Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, September 21, 2023

बतकाव बिन्ना की | इनको पेट गणेशजी के पेट से बड़ो कहानो | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"इनको पेट गणेशजी के पेट से बड़ो कहानो" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
------------------------
बतकाव बिन्ना की      
इनको पेट गणेशजी के पेट से बड़ो कहानो
 - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

‘‘का सोच फिकर में डूबी हो बिन्ना?’’ मोय देखत साथ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मैं जे सोच रई के पंडाल सज गए। गणपति बिराज गए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, सो ईमें सोचबे को का? जे तो हर साल होत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘मनो कित्तों अच्छो लगत आए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ! अच्छो तो लगत आए, मनो काय तुम टरका रईं औ मोय असल बात नई बता रईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोनऊं असल-वसल बात नइयां।’’
‘‘कैसे नइयां? का हम तुमें जानत नइयां। तुमाए माथे पे लकीरें देख के हम जान जात आएं के तुमें कोनऊं सोच मे हो।’’ भैयाजी बोले। ‘‘सो बताओ के का सोच रईं?’’ भैयाजी ने फेर के पूछी।
‘‘मैं जे सोच रई भैयाजी के जे जो अपने इते जित्ते बी भ्रष्टाचारी आएं इनको पेट सो मानो गणेशजी के पेट से बड़ो कहानो।’’ मैंने कई।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे के बेचारे गणेशजी सो लडडुअन के प्रेमी ठैरे, सो लड्डू खाए से उनको पेट फट गओ रओ, मनो इते तो जे भ्रष्टाचारी हरें खात जात-खात जात, औ डकार बी नईं लेत। पेट फटबे की तो छोड़ो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, बेई हराम के रुपैया से अपने घरे जिम बना के पेट कम कर लेत आएं।’’ भैयाजी हंस के बोले। फेर पूछन लगे,‘‘मनो जे गणेशजी के पेट फटबे की किसां कैसी आए?’’
‘‘आप खों नई पतो?’’ मैंने पूछी।
‘‘नईं! हो सकत के कभऊं लोहरे में सुनी होय, सो अब याद कोन आए।’’
‘‘चलो आप के लाने सुनाए दे रई गणेशजी की कथा। कछू पुण्य सोई मिल जैहे!’’ मैंने हंस के कई औ फेर गणेशजी की कथा सुनानी शुरू करी।
एक दार का भओ के गणेशजी एक गांव गए। उते कई जांगा पूजा हो रई हती औ सबई जांगा लड्डुअन को भोग लगाओ जा रओ हतो। अपने गणेशजी ठैरे लड्डुन के प्रेमी। उन्ने सबई जांगा के लडुआ जीम लए। एक तो बड़ो सो पेट, औ ऊंमें भर गए मुतके लडुआ। अब उनसे चलो नईं जा रओ हतो। ऊपर आसमान पे से चन्दा उने देख रओ हतो। ऊको गणेशजी की दसा देख के खूबई मजो आ रओ हतो। ऊंने सोची कि गणेशजी को तनक परेसान करो जाए। सो चन्द्रमा ने उने सलाह दई के जे जो तुमाए पेट के लड़ुआ तुमें परेसान कर रए, उनके लाने ऐसो करो के घड़ा भर दूध पी लेओ, इसे बे लड़ुआ पच जैहें। बिचारे गणेशजी आ गए ऊके कहे में। बे एक घरे पौंचे, उते रखो हतो घड़ा भर दूध। उन्ने घड़ा उठाओ औ पी गए सबरो दूध। फेर का हती, उनकी दसा औ बिगर गई।
गणेशजी ने सोची के कैसऊं बी घरो पौंचो जाए। उते मताई कछू दवा दैंहे सो आराम मिलहे। सो, बे लुढ़कत-पुढ़कत अपने घरे खों चल परे। जब चलो ने गओ सो अपनी सवारी चूहा पे बैठ के चल परे। अबे कछू दूर पौंचे हते के उते रस्ता में एक सांप कढ़ आओ। चूहा ने सांप खों देखी सो बो डरा गओ। ऊने छिपबे के लाने लगा दई दौड़। जा हड़बड़ में गणेशजी उतई ढुलक गए। औ उनको पेट फट गओ। मनो पेट के भीतरे के सबई लड़ुआ बाहरे आ गिरे। चन्दा ने गणेशजी की जे दसा देखी सो ऊको मनो हंसी को दौरा सो पर गओ। बा उते ऊंपरे से ताली बजा-बजा के हंसन लगो।
इत्ते में गणेशजी की मताई पार्वती उने ढूंढत-ढूंढत उते आ पौंची। जो उन्ने अपने बालक की दसा देखी, सो बे घबड़ा गईं। उन्ने बोई सांप पकरो और बोई से अपने बालक को पेट सिल दओ। फेर उनको ध्यान गओ के ऊपरे टंगो चन्दा ठिठिया रओ आए। खीं-खीं करत भओ हंसो जा रओ। अब बे कोनऊं ऐसी-वेसी मताई सो ठैरी ने तीं, के गम्म खा जातीं। उने चन्दा पे आओ गुस्सा औ उन्ने शाप दे दओ के ‘‘जे जो तुम हमाए बालक की दसा पे हंस रए आओ सो तुमाई दसा ईसे बुरी हुइए। तुम दुबरे होत-होत मर जैहो।’’
जे सुन के चन्दा को समझ परी के ऊंसे का गलती हो गई आए? बा रोन लगो के हमें माफ कर देओ। अब हम कोनऊं पे कभऊं ने हंसहें। कोनऊं खों तंग ने कर हें। पर पार्वती मैंया सो हती गुस्से में। उन्ने एक ने सुनी। औ बे अपने बालक गणेश जी खों ले के घरे चल परीं। चंदा हतो सो पार्वती मैया के शाप से पतरो होन लगो। सो बा भाग के ब्रह्मा, बिष्णु, महेश तीनों के ऐंगर पौंचो औ रोन लगो के मोय बचा लेओ। तीनों देवता ने कही के हम एक माता के शाप खों खतम नईं कर सकत आएं। माता के आगे हमाई बी कछू नईं चलत। तुम तो जा के माता के पांव पकर लेओ औ तभई छोड़ियो जब बे मान जाएं। पतरो होत जा रओ चंदा भगत-भगत पार्वती मैया के लिंगे पौंचो।
‘‘हमें माफी दे देओ! हमसे गल्ती हो गई। जो आप हमें माफ ने करहो सो हम इतई आप के पांव पकरे-पकरे मर जेबी औ आप खों पाप परहे के आपने दया की भीख मांगबे वारे खों भीख ने दई औ बो मर गओ।’’ चंदा कैन लगो।
पार्वती मैॅया ने सोची के जो ईको माफ ने करो सो जे मोरो पांव ने छोड़हे। औ इतई मर गओ सो सबरे नांव धराहें। सो उन्ने चन्दा खों कंधा पकर के उठाओ औ बोलीं के ‘‘सुनो! तुमने भौत बड़ो पाप करो आए। तुमने हमाए बालक खों दूध पीबे की गलत सलाह दई। जीसे ऊंको पेट औरई फूल गओ औ तनकई में फट परो। बो मर सकत्तो। सो तुमें ईकी सजा सो मिलहे ई। सजा से तुम नईं बच सकत। बस, हम जेई कर सकत आएं के तुमाई सजा कम कर दैंबे।’’
‘‘हऔ, हमें मजूर आए। आप जो सजा दैंहों मोय कबूल आए, बस मोय मरबे से बचा लेओ।’’ चंदा रोत भओ बोलो।
‘‘सो सुनो! तुम पंद्रा दिना दूबरे हुइयो औ पंद्रा दिनां मुटाहो। हमेसा एक से ने रै पाहो। मजूंर होय सो बोलो ने तो तुमाओ मरबो तै आए।’’ पार्वती मैया बोलीं।
‘‘हऔ हमें मंजूर आए।’’ चंदा ने जे सजा मान लई। मरबे से तो अच्छी हती।
‘‘तुम जब दूबरे होत-होत न दिखाहो, सो मावस परहे औ मावस के बाद फेर तुम मुटाबो शुरू करहो। चलो, अब हमाएं पांव छोड़ो औ अपने घरे जाओ।’’ पार्वती मैया बोलीं।
चंदा ने मैया के पांव छोड़े औ प्रान बचात भओ अपने घरे खों भागो।
जे किसां सुन के भैयाजी बोल परे,‘‘सो जे आए गणेश जी के पेट फटबे की किसां।’’
‘‘हऔ! जोन दिनां उनको पेट फटो रओ, ऊं दिनां भादों की चतुर्थी रई। जेई से कओ जात आए के जो भादों की चतुर्थी को चंदा देखत आए ऊंको दोस लगत आए। कृष्णजी ने चौथ को चंदा देख लओ रओ, सो उनको सोई झूठी चोरी को इलजाम लग गओ रओ।’’ मैंने भैयाजी खों बताई।
‘‘बा कैसी किसां आएं?’’ भैयाजी ने पूछीं।
‘‘अब सबरी किसां आजई नईं सुना रई। कोनऊं और दिनां सुनाबी। मैं सो जे कै रई हती के जे जो जनता को पइसा डकार जात आएं, ने तो उनको पेट फटत आए औ ने उने कोनऊं दोस लगत आए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘मनो, उतई कोनऊं एकादई रुपइया नाए से मांए कर देवे सो ऊको तुरतई सजा दे दई जात आए। बे चोर हरें इते के पइसा खा-खुआ के बिदेस भाग गए, उने अबे लो देस में ने लौटा पाए। औ जो अपन ओरें कोनऊं किस्त टेम पे ने भर पाएं सो पैले सरचार्ज ठोंक दओ जात आए, औ ऊंके बाद तो कओ कुर्की करा दई जाए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जेई तो मैं कै रई के जे बड़े मगरमच्छ तला की मछरिया बी खा जात आएं औ फेर तला के किनारे धूप सेंकत ऐसे परे रैत आएं के मनो उन्ने तो कभऊं मछरिया को मों ने देखो होय। बाकी चोरी सो चोरी होत आए, चाए एक रुपइया की होय, चाय एक हजार करोड़ रुपैया की।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘ठैरो-ठैरो! जे तुम कित्ते की बोल गईं? एक हजार ... औ...?’’भैयाजी ने पूछी।
‘‘एक हजार करोड़ की।’’ मैंने दोहराई।
‘‘तुमें पतो के एक हजार करोड़ में कित्ते सुन्न होत आएं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मोय कां से पतो हुइए? मैंने करोड़ कभऊं नईं देखे, सो एक हजार करोड़ कां से पतो हुइए?’’ मैंने कई।
‘‘सो तुमें जे कां से सूझी?’’
‘‘जो घोटालन की खबरें पढ़त रओ, सो ईसे बड़े आंकड़े पढ़बे खों मिल जैंहें। बे ओरें सो पइसा जीम रए औ अपन आंकड़े गिनत रैत आएं।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ जे तो आए। मनो अपनो जी छोटो ने करो। काय से के तुमाए सोचे से कछू ने सुधरे। तुम तो गणपति बप्पा की जै बोलो औ खुस रओ।’’ भैयाजी बोले।
सो मैंने सोई गणपति बप्पा की जै करी औ झांकी देखबे निकर परी। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
 -----------------------------   
#बतकावबिन्नाकी #डॉसुश्रीशरदसिंह #बुंदेली #बुंदेलखंड #बतकाव #BatkavBinnaKi #Bundeli #DrMissSharadSingh #Batkav
#Bundelkhand  #बुंदेलीव्यंग्य

No comments:

Post a Comment