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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, April 25, 2024

बतकाव बिन्ना की | लबरा औ दोंदा में हो रओ मुकाबला | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
लबरा औ दोंदा में हो रओ मुकाबला 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘भैयाजी, आजकाल का चल रओ?’’मैंने भैयाजी से पूछी। बे आराम से सुस्ताते भए बैठे हते।
‘‘दोई चीज चल रई बिन्ना।’’ भैयाजी बोले।
‘‘कोन सी दोई चीज?’’ मैंने पूछी।
‘‘एक तो मुतकी गर्मी और दूसरो मुकाबला।’’भैयाजी बोले।
‘‘गर्मी तो समझ में आई मनो आप कोन से मुकाबला की बात कर रए?’’ मैंने भैयाजी से पूछी।
‘‘जे दिखा नईं रओ के लबरा औ दोंदा में कैसो मुकाबला चल रओ?’’ मैयाजी अचरज दिखात भए पूछन लगे।
‘‘जो आप चुनाव वारे माहौल की कै रए सो बा तो हमें दिखा रओ। बाकी कछू और की कै रए हो तो बात अलग कहाई।’’ मैंने कही।
‘‘ई टेम पे औ का बात हो सकत आए?’’भैयाजी बोले।
‘‘बाकी आपने सई उदाहरण दओ लबरा औ दोंदा को।’’ मैंने भैयाजी की तारीफ करी।
‘‘तुमें पतो लबरा औ दोंदा की किसां?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हऔ, मोय काय ने पतो हुइए? आप भूल रए के मैंने साहित्य अकादमी के लाने ‘बुंदेली लोककथाएं’ बुक लिखी रई जीमें बुंदेलखंड की मुतकी लोककथाओं को हिंदी में लिखों रओ, जीसे सबई इते पढ़बे वारे अपने इते की लोककथाओं के बारे में जान सकें।’’मैंने भैयाजी खों याद कराई।
‘‘हऔ, सई कई! मनो कई लोगों को ने पतो हुइए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो चलो उने सोई सुना दओ जाए। ऐसो आए के किसां तो जित्ती बेरा कई-सुनी जाए उत्तई मजो आत आए।’’ मैंने कई।
‘‘हऔ, औ उत्तई ज्ञान बढ़त आए।’’ भैयाजी हंस बोले। उनको इसारो दूसरोई हतो। काय से के उनें तो लबरा औ दोंदा को खयाल आ रओ हतो।
सो, लबरा औ दोंदा की किसां ऐसी आए के एक गांव में दो जने हते, जोन में एक को नांव लबरा हतो औ दूसरे को दोंदा। जैसो नांव, ऊंसई उनके लच्छन हते। लबरा लबरयात रैत्तों, मने झूठ बोलत रैत्तो औ दोंदा अपनई-अपनई देत रैत्तो। लबरा ऐसो झूठ बोलत के सुनबे वारे खों सच लगन लगत्तों और दोंदा ऐसो ठोंक-बजा के सच्ची-झूठी पेलत्तों के अपनी कई मनवा के ई दम लेत्तो। एक दिनां लबरा औ दोंदा में गिचड़ होन लगी। दोई जने अपने-अपने दद्दा की बड़वारी में फंकाईं देन लगे। लबरा कैन लगो के ‘‘हमाए दद्दा इत्ते पावरफुल हते के उन्ने एक मुक्का मार के शेर खों धूरा चटा दओ रओ।’’
‘‘बस्स? अरे हमाए दद्दा सो ऐसे हते के उन्ने अपने घरे की दलान में बैठे-बैठे फूंक मारी औ फूंक के जोर से उते जंगल में शेर ने दहाड़ मारी और मर गओ।’’ दोंदा बोलो। दोंदा की कई लबरा खों बुरई लगी, काय से के बो अपने दद्दा खों कम नई होन दे सकत्तो।
‘‘हमाए दद्दा के पास एक इत्तों लंबो बांस रओ के, बे जब चाय बो बांस से बादलन खों हला-हला के पानी बरसा लेत्ते।’’ लबरा ने एक झूठ औ पेल दओ।
‘‘हओ हमें पतों काय से के तुमाए दद्दा हमाए दद्दा के घुड़साल में अपनो बांस रखत्ते। काय से के हमाए दद्दा को घुड़साल बा बांस से लम्बो रओ।’’ दोंदा ने फेर दोंदरा दओ।
‘‘हमाए दद्दा के पास उड़बे वारों घोड़ा रओ।’’ लबरा बोलो।
‘‘हऔ, तुमाए दद्दा के ऊ घोड़ा के पर हमाए दद्दा ने कतर दए रए।’’ दोंदा काय को हार मानतो।
‘‘हमाए दद्दा के पास ऐसी बोतल रई जीमें बे पूरो तला को पानी भर लेत्ते।’’ लबरा बोलो।
‘‘बोतल तो बड़ी कहानी, हमाए दद्दा तो अपनी अंजन की डिबिया में तला को पूरो पानी धर लेत्ते।’’ दोंदा बोला।
ईपे लबरा से रओ नई गओ और कैन लगो,‘‘सुनों काय दोंदरा दे रए। ने तो तुमाए दद्दा के लिंगे अंजन की कोनऊं ऐसी डिबिया रई औ ने हमाए दद्दा के लिंगे कोनऊं बोतल रई।’’
‘‘तुमाए दद्दा के लिंगे बोतल ने रई हुइए, मनो हमाए दद्दा के लिंगे अंजन की डिबिया रई।’’ दोंदा ने दोंदरा दओ।
दोई लड़त-भिड़त सरपंच के इते पौंचे। ऊंसे कैन लगे के अब आपई न्याय करो। सरपंच ने दोई की बातें सुनीं औ फेर सोचन लगो के दोंदा ज्यादा चतुर आए, ईको पटा लओ जाए। सो सरपंच मुस्क्या के बोलो,‘‘दोंदा सई बोल रओ, काय से के ईके दद्दा ने बा अंजन की डिबिया मोय दद्दा खों भेंट करी रई।’’
जा सुन के लबरा को बड़ो गुस्सा आओ। बा समझ गओ के सरपंच दोंदा को फेवर कर रओ आए। पर सरपंच खों झूठो कै के बा मुसीबत बी मोल नईं ले सकत्तो। सो सरपंच के इते से निकरत साथ लबरा ने दोंदा से कई के,‘‘जे सरपंच की बात से मोय तसल्ली ने भई, चलो राजा के दरबार चलिए।’’
दोंदा मान गओ। दोई चल परे। रस्ता में रात परी, सो बे दोई एक पेड़ के तरे सो गए। भुनसारे लबरा जगो तो ऊने देखो के ऊके सबरे कपड़ा भींजे हते औ दोंदा के कपड़ा सूके हते। ऊने दोंदा से पूछो के रात को का भओ जो तुमाए कपड़ा तो सूके आएं औ हमाए भींज गए। सो, दोंदा बोलो के चलो राजा के दरबार में पौंच के बताबी। दोई चलत-चलत राजा के दरबार पौंच गए। दोई ने अपनी-अपनी बात राजा खों कै सुनाई। राजा ने दोंदा से पूछी,‘‘औ तो सब ठीक मनो जे बताओ के जो पानी बरसो तो लबरा भीग गओ औ तुम सूके रए। जो का माजरा आए?’’
सो, दोंदा हाथ जोर के बतान लगो,‘‘महाराज! वो का आए के हमाए दद्दा ने हमाए लाने एक बूटी दई रई के कभऊं पानी में भीगबे से बचने होय तो बूटी खों अपने कपडा पे मल लइयो। फेर चाय जित्तो पानी गिरे, तुम सूके ई रैहो। सो महाराज, ओई बूटी के कारण मोरे हुन्ना-लत्ता नईं भींजे।’’
‘‘बा बूटी हमें सोई दिखाओ!’’ राजा ने कई।
‘‘महाराज! अब कां धरी बा बूटी, बा तो हमने मल लई, काय से के आपके दरबार में भींजे कपड़ा में कैसे आ सकत्ते?’’ दोंदा बोलो। बाकी भओ जे रओ के दोंदा ने रात में चुपके से लबरा के कपड़ा भिंजा दए रए। दोंदा की बात सुन के राजा समझ गओ के चाय कछू हो जाए, जा मानुस अपनी बात मनवा के ई रैहे। सो राजा ने टेम खोटी ने करत भए फैसला सुना दओ के दोंदा जो कछू कै रओ, सब सही आए। अब राजा के आगूं लबरा का कैतों? सो हाथ जोर के बाहरे निकर आओ। तभई से जे कहनात चल परी के लबरा से बड़ो दोंदा। काय से के दोंदरा देबे वारो दोंदरा दे के कैसऊं ने कैसऊं अपनी बात मनवा ई लेत आए।
सो, जा हती लबरा औ दोंदा की किसां, शार्ट में।
‘‘जेई सो हम कै रए बिन्ना, के ई टेम पे बी लबरा औ दोंदा हरों के बीच मुकाबला चल रओ। दोई अपनी-अपनी झूठी बी सांची कै रए। मनो अब देखने जो आए के वोटर का करहें? बे सरपंच औ राजा घांई रैहें के अपनी कछू दिखेंहैं?’’ किसां के बाद भैयाजी बोले।
‘‘भैयाजी, ई टेम पे जोन किसां चल रई ऊको अलगई मजा आए। बे लबरा औ दोंदा तो पुरानी बातन की हांक रए हते, मनो ई टेम पे तो पुरानी के संगे आबे वारे टेम पे बी फांको जा रओ। एक कैत आए के हमें जिताओ सो हम आसमान के तारे तोड़ लाबी, सो दूसरो कैत आए के हम तुमाए लाने आसमान ई तोड़ लाबी।’’ मैंने कई।
‘‘जेई तो अपन वोट डारबे वारन की परीच्छा की घड़ी आए। जे तो अपन को सोचने के कोन की बातन में दम आए औ कोन की बातन में फुसकी बम आए! सई पूछो तो जे चुनाव उन ओरन के लाने नोंईं, अपन वोटरन के लाने हो रओ। अपन खों सोचने, समझने औ फेर वोट डारने आए। समझ गईं के नईं?’’ भैयाजी ने कई।
 ‘‘मोय का समझने! समझने उनको आए जोन फंकाई में उरझ जात आएं। मनो, एक बात तो आए भैयाजी के अब जनता सब समझन लगी आए। बा न लबरा के फेर में पड़हे औ ने दोंदा के फेर में। बाकी पांचों उंगरियां तो बरोबर नईं होत। फेर बी जो हुइए, अच्छो हुइए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘हऔ, सई कई बिन्ना! बस, जेई आए के पैले सोचे, समझें औ सबरे जा के अपनों-अपनों वोट देबें। काय से के हर वोट कीमती होत आए।’’ भैयाजी ने बड़ी खरी बात कई।
         सो, भैया औ बैन हरों, दद्दा औ मम्मा हरों लबरा औ दोंदा को मुकाबला को मजो लेत रओ। मनो, जे ध्यान राखियों के जोन के इते जब वोटिंग होय, सो वोट देबे जरूर जाइयो, सोउत ने रइयो। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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