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My Editorials - Dr Sharad Singh

Saturday, June 8, 2024

टॉपिक एक्सपर्ट | पत्रिका | देरी से सई, समझ तो परी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

पत्रिका | टॉपिक एक्सपर्ट | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | बुंदेली में
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टाॅपिक एक्सपर्ट
देरी से सई, समझ तो परी
    - डॉ (सुश्री) शरद सिंह
      नवतपा कढ़ गए, पर लगत ऐसो आए मनो अबे तपा चल रये होंय। पब्लिक तो कैत रई के भैया हरों पेड़ें ने काटो, भरी गर्मी में जो मूंड़ पे छायरी ने हो तो मूंड़ चटकत आए। बाकी पब्लिक की को सुन रओ। बो अपने इते कई जात आए ने, के जो लौं लुघरिया ने छुबे, तब लौं पतो नईं परत के जरबो का होत आए? सो जेई दसा भई अपन ओरन के पार्षद हरों की। नगरनिगम में बैठे तो बे जल-सम्मेलन करबे के लाने, मनो जबे एसी चलत में बी उने पसीना चुचुआन लगो तो समझ में आई के शहर में पेड़ें कित्ती जरूरी आएं। कुआ, बावड़ी की सफाई की बतकाव तो भई, संगे पेड़ लगाबे की सुध सोई आई। जे तक कओ गओ के चौड़ी करी भई रोड के किनारे पेबर की जांगा पेड़ें लगाओ जाए। जेई बात जो उन ओरन खों पैलई समझ परी होती तो बे मुतके पेड़ कटबे से बच गए होते। ऊ टेम पे कोनऊं ने केण्ट के इते लों नई ढूंको, ने तो पतो पर जातो के पेड़ें काटे बिगैर बी फुटपाथ बनाओ जा सकत आए। उते कित्तो अच्छो, नोनो सो फुटपाथ बनो आए। जो ऊसे कछू सीख ले लई होती तो सबरे पेड़ ने काटने परते। कछू तो बच जाते। बे सौ एक साल पुराने तो रहें हुइएं।
     खैर, देरी से सई, समझ तो परी। अब तनक ईमानदारी से पेड़ें लाए जाएं सो कछू साल में बे बड़े होई जैहें। तब लौं हर की साल गरमी के दिनां में ईसें ज्यादा तपा झेलने पड़हे, सो झेलत रैबी।जैसो करो सो ऊंसईं भरनेई परहे।
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Thank you Patrika 🙏
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