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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 1, 2024

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात

बतकाव बिन्ना की
काए, तुम सोई थाली के भंटा भए जा रए
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       हम ओरें तीनों जने बैठे बतकाव कर रए हते। हम तीनों मने भैयाजी, भौजी और मैं। संझा की बिरियां हती। अंदियारो सोई घिर आओ रओ। ठंड सो मनो पड़ई रई आए। सो, हम ओरन ने गुरसी जला रखी हती। बाकी आजकाल चलन नईं रै गओ गुरसी को। कोनऊं के इते जाओ सो जो वो तनक लंबरदार घांईं माल वारो हुइए तो एसी चला के कमरा में बैठो मिलहे, ने तो तनक नीचे वारो हुइए तो हीटर, ने तो ब्लोअर चला के कमरा में बिड़ो मिलहे। अब गुरसी बंद कमरा में सो जलाई नईं जा सकत, ने तो तापबे वारो दो-चार घंटा में अपनी सुरग की टिकट कटा लैहे। सो गुरसी तनक खुले आंगन में ने तो कमरा को दरवाजो खुलो रख के तापी जाती आए। ईसे होत का है के बाहरे की ताजा हवा सोई मिलत रैत आए। फेर सोबे की बेरा तो पल्ली में मूंड़ घुसा के सोनेई रैत आए।
खैर, मैं कां की कां पौंच गई। वैसे देखो जाए तो कई बेरा जेई होत आए के बात कां की कां पौंच जात आए। जेई भओ ऊ टेम पे जबे हम तीनो जने गुरसी की आगी तापत भए बतकाव कर रए हते। बतकाव करत-करत बात निकर आई बिहार की। फेर नितीश राय जू की।
‘‘देखो तो भैयाजी, इने बेर-बेर पलटी खात भए शरम नईं आत?’’ मैंने कई।
‘‘काय की शरम बिन्ना! हमाए एक साथ के पढ़बे वारे रए, उनको पेटेंट डायलाग रओ के-‘जिनने खाई सरम, उनके फूटे करम’।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हट् ऐसो कईं होत आए? जो इंसान में लाज-शरम ने होय तो ई दुनिया में न जाने का-का होन लगे।’’ भौजी ने भैयाजी खों टोकों।
‘‘हम तो अपनी संगवारे की कै रए। मनो, तुमई देखो के दल बदले से फायदा भओ के ने भओ?’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय को फायदा? कुर्सी भले मिल गई मनो जग हंसाईं सो भई।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरी परमेसरी! राजनीति में का कोनऊं जगहंसाई देखत आए? सबई खों कुर्सी की लगी रैत आए। उनको लाने तो कुर्सी प्यारी, सबसे न्यारी।’’ भैयाजी कविताई करत सी बोले।
‘‘मने हमें तो जे नई पोसात। अरे पैले के नेता हरों खों देखो सगरो जीवन एकई पार्टी में रैत भए निकार देत्ते। अटल बिहारी जू खों ई याद कर लेओ तनक।’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे तुमें नईं पतो, हमने पढ़ो आए। एक दार तो जे बिन्ना ने अपने एक लेख में सोई लिखों रओ, काए बिन्ना?’’ भैयाजी ने मोसे कई।
‘‘का लिखो रओ?’’ अब मोय का समझ में आतो के भैयाजी कोन से टाॅपिक, कोन से लेख की बात कर रए?
‘‘जेई दलबदल पे।’’ भैयाजी बोले। फेर भौजी खों बतान लगे,‘‘ अरे पैले तो ऐसे नेता हो चुके जोन ने घंटा-खांड़ में दल बदल लओ रओ।’’
‘‘सच्ची?’’ भौजी खों यकीन नई भओ। उने लगो के भैयाजी फंकाई दे रए।
‘‘औ का! हमने पढ़ी रई, जे 1967 की बात आए। ऊ टेम पे हरियाणा में एक निर्दलीय विधायक रए, नांव हतो गया लाल। चुनाव जीतबे के बाद बे पैलेे कांग्रेस में शामिल हो गए, मगर फेर पंद्रा दिनां के भीतरे उन्ने तीन बेर दल बदल लओ रओ। निर्दलीय से कांग्रेस में आए रए। उते ने बनी सो विशाल हरियाणा पार्टी (विहपा) में शामिल हो गए। फेर उते बात ने बनी सो गया लाल जू कछू दिनां मेंई  कांग्रेस में लौट आए। मनो बे इत्तई पे ने रुके। केवल नौ घंटे मेंई फेर के विशाल हरियाणा पार्टी ज्वाइन कर लई। केवल नौ घंटा में। ईके बाद विहपा के नेता राव बीरेन्द्र सिंह ने उनई के आंगू एक प्रेस कांफ्रेंस में उनके लाने कई रई के ‘गया राम’ अब ‘आया राम’ है’.। बस, तभई से ‘आया राम गया राम’ वारी कहनात चल परी।’’ भैयाजी ने भौजी खों बताई। उनकी बतकाव सुन के मोय बी याद आ गई के मैंने तीन-चार एपीसोड को एक लम्बो लेख लिखो रओ हतो दलबदल पे।
‘‘राम-राम! जे ऐसे नेता हरों ने का भला करो हुइए पब्लिक को।’’ भौजी बोलीं।.
‘‘बे पब्लिक को भलो करबे राजनीति में नईं उतरत, उने तो अपनो भलो करबे की परी रैत आए। बाकी कछू कओ, जिनगी में कछू-कछू बदलाव होने बी चाइए।’’ भैयाजी कछू सोचत भए बोले।
‘‘का मतलब तुमओ?’’ भौजी ने पूछी।
‘‘मतलब जे, के एकई लुगाई के संगे पूरी जिनगी काटबे का मतलब? एक खों छोर के दूसरी के संगे रओ जाओ चाइए।’’ भैयाजी अचानक बोल परे। उनकी मति मारी गई रई जो भौजी से ऐसी ठिठोली कर बैठे।
‘‘काय, तुम सोई थाली के भंटा बनबे के लाने मरे जा रए? तुमें लुगाई बदलने से का मिल जैहे? तुमें कोनऊं मंत्री का चपरासी लो ने बनेहे।’’ भौजी बमक परीं।
‘‘काय, हा सकत के हमें कोनऊं नेताइन मिल जाए सो हमाए भाग खुल जाएं। हम सोई कऊं से चुनाव में ठाड़े हो के मंत्री बन जाएं। औ ने तो बा लुगाई जो कछू में रैहे, ऊके पति होबे के कारण हम सोई पार्षदपति, विधायकपति, मंत्रीपति, मनो जो कछू बा हुइए, बा पति कहलाबी। हमाओ सोई रुतबा बढ़ जैहे। अबे तो कोनऊं पूछत नईयां।’’ भैयाजी शेखचिल्ली घांई बोले।
‘‘सुनो! स्टाॅम्प पेपर पे लिखा लेओ हमसे, पैले तो तुमें कोनऊं औ मिलहे ना, औ जो मिली सो इत्ती ने पूछहे जित्ती हम तुमें पूछत आएं। ऊकी चप्पलें उठाए फिरने परहे।’’ भौजी को मंुडा गरम होन लगो। बे ने ताड़ पाईं के भैयाजी मजाक कर रए। मनो जे टाईप को टापिक होतई सेंसटिव आए। कोन जाने कैत-कैत मानुस को मनई बदल जाए। आखिर बे सोई मानुसई तो होत आएं जोन रोज की पर्टी बदलत रैत आएं। बाकी मोय भैयाजी पे भरोसो आए के बे भौजी खों कभऊं नईं छोड़ सकत। ई मामले में बे भाजपा औ आरएसएस घाईं अपनी पार्टी के लाने ईमानदार आएं, मने भौजी के लाने ईमानदार आएं।
‘‘अरे, तुम तो हमाई ठिठोली खों सीरियसली ले बैठीं। हम तुमें छोड़ के कां जाबी?’’ भैयाजी खों सोई बात की गंभीरता समझ परी। बे समझ गए के जे राजनीति नोईं उनकी जिनगी आए जोन में जो भौजी रूठ गईं सो उनकी जिनगी झण्ड हो जैहे। सो बे भौजी खों पुटियान लगे।
‘‘काय, तुम तो बुरौ मान गईं! हम सो मजाक कर रए हते। सुनो! हम का कै रै, के अब गुरसी में अच्छे अंगरा हो गए, ईपे एकाद भटां ने भून लओ जाए, अच्छो भरता बन जैहे।’’ भैयाजी बात बदलत भए बोले।
‘‘भंटा काय, तुमई खों ने भून दें ईपे, तुम तो सोई भंटा भए जा रए। थाली पे लुढ़कबे की बड़ी पर रई।’’ भौजी खुंखियात भई बोलीं।
‘‘अरे धना! हम तुमाए पांव परें, हम तुमें छोरबे की का कभऊं सोच सकत?’’ भैयाजी पूरे सरेण्डर होत भए बोले।
‘‘सोचियो बी नईं! ने तुम कोनऊं नितीश कुमार आओ औ ने हम जनता दल यूनाईटेड आएं, जो हम तुमें वनपीस बदलबे दैंहें। तुमाए हाथ-गोड़े तोड़-ताड़ के तुमाए मूंड़ पे रख दैंहें।’’ भौजी ने भैयाजी खों चेतावनी दे डारी। फेर मोसे बोलीं,‘‘काय बिन्ना हम ठीक कै रए के नईं।’’
‘‘बिलकुल ठीक कै रईं भौजी!’’ मैंने भौजी खों समर्थन करो। भैयाजी अपनो कान पकरन लगे। सो आप ओरें सोई ध्यान राखियो के घरे कोनऊं जो बदरबे की बात करे सो भौजी घांईं स्टैंड लइयो।    
मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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