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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, October 3, 2023

पुस्तक समीक्षा | गीत विधा के भविष्य के प्रति आश्वस्त करता युवा स्वर | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 03.10.2023 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई युवा कवि डॉ नलिन जैन के काव्य संग्रह "नलिन गीतिका" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा      
गीत विधा के भविष्य के प्रति आश्वस्त करता युवा स्वर
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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काव्य संग्रह - नलिन गीतिका
कवि       - नलिन जैन
प्रकाशक  - एन.डी. पब्लिकेशन, नई दिल्ली
मूल्य       - 200/-
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हाल ही में बुंदेली के एक काव्य संग्रह के लोकापर्ण समारोह के दौरान डाॅ. हरीसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय में हिन्दी अनुवादक के पद पर कार्यरत साहित्यकार डाॅ अभिषेक ऋषि ने यह चिन्ता व्यक्त की कि ‘‘हिन्दी साहित्य के वर्तमान परिदृश्य से गीत मानो हटता जा रहा है। गीत विधा के प्रति रुझान कम होना चिंताजनक है। अब मंचों पर भी निराला अथवा नीरज जैसे कवि दिखाई नहीं देते हैं।’’
डाॅ. अभिषेक ऋषि की चिन्ता स्वाभाविक है। वर्तमान में हिन्दी साहित्य जगत में गीत का वह प्रखर स्वर सुनाई नई दे रहा है जो कुछ दशक पहले तक था। छांदासिक विधा में गीत का स्थान ग़ज़ल ने ले लिया है। दोहे भी लिखे जा रहे हैं, पर अमूमन वे भी गीत जैसी दशा से ही गुज़र रहे हैं। गीत के प्रति संकट कई दशक पहले करवट लेने लगा था। गीत के प्रति संकट को देख कर ही उसमें नूतनता लाते हुए नवगीत का आगमन हुआ था। छायावाद से यथार्थवाद की ओर गीत के कहन को लाने में लिए नवगीत की महती भूमिका रही है किन्तु कुछ वर्षों बाद नवगीत में भी शिथिलता दिखाई देने लगी। नई कविता और ग़ज़ल के अपरिपक्व रुझान ने गीत विधा को पीछे धकेल दिया। यहां ‘‘अपरिपक्व’’ शब्द का प्रयोग मैंने इसलिए किया है क्योंकि जितनी संख्या में आज हिन्दी ग़ज़ल लिखी जा रही है, उतनी संख्या हिन्दी ग़ज़ल के विधान को समझ कर लिखने वालों की नहीं हैं। यही दशा नई कविता की है। नई कविता में भी एक प्रवाह एवं रागात्मकता होती है जो वर्तमान की नई कविताओं कम ही दिखाई देती है। गद्य को तोड़ कर कई पंक्तियों में ढाल देना नई कविता नहीं होती है। बहरहाल, स्थिति चिन्ताजनक है किन्तु निराशजनक नहीं। आज भी कई गीतकार गीत एवं नवगीत के प्रति प्रतिबद्धता से डटे हुए हैं। जैसे डाॅ. मनोज जैन अपने आॅनलाईन समूह ‘‘वागर्थ’’ के माध्यम से गीत एवं नवगीत को बराबर प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनके समूह से जुड़ कर अनेक गीत एवं नवगीतकार सतत गीतसृजन कर रहे हैं। गीत के संदर्भ में सागर का परिदृश्य अपनी समृद्धि की घोषणा कर सकता है। सागर शहर में ही डाॅ. श्याम मनोहर सीरोठिया निरन्तर गीत लिख रहे हैं। इससे पूर्व स्व. शिव कुमार श्रीवास्तव, स्व. दिनकर राव दिनकर आदि गीतसृजन में अपनी पहचान बनाई थी। सागर में ही स्व. निर्मल चंद ‘‘निर्मल’’ एक समर्पित गीतकार के रूप में जाने जाते रहे हैं। अब कवि स्व. ‘‘निर्मल’’ के पुत्र नलिन जैन गीत विधा को अपना कर साहित्य सेवा के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देते हैं।
‘‘नलिन गीतिका’’ युवा कवि नलिन जैन का प्रथम काव्य संग्रह है। गीत की समझ उन्होंने अपने पिता स्व. निर्मल चंद ‘‘निर्मल’’ से विरासत में पाई है। एम. एस. सी. गणित, एम.ए. हिंदी, बीएएमएस भारतीय विद्यापीठ, डीएमएलटी. कर चुके नलिन जैन पैथोलॉजी सेंटर तथा थोक दवा विक्रय के निर्मल मेडिकल स्टोर्स का संचालन करते हैं। किन्तु साहित्य में रुझान होने के कारण अपने व्यवसाय के साथ ही वे पिछले पच्चीस बर्षों से साहित्यिक कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं। रेडियो पर कार्यक्रम देना, कवि सम्मेलन एवं कवि गोष्ठियों में प्रस्तुति तथा संचालन करना उन्हें पसंद है। हिंदी साहित्य सम्मेलन इकाई सागर, प्रगतिशील लेखक संघ सागर, लेखक संघ सागर, बुंदेलखंड हि.सा.स.वि.मंच सागर, तुलसी साहित्य अकादमी सागर, हिंदी कर्दू मंजलिस सागर आदि संस्थाओं में सदस्यता तथा सक्रिय भागीदारी है। आॅन-लाईन साप्ताहिक गोष्ठी संचालन कोरोना काल के समय से अभी भी जारी है। इसी दौरान वे गीत रचना भी करते रहते हैं।
नलिन जैन के प्रथम काव्य संग्रह ‘‘नलिन गीतिका’’ में कुल 93 रचनाओं में दोहे भी हैं किन्तु इस संग्रह का मुख्य स्वर गीत का है। नलिन जैन के गीतों को पढ़ कर यह पता चलता है कि वे गीत सृजन के प्रति स्वयं को अधिक सुविधाजनक स्थिति में पाते हैं, क्यों कि उनके गीतों स्वाभाविक प्रवाह है, मधुरता है तथा शब्दों का सटीक चयन है। उन्होंने अपने संग्रह के आरम्भ में ही गीत के रूप में अपना परिचय दिया है -
नाम मेरा ‘‘नलिन’’ मैं कमल बन खिला
ताल सागर से उभरा मैं जल बिम्ब हूँ
जन्मभूमि मेरी पद्माकर का नगर
कवि निर्मल के गीतों का प्रतिबिम्ब हूँ।
काव्य के पाठ्यक्रम में मिला इत्र जो
रूद्र, शिव, श्याम सुंदर से सीखे जतन
मिले अध्ययन मनन से सजी प्रीत जो
गीत की उस बुनावट का पैबंद हूँ।
आपके सामने हूँ रचित काव्य संग
चाहूँ सुनकर सराहें मेरे गीत को
छंद कविता तराने लिखूँ प्रीत के
इस खिलते चमन का मैं मकरंद हूँ।

स्वयं को ‘‘गीत की बुनावट का पैबंद’’ कहना कवि की सहजता का परिचायक है। साथ ही यह प्रथम गीत स्पष्ट कर देता है कि कवि को अपने मातृनगर के प्रति अपार लगाव है। ‘‘सागर- चकराघाट’’ शीर्षक गीत में कवि नलिन ने सागर नगर की भौगोलिक एवं ऐतिहासिक विशेषताओं को इस प्रकार शब्दबद्ध किया है-
लाखा बंजारे की बस्ती, विंध्य श्रेणियों के ऊपर
स्वर्ग भान के उपक्रम खिलते, हरिसिंह की इस भू पर
पूरब से उजियारा होता, मन प्रसन्न हो जाता है
कोकिल का स्वर उमड़ घुमड़कर, जीवन हो हर्षाता है।
काव्य छंद रस अलंकार से, पद्माकर जागृत होते
वृंदावन गोकुल से मंदिर, देव कृष्ण दर्शन होते
चक्रधारि का घाट मनोरम, दिल में बसती जगदम्बा
कातक गीत लोरियाँ मधुरिम, आयें जवारों संग अंबा।

स्वयं को लघुता में रखना तथा अपनी मातृभूमि के प्रति अनुराग रखना - ये दोनों तथ्य एक ऐसे कवि की ओर संकेत करते हैं जिसने भले ही अभी चलना शुरू किया हो किन्तु उसे पता है कि उसका गन्तव्य कहां हैं तथा उसे कितना श्रम करना है? डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया, टीकाराम त्रिपाठी तथा शैलेन्द्र जैन विधायक सागर नगर ने पुस्तक की भूमिका लिखी है साथ ही उमाकान्त मिश्र, अध्यक्ष, श्यामलम  ने भूमिका लिखते  हुए कवि नलिन की सृजनात्मकता पर सटीक टिप्पणी की है- ‘‘नलिन जी ने सरस्वती वाचनालय में जब सार्वजनिक रूप से पहली बार   काव्य-पाठ किया तो संतोष हुआ कि सागर के साहित्य संसार में एक और प्रतिभाशाली नवकवि की प्रविष्टि हो रही है। नलिन भाई की रचनाएँ देखने-सुनने से स्पष्ट है कि वे दरअसल गीत रचते हैं। उनका सस्वर गायन कार्यक्रमों में अपनी सक्षम उपस्थिति दर्ज करने में सफल होता है। सागर की समस्त साहित्यिक संस्थाओं के कार्यक्रमों का व्यवस्थित और सुचारू संचालन करने, आयोजनों में सहभागिता कर अपनी भूमिका का निर्वहन कुशलतापूर्वक करने का गुण उनके व्यक्तित्व में मौजूद है।’’
जीवन से निरन्तर सीखते रहने की ललक ही एक रचनाकार को एक सुनहरा भविष्य देती है। इसी संदर्भ में नलिन जैन की कविता ‘‘जीवन में शिक्षा’’ को उद्धृत किया जाना समीचीन होगा-
जीवन जीना एक कला है, सीख जाये वरदान है
यह संसार हमारा होगा, कण-कण में गुणगान है।
जाने हम शिक्षाशास्त्र को, यह बुद्धि को बल देता
सहज बनाता कार्य-शक्ति, एक सुनहरा कल देता
दूजे मन पहुँचे विचार तो हो जाता यशगान है।

कवि नलिन जैन के प्रकृति गीत बेहद सुंदर हैं। उनमें छायावादी आभा देखी जा सकती है। वसंत, फागुन आदि पर उन्होंने कई गीत लिखे हैं जिनमें से एक ‘‘बसंत का गीत’’ में गीत का वासंतिक आह्लाद गीतात्मक सौंदर्य के साथ प्रकट हुआ है-
मैं मधुप बनकर तुम्हारे पास आऊँ
गाऊँ मैं अब प्रीत के मीठे तराने।
भ्रमर हूँ मधुमास को मीठा बनाकर
नेह के सौंदर्य को तुम में जगाने।

नलिन जैन के गीतों में विषय की विविधता है। वे श्रृंगारिक संवाद रचते हुए ‘‘आइने में चाँद’’ देखते हैं -
आईने में जो उभरा खिला चाँद है
दिल में उठते वहम को ये अरमान है
तुम मिलो न मिलो यह अलग बात है
तुम मेहरबां बनो दिल का अरमान है।

तो वहीं, श्रीराम, महावीर स्वामी तथा आचार्य विद्यासागर का स्मरण करते हुए गीत रचते हैं। किन्तु इसका आशय यह नहीं है कि वर्तमान समस्याओं एवं विसंगतियों पर उनका ध्यान नहीं है। उनका एक गीत मोबाईल के अंधाधुंध प्रयोग पर ही है तथा धैर्य के साथ मोबाईल को उपयोग में लाने की सलाह देता है। ‘‘मोबाइल और मन’’ शीर्षक के गीत की कुछ पंक्तियां देखिए-
दैनिक कार्य करें हम पहले,फिर मोबाइल को देखें
मन की भटकन सोचें समझें,वर्तमान के ये लेखे ।
दैनिक क्रम तिरोहित करके, व्यर्थ न हम आलाप भरें
जो जिस क्रम आगे जाता है, उसका वैसा साज वरे
अपने मन को न झुलसाये, परिदृश्यों के झोंके से ।

   वस्तुतः काव्य संग्रह ‘‘नलिन गीतिका’’ एक युवा कवि नलिन जैन का गीत विधा के प्रति आश्वस्त करता युवा स्वर है। यदि इसी प्रकार युवा रचनाकारों का गीत विधा के प्रति लगाव रहा तो गीत विधा एक बार फिर साहित्य के सृजन-आकाश पर अपनी पताका फहराती दिखाई देगी।
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