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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, July 17, 2024

चर्चा प्लस | खुद से झूठ बोलना छोड़ें, यदि कुछ पाना है तो | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस  
खुद से झूठ बोलना छोड़ें, यदि कुछ पाना है तो  
- डाॅ (सुश्री) शरद सिंह                                                                          
        दुनिया में ऐसा कोई भी इंसान नहीं है जिसने कभी झूठ न बोला हो। किसी की भलाई के लिए बोला गया छोटा-मोटा झूठ क्षम्य है लेकिन कुछ लोग झूठ बोलने के आदी होते हैं और झूठे व्यक्ति को अपना एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। झूठ बोलने वालों में प्रायः सबसे पहले राजनीति से जुड़े लोगों की छवि मस्तिष्क में कौंधती है। कारण कि वे जो वादे करते हैं, उन्हें कभी अक्षरशः पूरा नहीं करते। फिर दूसरे नंबर पर आते हैं छलिया प्रेमी तथा मित्र। फिर तीसरे नंबर पर पति-पत्नी और बच्चे। लेकिन क्या कभी सोचा है कि दूसरों से झूठ बोलने वाला इंसान सबसे पहले खुद से झूठ बोलता है। चलिए, इस सच को जांचते हैं।      
        झूठ एक ऐसी बीमारी है जो यदि ज्यादा दिन तक किसी को लगी रहती है तो वह लाइलाज हो जाती है। झूठ बोलने वाला उस बीमारी से ग्रस्त हो कर अपने रचे हुए झूठ के संसार को सच समझ कर जीने लगता है। वह सोचता है कि वह दूसरे को मूर्ख बना रहा है जबकि कि सच्चाई में वह स्वयं का अहित कर रहा होता है। इस संदर्भ में एक सच्ची घटना है कि एक लड़का था जिसका पढ़ाई में मन नहीं लगता था किन्तु वह अपने माता-पिता के सामने यही दिखाना चाहता था कि वह पढ़ाकू है। स्कूल से लौट कर घर पहुंचते ही कपड़े बदल कर, हाथ मुंह धो कर, भोजन कर के अपनी स्टडी टेबल पर बैठ जाता। यह देख कर मां बहुत खुश होती। पिता जब अपने आॅफिस से लौटते तो वे भी अपने लाड़ले बेटे को पढ़ाई करता देख कर बहुत खुश होते। बेटे की पढ़ाई में बाधा न पड़े इसके लिए वे बैंक से कर्जा ले-ले कर उसके लिए सुविधाएं जुटाते। बेटे ने कहा कि ‘‘पापा लैपटाॅप चाहिए!’’ पिता ने कैसे भी व्यवस्था जुटा कर दो दिन के भीतर बेटे के हाथों में लैपटाॅप रख दिया। बेटे ने कहा कि ‘‘पापा, आॅन लाईन कोचिंग के लिए मंहगा मोबाईल और ढेर सारा इंटरनेट डेटा चाहिए।’’ पापा ने अपने और अपनी पत्नी के खर्चों में कड़ाई से कटौती कर के बेटे की वह इच्छा भी पूरी कर दी। उस लड़के के पापा और मम्मी यह नहीं जानते थे कि उनका बेटा उनसे लगातार झूठ बोल रहा है। 
        वह लड़का अपनी स्टडी टेबल पर तो घंटों जमा रहता, लेकिन पढ़ने के लिए नहीं बल्कि आॅन लाईन गेम खेलने के लिए। आहट पाते ही वह पढ़ने का अभिनय करता और माता-पिता के कमरे से बाहर जाते ही फिर खेलने में जुट जाता। रहा सवाल रिपोर्टकार्ड का तो उसमें भी पिता के जाली दस्तखत बना कर अपने टीचर्स को भी मूर्ख बनाता रहता। लेकिन कोई भी झूठ अधिक दिन तक नहीं टिकता है। जब वह लड़का परीक्षा में अनुर्तीण हो गया तो उससे कहा गया कि वह अपने माता-पिता को साथ ले कर स्कूल आए। लड़के ने मां की तबीयत खराब होने और पिता को उनकी सेवा में लगे होने का बहाना कर दिया। स्कूल वालों को संदेह हुआ तो उन्होंने लड़के के घर पहुंच कर उसके माता-पिता से स्वयं संपर्क किया। लड़का पढ़ने में भले ही फिसड्डी था लेकिन झूठ बोलने में उसका दिमाग तेजी से चलता था। वह जानता था कि किसी भी दिन उसकी क्लास टीचर उसके घर आ सकती है। उसने टीचर के आने से पहले रो-रो कर अपने माता-पिता से कहा कि ‘‘मेरी टीचर बहुत खराब है। वह अपने खास स्टूडेंट को अव्वल लाना चाहती थी इसलिए उसने मुझे फेल कर दिया।’’
       यह सुन कर लड़के के माता-पिता को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने बेटे की बातों पर विश्वास भी कर लिया। करते भी क्यों नहीं, आखिर वह पूरे समय पढ़ता जो रहता था। लिहाजा जैसे ही टीचर लड़के के घर पहुंची तो माता-पिता दोनों ने उस पर आरोपों की बौछार कर दी। तब टीचर ने उन्हें लड़के का रिपोर्टकार्ड दिखाया। पिता रिपोर्टकार्ड पर अपने हस्ताक्षर देख कर सन्न रह गया। उसने तो वे हस्ताक्षर किए ही नहीं थे। फिर पिता ने लड़के के कमरे में जा कर पड़ताल की। उसका मोबाईल और लैपटाॅप जांचा तो सारी पोल खुल गई। इतनी बड़ी गड़बड़ी के बाद उस प्रतिष्ठित स्कूल में तो उस लड़के का प्रवेश दोबारा हो नहीं सकता था, वहां से तो उसे निकाल ही दिया गया। माता-पिता के सपने चूर-चूर हो गए और उन्हें इससे भी बड़ा झटका लगा अपने बेटे के झूठ बोलने का। बेटे ने माता-पिता से माफी मांगते हुए कहा कि ‘‘अब मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगा। मुझे माफ कर दें। अब मैं मन लगा कर पढ़ाई करूंगा।’’
      इस पर पिता ने उससे कहा कि ‘‘बेटा तुम हम लोगों का अपने दोस्तों- सहपाठियों का और अपनी टीचर का विश्वास खो चुके हो। और इससे भी बड़े दुख की बात है कि तुम आत्मविश्वास खो चुके हो। यह झूठ तुमने हम लोगों से नहीं बल्कि अपने आप से बोला है। झूठ बोल कर तुमने खुद को मूर्ख बनाया। अपना जीवन बरबाद किया। अब माफी मांगनी हो तो खुद से माफी मांगो और अपने दम पर पढ़ाई करो। क्योंकि मैं तो पुरानी ईएमआई ही नहीं भर पाया हूं तो अब तुम्हारी पढ़ाई के लिए नया कर्जा कहां से लूंगा? फिर क्या गारंटी कि तुम दोबारा झूठ नहीं बोलोगे?’’
        आज उस लड़के पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं है। वह अपने अच्छे भविष्य का सुनहरा अवसर गवां चुका है। अब वह सच भी बोलता है तो लोग आसानी से उसकी बातों पर विश्वास नहीं कर पाते हैं। इंटरनेट और आॅनलाईन पढ़ाई के चलन ने इस तरह के खतरे सभी के लिए बढ़ा दिए है। न जाने कितने लोग हैं जो सोशल मीडिया पर अपनी झूठी प्रोफाईल बना कर मायाजाल रचते हैं। कुछ उस मायाजाल में फंस जाते हैं जिससे उनका जाल बढ़ता जाता है और जब वे बतौर अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ते हैं तो उनका मायाजाल ध्वस्त हो जाता है और वे जेल की हवा खाते हैं। झूठ कभी अच्छे परिणाम नहीं देता है। तात्कालिक रूप से भले ही लगे कि वे झूठ बोल कर अपना सिक्का जमा रहे हैं लेकिन झूठ खुलते ही वही सिक्का उन्हें कौड़ी के मोल का भी नहीं रहने देता है। हम सभी तरह-तरह के पेपरलीक कांड देख ही रहे हैं कि किस तरह एक्जाम पेपर चोरी से खरीद कर लोग अपना जीवन संवारने का सपना देखते हैं और फिर पोल खुलते ही अंधेरे की गर्त में गिर जाते हैं। 
        राजाशाही के जमाने में राजनीतिक झूठ चलन में था। चाटुकार दरबारी राजा को झूठ बोल कर भ्रमित करते रहते थे कि ‘‘महाराज! आप अद्वितीय बलशाली हैं। इस दुनिया में आपका मुकाबला कोई नहीं कर सकता है।’’ राजा भी अपनी तारीफ सुन कर, अपने आदमकद पोट्रेट देख कर इस भ्रम को पाल लेता कि वह अजेय है। फिर जब युद्ध का समय आता तो सच्चाई सामने आती कि वह कितना कमजोर हो चुका है। राजा तो मारा ही जाता साथ ही  उससे झूठ बोलने वाले दरबारी भी या तो मारे जाते अथवा राज्य छोड़ कर भागने को मजबूर हो जाते। यदि वे अपने राजा से झूठ नहीं बोलते और उसे उसकी कमजोरियों के बारे में आगाह करते रहते तो उन सबकी वैसी दुर्दशा कभी नहीं होती। दरअसल, झूठ बोलने वाला, झूठ बोलते समय खुद के पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहा होता है।
     ‘‘महाभारत’’ की कथा में दानवीर कर्ण एक ऐसा पात्र है जिसके प्रति सभी को सहानुभूति रहती है। भले ही वह दुर्योधन के पक्ष में था किन्तु माता के द्वारा जन्म के समय ही त्याग दिए जाने के कारण उसकी यह स्थिति बनी थी। इसलिए लोग उसके जीवन को सहानुभूति से देखते हैं। किन्तु उस महाबली दानवीर कर्ण की मृत्यु का कारण बना था उसके द्वारा बोला गया एक झूठ। हुआ यह था कि कर्ण परशुराम से दिव्यास्त्र की विद्या सीखना चाहता था। लेकिन वह जानता था कि परशुराम उसे शिक्षा नहीं देंगे क्योंकि वह सूतपुत्र है। अतः उसने परशुराम से झूठ बोल दिया कि वह ब्राह्मणपुत्र है। परशुराम ने उसे शिक्षा देना स्वीकार कर लिया। कर्ण ने भी मन लगा कर शिक्षा ग्रहण की और वह परशुराम का प्रिय शिष्य बन गया। एक दिन परशुराम कर्ण के साथ वन से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्हें थकान का अनुभव हुआ और उन्होंने लेटने की इच्छा जाहिर की। कर्ण पालथी मार कर बैठ गया और परशुराम उसकी गोद में सिर रख कर लेट गए। थोड़ी देर बाद एक कीड़ा कर्ण की जांघ को काटने लगा जिससे उसकी जांघ से रक्त बहने लगा और उसे असहनीय पीड़ा होने लगी। फिर भी वह स्थिर बैठा रहा। जब परशुराम की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि कर्ण की जांघ से रक्त बह रहा है और उसे एक कीड़ा काट रहा है। उन्होंने कर्ण से कहा कि ‘‘तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?’’ कर्ण ने कहा कि यदि मैं आपको जगाता तो मेरा सेवाभाव टूटता, इसलिए मैंने आपको नहीं जगाया।’’ परशुराम ताड़ गए और उन्होंने कर्ण से कहा कि ‘‘तुम ब्राह्मणपुत्र नहीं हो क्योंकि बाह्मणपुत्र में इतनी अधिक सहनशक्ति नहीं होती है। बताओ तुम कौन हो?’’ तब कर्ण ने अपनी वास्तविकता प्रकट कर दी। परशुराम को यह जान कर दुख हुआ। फिर उन्होंने क्रोधित हो कर कर्ण से कहा कि ‘‘झूठ बोल कर प्राप्त की गई कोई भी विद्या या शक्ति काम नहीं आती है। काश! तुमने मुझे सच बताया होता। अब तुम्हारा दण्ड यही है कि जब तुम्हें दिव्यास्त्र की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, ठीक उसी समय तुम इस विद्या को भूल जाओगे।’’ हुआ भी यही। जब कुरुक्षेत्र में कर्ण और अर्जुन के बीच निर्णायक युद्ध चल रहा था, तब कर्ण कोई दिव्यास्त्र नहीं चला सका, क्योंकि उस विद्या को भूल चुका था। उसे अपने झूठ के बदले अपने प्राण गंवाने पड़े।
        जब आज छोटी-छोटी बातों में झूठ बोलने का चलन हो गया है तब ऐसे समय में इन कथाओं को सभी को याद रखना चाहिए। चाहे राजनीतिज्ञ हों, शिक्षक हों, छात्र हों, पारिवारिक संबंधी हों या परिचित हों, झूठ बोल कर कुछ पल का सुख एवं प्रतिष्ठा भले ही मिल जाए, लेकिन शेष जीवन कलंक में ही कटता है। वह कहावत है न कि झूठ की आयु लंबी नहीं होती है। अतः जीवन में कुछ पाना हो तो दूसरों से झूठ बोलना नहीं चाहिए, क्योंकि वह झूठ दूसरे पर नहीं अपितु खुद पर भारी पड़ता है।               
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