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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, March 14, 2024

बतकाव बिन्ना की | चुनाव बरहमेस होत रैने चाइए | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
चुनाव बरहमेस होत रैने चाइए    
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       आज संकारे भैयाजी ने मोय मोबाईल पे फोन करो के बिन्ना आज घरे खाना ने बनाइयो, दुफैर को तुमाओ भोजन हमाए इते हुइए। मोय तनक अचरज लगो के ऐसो का हो गओ के भैयाजी ने मोय खाने को न्योतो दओ। बाकी ऐसो नइयां के बे खाबे को न्योतो नईं देत आएं, मैं उनके घरे कई बेरा खा चुकी हूं। पर संकारे से फोन कर के न्योतो देबे की बात कछू अटपटी सी लगी।
खैर, खाबे वारे को का, ओए तो खाबे से मतलब रैत। मैं भी अच्छी सपर-खोंर के, भगवानजी को अगरबत्ती लगा के दुफैरी के भोजन की टेम पे भैयाजी के घरे जा पौंची।
भैयाजी के घरे भीतरे पांव धरत संगे पूड़ियां तलबे की खूशबू आ गई। संगे सब्जी के मसाले की नोनी सी सुगंध सोई नाम में घुसी चली आई। इत्तो अच्छी सुगंधन से पेट के चूहा कुलटियां खान लगे। भौजी ने मोय देखो तो बे खिल उठीं।
‘‘आओ बिन्ना! आओ! तुमाए भैयाजी ने तुमें आते देख लओ रओ, जेई से बे बोले के अब पूड़ियां तलबे शुरू कर दो। सो हमने शुरू कर दओ। चलो तुम और तुमाए भैयाजी उते डायनिंग टेबल पे बैठ जाओ, हम परसत जा रए।’’ भौजी बोलीं। बे बड़ी खुश-खुश दिखा रईं हतीं।
‘‘अरे, नईं भौजी! ऐसो करत आएं के अपन दोई मिल के बना लेत आएं फेर तीनो जने संगे बैठ के खाबी।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘अरे नईं! तुम दोई बैठो! दो-चार ठईयां औ तल लेबें, फेर हम सोई संगे बैठ जाबी।’’ भौजी बोलीं। उन्ने दसके पूड़ियां बेल के धरी रईं। बे ई तलत जा रई हतीं। कछू तली-तलाई धरी हतीं। मोरो मन भौतई जोर से पूछबे को कर रओ हतो के जे भोजन काय कराओ जा रओ? मनो, पूछबे में सकोच हो रओ हतो। भौजी कैतीं के एक तो हम तुमें फोकट को खिला रए औ तुमें कारण जानबे की परी?
भैयाजी डायनिंग टेबल पर पानी को जग धरत भए बोले,‘‘आओ बिन्ना, बैठो इते।’’
मैं जा के एक कुर्सिया पे बैठ गई। भैयाजी डोंगा खोल-खोल के मोरी थाली में सब्जियां धरन लगे। कुल तीन किसम सब्जियां हतीं। घर की बनी बुंदी को रायता हतो। मीठा को डोगा खोल के भैयाजी दिखात भए बोले,‘‘ईमंें हलवा आए। जो पैले चाउने होय सो निकार लइयो ने तो अखीर में ले लइयो। जैसो तुमाओ मन करे।’’
‘‘अखीर में लेबी!’’ जा कह के मैंने खाबो शुरू करो। अबे दो पूड़ियां जीमी हतीं के भौजी सोई संगे आ बैठीं। उते डायनिंग टेबल से किचन को प्लेटफारम दिख रओ हतो। मैंने देखी के भौजी ने तेल की क़ढ़ाई तो अलग धर दई हती, पर चूलो को बर्नर जल रओ हतो। बे चूला बुझाबो भूल गई हतीं। गैस फालतू जली जा रई हती। सो मोय नई रओ गओ औ मैंने भौजी से कई,‘‘भौजी, आप चूलो बुझाबो भूल गईं। उते गैस जल रई।’’

  ‘जलन देओ!’’ भौजी पूड़ी खात भईं लापरवाई से बोलीं।
‘‘बा सबरी गैस जल जैहे।’’ मैंने भौजी से फेर के कई। मोय लगो के भौजी ने शायद सई से सुनी नइयां।
‘‘जलन देओ बिन्ना! जे गैस जलाबे के लानेई तो जा पार्टी हो रई।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘का मतलब?’’ भैयाजी की बात सुन के मोरो मुण्डा चकरा गओ।
‘‘मतलब जे बिन्ना के तुमने अखबार में पढो हुइए के गैस सौ रुपइया सस्ती हो गई।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो?’’ मैंने पूछी।
‘‘सो जे, के तुमाई भौजी बा सस्ती वारी गैस को सिलेंडर लेबो चात आएं। अब जब लौं जे सिलेंडर खाली ने हुइएं तब लौं नओ सिलेंडर कोन के बदले लओ जेहै? सो जेई लाने तुमाई भौजी ने हमेसे सलाह मांगी। हमने बी कै दई के अच्छी पकवानें छानों, बिन्ना को न्योतो कराओ। दो-तीन दिनां में गैस खुदई बढ़ा जैहे।’’ भैयाजी हंसत भए बोले।
‘‘ऐं, सो का बा सिलेंडर मुफत में मिलहें? खाली सौ रुपैया कम करे गए आएं।’’ मैंने कई।
‘‘सो?’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो जे के बा बी चुनाव को खयाल कर के। ने तो का पैले कम करो गओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जेई से तो बिन्ना!’’ भौजी जो अबे लौं चुपचाप खात भईं हम दोई की बातें सुन रईं हतीं, बोल परीं,‘‘जेई लाने हमने तुमाए भैयाजी से कई के ऐसो मौको बेर-बेर ने आहे। ऐसो रोज नई होत के सबके लाने गैस सस्ती करी जाए। अबईं चुनाव हो जैहें, सो दाम फेर के चढ़ जैहें। फेर ऐसो सुख कां मिलहे के हाथ खोल के गैस जलाओ। सो इन्ने कई कि बात तो सांची आए तुमाई। अब तुम अपनो मन ने मारो। जी भर के गैस जला के अपनो जी जुड़ा लेओ। इनई ने आइडिया दओ के बे सब चीजें बना डारो जोन ज्यादा गैस जलबे के डर से बनाबो टाल देत हो। हमें इनको जो आइडिया अच्छो लगो। सो आज तुमाए न्योतो से उद्घाटन कर दओ।’’ भौजी जोश से भर के बोलीं।
‘‘हऔ, औ जबलौं जे गैस को सिलेंडर खाली ने हो जाए तब लौं तुमें दोई टेम हमाए इते जीमने।’’ भैयाजी बोले।
‘‘हऔ, दोई टेम इतई भोजन करियो। चाओ तो चाय बी इतई बना के पी सकत हो।’’ भौजी बोलीं।
‘‘भैयाजी, खाली सौ रुपइया कम भए में आप ओरन खों इत्ती खुशी हो रई, जो कभऊं फ्री कर दई गई तो आप ओरन को का हुइए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘हमाओ तो ख्ुाशी के मारे हार्टफेल हो जैहे। मानो हमें पतो आए के सरकार कुकिंग गैस कभऊं फ्री ने करहे। बा तो सामने चुनाव ठाढ़ो ने होतो तो जे सौ रुपइया बी कम ने होते।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई भैयाजी!’’ मैंने हामी भरी।
‘‘जेई से तो हमने सोची के तुमाई भौजी खों सौ रुपइया कम वारी गैस लेने की खुशी ले लेन दओ जाए। बढ़ी की तो हमेसई झेली आए, तनक कम होय की खुशी को स्वाद चख लओ लेबें।’’ भैयाजी बोले।
‘‘आप दोनों ने सई सोची। वैसे आप दोई ऐसई सई-सई सोचत रओ तो मोरे तो दोई हाथ में लड़ुआ रैने।’’ मैंने हंस के कई।
‘‘जो ऐसो आए तो दुआ करो के रोज-रोज चुनाव होंय। जो रोज-रोज-रोज चुनाव हुइएं तो रोज कछू ने कछू के दाम कम करे जाहें औ अपन ओरन को खुश होबे को मौका मिलत रैहे।’’ भौजी बोल परीं।
‘‘आपकी दुआ कबूल होय!’’ मैंने अपनो दाओं हाथ उठा के कओ। फेर हम तीनों हंसन लगे।
तनक देर में खाना खब गओ। हम तीनों ने मिल के डायनिंग टेबल से जूठा बरतन हटाए औ सोफा पे आ बैठे। अब तीनोंई खों आलस लग रई हती। भारी किसम को खाना खाबे को जो रिजल्ट तो होनई तो।
‘‘बिन्ना! का सोच रईं?’’ भैयाजी ताड़ गए के मैं कछू सोच रई।
‘‘कछू खास नईं।’’मैंने कई।
‘‘फेर बी?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘कछू सामान नईं पोसाओ का?’’ भौजी चिंता करत भई पूछन लगीं।
‘‘अरे नई! सब कछू भौतई टेस्टी बनो रओ।’’ मैंने कई।
‘‘फेर का बात आए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘मैं तो बस जेई सोच रई के अपन ओरें गैस सिलेंडर पे सिरफ सौ रुपइया को दाम कम होबे की इत्ती खुशी मनान लगे। औ जोन के इते खाली प्री-वेडिंग के लाने करोड़ों खरच कर दए जात आएं, बा उनकी जिनगी कोन टाईप की होत हुइए?’’ मैंने भैयाजी औ भौजी खों अपने मन की बात बता डारी।
‘‘ऊ बारे में तो अपन सोचई नई सकत बिन्ना! कां राजा भोज औ कां गंगू तेली? बे आएं राजा भोज औ अपन ठैरे गंगू तेली। सो अपन अपनो जिनगी को तेल पेरत रैत आएं औ छोटी-छोटी बातन में ख्ुाशी तलाशत रैत आएं।’’ भैयाजी तनक गंभीर होत भए बोले।
मोय लगो के मैने गलत टाॅपिक छेड़ दओ। जे दोई कित्ते खुश हते औ मैंने सीरियस बात कर दई। जो ठीक ने करो।
‘‘भैयाजी, असली तो भौजी की जै बोलो, जोन ने इत्तो टेस्टी खानो पकाओ। लौकी को इत्तो अच्छो कोफ्ता मोसे बनात नई बनत।’’ मैंने बात बदल दई।
भौजी खुश हो के मोय लौकी को कोफ्ता बनाबे को तरीको समझान लगीं, औ भैयाजी खा-पी के मस्त ऊंघन लगे। बात सीरियस होत-होत फेर के हल्की हो गई। मोय सोई लगो के चुनाव बरहमेस होत रैने चाइए, ईसे तनक-तनक खुशी बरहमेस बनी रैहे। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। 
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