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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 22, 2024

बतकाव बिन्ना की | अबे तो पार्टी जारी आए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
अबे तो पार्टी जारी आए     
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘बिन्ना! आजकाल भौतई मजो आ रओ!’’ भैयाजी मुस्कात भए बोले।
‘‘काय, कैसें?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘देख नई रईं, भगदर सी मची परी। सबरे टुकर-टुकर एकई पार्टी खों देखे जा रए के कबे वे अपने दोरे को फाटक खोलबे की किरपा करें और उने भीतरे पिड़ा लेंवे।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अच्छा, आप उन ओरन की कै रए!’’ मैंने भैयाजी से कई। काय से के मोय समझ में आ गई कि भैयाजी आजकाल जो पार्टी बदलबे को खेल चल रओ ऊके बारे में कै रए।
‘‘और का!’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर भैयाजी, अब ई सब में मोय तो कोनऊं मजो नई आत, काय से के अब तो जे आम-सी चलन भई जा रई। जां चुनाव आन लगे सो नेता हरें नांय के मांय होन लगत आएं। ई में अब कछू नओ नई रै गओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘काय नओ नईयां? अभईं देखों नईं? के एक पुराने नेताजी बाल-बच्चा संगे दूसरी पार्टी में जाबे वारे हते। बा तो इत्तो दोंदरा मच गओ के उने रुकने परो और सहूरी से काम लेने परो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘पर बे उते गए तो नईं। का पतो के बात सांची हती की झूठी हती।’’ मैंने कई।
‘‘काय, झूठी फैला के उने का मिलतो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अब हमें का पतो के उने का मिलतो। बाकी आप देखों, जोन को अपने मकान को मोल जानने होत आए तो कछू तो सूदे-सूदे कोनऊं इंजीनियर से एसेस करा लेत आएं औ कछू जोन ज्यादा सयाने होत आएं, बे अपने मकान खों बेचबे के लाने विज्ञापन छपवा देत आएं। ईसे होत का आए के खरीदबे वारे मकान को एसेस मने आकलन करन लगत आएं, सो मकान को चालू मोल अपनेई आप पतो पर जात आए। ई सब में जे सोई फायदा रैत आए के जोन मकान देखबे के लाने आत आएं उनसे मुतकी बतकाव कर के टेम पास हो जात आए औ जान-परिचय सोई बढ़ जात आए। औ ऊपे जो घर अच्छो साजो सजो-धजो होय तो ऊको दिखा के तारीफें पाने को सुख बोनस में मिल जात आए। ऐसो सौदा कभऊं पटत नईयां काय से के मकान तो बेचने रैत नईयां, खाली मोल जानबे को खेल रैत आए।’’ मैंने भैयाजी खों अच्छे से समझाई।
‘‘मने तुम कै रईं के जे दिखाबे को खेल रओ। उने जाने कऊं नई हतो?’’ भैयाजी सोच में पर गए।
‘‘मैं जा नईं कै रई के जा सब खेल रओ, मने ऐसो होत रैत आए जा आपके लाने याद कराई। बाकी को जाने उनको मन भओ होय, मगर इत्तों हल्ला मच गओ के अबे ठैरने परो। अपन ओंरे भला का कै सकत? जे सब राजनीति के खेल आएं।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ बिन्ना! तुमने ठीक कई। जे सबरे राजनीति के बड़े-बड़े खिलाड़ी ठैरे। अपनो इनको का मेल? जे ठैरे पोलो वाले खिलाड़ी और अपन ठैरे कंचा वारे खिलाड़ी। बे पोलो स्टिक से धकिया-धकिया के बाॅल गढ़ा में सरका देत आएं औ अपन अपनी छिंगरियां से भुरसट करत-करत कंचा को घुच्चू में डारत आएं। सांची, अपन उनकी घांई नईं सोच सकत।’’ भैयाजी ने बड़ी गंभीरता से कई। औ ईके संगे ने जाने कोन सो दुख उनके मों पे झलक परो।
‘‘का हो गओ भैयाजी? आप अचानक इत्ते सीरियस काय हो गए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘कछू नईं भओ!’’ भैयाजी ने मुंडी हिलात भई कई। जो कोनऊं इनकार में मुंडी हिला के ‘‘कछू नईं भओ’’ कए, तो मानो के हंड्रेड परसेंट कछू ने कछू सल्ल जरूर आए।
‘‘कछू तो आ रई आप के मन में, तभईं तो अचानक आपको मों मुरझा सो गओ। का हो गओ? अब बताई डारो, ने तो आप जानत आओ के जब लौं आप बताहो नईं, मोय आपको चेंटे रैने।’’ मैंने भैयाजी से कई।
मोरी चेंटें रैने वारी बात पे भैयाजी तनक मुस्काए औ बोले,‘‘हमें तो जे सोच के दुख होत आए के जे नेता हरें खाली अपनईं-अपनईं सोचत आएं। इने ऊ पब्लिक की कछू नईं परी जो इनके लाने वोट दे के इने जिताती आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बात तो सांची आए आपकी, मनो जे आप कोन के लाने कै रै?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘उनईं के लाने जोन की अभई इते से उते होबे की बात चल रई हती। का तुमें याद नईं के ई चुनाव से पैले वारे चुनाव में इन्हईं खों जिताओ गओ रओं। मने पब्लिक ने इनको औ इनकी पार्टी वारों को वोट दए रए, मनो इन ओरन ने का करो रओ? इनके मुतके जने बिक-बुका के रिसाॅर्ट में जा बैठे औ जे अपनी कुर्सी ने सम्हार पाए। सो, इनको तो ओई टेम पे इते से उते हो जाने तो। ईसे अबे दोदरा में फंस के मन ने मसोसने परतो। पब्लिक तो उल्लू आए जोन खो सीधा कर-कर के जे अपनी साधत रैत आएं।’’ भैयाजी ने कई।
मैं उनकी ओर मों बाए देखत रै गई। ‘‘उल्लू सीधा करबे’’ को इत्तो नोनो उदाहरण मैंने ईसे पैले कभऊं ने सुनो रओ। भैयाजी सोई कभऊं-कभऊं गजबई बतकाव कर जात आएं।
‘‘अब तुम का सोचन लगी?’’ भैयाजी ने मोसे पूछी।
‘‘मैं जा सोच रई के पब्लिकई काय बरहमेस के उल्लू बनत आए? जे नेता हरें काय नईं उल्लू बनत?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जे ओरें कैसे बन सकत आएं? पब्लिक ठैरी शेर औ नेता ठैरे लड़इया, सो शेरपना में पब्लिकई उल्लू बनत आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कैसी? मैं कछू समझी नईं।’’ मैंने कई।
‘‘बा किसां तुमें याद नईं का के एक जंगल में एक शेर रैत्तो। ऊके संगे लड़इया रैत्ते। एक दिना लड़इयन ने सोची के जा शेर बड़ो राजा बनत फिरत आए, तनक ईको मजा चखाओ जाए के असल में राजा को आ। सो लड़इयन ने डरबे की एक्टिंग करी। शेर ने पूछी के का भओ? तुम ओरें हमाए रैते कोन से डरा रए? सो लड़इयन ने कई के महाराज, उते कुआं में एक शेर रैन लगो आए औ कै रओ हतो के हम तुम सबई खों मार के खा जाबी। तुमाओ राजा बी हमसे तुमें नईं बचा सकत। जा सुन के शेर को आओ ताव। बा दहाड़त भओ बोलो, चलो देखत आएं तुमाए बा दूसरे शेर खों जो कुआ में लुक के बैठो। लड़इयां हरें अपने राजा शेर खों कुंआ के लिंगे लेवा ले गए। उते पौंच के उन्ने शेर खों कुआ में झांकबे की कई। शेर ने कुआ में झांको, सो ऊको दूसरो शेर दिखा गओ। बाकी असल में बा दूसरो शेर न हतो, बा तो ओई की परछाईं हती। शेर ने दाहाड़ो, परछाई सोई दहाड़त भई दिखानी। शेर को आओ गुस्सा औ बा ने कुआ में छलांग लगा दई के कुआ वारे शेर की गरदन दबोच सके। मनो शेर के कूदत संगे परछाई मिट गई और शेर कुआ के पानी में हाथ-पांव मारन लगो। तब ऊको समझ परी के जे लड़इया हरन ने ऊको उल्लू बना दओ आए। ऊने लड़इयन से शिकायत करी तो बे ओरें मजाक उड़ात भए बोले, तुम काय के राजा? बा तो हम तुमसे शिकार कराबे के लाने तुमें राजा-राजा बोल के उल्लू बनात रैत आएं। ताके तुम शिकार करो औ हमें फोकट में खाबे को मिल जाए। शेर बोलो, जा तुम ओरन से ठीक नई करो। हमें ऊपर आन देओ, फेर हम तुमें बताबी। लड़इयन ने शेर खों कुआ से निकारो और निकारतई साथ ‘महराज-महराज’’ करन लगे। शेर चिल्लाओ के पैले तो तुमने हमें कुआ में भेजो औ हमाओ मजाक उड़ाओ, औ अब महराज बोल के उल्लू बना रए। सो, लड़इया बोले, नईं महाराज, बा तो हम ऊ कुंआ वारे शेर खांें बोल रए हते, जोन को आपने मार के हमाई जान बचाई। लड़इया हरें गिड़गिड़़ाने की एक्टिंग करत भए बोले। जा सुन के शेर ने सोची के लगत आए के इन ओरन को सच्चाई पता नईं परी, अच्छो रैहे के ईको ढंकई रैन दओ जाए। शेर मूंछन पे ताव देत भओ बोलो। हमने तो पैलई कई रई के हमारे रैत भए तुम ओरन खों डरबे की कोनऊं जरूरत नोंईं। चलो अब घरे चलें। सो अपनी मूंछन पें ताव देत भओ शेर आगे-आगे चल परों और ऊके पांछूं लड़इयां हरें मों दबाके हंसत भए चल परे। काय से के उने तो अबे शेर से औ शिकार करा के दावतें खानी रईं। अब याद आ गई तुमें जा किसां?’’ भैयाजी ने पूरी किसां सुना के मुझसे पूछा।
‘‘हऔ भैया याद आ गई। मनो आपने जोन बात के लाने सुनाई, बा तो गजबई कर दई। आप सोई व्यंगकार बने जा रए।’’ मैंने भैयाजी की प्रशंसा करी।
‘‘काय के व्यंगकार? अपने इते तो व्यंगई भर आए, कार तो उन ओरन को मिलत आए, बा बी लाल बत्ती वारी।’’ कै के भैयाजी हंसन लगे। मोय सोई हंसी फूट परी।      
सो, अबे तो पार्टी जारी आए! देखत जाओ के आगे-आगे का-का होत आए। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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