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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, January 18, 2024

बतकाव बिन्ना की | सुमिरन करियो रामलला को, और जलइयो बाती | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सा. प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
सुमिरन करियो रामलला को, और जलइयो बाती
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       सुमिरन करियो रामलला को,और जलाइयो बाती।
        सगरी  बिपदा दूरई रैहे, दिन होय चाए अधराती।।
- जो मैं भैयाजी के इते पौंची तो भौजी को जो गानो सुनाई परो। भीतरे पौंच के देखी तो भौजी भीतरे को आंगन लीप रई हतीं औ गाना गाउत जा रई हतीं। मैं उतई चुपचाप ठाढ़ी हो के उनको गाना सुनन लगी।
‘‘अरे बिन्ना तुम कब से ठाढ़ीं?’’ तभई भौजी की मोपे नजर परी औ बे गानो भूल के मोसे पूछन लगीं।
‘‘अबई आई। आप भौतई अच्छो गात हो। चुप काय हो गईं? गाओ न!’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘अरे कां? बा तो ऊंसई गान लगी।’’ भौजी टालत भई बोलीं।
‘‘अरे, जे आप भीतरे को आंगन काय लीप रईं? यां तो फर्शी लगी।’’ मैंने भौजी से पूछी। काय से के मैंने देखी के भौजी ने फर्शी पे सोई गोबर से लीप रखो हतो।
‘‘फर्शी भले आए, पर जब लौं गोबर से लिपाई ने करो तब लौं लगत नइयां के कोनऊं खास त्योहार अपन मना रए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो अब कोन सो त्योहार आ रओ? अबई तो सकरायत कढ़ी आए।’’ मैने उनसे पूछी। काय से के 15 जनवरी खों सकराय मनाई गई औ 26 जनवरी आबे में अबे कुल्ल टेम हतो।
‘‘काय? रामलला की प्राणप्रतिष्ठा अपने ओरन खों नई करने का?’’ भौजी ने मुस्क्याते हुए मोसे पूछी।
‘‘अरे हऔ! करने काय नइयां? सो जे लाने आपकी तैयारी चल रई! अब समझ में आई। मनो अबईं तो 22 तारीख में कछू टेम आए। बोई दिनां, ने तो एकाद दिनां पैले करतीं लिपाई। तब तक लौं जे बासी ने पर जैहे?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘ऊं दिनां तो ताजी लिपाई करबी, मनो जे ठैरी फर्शी, ईपे जब लौं लिपाई की दो-तीन लेयर ने हो जाए सो चमकत कोन आए।’’ भौजी ने बड़ी प्रैक्टिकल बात करी।
‘‘हऔ, बात तो आपकी सई आए। सो, तोरन-मोरन सोई मंगा लइयो। बाकी मैंने एक भैयाजी से कओ तो आए के मोय सोई रामलला वारो झंडा ला देओ, घरे लगाबी।’’ मैंने भौजी से कई। बात बे सई कैरई हतीं। 26 जनवरी के पैले सो 22 जनवरी आबे वारी, जोन दिनां अजोध्या में रामलला की प्रणप्रतिष्ठा करी जाने।
‘‘अपने इते जो मंदिर आए न, उते सोई ऊ दिना कथा औ यज्ञ हुइए, संगे प्रसादी सोई बांटी जाहे।’’ भौजी बतान लगीं।
‘‘हऔ, कोनऊं कै तो रओ हतो। बाकी मैंने तो सोची आए के ऊं टेम पे मैं टीवी में अजोध्या में होबे वारी प्राणप्रतिष्ठा को सीधो प्रसारण देखबी, फेर ऊंके बाद मंदिर वारे कार्यक्रम शामिल होबी। अब आपई सोचो के घरे बैठे जो उते को सजीवन हाल देखबे को मिल रओ होय तो ऊको काय छोड़ो जाए?’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘हऔ, तुमाए भैया सोई जेई प्लानिंग कर रए हते। बे तो हमसे कैन लगे के तुम तो 21 तारीख लौं गुड़ के लड़ुआ बांध लेओ और तनक खुरमा-बतियां बना लेओ। 22 तारीख के लाने कछू ने राखियो। काय से के उने लग रओ के हमाओ टेम चैका-चूला में उरझ ने जाए। पर उने का पतो के हमने पैलई से सब सोच रखो आए। ऐसो करियो बिन्ना के तुम सोई इतई आ जइयो। अपन ओरें सगे बैठ के टीवी पे उते की प्राणप्रतिष्टा देखबी, फेर संगे मंदिर चलबी।’’ भौजी ने मोसे कई।
‘‘हऔ भौजी, जे ठीक रैहे। अकेले बैठ के देखबे में मजो बी ने आहे।’’ मैंने भौजी की बात तुरतईं मान लई।
‘‘का हो रओ, ननद भौजी की बतकाव चल रई?’’ इत्ते में भैयाजी बाहरे से आए औ हम ओरन खों बतकाव करत देख के बोल परे।
‘‘हऔ! हम दोई 22 तारीख के लाने प्लानिंग कर रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘कित्तो अच्छो लग रओ न! सबई जांगा जेई-जेई बतकाव चल रई।’’ भैयाजी खुश होत भए बोले।
‘‘रामधई भैयाजी! मोय तो अब समझ में आन लगो के ऊं टेम पे अजोध्यावासी में कित्ते खुश भए हुइएं। बा टेम की खुशी को अंदाजा आज लगाओ जा सकत आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘मनो बो टेम औ अब के टेम में भौतई फरक आए बिन्ना!’’ भैयाजी बोले।
‘‘कैसो फरक?’’
‘‘ऐसो फरक के ऊं टेम पे अकेली अजोध्या नोईं, पूरी एशिया में हिन्दुअई हिन्दू रैत्ते। भगवान ब्रह्मा, बिष्णु, महेश खों पूजबे वारे, मनो आज के टेम पे सबई धर्म के लोग अजोध्या में बी रै रये। मनो देखो तो सबई में कित्तो उत्साह दिखा रओ। है न ऊं टेम औ ई टेम में फरक?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, आप बिलकुल सांची कै रए। अबई ऊं दिनां अपने मोहल्ला के कारसेवक हरें अक्षत ले के आए रए, ऊंमें हिन्दू हते, मुसलमान हते, सिख औ जैन सोई हते। सबरे भैया-बैन ऐसे बुलौवा दे रए हते मनो उन्हई के इते कोनऊं डस्टोन मनाओ जाने होय। भैयाजी जेई तो आए अपन ओरन की अनेकता में एकता।’’ मैंने सोई भैयाजी से कई औ कैत-कैत मोरो मन जोश से भर गओ।
‘‘चलो आओ तुम दोई इते औ हमाओ हाथ बंटाओ।’’ भौजी हम दोई से बोलीं।
भौजी ने मोरे हाथ में रुई थमा दई औ बोलीं,‘‘ईकी फूलबतियां बना डारो।’’
‘‘औ, आप इते बैठो औ जे माला गूंथ डारो।’’ भौजी ने भैयाजी खों गेंदा के बे नकली वारे फूल और पत्ते पकरा दए।
‘‘जे वारे काय गुंथवा रईं? हमने तो कई आए के ऊं दिना असली वारे लान दैहें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जे घर की सजावट के लाने आए। बाकी पूजा और तोरन के लाने एक दिनां पैलई हमाए लाने लान दइयो। उनको हम फ्रिज में रख देबी सो बे ताजा बने रैंहें। काय से के, कओ ऊं दिनां बजार में फूलई ने मिलें। सबई बढ़ा जाएं।’’ भौजी बोलीं। बे दूर की सोचत आएं।
‘‘सई कई तुमने!’’ भैयाजी ने बी उनकी बात को समर्थन करो।
‘‘तो चलो अपन ओरें बधाई गाबे की प्रेक्टिस सोई कर लैबें।’’ कैत भईं भौजी आंगन के किनारे-किनारे चूना से ढिग धरत भईं मधुरला गान लगीं। भैयाजी औ मैंने सोई उनके संगे गाबो शुरू कर दओ। बाकी जोन खों नई पतो सो जान लेओ के बुंदेलखंड में मधुरला संतान होबे के दसवें दिन डस्टोन मनाबे के समै गाओ जात आए-
अरे हां-हां मधुरला, हां रे मधुरला
बाजे मधुर औ सुहावनों,
मोरे अंगना में आए मोरे राम, मधुरला राम
मधुरला, हां रे मधुरला ....
अरे हां रे मधुरला, गउअन के गोबर मंगाइयो
अरे ढिग धर आँगन लिपइयो, मधुरला लिपइयो
मधुरला, हां रे मधुरला ....
अरे हां रे मधुरला, मुतियन चौक पुराइयो
अरे चंदन की पटली धरइयो मधुरला धरइयो
मधुरला, हां रे मधुरला ....
अरे हां रे मधुरला, कंचन कलश रखाइयो
अरे चौमुख दियल जरइयौ, मधुरला जरइयौ
मधुरला, हां रे मधुरला ....
सो हम ओरें काम करत-करत मधुरला, बधाइयां, सबई कछू गात रए। मोय तो जेई उत्साह सबई तरफी दिखा रओ। राम धई! मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। जैराम जी की!!!
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