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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, January 11, 2024

बतकाव बिन्ना की | भौजी की धमकी औ सकरायत के लड़ुआ | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सा. प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
भौजी की धमकी औ सकरायत के लड़ुआ
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       दो दिनां हो गए, जबै भैयाजी के दोरे से कढ़ो सो कभऊं तिली भुंजबे की सुगंध मिली तो कभऊं आटो भुनबे की। मोय समझ में आ गई के भौजी सकरायत के लाने लड़ुआ बना रईं। भौतई अच्छो लड़ुआ बनाउत आएं भौजी। गुड़-मोमफली की पट्टी सोई बड़ी नोनी बनाउत आएं। मैंने सोची के बे बेचारी अकेली लड़ुआ बांध रई हुइएं, सो चलो तनक उनको हाथ बंटा दओ जाए। काए से के लड़ुआ खाबे के लाने सो मोय उनईं के इते जाने, सो लड़ुआ बंधाबे के लाने सोई जाबो चाइए, ऐसी मोय लगी। सो मैं भौजी के इते पौंची। उते जा के जे देख के मोय भौतई अच्छो लगो के भैयाजी सोई उनको हाथ बंटा रए हते। भौजी ने जो मोमफली भूंज के धरी हतीं, उने भैयाजी सूपा पे से फटकारत जा रए हते, जोन से मोमफली के छिलका अलग हो जाएं।
‘‘राम-राम भौजी! मोय सोई कछू काम बताओ।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘कछू नईं बिन्ना, सब बनत जा रए।’’ भौजी बोलीं।
मोय जे देख के सोई बड़ो मजो आओ के बे आंगन में लकड़िया वारे चूला पे जे सब काम कर रईं हतीं। ने तो आजकाल तो सबई जनीं गैस के चूला पे बनाउती हैं, मनो अगर बनाने होय तो! ने तो इत्ते माॅल खुल गए, के उते हर त्योहार पे सब कछू मिल जात आए। मनो उनमें घर के बने को स्वाद कां मिलने?
सो मैं सोई चूला के बाजू से बैठ गई औ हाथ तापन लगी। ऊंसई दो-चार दिनां से कोहरा-सो छाओ रओ, सो जड़कारो घनो हो चलो आए। सच्ची, चूला में हाथ तापे में भौतई अच्छो लगत आए।
‘‘चलो जो लो तुमाए भैया मोंमफली साफ़ कर रए, तब लौं चाय बना लई जाए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘हौ, अच्छो अदरक डारियो!’’ भैयाजी बोल परे।
‘‘हौ, जैसे आपखों मिली जा रई? इते दो कप बन रई। एक हमाए लाने औ एक बिन्ना के लाने।’’ भौजी आंखें दिखात भईं भैयाजी से बोलीं।
मोय जे सुन के अचरज भओ। काए से के इते आ के मोय लग नई रओ हतो के भैयाजी और भौजी के बीच कोनऊं रार चल रई हुइए।
‘‘का हो गओ भौजी? भैयाजी से काय खफा हो?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘इनई से पूछो! हम एक तो फायदे की बात कर रए औ इने कछू समझ ने आ रई।’’ भौजी भैयाजी खों फटकारत भई बोलीं।
‘‘का हो गओ भैयाजी? हमाई भौजी खों काय नाराज कर दओ?’’ अब की बेर मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘अब का कहें बिन्ना! तुमाई भौजी को न जाने कां-कां की सूझत आए। इन्ने आज भुनसारे अखबार में न्यूज पढ़ लई के महिला किसानों के लाने सम्मान निधि 6 हजार रुपइया से बढ़ा के 12 हजार रुपइया करी जा रई, बस, तभई से हमाए पांछू लगीं आएं के हमाए लाने खेत खरीद देओ, चाय दो-चार एकड़ को होय। अब तुमई बताओ बिन्ना के जे पैले घरई तो सम्हार लें, फेर खेत सम्हारहें। का करबी खेत खरीद के?’’ भैयाजी बोले।
‘‘अच्छा! औ बैठे-बिठाए के 12 हजार रुपए तुमें धतूरा से लग रए? अरे हमाए नांव पे खेत हुइए सो हम कहलाबी महिला किसान औ हमें मिलहे सम्मान राशि 12 हजार रुपए। का सुनी? तनक समझो। तनक हिसाब-किताब करो! पढ़े-लिखे आओ!’’ भौजी ने भैयाजी से कई।
  ‘हम तो समझ रए, बाकी तुम नईं समझ पा रईं।
‘‘हम का नईं समझ पा रए?’’ भौजी बमक परीं।
‘‘जेई, के जे सब में बाद में पतो परत आए के कोन खों मिलने औ कोन खों नईं मिलने। काय का तुमें लाड़ली बहना वारो पइसा मिलो?’’ भैयाजी ने भौजी खों याद कराई।
‘‘बा बात अलग हती।’’ भौजी बोलीं। उने तो खेत खरीदबे की धुन सवार दिखा रई हती।
‘‘अलग काय को हती? अबई ईमें सोई देखियो को कोन सो क्राइटेरिया बनाओ जात आए?’’ भैयाजी भौजी से बोले। फेर मोसे कहन लगे-‘‘बिन्ना हमें तो जेई समझ में आ रई के अपनो एमपी वारो फार्मूला उते केन्द्र वारन को सोई पोसा गओ। उन्ने देखी के लुगाइयन खों साध लेओ, सो सब सध जाने। अखीर लाड़ली बहना योजना नेई तो इते जीत दिलाई।’’
‘‘हऔ, बात ने टालो! हमें खेती वारी जमीन देवा देओ। देखों, मनो जो हमें सम्मान वारो पइसा ने बी मिलो तो अपनो खेत तो कऊं जाहे नईं। काय बिन्ना, हम ठीक कै रै न!’’ भौजी ने मोसे पूछी।
‘‘हऔ, आप बिलकुल ठीक कै रईं।’’ मैंने भौजी की बात को समर्थन करो, सो भैयाजी मोय गुस्सा में घूरन लगे।
‘‘हमाई बिन्ना पे गुस्सा ने दिखाओ! ने तो हम आपके लाने ऐसो लड़ुआ बनाबी के जो आपके मूंड़ पे मारो जाए तो आपको मूंड़ई फूट जाए।’’ भौजी ने भैयाजी खों धमकाओ औ मोय उनकी धमकी सुन के हंसी आ गई। मनो लड़ुआ ने भए तोप के गोला भए।    
अब जे तो बाद में पता परहे के कोन ने कोन की बात राखी। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम! औ अबई से हैप्पी सकरायत!
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