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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, February 8, 2024

बतकाव बिन्ना की | इते एक्जाम चल रए, उते टाईगर घूम रए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम | प्रवीण प्रभात

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | सा. प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
इते एक्जाम चल रए, उते टाईगर घूम रए ! 
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘बिन्ना तुम कुल्ल टेम से लगी हो के तुमें नौरादेही टाईगर रिर्जव जाने। अब चलों हम तुमें पन्ना नेशनल पार्क लिवा चलहें।’’ भैयाजी बड़े अच्छे मूड में दिखाने।
‘‘आप हमें ने बनाओ! इते इत्ते पास नौरादेही लौं अब तक नईं लिवा ले गए औ बतकाव कर रए पन्ना नेशनल पार्क की।’’ मैंने सोई भैयाजी खों उलाहना दओ।
‘‘नई सच्ची, हम तुमें और तुमाई भौजी, दोई जनों खों नेशनल पार्क लिवा ले चलहें।’’ भैयाजी फेर के बोले।
‘‘काय उते का खास हो गओ जो आप नेशनल पार्क को रट्टा दे रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘काय तुमने अखबार नई पढ़ो का? सबरे अखबार में बड़े-बड़े अक्षरन में खबरें छपी आएं के पन्ना नेशनल पार्क में सवा घंटा में दस ठईयां टाईगर दिखाने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ! मैंने सोई पढ़ी रई। ऊ टाईगर हरन की पूरी फेमिली संगे हती। बाघ रए, बाघिन रई औ संगे उनके मोड़ा-मोड़ी मने उनके बाल-बच्चा सोई रए।’’ मैंने कई।
‘‘जेई से तो हम सोच रए के इते नौरादेही में सो कछू लड़ईयां, खरगोश, बंदरा औ पंछी-मंछी देखबे खों मिलहें, मनो उते तो टाईगर को पूरो कुनबा दिख जेहै।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, आप कै तो सई रए। कां तो एक टेम ऐसो आ गओ रओ के लगत्तो के उते पार्क में एकऊ टाईगर ने बचहें, मगर अब देखों आप के पूरो कुनबा उते अपनो फैमिली टाईम बिता रओ। जा पढ़ के तनक अच्छो सो लगो। मनो मोय टाईगर के कुनबा से एक औ टाईगर की याद आ गई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘कोन से टाईगर?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘बेई जोन कैत्ते के ‘टाईगर अभी जिन्दा है’! मनो उने तो जीतबे के बाद प्रदेश-बदर कर दओ गओं।’’ मैंने कई।
‘‘जो का कै रईं? जिला बदर, प्रदेश बदर जे तो अपराधियन खों करो जात आए, तुम कोन की कै रईं? जोन हम समझ रए उनई की, के कोनऊं और की?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘उनई की जोन आप समझ रए। अभईं बे होते सो टाईगर के कुनबा पे सोई कोनऊं अच्छो सो डायलाग बोल रए होते। बाकी भैयाजी, जे जो टाईगर हरों को कुनबा आए का उनकी फैमिली लाईफ की प्राइवेसी को तनकऊं खयाल नईं रखो जात का? हमने अखबार में पढ़ी के बे ओरें बेडरूम सीन कर रए हते औ देखबे वारों खों बा सब बी दिखा दओ गओ। मोय जो नईं पोसाओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘तुम तो बेफालतू की कैत रैत हो! अरे, बे तो टाईगर आएं, उनको कोनऊं बेडरूम थोड़ेई होत आए।’’ भैयाजी झुंझलात भए बोले। फेर कछू सोचत भए बोले,‘‘सुनो, ने हुइए तो अपने संगे बा पांड़ेजी की गुड़िया खों सोई लिवा चलहें। बा सोई हमें मुतकी बेर कै चुकी के ऊको टाईगर देखने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘जो गुड़िया खों संगे ले चलने आए तो एक्जाम खतम होबे को इंतेजार करने पड़हे। काय से के अबे तो स्कूलन के एक्जाम चालू हांे गए। औ आपको पता भैयाजी, उते एक्जाम टेम पे उन ओरन खों फट्टी पे जमीन पे बैठने परो। ई पे जबे हल्ला मचो तब उन ओरन के लाने कुर्सी टेबल को इंतजाम करो गओ। बा इंतजाम पैले बी तो हो सकत्तो। कोनऊं एक्सीडेंट घांई अचानक से एक्जाम थोड़ेई होन लगे। कुल्ल दिना पैले एक्जाम की डेट बता दई जात आए। फेर बी बे बच्चन के लाने कुर्सी-टेबल को इंतजाम पैले से ने कर सके। मनो जो कोनऊं हल्ला ने करतो तो पूरो एक्जाम का फट्टी पे ई निपटा दओ जातो? मोय तो जे तरीका समझ में ने आओ।’’ मोय कैत-कैत गुस्सा सो आन लगो।
‘‘तरीका जे आए बिन्ना, के अपने इते जब लौं कोनऊं मर-मुरा ने जाए तब तक लौं सड़क के गड्ढा लौं नई भरे जात, सो जे तो एक्जाम की बात आए। अपने इते प्रशासन व्यवस्था कड़क मम्मी घांईं आए। के जब लौं बच्चा रो-रो के हलाकान ने हो जाए, बा ऊको दूध लौं नई पिवात।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सांची कई आपने! बाकी गर स्कूलन की छोड़ दई जाए तो आप देखो सबरे नेता हरन को एक्जाम सो चलई रओ।’’ मैंने कई।
‘‘एक्जाम नोईं, एक्जाम की तैयारी कओ! एक्जाम सो अबे हुइए। फेर हार-जीत में पतो परहे के कोन की तैयारी अच्छी भई रई हती औ कोन की पंचर रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ तैयारी कै लेओ! मनो आए तो एक्जाम घांई। पब्लिक खों कैसे पटाने, ईकी कोचिंग क्लासें लगन लगी आएं। कऊं जोड़ो यात्रा हो रई, तो कऊं मोड़ो यात्रा हो रई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘मोड़ो यात्रा? जा कोन सी यात्रा आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मोड़ो यात्रा मने वोटरन खों अपनी ओर करबे की कोशिश वारी यात्रा।’’ मैंने हंस के कई। काय से के जो मोरो ईजाद हतो।
‘‘काय तुमें नई लग रओ के ई बेर को चुनाव एकतरफा सो हुइए? विपक्ष में सो कोनऊं दम ई नईं दिखा रई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘इत्ते जल्दी में ने परो भैयाजी! अबे कुल्ल टेम आए। हो सकत के कछू चमत्कार हो जाए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘चमत्कार का हुइए? अब तो नमस्कार भओ जा रओ। मने टाटा-बाय-बाय। अभईं विधान सभा चुनावन में नई देखों का? औ बा तो रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पैले को रओ, सो विपक्ष आड़ो डरो दिखानो। अब तुमाओ विपक्ष कोन से खेत काट लैहे?’’ भैयाजी मोए ताना मारत भए बोले।
‘‘मोरो विपक्ष काय को? मैं कोन सी राजनीति वारी ठैरी? औ ने मोए चुनाव में ठाड़ी होने, जो आप मोरो विपक्ष कै रए।’’ भैयाजी की बात सुन के मोरो मुंडा खराब हो गओ।
‘‘तुमई तो चमत्कार की बात कर रई हतीं।’’ भैयाजी ने कई।
‘‘हऔ सो अब्बी कर रई! का विपक्ष के बारे में कछू सोचबे से बा मोरो कहा जेहै?’’ मैंने सोई बहस करी।
‘‘तुमाओ नई भओ, मनो तुमें उनसे सहानुभूति सो हो रई।’’ भैयाजी चिड़कात भए बोले।
‘‘सो ऊमें का भओ? जो कोनऊं कमजोर होय, बीमार होय, परेशान होय, सो का उनके लाने सहानुभूति नईं रखो चाइए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘रखो, खूब रखो सहानुभूति, बाकी जब बे रोएं सो आंसुवां सोई पोंछ दइयो।’’ भैयाजी मोरो मजाक सो उड़ात भए बोले।
‘‘हऔ पोंछ देबी। रोबे वारों को अंसुवां पोछना पुन्न को काम होत आए।’’ मैंने हंस के कई। काय से के मोय समझ में आ गई रई के भैयाजी मोय जानबूझ के चिड़का रए हते।
   ‘चलो छोड़ो पक्ष-विपक्ष को! जे बताओ के नेशनल पार्क जाबे को कबे को प्रोग्राम बनाओ जाए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मैंने कई ना के जो गुड़िया को संगे ले चलने होय सो एक्जाम खतम होबे को इंतजार करने पड़हे। ने तो ऐसो करो जा सकत आए के पैले अपने ओरें हो आएं, फेर जो गुड़िया फुर्सत हो जेहै सो ऊके संगे फेर के चले चलबी।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, तुमाओ सोचबो सई आए।’’ भैयाजी बोले। फेर हंसत भए कैन लगे के-‘‘ हौ, औ उते चल के जे बी देख लेबी के उते को सीन बच्चन के देखबे जोग आए के नईं? नई तो पार्क वालन से कैबी के इते ‘सिर्फ वयस्को के लिए’ को बोर्ड लगा देओ।’’
भैयाजी की बात सुन के मोय सोई हंसी आ गई। बाकी इते एक्जाम चल रए औ उते टाईगर हरें घूम रए। जंगल वारे टाईगर सो एक्जाम के बाद लौं घूमहें, मनो चुनावी एक्जाम के बाद राजनीति वारे टाईगर हरों को का हुइए, कछू कओ नई जा सकत। चाए जीतें, चाए हारें, उने कोन से पार्क भेज दओ जाए, जा कोनऊं खों नईं पतो।
बाकी सबरे एक्जाम भूल-भाल के हम ओरें नेशनल पार्क जाबे की प्लानिंग करन लगे। जबें हो आहें सो बताहें, ने तो बतकाव के लाने कुल्ल टापिक ठैरे हम ओरन के पास। जो लौं चुनाव नई हो जा रए तब लौं टापिक की कोनऊं कमी ने रैहे। ने तो रामजी की किरपा सो बनी कहाई। बो का कैत आएं के ‘राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट।’ जी तरफी देखो राम नाम की ठिलियां सजी दिखा रईं। सबसे बड़ो भक्त होबे की होड़ सी सोई मची आए। रामजी सबकी भली करें! तुलसीदास जी सोई कै गए रए के -
जा पर कृपा राम की होई,
ता पर कृपा करहिं सब कोई।
सो, भैया-बैन हरों, मनो बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। तब तक लौं जै रामजी की!
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