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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, January 9, 2024

पुस्तक समीक्षा | संजीव पालीवाल के ताज़ा उपन्यास में है ‘इश्क़’ की अंतर्कथा | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

प्रस्तुत है आज 09.01.2024 को  #आचरण में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई चर्चित लेखक संजीव पालीवाल के उपन्यास "ये इश्क़ नहीं आसां" की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा       
संजीव पालीवाल के ताज़ा उपन्यास में है ‘इश्क़’ की अंतर्कथा    
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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उपन्यास    - ये इश्क़ नहीं आसां
लेखक      - संजीव पालीवाल
प्रकाशक     - वेस्टलैंड बुक्स
मूल्य        - 175/-
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      मज़़ा क्या ही रहे जो  इश्क़ गर आसान हो जाए
     मज़ा तो तब है जब ये दिल कहीं क़ुर्बान हो जाए
-ये मेरा शेर अपने आप बन गया जब मैंने संजीव पालीवाल का ताज़ा उपन्यास ‘‘ये इश्क़ नहीं आसां’’ पढ़ कर ताज़ा-ताज़ा समाप्त किया। प्रेम समर्पण मांगता है और समर्पण में अहं का बलिदान भी शामिल होता है। इस बात को बड़ी सुंदरता से संत कबीर ने कहा है-
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं।
प्रेम गली  अति सांकरी, ता में दो न समाहिं  ।।
प्रेम में आत्मिक एकाकार होना सबसे अधिक अर्थ रखता है। यही प्रेम का बुनियादी तत्व भी है। लेकिन आमतौर पर होता क्या है कि दो व्यक्ति परस्पर प्रेम का संबंध तो बनाना चाहते हैं लेकिन अपने अहं को छोड़ना भी नहीं चाहते हैं। यह अहं का भाव दुनियावी नहीं अपितु आंतरिक आग के दरिया का काम करता है। निश्चित रूप से जिगर मुरादाबादी ने बाह्य और आंतरिक दोनों आग को लक्ष्य करते हुए लिखा होगा -
ये इश्क नहीं आसां  इतना ही समझ लीजे
इक आग का दरिया है और डूब के जाना है
संजीव पालीवाल पत्रकारिता की दुनिया के एक सुपरिचित नाम तो हैं हीं तथा विगत अपने दो उपन्यासों ‘‘नैना और ‘‘पिशाच’’ के माध्यम से एक ‘‘सेलीब्रटी नाॅवेलिस्ट’’ के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। ‘‘ये इश्क़ नहीं आसां’’ उनका तीसरा उपन्यास है। उनके तीनों उपन्यासों के धरातल परस्पर भिन्न हैं। ‘‘नैना’’ एक सस्पेंस थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री था, तो ‘‘पिशाच’’ हाॅरर थ्रिलर था- रोंगटे खड़े कर देने वाला रहस्य-रोमांच’’। अब उनका तीसरा उपन्यास प्रेम की कोमल भावनाओं के साथ सामने आया है। यह उपन्यास अपने आप में अनूठा है। इसका कथानक प्रेम के वर्तमान स्वरूप से आरम्भ होता है और अतीत की गहराइयों में उतरता हुआ प्रेम के सार्थक मूल्यों को स्थापित करता है। यही इस उपन्यास की मूल्यवत्ता है।
कथानक उपन्यास के नायक अमन के अनुभवों से आरम्भ होता है। एक युवा कथा लेखक अमन सोशलमीडिया पर अपनी कहानी अदायगी को लेकर बहुचर्चित है। उसकी एक दुखांत कहानी जिसमें कहानी का नायक नायिका से अचानक अपने संबंधविच्छेद कर लेता है, मात्र इसलिए कि वह अपने संबंधों को ले कर सुनिश्चत नहीं है। उसे नायिका की भावनाओं का विचार तक नहीं आया। अमन की इस कहानी पर तरह-तरह की प्रतिक्रिएं ‘‘कमेंट’’ के रूप में आती हैं जिनके वह मजे लेता रहता है लेकिन इस बीच ‘‘एनी’’ नाम की एक लड़की का कमेंट आता है। अत्यंत आक्रोश भरा कमेंट। एनी के आक्रमक तेवर ने संबंधों की एक ऐसी नई किताब लिखनी शुरू कर दी जिसे अमन नहीं लिख रहा था अपितु अमन और एनी का भाग्य उनसे लिखवा रहा था। अमन और एनी के कई सप्ताह तक चले ‘‘चैट’’ में प्रेम के वर्तमान स्वरूप का स्पष्ट खाका खींचा है उपन्यासकार संजीव पालीवाल ने। आज के युवाओं के लिए प्रेम प्रायः दैहिक संबंधों से हो कर गुज़रके बाद सोचे जाने वाला विषय होता है। जिसको आज का युवा अकसर हंसी-मज़ाक में ‘‘वन नाईट स्टेंड’’ कहता है। अमन और एनी अलग-अलग शहरों में रहते थे इसलिए उनका प्रत्यक्ष मिलना संभव नहीं हो पा रहा था किन्तु एनी संबंधों को ले कर चर्चा करने में बेबाक थी, स्पष्टवादी थी। यह बात एक सीमा तक संकोची अमन को चौंकाती भी थी और विचलित भी कर देती थी।
   वह समय भी आया जब अमन जैसलमेर में रहने वाली एनी से मिलने चल पड़ा। जैसलमेर पहुंच कर सबसे पहले तो उसे एनी की वास्तविकता का पता चला कि उसका असली नाम अनन्या है। इसके बाद ऐसे अनेक सच अमन के सामने आए कि उसमें अपने अतीत को जानने और समझने की हिम्मत आ गई। ‘एनी’ जो अब उसके लिए ‘एन’ हो गई थी, उसे अतीत से जुड़ने में अनजाने में ही मदद करती गई। यहां उपन्यासकार ने बड़ी सहजता से पालीवालों का इतिहास लिख दिया है। एक दिलचस्प इतिहास जो हर पाठक को रोमांचित करेगा। क्योंकि किसी एक समुदाय का इतिहास मात्र उसका इतिहास नहीं होता, वरन पूरे समाज और राष्ट्र का इतिहास होता है। जिस तरह एक का अतीत सबके अतीत को प्रभावित करता है, उसी तरह हर अतीत वर्तमान पर भी अपना असर डालता है। अतीत के पन्ने पलटते हुए उपन्यासकार ने बताया है कि किस प्रकार जैसलमेर के दीवान सालम सिंह ने पालीवालों की बेटी पर कुदृष्टि डाली, जिससे पालीवाल ब्राह्मणों को जैसलमेर छोड़ कर पलायन करना पड़ा। यद्यपि उसी मरुभूमि में सीहाजी ने पालीवालों की रक्षा की। इस उपन्यास में उस घटना के बारे में भी बताया गया है जिसके कारण पालीवालों में रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता है।
पालीवालों के इतिहास के साथ ही उपन्यास के नायक अमन का निजी इतिहास भी अर्थात् उसका अतीत भी धीेरे-धीरे सामने आता है जिससे उसके मन के अनेक भ्रम टूटते हैं। यह कहावत है कि हर कही-सुनी बात सच नहीं होती। अमन के मन में अपने अतीत को ले कर जो धारणा बन चुकी थी वह कहे-सुने आधार पर ही थी। वह अपनी मां की मुत्यु के लिए अपने पिता को दोषी मानता रहा। क्योंकि उसने बचपन में जो अपनी आंखों से देखा था उसे समझ पाने की उसकी वह आयु नहीं थी और नौकरों द्वारा की गई झूठी बातें उसे सच लगी थीं। अपनी धारणा की डोर उसने इतनी मजबूती से पकड़ रखी थी कि सच जानने की कभी उसे उत्सुकता ही नहीं हुई। अनन्या ने उससे कई बार आग्रह किया कि वह एक बार स्वयं सच का पता करे। हो सकता है कि सच वह न हो जो वह जानता है। इस पर अमन अनन्या से ही संबंध तोड़ लेने की धमकी देता है। परंतु एक समय ऐसा आता है जब वह अपने पिता से बात करता है और अपनी मां की मुत्यु का सच उसे पता चलता है। वह प्रत्यक्षतः ‘आॅनर किलिंग’ नहीं थी लेकिन थी आॅनर किलिंग ही। दो अलग-अलग जाति अथवा धर्म के युवाओं के बीच के प्रेम को कट्टर परंपरावादी किसी भी कीमत पर पचा नहीं पाते हैं और तभी आॅनर किलिंग जैसे अपराध जन्म लेते हैं। ‘किलिंग’ का स्वरूप कुछ भी हो सकता है-सीधे हत्या अथवा लांछित कर हमेशा के लिए त्याग देने की मर्मांतक पीड़ा। ‘किलिंग’ का दूसरा स्वरूप पहले वाले यानी हत्या से कहीं अधिक भयावह एवं पीड़ादायक होता है। यह ठीक उसी तरह होता है जैसे स्वर्ग में स्थान पाने के अधिकारी को अचानक नरक की आग में झोंक दिया जाए। यह आग भी उसी आग का हिस्सा है जिसके बारे में जिगर मुरादाबादी ने ‘‘आग का दरिया’ कह कर संबोधित किया है। कोई इस दरिया को पार कर लेता है और कोई नहीं कर पाता है।
  प्रेम में समानता और सुरक्षा (सिक्योरिटी) दोनों में बारीक-सा अंतर होता है। यदि दोनों पक्ष समझदार हैं तो प्रेम को समानता और सुरक्षा दोनों स्वतः मिल सकती है किन्तु यदि एक पक्ष अपनी भावी सुरक्षा को आर्थिक आधार पर सुनिश्चित करे तो तनिक अटपटा तो लगता है किन्तु यह समाज ही है जिसने स्त्री को हर कदम पर आर्थिक असुरक्षा के घेरे में रखा है। इस बिन्दु को भी संजीव पालीवाल ने अपने उपन्यास में सटीक ढंग से समाहित किया है कि एक प्रेमिका अपने प्रेमी के साथ विवाह करने के लिए संपत्ति और व्यवसाय में ‘‘फ्फिटी-फ्फिटी’’ के स्वामित्व की शर्त रखती है। प्रेमी शर्त स्वीकार कर लेता है। प्रेमिका को इस बात से इतना संबंल मिलना चाहिए था कि वह अपने पिता की कथित सामाजिक प्रतिष्ठा (आॅनर) की कठोरता की परवाह न करती। किन्तु प्रेम भी मिल जाए और अदम्य हठी पिता का आशीर्वाद भी मिल जाए, इस चाह ने एक स्त्री को वहां तक पहुंचा दिया जहां से उसका वापस लौटना संभव नहीं था। यह अतीत जाने-अनजाने एक बार फिर सिर उठाता है। जब यह बात सामने आती है कि अमन पालीवाल है और अनन्या माहेश्वरी उस सालम सिंह की वंशज जिसके कारण पालीवालों को कष्ट भोगने पड़े थे। क्यो ऐसे में अमन और अनन्या का मेल संभव था?
अमन और अनन्या के परस्पर प्रेम पर भी अतीत हावी होने लगता है लेकिन कुछ नाटकीय मोड़ प्रभावी ढंग से कथानक को अपने क्लाईमेक्स की ओर ले जा कर रोचक अंत तक पहुंचाते हैं। हर प्रेमकथा का अंत एक-सा नहीं होता है, यही बात यह उपन्यास कहता है। अपने इस तीसरे उपन्यास में एक प्रेम कथा के बहाने संजीव पालीवाल की कलम की धार को अनुभव किया जा सकता है। जिस सुंदरता से उन्होंने अपने शिल्प को सम्हाला है वह किसी भी पाठक को आरंभ से अंत तक बंाधे रखने में सक्षम है। लगभग पूरा उपन्यास संवाद शैली में है। इसमें आधुनिक इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के चैटिंग वाले संवाद भी हैं और प्रत्यक्ष संवाद भी हैं। ये सभी आज के युवा की मनःस्थिति, सोच और विचारों की स्पष्टता को मुखर करते हैं। भाषाई क्लीष्टता कहीं भी नहीं है। आम बोलचाल की भाषा है जिसमें अंग्रेजी के संवाद भी निहित हैं। इससे पात्रों की स्वाभाविकता बनी रहती है।
हां, इस उपन्यास में वह बिन्दु बहुत ही कोमलता से भरा हुआ है जब उपन्यासकार ने बताया है कि आज का युवा रोमांच के साथ रोमांस में वह भी चाहता है तो उसके अंतर्मन को स्पर्श करे और उसे विशिष्टता की अनुभूति कराए। इस अभिलाषा के रूप में उपन्यास की नायिका अनन्या नायक अमन से कहती है कि वह उसे एक प्रेमपत्र लिखे जैसे पहले लिखे जाते थे। वह काग़ज़ की सुगंध के साथ प्रेम की सुगंध को महसूस करना चाहती है ताकि उसे यह अनुभव हो सके कि वे सारे शब्द सिर्फ़ उसके लिए ही लिखे गए हैं। यह बहुत मधुर पक्ष है जिसे लेखक ने खूबसूरती से कथानक में पिरो दिया है।
उपन्यास की एक विशेषता यह भी है कि इसमें जैसलमेर और उसके पर्यटन स्थलों की इस दृश्यात्मकता के साथ जानकारी दी गई है, उपन्यास पढ़ते हुए पर्यटन का आनन्द भी आ जाता है। इस उपन्यास में चाहे इतिहास परोसा गया हो या पर्यटन किन्तु नीरसता कहीं भी नहीं आने पाई है। सब कुछ एक क्रमबद्धता के साथ सामने आता गया है। एकदम स्वाभाविक रूप में।
‘‘ये इश्क़ नहीं आसां’’ मात्र युवाओं के लिए ही नहीं अपितु हर आयुवर्ग के उस पाठक के द्वारा पढ़े जाने योग्य उपन्यास है जो प्रेम को उसकी समग्रता के साथ जानने का इच्छुक है। इस उपन्यास में वर्तमान है तो इतिहास भी, कटुता है तो प्रेम भी, अवहेलना है तो समर्पण भी। यह उपन्यास हंसाता है, रुलाता है, गुदगुदाता है और अंत में आत्मपरीक्षण का एक मंत्र भी अवचेतन में फूंक जाता है। संजीव पालीवाल का यह तीसरा उपन्यास निश्चित रूप से अत्यंत रोचक और पठनीय है क्योंकि इसमें हैं इश्क़ की वह अंतर्कथा और वे बारीकियां जिन्हें जानना और समझना सभी के लिए दिलचस्प होगा।
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