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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 2, 2024

बतकाव बिन्ना की | मनो, मतदान करबे के लाने जाइयो जरूर | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम

बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
मनो, मतदान करबे के लाने जाइयो जरूर 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       ‘‘राम-राम बतोले दाऊ! भौत दिनां बाद दिखाने।’’ मैं भैयाजी के इते बैठी बतकाव कर रई हती के इत्ते में उतई बतोले दाऊ आ गए। बतोले दाऊ बी एक अनोखई चीज आएं। उनकी नैया अलगई चलत आए। सबरे दाएं खों जा रए हुइएं, सो बे बाएं खों चल परहें। बाकी बे भौत दिनां बाद मिले।
‘‘हऔ बिन्ना! तनक अपने सासरें चले गए रए। उते हमाए ससुर साब की तबीयत बिगड़ गई रई।’’ बतोले दाऊ ने बताई।
‘‘अब कैसे आएं बे?’’ मैं औ भैयाजी दोई एक संगे पूछ बैठे।
‘‘अब तो ठीक आए। उने नागपुर ले गए रए। उते एक छोटो सो ऑपरेशन भओ औ बे ठीक हो गए।’’ बतोले दाऊ बोले।
‘‘काय को ऑपरेशन?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे कछू नईं, तनक पेट में तकलीफ रई। कछू पथरी-मथरी-सी हो गई रई।’’ बतोले दाऊ ने लापरवाई से कई। मनो, बे ऊ बारे में बतकाव नई करो चात्ते।
‘‘वैसे तुम ठीक टेम पे लौट आए।’’ भैयाजी बोले।
‘‘काय? ठीक टेम को मतलब?’’ बतोले दाऊ ने पूछी।
‘‘ठीक टेम को मतलब जे के अबे मतदान होने, सो तुमाओ नांव तो इतई की वोटर लिस्ट में हुइए। सो तुमें तो इतई वोट देने रैहे। जो उते रैते तो वोट कैसे डार पाते?’’ भैयाजी बोले।
‘‘वोट कां डारने? उते तो बटन दबाने।’’ बतोले दाऊ मों बना के बोले।
‘‘सो ईमें का दाऊ? वोट तो वोट होत आए, चाय कागज की पर्ची डार के देओ, चाय बटन दबा के।’’मैंने बतोले दाऊ से कई।
‘‘औ का।’’ भैयाजी ने मोरो समर्थन करो।
‘‘पर हमें नईं पोसात जो बटन वारो सिस्टम।’’ बतोले दाऊ ने फिर मों बनाओ।
‘‘अरे तुम सोई बेई के बेई रए। अरे, आजकाल सब कछू इलेक्ट्राॅनिक हो गओ, सो तुमें ईवी मशीन से का परेशानी हो रई?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘हमने कई न, के हमें नईं पोसात।’’ बतोले दाऊ ऊंसई बोले।
‘‘पर दाऊ, आप जे सोचो के जे जो आप मोबाईल ले के घूमत आओ बा तो आप खों खूब पोसात आए। मुतके ग्रुपों में भुनसारे से ब्यालू लौं अपनी पोस्टें पेलत रैत हो, सो इते का परेशानी हो रई?’’ मैंने सोई भैयाजी की बात खों आगे बढ़ाओ।
‘‘तुम ओरें हमाए पीछे काए पर गए? हमें नईं पोसात, सो नईं पोसात! बस्स!’’ बोले दाऊ खिजियात भए बोले।
‘‘चलो, मान लओ के तुमें नईं पोसात, तो का मतदान करबे खों ने जैहो?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘नईं, हम कऊं नई जा रए।’’ बतोले दाऊ तनक अकड़ के बोले।
‘‘जे का बात भई? तुमें बा वोटिंग मशीन पसंद नइयां, सो ईको मतलब जे थोड़ी होने चाइए के तुम मतदान करबे खों ई ने जाओ? तुमाई जे बात अब हमें नईं पोसा रई।’’ भैयाजी खों बतोले दाऊ के विचार जान के भारी अचरज भओ।
‘‘हऔ, जेई समझो।’’ बतोले दाऊ बोले।
‘‘समझो से का मतलब? का कोनऊं और बात बी आए?’’ अबकी बतोले दाऊ से मैंने पूछी।
‘‘अब का बताएं बिन्ना! कए में शरम आउत आए।’’ बतोले दाऊ बोले। उनकी जे बात सुन के अब मोय अचरज भओ के ऐसी कोन सी बात आए जोन को कैबे में दाऊ खों शरम आ रई, औ वो बी मतदान खों ले के?
‘‘अब बताई दो दाऊ! का मोरे सुनबे जोग नइयां? का मैं बाहरे चली जाऊं?’’ मैंने बतोले दाऊ से पूछी।
‘‘अरे नईं-नईं! ऐसी-वेसी वारी बात बी नोंई।’’ बतोले दाऊ हड़बड़ा के बोले।
‘‘सो का बात आए? अब बक बी देओ।’’ भैयाजी तनक फटकारत भए बोले।
‘‘बो का आए के अबे लौं कोनऊं पार्टी को उम्मींदवार हमाए घरे नईं पौंचो, वोट मांगबे। सो हमई काय वोट डारबे जाएं?’’ बतोले दाऊ ने अब असल बात बोली।
‘‘अरे, दाऊ! आप सोई! देख नईं रए के टेम कम आए और एरिया बड़ो आए। अब उम्मींदवार दोरे-दोरे नईं पौंच पा रए तो ईमें बुरौ नई मानो चाइए।’’ मैंने बतोले दाऊ खों समझाई।
‘‘काय बुरौ ने मानें? पांच साल में एक बेरा तो उनकी मों दिखाई को टेम आत आए, औ ई टेम पे बी बे अपनो मों ने दिखाएं तो हमई काएं उनके लाने जाएं, उते लेन से लगें?’’ बतोले दाऊ बमकत भए बोले। उनकी बात में दम दिखानी, सो मैंने कछू ने कई, बाकी भैयाजी काय चुप रैते?
‘‘अरे, उनकी पार्टी वारे सो आहें, तनक गम्म खाओ!’’ भैयाजी ने कई।
‘‘उम्मींदारवार बे आएं, के उनकी पार्टी वारे? संसद में बे जाहें, के उनकी पार्टी वारे? सांसद को भत्ता और पावर उने मिलहे, के उनकी पार्टी वारन खों?’’ बतोले दाऊ ने अपने मन की बात बोलनी शुरू कर दई।
‘‘इत्तो ने सोचो! बे पार्टी के औ अपन ओरन के प्रतिनिधि होत आएं। अब सबरे संसद में तो नईं पौंच सकत। इत्ती निगेटिव बातें ने सोचो।’’ भैयाजी ने बतोले दाऊ खों समझाई।
‘‘काय ने सोचो? ईसे अच्छो तो पार्षद को चुनाव, के ऊमें सबरे उम्मींदवार दोरे पे आ के हाथ जोड़त आएं, पांव परत आएं।’’ बतोले दाऊ बोले।
‘‘हऔ, औ बाद में अपन ओरें उनके दोरे हाथ जोड़त आएं।’’ मैंने हंस के कई। काय से के मोय लगो के बातकाव कछू ज्यादई गंभीर होत जा रई।
‘‘तुम तो मोहल्ला मेंई डरे रओ। अरे, कछू देश-दुनिया की बी सोच लओ करे। जेई चुनाव से तो अपने प्रधानमंत्री लौं तै होत आएं।’’ भैयाजी ने बतोले दाऊ खों फेर के समझाई।
‘‘हऔ! जा तो तुमने सई कई।’’ बतोले दाऊ बोले। अब बे सोच में पर गए।
‘‘सो अब मतदान करने जाहो के नईं?’’ उने सोचत भओ देख के भैयाजी ने पूछी।
‘‘अबे पक्को नइयां! अबे सोचबी।’’ बतोले दाऊ डगमग होत भए बोले।
‘‘अब ईमें सोचने का? जा के बटन दबा आइयो।’’ भैयाजी उने उत्साहित करत भए बोले।
‘‘कोन को बटन दबा आएं? हमने कई ने के अबे लौं कोनऊं हमाए इते नईं आओ।’’ बतोले दाऊ झुंझलात भए बोले।
‘‘जो कोनऊं ठीक समझ में ने आए, सो ‘नोटा’ को बटन दबा आइयो। तुमाए टाईप के कनफुजियाएं लोगन के लाने बा बटन रखो गओ आए।’’ भैयाजी ने सुझाओ दओ।
‘‘अरे दाऊ, अबई से नोटा-मोटा की ने सोचो। जो तुमाए इते कोनऊं ने आए तो जा सोचियो के कोन की पार्टी खों तुम देश को शासन चलाऊत देखो चात आओ। बस, बोई पार्टी खों बटन दबा आइयो।’’ मैंने बतोले दाऊ खों तुरतईं समझाओ। ताकि बे और ने कनफुजियाएं।
‘‘हऔ जे तुमने ठीक कई बिन्ना!’’ बतोले दाऊ अपनी मुंडी हिलात भए बोले। उने मोरी बात जम गई।
‘‘चलो तुमें कछू समझ में तो आई।’’ भैयाजी ने सोई चैन की सांस लई।
सो भैया औ बैन हरों, अपने क्षेत्र के उम्मींदवारों के अपने दोरे आबे औ ने आबे खों ले के संकोच ने करियो। मनो, मतदान करबे के लाने जरूर जाइयो। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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