‘‘ ‘‘मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मेरी अटल जी से मित्रता 65 साल से थी। अटल जी भोजन बहुत अच्छा पकाते थे, वे चाहे खिचड़ी ही क्यों ना हो। मैंने अटल जी से बहुत कुछ पाया है। अटल जी की गैरमौजूदगी से मुझे बहुत दुख हो रहा। एक किस्सा था अटल जी पहली बार सांसद बने थे। भाजपा नेता जगदीश प्रसाद माथुर और अटलजी दोनों एक साथ चांदनी चैक में रहते थे। पैदल ही संसद जाते-आते थे। छह महीने बाद अटल जी ने रिक्शे से चलने को कहा तो माथुर जी को आश्चर्य हुआ। उस दिन उन्हें बतौर सांसद छह महीने की तनख्वाह एक साथ मिली थी। माथुर जी के शब्दों में यही हमारी ऐश थी।’’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, अमित शाह गृहमंत्री भारत सरकार, राजनाथसिंह केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार, योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश, अजय बिसारिया आई.एफ.एस. निजी सचिव प्रधानमंत्री 1999-2004, आनंदीबेन पटेल राज्यपाल उत्तरप्रदेश, मंगुभाई पटेल राज्यपाल मध्यप्रदेश, गुलाबचन्द कटारिया राज्यपाल असम, गुलाम नबी आजाद भूतपूर्व विपक्ष नेता राज्य सभा, कर्ण सिंह राज्यसभा पूर्व सदस्य भारतयी राजनेता, लेखक, शिवराजसिंह चैहान मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश, आरिफ मोहम्मद खां राज्यपाल केरल, शत्रुघ्न सिन्हा पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं अभिनेता, सरयू राय सदस्य झारखंड विधानसभा जमशेदपुर पूर्व, कबिन्द्र पुरुकायस्थ पूर्व मंत्री  भारत सरकार, स्वामी चिदानन्द सरस्वती अध्यक्ष परमार्थ निकेतन ऋषिकेश, डॉ. फारूख अब्दुला संसद सदस्य लोक सभा, अमजद अली खान पदम् भूषण प्रसिद्ध सरोद वादक, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी रिटा. डिप्टी जनरल, आल इण्डिया रेडियो, रेखा प्रमोद महाजन मंुबई, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र प्रख्यात कवि एवं गीतकार, शंकर लालवानी संसद सदस्य लोक सभा, इन्दौर (म.प्र.), पथाज फेनानी जोगलेकर पद्मश्री शास्त्रीय गायिका, राज बब्बर फिल्म अभिनेता, सोनल मान सिंह नृत्यांगना, शाहरुख खान फिल्म अभिनेता, सत्यनारायण सत्तन राष्ट्रीय कवि, अरुण कुमार जैन सराफ, डॉ. विन्देश्वर पाठक संस्थापक सुलभ स्वच्छा आन्दोलन, दलपत सुराणा वरिष्ठ राजनेता राजस्थान, कमलेश भारतीय पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रन्थ अकादमी, गोपालदास नीरज पद्मभूषण, शरद यादव जनता दल (यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, नानाजी देशमुख आदि के संस्मरण तथा टिप्पणियां संकलित की गई हैं। पस्तक के अंत में ‘‘अटल वचन’’ शीर्षक से अटल बिहारी वाजपेयीजी के अनमोल वचन एवं चुनिंदा भाषणों के अंश दिए गए हैं।
अटल जी का कवित्व पक्ष भी अत्यंत लोकप्रिय रहा अतः बीच-बीच में उनकी कविताएं सहेजी गई हैं। पुस्तक में कई दुर्लभ एवं आत्मीय तस्वीरें हैं जैसे प्रमोद महाजन के साथ ठहाके लगाते हुए, पं. दीनदयाल उपाध्याय, साईं बाबा, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाला साहेब ठाकरे आदि के साथ की तस्वीरें।
‘‘सदा अटल’’ ऐसी पुस्तक है जो स्मृतियों के गलियारे से गुज़रती है तथा पाठकवर्ग की स्मृतियों में अपनी छाप छोड़ जाने में पूर्णतया सक्षम है। सामग्री की संकलनकर्ता पूर्वा मिश्रा तिवारी तथा संपादक अभिषेक तिवारी का श्रम पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर स्पष्ट दिखाई देता है। इस पुस्तक को तैयार कर के दोनों ने न केवल इतिहास को सहेजा है अपितु एक आदर्श राजनीतिज्ञ के व्यक्तित्व के उन पहलुओं को भी प्रस्तुत किया है जिनके बारे में उनके परिजन ही बता सकते हैं। अतः इस पुस्तक को रोचक ही नहीं, उपादेयता में भी श्रेष्ठ कहा जा सकता है। मुखपृष्ठ आकर्षक है जिस पर सदा और अटल दोनों भाइयों की तस्वीरें प्रकाशित की गई हैं। मुद्रण साफ-सुथरा और आकर्षक है।      
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