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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, November 9, 2023

बतकाव बिन्ना की | पीपर के भूत पे भरोसो ने करियो | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | बुंदेली व्यंग्य | प्रवीण प्रभात

"पीपर के भूत पे भरोसो ने करियो" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
पीपर के भूत पे भरोसो ने करियो
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
मैं जबे लोहरी हती तो मोरे घर के पांछू एक पीपर को पुरानो पेड़ रओ। बा पेड़ मनो रओ तो बाउंड्री वाल के ऊ तरफी, बाकी ऊकी छाया मोरे घर के पांछू वारे आंगन में सोई परत्ती। ऊ पेड़ के नेचे एक कुआ रओ। पुरानो कुआ। ऊ लोहरी उम्मर में मोय ऊ पेड़ से डर लगत्तो। सांची कओं तो पेड़ से नईं, ऊ पेड़ पे से दुफैरी में अजीब सी अवाजें आत्तीं। सो मैं ऊ पीपर के पेड़ के लिगें जाने से डरात्ती। एक दफे मोरी मताई मने नन्ना जू ने ध्यान दओ के कछू तो गड़बड़ आए। जा मोड़ी पीपर के पेड़ से काय डरा रई? नन्ना जू ने मोसे पूछी। मोए बताए में डर लग रओ हतो। सो उन्ने मोरी भौतई हिम्मत बंधाई, तब कऊं जा के मैंने अपनो मों खोंलो। मैंने उने बताई के बा पीपर के पेड़ पे कोनऊं भूत रैत आए औ बा दुफैरी को कछू-कछू बोलत आए। नन्ना जू ने मोरी बात सुनी सो उने भौतई अचरज भओ। काय से उन्ने हम ओरन को हमेसा जेई समझाओ रओ के भूत-वूत कछू नईं होत। फेर बी मैं कै रई हती के पीपर के पेड़ पे भूत रैत आए।
दूसरे दिनां दुफैरी को नन्ना जू ने पीपर के पेड़ पे ध्यान दओ औ बा आवाजें सुनीं। आवाजें सुन के बे तो हंसन लगीं। मोय कछू समझ में ने आई के नन्ना जू काय हंस रईं?
‘‘चलो तुमें भूत दिखाएं।’’ कैत भई बे मोरी बांह पकर के पीपर के तरे ले गईं। मोरे तो डर के मारे प्रान सुट्ट-पुट्ट हते। तभई नन्ना जू ने पेड़ की तरफी उंगरी उठाई औ बोलीं,‘‘बा, उते पे देखो, ऊं डगरिया पे, बा बैठो तुमाओ पीपर वारो भूत।’’
मोरी सो ऊपरे देखबे की हिम्मत ने पर रई हती। मनो अब नन्ना जू कै रई हतीं, सो देखने तो पड़तई। मैंने मुंडी उठा के ऊ तरफी देखी जे तरफी नन्ना जू ने इसारा करो रओ। रामधई! मोय खुदई यकीन नईं भओ के उते कोनऊं भूत-वूत नोईं हते, उते तो दो ठईयां कबूतर बैठे हते। बेई गुटरगूं कर रए हते। मैंने कभऊं सोची ने हती के पीपर पे भूत नोंई, कबूतर बैठे हुइएं।
ऊं दिनां से पीपर वारे भूत को डर मोरे मन से निकर गओ। बा सब सो ठीक, मनो नन्ना जू ने ऊं टेम पे मोए समझात भई एक पते की बात कई रई। उन्ने कई रई के,‘‘कोनऊं अवाजें सुनके भर कछू बी नईं सोच लेने चाइए। काय से के आवाजें कई दफा कन्फयूजन पैदा कर देत आएं। सो पैले तनक देख, समझ लेओ के बे आवाजे कोन की आएं, कैसी आएं, डरबे जोग आएं के ने आएं? तब ऊके बारे में  कछू विचार बनाओ।’’
बा दिन, के आज को दिन, मैंने अवाज भर सुन के विचार बनाबो छोड़ दओ।
आप ओरन में से कोऊं-कोऊं को याद होय शायद के जब शहर की टाॅकीज में कोनऊं नईं फिलम लगत्ती तो रिक्शा पे एक चोंगा बाजा मने लाउडस्पीकर ले के शहर भर में एक आदमी घूमत्तो। ऊंके रिक्शा पे ऊं फिलम के तीन तरफी तीन ठईयां पोस्टर बंधे रैत्ते। जा बी ओई टेम की बात आए जब मैं लोहरी हती। प्रायमरी में पढ़त्ती। मनो बा पीपर के भूत वारी घटना के बाद से मोय लगन लगो के बा जो रिक्शा पे फिलम की बड़वारी करत आए, बा सोई फंकाई देत हुइए। को जाने फिलम बा टाईप की आए के नईं, जोन टाईप की बा एनाउंस कर रओ। बाकी बात की बात में बाता देओं के जोन से एनाउंस बोलत नई बनत्तो, बे एलाउंस कैत्ते।
बाकी लड़कोरी में सीखी गईं मुतकी बातें कभऊं नईं भूलत आएं। ने मानो सो देख लेओ के अपन सबई ने लिखबो, पढ़बो लड़कोरई में सीखो, औ बोई के दम पे आज अपन ओरें कम्प्यूटर औ इंटरनेट चला रए। मने जो कछू लड़कोरी में अपन सीखत आएं, बा पूरी जिनगी में काम आउत आए। अब आप ओरें सोच रए हुइए के आज भैयाजी औ भौजी नोईं सो जे बिन्ना अपनी-अपनी पैले जा रईं। सो चलो मैं बता दे रई के बा पीपर वारो भूत मोय काय याद आओ।
का है के आजकाल कऊं फोन पे, तो कऊं लाउडस्पीकर पे, तो कऊं गाना-माना बजा के, तो कऊं टीवी पे पोल-मोल करा के सबरी पार्टियां चुनाव के लाने खूबई हल्ला-गुल्ला कर रईं। किसम-किसम की अवाजें, किसम-किसम की बातकाव। अब कोन की कई सांची मानें, औ कोन की कई झूठी? सबरे जेई ठेन देत फिरत आएं के बे जो कै रए सबसे सच कै रै। मनो राजा हरिश्चन्दर की सगी वाली औलाद तो बेई आएं।
औ मजे की बात बताऊं के गांव में होय, चाए शहर में, जोन बी काम भओ ऊंपे सबरे अपने सील-सिक्का ठोंकत फिर रए। जैसे बात करी जाए महिलाओं के लाने पब्लिक एरिया में टायलेट बनाबे की। सो, सबई ने अपनी उपलब्धियन में ऊको जोड़ रखो आए। ऊंपेे मजे की बात जे के जा कोनऊं नई देख रओ के बनवाओ चाए जोन ने होय, मनो अबे तो ऊंके दरवाजा पे ताला परो रैत आए। अब का लुगाइयां दरवाजा के बाहरे बैठ के हल्की हुइएं? आपई ओरें सोचो, का हम झूठी कै रए?
कऊं-कऊं तो जे दसा आए के मनो हाथ में पकरा दई मोमबत्ती औ कैन लगे के ईकी आंच पे दस मिनट में दाल पका देओ। कऊं ऐसो हो सकत आएं? आपई ओरें सोचो! सबई कैत फिर रै के हमने जा करो, हमने बा करो! जो सबई ने सब कछू कर दओ तो इत्ती समस्याएं ससुरी कां से आन टपकीं?      
चलो, अभईं कल्ल की दो किसां आप ओरन खों बता रई। का भओ के कल्ल बे आए उन्ने मोरे गोड़न पे अपनों मूंड़ धर दओ। मोय बड़ो अजीब लगो काय से के ईके पैले उन्ने ऐसो कभऊं नई करो। इत्तई नईं, उन्ने मोरो दाइनो हाथ पकरो औ अपने मूंड़ पे धर लओ औ कैन लगे,‘‘दीदी, आपको आशीर्वाद चाउंने। आपको आशीर्वाद रैहे सो आपको जा भैया चुनाव में जीत जैहे।’’
‘‘हऔ भैया, जुग-जुग जियो! तुमें मुतके वोट मिलें औ तुम चुनाव जीत जाओ!’’ मोय कैनई परो। अब कोनऊं गोड़न पे मूंड़ धर के आशीस मांग रओ होय, सो देनई परहे। अब मैं जा तो नईं कै सकत्ती के ,‘‘चल भग इते से! ईके पैले तो तुमने कभऊं अपनी शकल ने दिखाई औ आज दीदी-दीदी कर रए!’’ मनो जा बात मोसे कई नई गई। जेई तो होत आए अवाज-अवाज को फरक। बे तो झूठ बोलई रै हते औ मोय सोई झूठ बोलने पर रओ तो। का करो जाए, दुआरे पे आए भए को अशीसें ई दई जात आएं, दुत्कारो थोड़ई जात आए।
उनके जाबे के घंटा भर बाद दूसरे आ टपके। उन्ने बी वोई सुर लगाओ के ‘‘दीदी जी अपने जा भैया को खयाल राखियो। ई दफा हमें मौका देवा देओ।’’
‘‘अपने भैया को खयाल काय ने राखबी?’’ मैंने मुस्कात भई कई। मनो मन में जेई कई के बैन हरें अपने सबरे भैया हरों को खयाल राखती आएं। सो मोय सोई तुमाओ बी औ तुमाए से पैले आए, उनको बी खयाल राखने परहे।
‘‘मैंने सो तुमाए लाने पिछली चुनाव में सोई वोट दओ रओ।’’ मैंने इत्ती औ झूठी कै दई। जे बोलबे के पांछू मोरो मकसद जे रओ के उने याद करा दई जाए के पिछली चुनाव के बाद अब ई चुनाव में पूरे पांच बरस में अपनी शकल दिखा रए।
‘हऔ दीदी जी! आपई ओरन की किरपा से तो ऊं टेम पे हमाई जमानत बच गई रई, मने ई दफा ऊकी जमानत जब्त कराने है अपन ओरन खों।’’ उम्मींदवार भैया तनक अकड़ के बोले। फेर ज्यादई जोश में आ के उन्ने बा कै दई जोन खों सुन के मोरो मुण्डा घूम गओ।
‘‘आप फिकर ने करो दीदी जी! ई दफा जो हम जीत जाएं, सो आपको सबरो काम करा दैहें।’’ ऊंने मोसे कई।
‘‘मोरो कोन सो काम भैया?’’ मैंने तुरतई पूछीं। ऊंकी बात सुन के मोरो मुण्डा ठनक गओ।
‘‘सबरो काम!’’ ऊंने फेर के दोहराई।
‘‘सोच लेओ!’’ मैंने ऊको चेतओ।
‘‘हऔ सोच लओ! आप कै के तो देखियो!’’ बा ऊंसई अकड़त भओ बोलो।
‘‘सो अबई से सुन लेओ के तुम इते मोरी काॅलोनी में एक रोप-वे बनवा दइयो।’’ मैंने ऊसे कई।
‘‘का कई? रोप-वे? मगर इते कोन पहड़िया धरी? रोप-वे सो पहड़िया पे बनत आएं।’’ बा चौंकत भओ बोलो।
‘‘सो ऐसो करियो के पैले इते दो पहड़िया बनवइयो औ फेर दोई के बीच रोप-वे बनवा दइयो।’’ मैंने कई।
‘‘हम समझ गए। आप ठिठोली कर रईं!’’ ऊने खिसिया के कई और मोरे दुआरे से आगे सरकन लगो। ऊंके चिल्ला-बिल्ला सोई समझ गए के इते से बढ़ लेबे मेंईं भलाई आए।
सो जो भओ कल्ल। तो, भैया औ बैनों हरों! कही-बतकही की अवाजन के धोके में ने आइयो। पीपर के भूत घांईं अवाजें झूठी निकर सकत आएं। सोच-समझ के अपनो कीमती वोट को बटन दबाइयो। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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