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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, December 29, 2023

शून्यकाल | कैसा रहा महिलाओं के लिए वर्ष 2023? | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

"दैनिक नयादौर" में मेरा कॉलम ...

शून्यकाल
कैसा रहा महिलाओं के लिए वर्ष 2023?       
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                                       
            आधी आबादी मानी जाने वाली महिलाओं के लिए वर्ष 2023 कैसा रहा? कुछ मुद्दे महिलाओं के पक्ष में रहे तो कुछ मुद्दों पर महिलाओं के हित को सियासी बिसात पर मोहरे की तरह उपयोग में लाया गया। कुछ घटनाएं ऐसी भी हुईं जिन्होंने न केवल महिलाओं की सुरक्षा केा लेकर प्रश्न खड़े कर दिए बल्कि समूचे देश को दुनिया के सामने लज्जित कर दिया। सो, दिलचस्प रहेगा यह आकलन करना कि 21 वीं सदी के 23 वें वर्ष में महिलाओं ने क्या खोया और क्या पाया?
.         हर वर्ष आरंभ होता है नई आशाएं ले कर। महिलाएं भी आशा करती है कि नए वर्ष में उनके लिए सब अच्छा रहेगा। उन्हें एक अच्छा, सुरक्षित माहौल मिलेगा। वर्ष 2023 के आरंभ में भी महिलाओं को सब कुछ अच्छे की उम्मींद थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। कुछ बातें जो छिपी हुई थीं, जब सामने आई तो पूरा देश आक्रोश से भर उठा। उनमें से एक थी वह घअना जिसमें देश की कई प्रतिष्ठित महिला पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया और उसके विरुद्ध कड़ा विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने मांग की कि बृजभूषण को उसके पद से बर्खास्त कर दिया जाए और मामले की जांच हो। एक के बाद कई खिलाड़ी जिनमें फोगाट बहनें ओर साक्षी मलिक जैसी खिलाड़ी अपने कैरियर को दंाव पर लगा कर खेल जगत में महिला सम्मान के लिए सामने आईं। यह विरोध पूरे साल भर चलता रहा। सरकार और खेल प्रशासन द्वारा आश्चर्यजनक तटस्थता ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया। इस घटना में एक दुखद पक्ष तब और जुड़ गया जब वर्ष 2023 के साक्षी मलिक ने मीडिया के समक्ष रोते हुए कहा कि वह कुश्ती को अलविदा कह रही हैं। उनके समर्थन में विनेश फोगाट ने ‘खेल रत्न’ और ‘अर्जुन अवार्ड’ पुरस्कार वापस कर दिए। विनेश ने क्षोभ भरे शब्दों में यहां तक कहा कि-‘‘पुरस्कारों से उन्हें घिन आने लगी है।’’

विडम्बना यह रही कि इधर महिला पहलवानों का संघर्ष चलता रहा, उधर आरोपी बृजभूषण शरण सिंह ने नए संसद भवन के उद्घाटन में सिर उठा कर अपनी उपस्थिति दी। उसी दौरान महिला खिलाड़ियों को दिल्ली की सड़कों पर पुलिस द्वारा बाल पकड़कर घसीटा गया। खिलाड़ी भी आखिर इंसान होते हैं। उन्हें भी अपने मान-सम्मान की चिंता होती है। उनकी भी सहन शक्ति की एक सीमा होती है। महिला खिलाड़ियों के समर्थन में पहलवान बजरंग पूनिया और विरेन्दर सिंह ने पद्मश्री लौटाकर कहा कि-‘‘न्याय नहीं मिलने पर यही उनका फैसला है।’’
दूसरी घटना रही मणिपुर की। मणिपुर में हुई हिंसा के बाद वहां पर इंटरनेट बैन कर दिया गया था, ताकि किसी तरह की हिंसा न बढ़े। कुछ समय बाद यानी जुलाई 2023 में इंटरनेट को दोबारा शुरू किया गया, जिसके बाद एक बेहद शर्मनाक वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में दो महिलाओं को नग्न अवस्था में कई पुरुष लेकर उनका जुलूस निकाल रहे थे और उनका वीडियो बनाया जा रहा था। उस वायरल हुए वीडियो से पूरे देश-दुनिया को पता चला कि मणिपुर में महिलाओं पर किस तरह अत्याचार किया जा रहा है। उस वीडियो से देश सकते में आ गया क्योंकि मणिपुर भी तो इसी देश का अटूट हिस्सा है, फिर महिलाओं की रक्षा क्यों नहीं हो सकी? महिला संगठनों और मानवाधिकार आयोग ने मामले को संज्ञान में लिया। सरकार को तत्परता दिखानी पड़ी और उस वीडियो के द्वारा ही अपराधी चिन्हित किए गए। लेकिन यह कदम भी तत्काल नहीं उठाया गया जो कि आश्चर्यजनक था। मणिपुर में महिलाओं पर सार्वजनिक हमले की घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित होने से एक महीने पहले शिकायत मिलने के बावजूद मामले में एनसीडब्ल्यू द्वारा कार्रवाई नहीं की गई थी। उस समय एनसीडब्ल्यू अध्यक्ष रेखा शर्मा ने सामाजिक कार्यकर्ताओं से शिकायत मिलने की बात स्वीकार की थी। उन्होंने कहा था, ‘‘हमें प्रामाणिकता की पुष्टि करनी थी। और यह भी था कि शिकायतें मणिपुर से नहीं थीं, कुछ तो भारत से भी नहीं थीं। हमने अधिकारियों से संपर्क किया लेकिन उनसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकिन जब वीडियो वायरल हुआ तो हमने स्वतंत्र संज्ञान लिया।’’ वस्तुतः वह ‘स्वतंत्र संज्ञान’ से कहीं अधिक जनता का दबाव था।

महिलाओं के विरुद्ध अन्य अपराधों में भी कोई कमी नहीं आई। वर्ष 2023 में बलात्कार, सामूहिक बलात्कार एवं घरेलू हिंसा के मामले बढ़े। दिल्ली की सड़क पर दिन-दहाड़े खुलेआम एक लड़की को दौड़ा कर मौत के घाट उतार दिया गया। वर्ष के इस अंतिम माह तक महिलाओं एवं लड़कियों के विरुद्ध यौंन हिंसा थमी नहीं। अभी दिसम्बर माह के इस दूसरे पखवारे में मध्यप्रदेश में अपने सहकर्मी के साथ ड्यूटी से रात को घर लौट रही युवती के साथ गैंगरैप किया गया। 
वैसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2023 में कई महत्वपूर्ण कार्य आरम्भ किए। इनमें महिला सशक्तिकरण पर जी20 के कार्य समूह की स्थापना से लेकर आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली 112 के साथ ‘‘चाइल्ड हेल्पलाइन’’ को जोड़ना तक शामिल हैं। इनका उद्देश्य देशभर में महिलाओं और बच्चों की भलाई से संबंधित प्रमुख मुद्दों को हल करना है। पड़ोसी देशों से नाबालिग लड़कियों और युवतियों की तस्करी की समस्या को हल करने के लिए मंत्रालय ने सीमावर्ती इलाकों में राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता मुहैया कराने की घोषणा की है। यह भी योजना तय की गई कि पीड़ित लड़कियों की सहायता करने और मानव तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए संरक्षण और पुनर्वास गृह स्थापित किए जाएंगे।

वर्ष 2023 में एक ऐसा फैसला हुआ जिसे सुन कर आमजन सोच में पड़ गया। बहुचर्चित निठारी केस में अभियुक्त मोनिंदर सिंह पंधेर 14 वर्ष जेल में रहने के बाद साक्ष्य के अभाव में दो मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया गया और दूसरी ओर मृत बच्चों के परिवारों का निराश होना स्वाभाविक था। कोर्ट का कहना था कि जांच सही तरीके से नहीं की गई थी, जिसकी वजह से पंधेर पहले 12 हत्या के मामलों में बरी हो चुका था, जिसमें निचली अदालत से उसे मौत की सजा सुनाई गई थी, और बाद में एक युवती की हत्या और एक घरेलू नौकरानी के साथ बलात्कार व हत्या मामले में भी उसे राहत भी मिल गई।
इसी वर्ष एक विवादास्पद मुद्दा विचार के लिए सामने आया जिसमें कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश दिए जाने की बात कही गई थी। इस पर मिलीजुली प्रतिक्रिया रही। महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा कि कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश की कोई आवश्यकता नहीं हैं। कुछ महिला संगठनों ने भी विरोध करते हुए कहा कि इस प्रकार के अवकाश नियम लागू होने से महिलाओं की निजता भंग होगी। वहीं, कुछ संगठनों ने विरोध भी किया। विवाद के चलते मुद्दा दब कर रह गया।   

राजनीति में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव पारित होना विशेष उपलब्धि रही। इसका परिणाम क्या रहेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा। वैसे राजनीति में महिलाओं की स्थिति का स्पष्ट आकलन दोहरी नीति को दर्शाता है। कुछ महिलाएं सक्षम रहती हैं अपने फैसले खुद लेने के लिए जबकि बहुत-सी महिलाएं विशेषरूप से ग्रामीण अंचल में अपने पति अथवा परिवार के पुरुषों द्वारा संचालित होती हैं। अतः वर्ष 2023 में महलिाओं को जो राजनीतिक आरक्षण दिए जाने का प्रस्ताव पारित किया गया है उसके साथ अब वर्ष 2024 में महिलाओ की राजनीतिक साक्षरता पर जोर दिया जाना जरूरी है। इस वर्ष हुए विधान सभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों का दांव बहुत खरा नहीं उतरा। दल के प्रभाव और उम्मीवार की कार्यक्षमता ने चुनावों का परिणाम तय किया। इससे भी साबित होता है कि महिलाओं को राजनीति में आगे बढ़ाने के साथ उन्हें मौलिक निर्णय लेने के अधिकार भी देने होंगे, तभी उनकी उपस्थिति प्रभावशाली साबित हो सकेगी। 

और अंत में वह मुद्दा जिसमें महिलाओं के पक्ष को सामने रख कर राजनीतिक दांव खेला गया और विजय प्राप्त की गई। सभी जानते हैं कि ‘‘लाड़ली बहना योजना’’ जैसी योजनाओं ने विधान सभा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई है। यद्यपि इस कदम पर सभी एकमत नहीं हैं कि इससे महिलाओं का भला हुआ अथवा नहीं। यह भी आने वाला वर्ष सिद्ध करेगा। 

इस प्रकार देखा जाए तो वर्ष 2023 भारतीय महिलाओं के लिए बहुत अच्छा तो नहीं रहा। बस इसे ‘‘फिफ्टी-फिफ्टी’’ कहा जा सकता है। किन्तु स्थिति पूरी तरह आशाजनक नहीं तो पूरी निराशाजनक भी नहीं रही। 2023 में जो छूट गया अथवा बिगड़ गया उसे वर्ष 2024 में महिलाओं के हित में पाया और सुधारा जा सकता है। बस, सबसे पहले महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की घटनाओं पर अंकुश लगना चाहिए। एक स्वस्थ और सुरक्षित माहौल में महिलाएं प्रगति का रास्ता स्वयं ढूंढ लेंगी।     
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