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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, December 7, 2023

बतकाव बिन्ना की | बे आए, उन्ने लड़ो... औ बे हार गए! | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

"बे आए, उन्ने लड़ो... औ बे हार गए!" - मित्रो, ये है मेरा बुंदेली कॉलम "बतकाव बिन्ना की" साप्ताहिक #प्रवीणप्रभात , छतरपुर में।
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बतकाव बिन्ना की
बे आए, उन्ने लड़ो... औ बे हार गए!
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       अब आप कैहो के जे कोन टाईप को शीर्षक आए के - ‘‘बे आए, उन्ने लड़ो औ बे हार गए!’’ लड़ाई में सो हार-जीत लगई रैत आए। जब दो जने लड़हें सो उनमें एक जीतहे औ एक हारहे। हऔ, बिलकुल सई बात! पर जे तो सोचबे की बात आए के बे आए तो हते लड़बे खों मनो सामने वारे से लड़बे से कऊं ज्यादा तो बे आपसई में लड़त रए। सो मोय सो जे नईं समझ परी के लड़बे कोन से आए रए, सामने वारे से के अपनई वारे से? आप सोच रए हुइए के मैं कां की बतकाव कर रई? सो भैया-बैन हरों, अबई तो चुनाव भए अपन ओरन के इते विधान सभा के लाने, अबे तो मईना खांड़ ओई की बतकाव चलत रैहे।
चुनाव के पैले कोनऊं-कोनऊं कैत्ते के अब कुल्ल दिनां हो गए, अब कछू बदलाव भओ चाइए। मने हमें तो लगत आए के जोन के जा टाईप के विचार हते बे सोई बदलाव छोड़ के दोहराव पे आ गए। काय से के उने लगो हुइए के जिन ओरन खों आपसई में लड़बे से फुंर्सत नईयां बे जनता के लाने का कर पाहें? सांची कई जाए तो ई बेर के चुनाव ने बा किसां याद करा दई, बा लकरिया वारी। कौन सी? अरे आप ओरन ने सोई सुन रखी आए। अरे बोई वारी किसां के एक रओ बब्बा। ऊके रए छै ठइयां लरका। बे छै के छै रैत तो संगे हते मनो उनकी आपस में खटापटी चलत रैत्ती। एक दफा उनपे कर दओ दुस्मन ने हमला। बब्बा ने कई के बेटा हरों, जाओ औ जा के दुस्मन खों धूरा चटा आओ। बे छै के छै अपने बब्बा के पांव पर के घरे से निकरे। दुस्मन के लिंगा पौंचत-पौंचत उनमें आपसई में खटापटी होन लगी। एक कैन लगो के देखियो हम कैसे कूटबी दुस्मन खों, सो दूजो बोलो तुम का उखाड़ लैहो? दुस्मन खों तो हम दाई-मताई सबई याद करा दैहें। तीसरे ने अपनी दई, सो चैथे ने अपनी दई। पांचवों सो ऐसो दिखान लगो के मनो ऊने जंग जीतई लई होय औ छठे की तो पूछोई नई। छठां कैन लगो के हम तो जीतई कहाय, अब तुम ओरें हमाऐ गोंड़े दबाव। सो, जे टाईप से बे छै के छै अपसई में लड़त-लड़त दुस्मन के आगूं जा ठाड़े भए। दुस्मन सोई छै-सात भैया हते। बाकी बे ओरें सामने वारे से लड़बे की फुल तैयारी कर के आए हते। उन्ने देखी के बब्बा के जे छै मोड़ा सो आपई में उलझ रए, सो उनको काम आसान हो गओ। उन्ने छै के छै को एक-एक ठूंसा मारो औ कर दओ चारो खाने चित्त।
छैओ भैया कूट-पिट के घरे लौटे। बब्बा ने उनकी दसा देखी सो बे चकरा गए। उन्ने पूछी के तुम ओरे तो दुस्मन खों धूरा चटाबे खों गए रए, औ खुदई धूरा चाट आए, जे कैसे भओ?’’
‘‘ईमें हमाई कोनऊं गलती नोईं, जे बड़े भैया की गलती आए।’’ सबसे छोटो वारो बोलो।
‘‘हमाई का गलती? तुमई तो फंकाई दे रए हते के तुम सब कछू कर सकत आओ।’’ बड़ो वारो बमकत भओ बोलो।
मने जेई टाईप से छै के छै एक-दूसरे खों गरियान लगे। उनके बब्बा ने देखी सो उनकी खपड़िया भिन्ना गई।
‘‘चोप्प! बिलकुल चोप्प!!! तुम ओरे कभऊं ने सुधरहो। ऊंसई तो आपस में गिचड़ कर रैत आओ, मनो हमने सोची हती के दुस्मन के आगूं पौंच के तो मिल के लरहो, मनो तुम ओरन को कछू नईं हो सकत। हमें तो लगत आए के तुम ओरे हमाए मोड़ा नोंई, कोनऊं लड़इया के पिल्ला आओ।’’ बब्बा को मत्था फिर गओ। उन्ने अपने छैओ मोड़ा हरों को आड़े हाथ लओ। बे छैओ अपनों मों बंाध के सुनत रए। औ सुनत नईं, सो का करते? करमई ऐसो कर के आए हते। उनके दुस्मन ने उन ओरन की ऐसी ठुकाई करी हती के हाड़-गोड़ सबई चींख-चींख के गवाई दे रए हते।
बब्बा को जब तनक गुस्सा ठंडो भओ तो उन्ने सोची के जे ओरें एक दफा कुट-कुटा के चले आए, सो बा दुस्मन सो गर्रात फिरहे औ कभऊं बी फेर के अटैक कर सकत आए। ईसे अच्छो के इन छैओ निकम्मों खों तनक सिखा-सुखू के पैलई दुसमन खों ललकारो जाए। 
    सो बब्बा ने उठाई छै ठइयां लकरियां और पकरा दई एक-एक ठइयां उन सबई खों। फेर उनसे बोली के अपनी-अपनी लकरिया खों तोड़ के दिखाओ। उन छै के छै ने अपनी-अपनी लकरिया तोड़ के दिखा दई। फेर बब्बा ने छै ठइयां लकरियां औ उठाईं, औ उने एक पतरी सी रस्सी से आपस में संगे बंाध दई। फेर अपने छैओ मोड़ा से कई के अब तुम ओरें एक-एक कर के लकरियन को जे गट्ठा तोड़ के दिखाओ। पैले बड़े ने कोसिस करी। बा फेल हो गओ। दूसरे वारे ने कोसिस करी, बा सोई ने तोड़ पाओ। तीसरे ने हाथ आजमाओ, बा सोई फिस्स हो गओ। चैथे को तो पसीना मार गओ मनो ऊसे गट्ठा ने टूटो। पांचवे ने औ दम लगाई, पर बा सोई थक के उतई बैठ गओ। सबसे छोटो मने छठे वारे ने कोसिस करी, बा बी ने तोड़ पाओ।
‘‘तुम ओरें ने तोड़ पाए जे गट्ठा? काए?’’ बब्बा ने लरकन से पूछी।
‘‘नईं! काय से के जे लकरियां संगे बंधी आएं, जो अलग-अलग होतीं तो हम कब के चटका चुके होते।’’ बड़े वारे मोड़ा ने कई।
‘‘जेई तो बात आए समझबे की नईं, नासमिटो? अबे तुम ओरें दुस्मन के आगूं जा के ठाड़े भए पर आपस में लड़त रए। जोन को फायदा मिलो दुस्मन को। उन ओरन खों तो कछू मेनत करनेई ने परी हुइए औ तुम ओरन की कुटाई कर के चले गए। जो तुम ओरे जे गट्ठा घाईं संगे मिल के अपने दुस्मन से लड़ते तो मनो इत्ते तो ने कुटते।’’ बब्बा ने छैओ को समझाई।
‘‘हऔ बब्बा जू! आप सांची कै रए। हम ओरें अब कभऊं ऐसो ने करहें। जो कोनऊं से लरने परो सो हम सब मिल के ऊसे लरहें।’’ मंझलो वारो बोलो।
‘‘सो चलो, चिंता ने करो! जल्दई फेर के लड़बो को टेम आन वारो आए, तनक दिखा दइयो अपनो संगठन।’’ बब्बा खुस होत भए बोले। उने समझ में आ गई के उनके मोड़ा हरें सबक सीख गए।
    मनो जे तो रई एक फेमस किसां। जे हर भाषा-बोली में पाई जाती आए औ हर जुग में सुनाई गई। मनो फेर बी कछू जने जे किसां भूला के अपनी लुटिया डुबान लगत आएं। ऊमें बी बब्बा की उमर के बूढ़े-पुराने सयाने। हऔ, जेई तो भओ ई दफा के चुनाव में। एक तो दो अषाढ़, ऊपर से दूबरे औ ऊपे बी आपसी गिचड़। चुनाव के लाने टिकट के देबे के टेम पेई दिखा गओ रओ के बे ओरें आपसई में कोन टाईप से उलझ रए। दो बब्बा हरें आपसई में लड़त रै गए के हमाए आदमियन खों टिकट मिलो चाइए, के हमाए आदमियन खों टिकट मिलो चाइए। उने जोन से लड़ने रओ, बा सोई देख-देख के मुस्कात रओ के जो का हो रओ? ऊके लाने सो अच्छोई हतो। जोन में संगठन नांव की चिरैया ने होय बा संगठन वारे से का खा के लरहे?
   बा हती किसां, सो ऊमें बब्बा के लरका हरों को अपने बब्बा की बात समझ में आ गई रई, मनो इते तो बब्बा हरें ईं आपस में लड़त रए। अब उनके लाने को समझा सकत आए? कऊं ऐसो ने होय के अगली बेरा औरई सफाया हो जाए। बाकी जोन खों जीतबे खों मौका मिलो, उनके लाने जेई कओ जा सकत आए के उन ओरन की संगठन की ताकत ने उने जिताओ आए। बाकी धनी-धोरियन खों सोई उनसे कछू सीखो चाइए के भैया हरों आपस में ने लड़ो, कभऊं-कभऊं पब्लिक खों अपनी सकल दिखा दओ करे, कभऊं- कभऊं कछू पब्लिक को बी हाल पूछ लओ करे। मनो मोय पतो के बे मोरी बात कोन सुनहें, बे सो खुदई खों मिटाबे को कमिटमेंट करे बैठे आएं, तभई तो खुद अपनई नईं सुन रए।
    खैर, सो अब तो आप ओरने खों जा शीर्षक समझ में आ गओ हुइए के ‘‘बे आए, उन्ने (आपस में) लड़ो औ बे (बिरोधी से) हार गए!’’            
    बाकी जो आए सो अच्छे आए, औ जो गए सो अच्छे गए। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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