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My Editorials - Dr Sharad Singh

Thursday, May 9, 2024

बतकाव बिन्ना की | रामधई ! कित्तो सूनो सो लग रओ | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली कॉलम


बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
रामधई ! कित्तो सूनो सो लग रओ 
   - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
       मैं भैयाजी के इते पौंची तो भैयाजी औ भौजी दोई उदासे से दिखाने।
‘‘का हो गओ आप ओरन खों? ऐसे उदासे काय बैठे?’’ मैंने दोई से पूछी।
‘‘कछू नईं।’’ दोई ने एक संगे कई।
‘‘कछू कैसे नईं? आप ओरन को उतरो भओ मों बता रओ के कछू तो बात आए। अब मोय नई बताने होय सो बात दूसरी।’’ मैंने दोई से कई।
‘‘अरे, ऐसो कछू सीक्रेट नईयां!’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो बता देओ।’’ मैंने कई।
‘‘तनक सूनो-सूनो सो लग रओ!’’ अब के भौजी ने कई।
‘‘हऔ भौजी! ऐसो कभऊं-कभऊं होत आए। ई बात मोसे ज्यादा औ कोन समझ सकत आए? मैं आप ओरन को गम्म समझ सकत हौं।’’ मैंने उने सहूरी बंधाते हुए कई।
‘‘हऔ बिन्ना! अब का बताएं के कैसो लग रओ?’’ भैयाजी लम्बी सांस भरत भए बोले।
‘‘हऔ, ऐसो लग रओ मनो, अभई बिटिया को ब्याओ कर के बिदा करी होय। जी सो फट रओ।’’ भौजी सोई बिसुरत भईं बोलीं।
‘‘ऐसो जी छोटो ने करो! कछू कऊं से कोनऊं खबर आई का?’’ मोय लगो के कऊं कोनऊं परेसानी वारी खबर तो ने आई? काय से भैयाजी को बेटा और बिटिया दोई बाहरे रैत आएं। सो मैंने पूछई लई,‘‘उते बच्चा हरें तो सब मजे में आएं न?’’
‘‘हऔ, बे ओरे तो मजे में आएं। बे अपनी-अपनी जिनगी में मगन आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘तो फेर काय को गम मना रए। जो बे ओरें ठीक आएं, तो आप ओरे बी ठीक रओ।’’ मैंने दोई खों समझाई।
‘‘अरे, हम ओरें उन ओरन खों ले के दुखी नोईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सो फेर का भओ?’’ मैंने पूछी।
‘‘होने का आए? अब तो ऊं दिना लों कछू नई होने, जोन दिना चुनाव को रिजल्ट ने आ जाए।’’ भौजी फेर के बिसुरत सी बोलीं।
‘‘का मतलब?’’ अब मोरी मुंडी चकरानी। जे ओरें कोन बात को ले के दुखी दिखा रए? चुनाव के रिजल्ट से इनको का लेने-देने? जे तो ठाड़े नई भए। रई उम्मींदवार की तो बात, सो बा जीतहे तो जे ओरें खुशी मना लेहें, ने तो ऊको तनक कोस लेहें। मगर आज काय के लाने गमी मना रए? मोय कछू समझ में ने आई।
‘‘ज्यादा ने सोचो बिन्ना! हम ओरन खों देख के तुमाओ मों सोई उतरो जा रओ।’’ भैयाजी ने मोय समझाओ। मोय सोचत भओ देख के बे तनक सम्हरे।
‘‘अब का करो जाए? आप ओरें कछू साफ-साफ बताई नईं रए।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘साफ का बताने ईमें? सबई तो खुलो डरो। देख नईं रईं, के जब लौं अपने इते वोटिंग ने भई रई तब लौं कित्ती चहल-पहल रई। बई-बई चर्चा चलत्ती। सबरे दल वारे एक-दूसरे पे कछू ने कछू उल्टो-सुल्टो बोल रए हते। टीवी खोलो सो, औ अखबार खोलो सो, सबई में जोई रैत्तो के उन्ने उनके लाने भौतई बुरौ कओ औ फेर माफी सोई मांग लई। एक कैत्ते के बे तुमसे बा छीन लैंहें औ जा कैत्ते के बा तुमसे जा छीन लैंहे। खूबई मजो आउत्तो। अब वोटिंग हो गई, सो सन्नाटो सो खिंच गओ। सबई ऊ डेट खों परखे बैठे, जोन दिनां रिजल्ट को पतो परहे। तब लौं ऐसोई सूनो रैने।’’ भैयाजी ने मोय समझाई।
‘‘हऔ बिन्ना! जेई से तो भौतई सूनो लग रओ। अब तो अगले चुनाव लौं कोनऊं पूछहे ई नईं।’’ भौजी उदास होत भईं बोलीं।
‘‘इत्तो गम ने करो भौजी! जे तो हमेसई को हाल रओ। चुनाव के पैले हो-हल्ला औ चुनाव के बाद झार दओ पल्ला। सो, अपनो जी छोटो ने करो।’’ मैंने भौजी खों समझाओ।
‘‘हऔ, मनो सूनो तो लगई रओ।’’ भौजी बोलीं।
‘‘कल ने लगे सूनो।’’ मैंने कई।
‘‘काय? कल का हो रओ?’’ अब के भैयाजी ने पूछी।
‘‘कल अक्ती आए। पुतरा-पुतरियन को ब्याओ होने। आप ओरें भूलई गए?’’ मैंने दोई खों याद कराई।
‘‘अरे हऔ तो, काल तो अक्ती आए। बा मऊरानीपुर वारी की नातिन ने मोसे कई रई के ऊकी पुतरिया के लाने घांघरों बना दइयो। मोय तो बिसरई गओ। अच्छी याद करा दई। आजई बना दैहों, ने तो बा मोड़ी बुरौ मान जैहे।’’ भौजी तुरतईं चहक परीं।
‘‘बा कैसे मनान लगी अक्ती? ऊकी मताई तो बड़ी मार्डन ठैरी, औ बा मोड़ी खुदई अंग्रेजी स्कूल में पढ़त आए।’’ भैयाजी अचरज करत भए भौजी से पूछन लगे।
‘‘हऔ, जब ऊने हमसे कई रई, सो हमें सोई अचरज भओ रओ। मनो, फेर मोड़ी ने बताओ की ऊकी दादी ने कई आए के बे बताहें के पुतरा-पुतरिया को ब्याओ कैसे कराओ जात आए। सो स्कूल से लौट के बा अक्ती मनाहे।’’ भौजी ने बताई।
‘‘ऊकी मताई ने ऊको टोंको नईं?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘अरे बा तो टोंकती, मनो ऊकी सास बाई, मने मऊरानीपुर वारी ने ऊको उल्लू बना दओ।’’ भौजी हंसत भई बोलीं।
‘‘उल्लू बना दओ? का मतलब?’’ मोए औ भैयाजी दोई को अचरज भओ।
‘‘औ का! मऊरानीपुर वारी ने अपनी बहू से कई के जो तुम बालिका वधू घांई सीरियल देखत्तीं, औ ई टाईप के और सीरियल देखत आओ, सो तुमें तो समझ में आ जात आएं। मनो तुमाई बिटिया जा सब कैसे समझ पैहे, जो ऊको जेई ने पतो हुइए के पुतरा-पुतरिया को ब्याओ कैसे होत आए? तुमने तो ऊके हाथ में मोबाईल फोन पकरा दओ। जो पुतरा-पुतरियों को ब्याओ करन देओ तो बा कछू अपने रीत-रिवाज समझे। बस, फेर का हती, ऊकी बहू मान गई। मगर कैन लगी के जो कछू करने होय ऊके स्कूल से लौटबे के बाद करियो। हम ऊको छुट्टी ने करन दैंहे। सो मामलो पट गओ। अब ऊ दिनां से बा मोड़ी बड़ी खुश आए के ऊको पुतरा-पुतरिया को ब्याओ करबे खों मिलहे। ऊने तो गूगल पे अक्ती के बारे में सर्च कर के पढ़ बी डारो।’’ भौजी ने बताई।
‘‘गूगल पे सर्च कर के? गजब! जे आजकाल के बच्चा बी कम नोंईं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अरे, आप जे सोचो के बाप-मताई अपने रीत-रिवाज से भगे फिर रए औ उनके मोड़ा-मोड़ी जानबो चात आएं। ने तो आपई सोचो के बा मोड़ी गूगल पे काय ढूंढती के अक्ती कैसे मनाई जाती आए?’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कई बिन्ना! जे हमाए ज्यादई सयाने ज्वान मताई-बाप बिदेश की नकल कर-कर के मरे जा रए, जबके उनके बच्चा हरें अपने इते के रिवाज जानबो चात आएं।’’ भैयाजी बोले।
‘‘ऐसोई होत आए भैयाजी! जोन चीज नई सी होय सो अच्छी सी लगत आए। बा मोड़ी के लाने अक्ती नई सी चीज आए। आप ओरें सोई चुनाव को पुरानो मामलो समझ के एक तरफी धरो औ अक्ती खों इंज्वाय करो। औ भौजी, जो पुतरा-पुतरिया की ब्याओ की पंगत करियो, सो मोय सोई न्योतियो!’’ मैंने हंस के कई।    
‘‘हऔ, जरूर!’’ भौजी हंसत भईं बोलीं।
मैंने देखी के दोई के मों पे हंसी खेलन लगी हती। चुनाव गुजरबे की उदासी दूर हो गई रई। सो मैं उते से चल परी, मनो उते से बढ़तई साथ मोय सूनो लगन लगो। काय से के मोरी नजर ऊ बैनर औ झंडा पे पर गई जो वोटिंग के पैले तने धरे हते औ अब मरे चोखरवा से लटक रए हते। मगर अब करो का जा सकत आए? बारों मईना तो चुनाव हुइएं नईं। बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की।
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