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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, January 4, 2024

बतकाव बिन्ना की | काए नए साल के लाने का प्लानिंग करी? | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सा. प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
काए नए साल के लाने का प्लानिंग करी?
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
           नए साल के पैलई दिनां ने चाय ने भजिया की पूछी औ पूछन लगे के ‘‘काय बिन्ना, तुमने नए साल के लाने का सोची? का प्लानिंग करी?’’
‘‘का सोचिए, नए साल को मोरो महूरत खराब भओ जा रओ!’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘माने?’’
‘‘माने जे के इत्तो अच्छो जड़कारो आए। के कां तो आप मोए भजिया खवाउते सो पूछ रए के नए साल के लाने का सोची? अरे मोए कोन चुनाव लड़ने के कछू सोचो जाए। जोन-जोन खों ई साल चुनाव में ठाड़े होने बे सोचें। मने बे सोई सोचें जिनके लाने अबे लौं कछू मनचाओ विभाग नई मिलो। मोए काए को सोचने?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘अरे, हमाओ मतलब बा ने हतो। तुमें भजिया खाने सो ऐसे कओ! हम अभईं बनवा देत आएं।’’ भैयाजी ने कई औ भौजी खों टेर लगा दई।
‘‘सो आप को मतलब का हतो?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हम सो जे पूछो चा रए हते के ई मईना उते अजोध्या में रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करी जाने है, सो तुमने उते जाने को प्लान बनाओ का?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नईं! इत्ते जड़कारे में उते को जा रओ? ऊपे उते मुतकी भीड़ पड़हे। ने रेल में जागां मिलहे औ ने उते ठैरबे के लाने कछू मिल पैहे। मोए तो अबे नई जाने, बाकी एक अजोध्या वारे सज्जन से हमने बिनती कर तो रखी आए के जे कार्यक्रम के बाद मोए लिवा ले चलियो। अब जो बे लेवा जैहें सो उने पुन्न मिलहे ने तो बाकी रामजी जानें।’’ मैंने भैयाजी खों अपनी योजना बताई।
‘‘सोची तो तुमने नोनी आए। काए से के उतई के रैबे वारे कोनऊं होय तो अच्छे से दरसन हो जैहें। काए से अब तो उते सबई कछू बदल गओ। जब हम दसेक साल पैले गए हते तो उते काम लगो परो हतो। औ बस्ती सोई ऊंसई हती, मनो अब तो हमने सुनी के उते सबई कछू बदल गओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, सुनी का, टीवी में नईं देखी का? ऊमें सो रोजई दिखा रए। बा देख-देख के मोरो सोई जी करन लगो है के एक दार उते जा के सजीवन देख लओ जाए।’’ मैंने अपने जी की बात भैयाजी से कै दई।
‘‘तुमाई भौजी सो चैबिसोई घंटा ठेन दे रईं के अजोध्या लेवा ले चलो। बाकी तुमने सई सोची। हम सोई तुमाई भौजी खों समझाबी के अभईं ठैर जाओ, तनक प्राणप्रतिष्ठा हो जाए फेर आराम से चलबी।’’ भैयाजी को मोरी बात जंच गई।
‘‘औ का, एक दफे रामलला उते पधार जाएं फेर तो उतई रैंहे। फेर कोन उनको कऊं जाने? मनो जो ई जड़कारे में अपन ओरें उते धक्का खात जाएं औ कऊं बिमार पर गए सो उतई रामनाम सत्त हो जैहे। उते तो औ ठंड परत आए। उते से अपने इते तो कछू कम रैत आए। मनो भैयाजी जे सोचो के जेई जड़कारे में जब कुंभ को मेला भरो रओ इलाहाबाद वारो, सो सबरे जने गए रए उते। मनो जो मन में जोश होय सो जड़कारो को होश नईं रैत।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘औ का! ऊंसई देख लेओ के पूनो-अमावस में बरफ घांईं पानी में सबरे मजे से डुबकी लगा लेत आएं। इते तो बाल्टी के पानी में छिगरियां लो नई डारी जात। बे ओरें को जाने कैसे बुड़की लगा लेत आएं? वा बी एक नोईं तीन-तीन बेर।’’ भैयाजी सोचत भए बोले।
‘‘भैयाजी मोय तो एक बात पतो आए के मन चंगा सो कठौती में गंगा।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘का मतलब ईको?’’ भैयाजी को मोरी बात समझ में ने आई।
‘‘काय, आपने रैदास जू की जे बात कभऊं नईं सुनी का?’’ मोए तनक अचम्भो भओ।
‘‘सुनी तो आए, मनो अब भूल से रए।’’ भैयाजी झेंपत भए बोले।
‘‘चलो मैंने आपके लाने शाॅर्ट में जे किसां सुनाए दे रई। का भओ के आप जानत हो के रैदास जू बड़े अच्छे कवित्त रचत रए। संगे पेट भरबे के लाने जूता सियत को काम सोई करत रए। अब उनको इत्ती फुर्सत ने मिल पाती रई के बे रोज-रोज गंगा मईया के दरसन करबे जा सकें। एक पंडतजी रए बे उने रोज ठेन करत्ते के तुम जो जे गंगा मैया के दरसन करने नई जात आओ, सो तुमाओ जनम बिरथा भओ जा रओ। एक दिना रैदास जू ने उन पंडतजी से पूछ लओ, के उते नदी पे जा के गंगाजी के दरसन ने करबे से का हुइए? पंडतजी उने डरात भए बोले के तुमाओ अगलो जनम लो मिट जैहे। जा सुन के रैदास जू मुस्काए और उन्ने जूता सिलत के टेम काम में आबे वारो पानी जो लकड़िया के कटोरा में रखो हतो, ऊमें अपनो हाथ डारो औ गंगा मैया को मनई मन जपत भए बोले- मन चंगा तो कठौती में गंगा। रैदास जू ने इत्तो कऔ भर के उनके बा कटोरा में गंगा मैया साक्षात प्रकट हो गईं। अब पंडतजी चकराए। बे गंगा मैया से बोले के जो हम रोज आप के इते मों अंधेरे बुड़की लगाऊत आएं सो आपने हमें तो कभऊं दरसन ने दए औ जे जो रैदास कभऊं आपके लिंगे नईं पौंचत, ईके कटोरा में आप प्रकट हो गईं, जे का लीला आए? तब गंगा मैया ने पंडत जी को समझाई के सच्चे मन से जो हमें, ने तो चाए कोनऊं भगवान खों याद करे, ऊको दरसन घरे बैठे मिल जात आएं। जे हमाओ परम भक्त आए। अपनो काम करत रैत आए औ काम करत बेरा हमाओ नांव जपत रैत आए। जेई से हम ईकी कठौती में प्रकट भए। गंगा मैया की बातें सुन के पंडतजी की आंखें खुल गईं। सो जे किसां आए कठौती में गंगा वारी।’’ मैंने उने शाॅर्ट में पूरी किसां सुना दई, जोन मैंने अपने लरकपन से सुन रखी आए।
‘‘हऔ बड़ी नोनी किसां आए। औ सई तो आए के जब सहूलियत होय सो दरसन कर आओ, भैराने से फिरबे में का लाभ? देखियो अब जेई किसां सुना के हम तुमाई भौजी खों समझाबी।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो जे कहाए ज्ञान खों दुरुपयोग। जो आप ऐसो करहो सो मनो अपने स्वारथ में आप ईको काम में लाहो।’’ मैंने भैयाजी खों तनक फटकारो।
‘‘अरे अब ऐसो तो ने कओ! आजकाल सब चलत आए। देख नई रईं के सोचत्ते के चुनाव के पैले साग-सब्जी कछू सस्ती हो जैहे मगर देखो तनक, कित्ती मैंगी आ रई। बस, आलू-प्याज तनक सस्ते कहाने, ने तो बाकी सबई हरी सब्जियां मैंगी चल रईं। बटरा को दाम सोई कम नई हो रए।’’ भैयाजी बात पलटत भए बोले।
‘‘जेई तो आए भैयाजी! इंसान की जान सबसे सस्ती चल रई, बाकी सब मैंगोई मैंगो आए। उते देखों नईं के उते गुना में कैसो गजब भओ? बा घटना के बाद दोपहिया तक की चैकिंग होन लगी। मनो जे भैया हरें कोनऊं बड़े हादसे को इंतजार करत रैत आएं। जो पैले से गाड़ियन की चैकिंग होत रैती तो इत्ते लोगन की जान ने जाती। बिचारन की ठठरी लौं ने मिल पाई। सोच केई फुरूरी सी होत आए। रामजी दुस्मन के साथ बी ऐसो ने करें।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ बिन्ना! हम ओरन को सोई जी दुखत रओ। अब नए साल में इन ओरन खों कछू ढंग-ढार से करो चाइए। जोन बसें चलबे के जोग ने होंय उने कबाड़ में पौंचा दओ चाइए। हमाओ बस चले तो हम तो एक-एक की अकल ठिकाने लगा देबें।’’ भैयाजी दुखी होत भए बोले।
‘‘हऔ, गुस्सा तो आउत है भैयाजी! मनो अपन ओरें का कर सकत आएं? जोन के करबे के काम आएं, उन ओरन खों ईमानदारी से करो चाइए। बाकी मैंने तो सोच रखी आए के अब देखियो जो कभऊं तला की सफाई के लाने जाबे की बेरा आई सो मैं तो कभऊं ने जैहों। लाखों रुपैया बरबाद करबे के लाने बे ओरें, औ सफाई करबे के लाने अपन ओरें? भौत नाइंसाफी आए।’’ मैंने ‘‘शोले’’ फिलम को डायलाग सोई बोल दओ।
मोरी बात सुन के भैयाजी खों हंसी आ गई। ‘‘शोले’’ के डायलाग को बुंदेली वर्जन उने भौतई मजेदार लगो।
‘‘बाकी तुमने बताई नईं के तुमने नए साल के लाने का सोचो आए? कछू तो प्लानिंग करी हुइए?’’ भैयाजी ने फेर पूछी।  
‘‘लोकसभा के चुनाव हो जान देओ, फेर बताबी।’’ मैंने हंस के कई। इत्ते में गरम भजिया ले के भौजी आ गईं। सो हम ओरें सारी प्लानिंग-वालिंग भूले भजिया मसकबे में जुट गए।
आप ओरें सोई भजिया खात जाओ औ जे पढ़त जाओ। मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता मनो अगली साल करबी बतकाव, तब लों भजिया के संगे जुगाली करो जेई की। सो, सबई जनन खों शरद बिन्ना की राम-राम!
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