Pages

My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, March 7, 2024

बतकाव बिन्ना की | अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को बुलौव्वा | डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
------------------------
बतकाव बिन्ना की
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को बुलौव्वा    
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘का बात है भौजी? काय की गिचड़ हो रई आप ओरन में?’’ मैं भैयाजी के घरे के बाजू से गुजर रई हती के भीतरे से भैयाजी औ भौजी की गिचड़बे की आवाजें सुनाई परीं। मोसे नई रओ गओ औ मैंने पौंच के पूछई लओ।
‘‘अरे कछू नईं बिन्ना! तुमाई भौजी की तो रोजई कछू ने कछू चलत रैत आए।’’ भैयाजी बात छुपात भए बोले।
‘‘हमाई काय चलत रैत आए? तुमई अपनी चलात हो!’’ भौजी गरज परीं।
‘‘हो का गओ? कछू तो बताओ!’’ मैंने दोई से पूछीं
‘‘हम बता रए बिन्ना, का आए के हमने तुमाए भैयाजी से गई के हमें नई धुतिया देवा देओ, सो जे पैले कैन लगे के का करहो धुतिया, इत्ती तो आएं तुमाए पास। अब तुमई सोचो के जे का बात भई?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ! सांची कै रईं आप! धुतिया तो जित्ती बी होय कमई लगत आए। काए से के दो-चार दफा पैहनी नईं के बा ऊंसई सी लगन लगत आए।’’ मैंने सोई भौजी की बात पे हामी भरी, काय से उनकी बात मैं समझ सकत्ती।
‘‘जै हो तुम दोई की!’’ भैयाजी हाथ जोरत भए बोले।
‘‘जै तो तब हुइए जबें आप भौजी खों नई धुतिया देवा दैहो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जा बात के लाने तो जे मान गए आएं।’’ झट्टई भौजी बोलीं।
‘‘ऐं, तो फेर काय गिचड़ रईं?’’ मोए जा सुन के अचरज भओ।
‘‘हमने इनसे जे कई के हम ऐसई धुतिया ने लेबी, आप संगे चल के दिलाओ हमें। पर जे कै रै के तुम अकेली जाओ औ ले लेओ, ने तो शरद बिन्ना खों संगे ले जाओ। तुमें तो हमें संगे ले चलबी लेकिन इनके पांव में का गेरमां बंधे, के जे संगे निंग नई सकत?’’ भौजी बोलीं।
‘‘हऔ तो, भौजी ठीक तो कै रईं के आप संगे चलो।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘चल तो सकत आएं मनो, उते जा के हम बोर हो जैहें।’’ भैयाजी कुनमुनात भए बोले।
‘‘काए भैयाजी, जबें भौजी आपके संगे सबई कहूं जा सकत आएं सो आप इनके संगे धुतिया दिबाबे काय नईं जा सकत?’’ मोय सोई गुस्सा सा आन लगो। मैंने आगे कई,‘‘अब जे जो बई धुतिया पैन्ह के कोनऊं शादी में जैंहे तो अकेली थोड़े जैंहें, आप सोई संगे जैहो। सो इते जाबे में का हो रओ?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जै कोनऊं शादी में जाबे के लाने धुतिया नोईं खरीद रईं?’’ भैयाजी बोल परे।
‘‘सो? का घरे पैन्हबे के लाने लेने?’’
‘‘अब इन्हईं से पूछ लेओ।’’ भैयाजी बोले।
‘‘बो का आए बिन्ना के हमें अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को बुलौव्वा मिलो आए। काय, तुमें तो सोई मिलो हुइए।’’ भौजी बतात-बतात पूछ बैठीं।
‘‘कां को बुलौव्वा?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बा ममता जिज्जी वारो महिला दल आए न, ऊने हमें बुलौव्वा दओ आए।’’ भौजी ने बताई।
‘‘अच्छा बा वारो महिला दल।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ!’’ भौजी बोलीं।
‘‘सो का होने उते?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘बे ममता जिज्जी बता रईं हतीं के उते किसम-किसम के ब्यंजनों के स्टाल लगहें। किटी औ हाउजी सोई खिलाई जैहे। औ कोनऊं महिला नेता सोई आहें, तनक भाषण-माषण दे के, फोटू-मोटू खेंचा कर कढ़ जैहें। इत्तई में तो चार-छै घंटा लग जाने।’’ भौजी बातन लगीं। फेर उनको खयाल आओ,‘‘काय तुम हमसे काय पूछ रईं? तुमें तो सोई बुलौव्वा आओ हुइए।’’
‘‘आओ तो आए, मनो उन्ने मोय खाली व्हाट्सअप करो आए जीमें बा नेताईंन को नांव औ प्रोग्राम शुरू होबे को टेम लिखो, औ कछू नईं दऔ ऊमें।’’ मैंने भौजी खों बताई।
‘‘हैं? ऐसो का! बाकी हमें तो खुद ममता जिज्जी ने फोन कर के कई के तुमें आनई परहे। हमने तो उनसे बोली बी रई के जो हम आहें तो आपके भैयाजी घरे अकेले पर जैहें। सो बे कैन लगीं के जे महिला दिवस आए। ई दिनां तो उनको अकेलोई रैन देओ। तुम तो इते आओ, आपन ओरें हाउजी खेलबी। भौतई मजो आने वारो।’’ भौजी ने बताई के ममता जिज्जी ने उनसे का कई।
‘‘आप से बनत आए हाउजी खेलत?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘तनक-मनक बनत आए। कुल्ल समै से खेली नइयां। अब सोच रए के महिला दिवस अपन ओरन को दिवस आए सो बा दिनां हाउजी औ किटी तो खेलो चाइएं।’’ भौजी बोलीं।
‘‘महिला दिवस जे सब के लाने नई मनाओ जात भौजी।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘सो काय के लाने मनाओ जात आए?’’ भौजी मों बनात भईं बोलीं।
‘‘महिला दिवस जे लाने मनाओ जात आए के सबई जने संगे बैठे औ आप ओरन के लाने का अच्छो हो सकत ई पे बिचार करें। कोनऊ ने अच्छो काम करो होय, सो ऊकी बड़वारी करें। ताकि बाकी लुगाइयन पे ऊको असर परे। कछू आगे की योजना बनाई जाए के अपन ओरन की भलाई के लाने अपन ओंरे का-का कर सकत आएं।’’ मैंने भौजी खों समझाओ।
‘‘बात तो तुम साजी कै रईं मनो एक दिनां तो अपन ओरन को मजो करो चाइए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘एक दिनां का, सबई दिनां करो चाइए। बाकी ई एक दिनां तो संगे बैठ के सोचने चाइए के अपन ओरन को का मिल रओ औ का मिलो चाइए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘अपन ओरन खों कां कछू मिल रओ? बाकी जो सरकार की लाड़ली आए उनें तीन हजार रुपैया मिल रए। बात रई का मिलो चाइए की, सो जेई रुपैया अपन सबई खों मिलो चाइए।’ भौजी बोलीं।
‘‘काय ईसे साजो जे नइयां का के जे रूपैया के बदले कछू पक्को काम मिलो चाइए।’’ मैंने भौजी से कई।
‘‘को दे रओ काम? ईसे तो जे रुपैया भले, जोन कछू बिना करे-धरे खाते में आहें।’’ भौजी बोलीं।
‘‘औ बा रुपैया को आप करहो का?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘करने का आए? बा रुपैया से औ धुतिया खरीदबी। किटी खेलबी। औ ऐसई कछू काम करबी।’’ भौजी हड़बड़ा सी बोलीं।
‘‘बस, जेई के लाने आपको लाड़ली बहना वारे रुपैया चाउने?’’ मैंने भौजी से पूछी।
‘‘अब हमें नईं पतो। बाकी जो बासन मांजबे खों आत आए न लछमी, बा बता रई हती के ऊकी मोड़ी को एक मैंगो मोबाईल चाउने सो बा ओई के लाने बा रुपैया इकट्ठो करत जा रई।’’ भौजी बोलीं।
‘‘जेई तो सल्ल आए भौजी के एक तो सबरी लुगाइयों खों लाड़ली बहना नई बनाओ गओ। औ जोन को बनाओ गओ, ऊमें मुतकी ऐसी आएं जिने सई से जेई नई पतो के बा पइसन को बे का करें के उनके ज्यादा काम आए।’’ मैंने कई।
‘‘सो ईमें अपन ओरें का कर सकत आएं?’’भौजी बोलीं।
‘‘जेई सब तो सोचो चाइए महिला दिवस पे के अपन ओरें कैसे कमाएं, कैसे घर सम्हारें, कैसे अच्छो काम करें, औ जोन को कछू पइसा मिल रए बे कां लगाबें के उने आगे चल के औ फायदा होय।’’ मैंने भौजी खों समझाई।
‘‘अब हम समझे!’’ भौजी हंस के बोलीं।
‘‘का समझीं आप?’’ मैंने भौजी से पूछी। काय से के उनके हंसबे को मतलब मोय समझ में ने आव।
‘‘जेई समझे के ममता जिज्जी ने तुमें फोन कर के बुलौव्वा काय नई दओ।’’ भौजी फेर हंसन लगीं।
‘‘काय?’’ मोय कछू समझ ने परी।
‘‘जेई से उन्ने तुमें खास बुलौव्वा नईं दओ के तुम उने ऐसई बातें बतातीं औ उनको खाबे-पीबे को स्टाल औ किटी, हाउजी को प्लान फेल करा देतीं।’’ भौजी बोलीं।
‘‘पर बिन्ना सई तो कै रई!’’ अब के भैयाजी बोल परे, जो अबे लौं चुप्पी मारे हम दोई की बातकाव सुन रए हते।
‘‘आप ने बोलो! आप तो मनो, उठो औ झट्टई तैयार हो जाओ। हम दोई के संगे चल के हमें नईं धुतिया दिलाओ।’’ भौजी ने भैयाजी खों डांट लगा दई। भैयाजी उठे औ चल परे तैयार होबे के लाने। औ मैं सोचन लगी के कोनऊं औ प्रोग्राम होतो तो भौजी पुरानी धुतिया से काम चला लेतीं, मनो जे तो ममता जिज्जी को महिला दिवस को बुलौव्वा आए, ईमें तो भौजी खों नईं धुतिया चाउने परहे।
सो आप ओरन खों सोई अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की बधाई। बाकी, बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।      
 -----------------------------   
#बतकावबिन्नाकी  #डॉसुश्रीशरदसिंह  #बुंदेली #batkavbinnaki  #bundeli  #DrMissSharadSingh #बुंदेलीकॉलम  #bundelicolumn #प्रवीणप्रभात #praveenprabhat #महिलादिवस  #womensday2024

No comments:

Post a Comment