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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, October 29, 2024

पुस्तक समीक्षा | इन गीतों में ध्वनित यक्ष उत्तर ही प्रतिप्रश्न हैं | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 29.10.2024 को  "आचरण" में प्रकाशित मेरे द्वारा की गई श्रीमती समाहरि शर्मा जी के गीत संग्रह की समीक्षा।
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पुस्तक समीक्षा  
इन गीतों में ध्वनित यक्ष उत्तर ही प्रतिप्रश्न हैं
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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गीत संग्रह  - यक्ष उत्तर
कवयित्री     - सीमाहरि शर्मा
प्रकाशक  - श्वेतवर्णा प्रकाशन, 212, एक्सप्रेसव्यू एपार्टमेंट, सुपर एमआईजी, सेक्टर 93, नोएडा - 202304
मूल्य        - 249/-
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      यक्ष प्रश्न ‘महाभारत’ का एक रोचक प्रसंग है। वनवास के दौरान पाण्डवों को प्यास लगी। वे थक गए थे। तभी उन्हें एक जलाशय दिखा। वे सभी एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने और पानी पीने के लिए रुके। तब सहदेव  सबसे पहले पानी पीने जलाशय के निकट गया। जलाशय के तट में रहने वाले यक्ष ने उसे रोका और पहले उसके प्रश्नों के उत्तर देने का आदेश दिया। सहदेव यक्ष के आदेश पर ध्यान दिए बिना पानी पीने लगा। दूसरे ही पल वह गिर कर मर गया। उसके बाद एक-एक कर के नकुल, भीम और अर्जुन आए। उन तीनों भाइयों का भी वही परिणाम हुआ। जब युधिष्ठिर वहां पहुंचा तो उसने अपने भाइयों को मृत पाया। तभी यक्ष प्रकट हुआ और युधिष्ठिर से भी प्रश्नों के उत्तर मांगने लगा। युधिष्ठिर ने यक्ष के सभी सौ प्रश्नों के सही-सही उत्तर दिए जिससे प्रसन्न हो कर यक्ष ने युधिष्ठिर के भाइयों को पुनः जीवित कर दिया।  यक्ष के प्रश्न इतने कठिन थे कि युधिष्ठिर के अतिरिक्त उनका उत्तर कोई और दे ही नहीं सकता था। इस प्रसंग से ही कठिनतम समाधान वाली समस्या को यक्ष प्रश्न कहा जाने लगा।

भोपाल निवासी कवयित्री सीमाहरि शर्मा के नवीनतम गीत संग्रह का नाम है ‘‘यक्ष उत्तर’’। अतः स्वाभाविक रूप से ‘‘यक्ष उत्तर’’ नाम पढ़ते ही यक्ष प्रश्न का प्रसंग मानस में कौंध गया। आज के जीवन में यक्ष प्रश्नों की कोई कमी नहीं है। अर्थात हर पग पर अनेक समस्याएं घेरे रहती हैं जिनमें से अधिकांश के जन्मदाता तो हम मनुष्य स्वयं हैं। जैसे बेटियों के अस्तित्व पर संकट, पर्यावरण पर संकट, बाजारवाद को आंखमूंद कर आत्मसात करना आदि-आदि। कवयित्री सीमाहरि शर्मा ने इन सारे प्रश्नों को उत्तर के बहाने प्रतिप्रश्न के रूप में अपने गीतों में पिरोया है। यद्यपि संग्रह के नामकरण के संबंध में उन्होंने ‘‘अपनी बात’’ के अंतर्गत लिखा है कि -‘‘संग्रह का नाम ‘उत्तर यक्ष हुए हैं जब-जब’ रखने का विचार मन में आया। परन्तु अधिक लम्बा होने के कारण विद्वजनों से परामर्श के पश्चात ‘यक्ष-उत्तर’ रखा।’’

संग्रह के गीतों पर वरिष्ठ गीतकार मयंक श्रीवास्तव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि -‘‘संग्रह के गीतों में सामाजिक पीड़ा है तथा अनुभूतियों, संवेदनाओं, पीड़ाओं की संगीतमयी अनुगूंज है। ये समय की नब्ज पर प्रतिक्षण अपना हाथ रखते हुए चलते हैं। गीत बहुत ही प्राणवान एवं संवेदना के धरातल पर खड़े हैं। युगबोध की मर्मस्पर्शी एवं चिन्तनमय अभिव्यक्तियों के गीत हैं।’’
यतीन्द्रनाथ राही ने संग्रह की रचनाओं को ‘‘कबीर की उलटबांसी की तरह है- यक्ष उत्तर’’ कहा है। वे लिखते हैं-‘‘उत्तर हैं, प्रश्न तो अब पाठकों को खंगालने हैं। जो बांचे सो पावे की बात है। ‘मन की दुनिया जग की माया’ है। शायद मिल जाए कहीं उत्तर का प्रश्न भी किसी ‘बसंत में’ किसी ‘ढलती सांझ में’ किसी ‘जलते दिए में’ ‘कुछ रोने कुछ गाने’ में, ‘सावन के किसी मेघ में’ या फिर ‘मौन साधे उत्तरों में’, कहीं तो होंगे ही वे यक्ष प्रश्न भी जिन्हें खोजा जाता रहा है सदियों से पल-पल।’’
 
 डॉ. राम वल्लभ आचार्य अध्यक्ष मध्यप्रदेश लेखक संघ, भोपाल के अनुसार ‘‘इन रचनाओं में आस्था विश्वास और परम सत्ता के प्रति समर्पण के भावों का भी समावेश है।’’ वहीं सौरभ पांडे ने संग्रह के गीतों को ‘‘सामाजिक बर्तावों पर सशक्त आईना दिखाते गीत’’ कहा है और डॉ. अशोक बाबूलाल सनोठिया सेवानिवृत श्रम न्यायाधीश ने इसे ‘’सामाजिक समस्याओं को उद्धृत करता गीत संग्रह’’ कहा है।
कवयित्री श्रीमती सीमाहरि शर्मा का यह दूसरा गीत संग्रह है। उल्लेखनीय है कि सीमाहरि शर्मा के जीवन साथी हरिवल्लभ शर्मा ‘‘हरि’’ स्वयं एक अच्छे रचनाकार हैं। सीमाहरि शर्मा की संवेदनाओं का धरातल विस्तृत है इसीलिए ‘‘यक्ष उत्तर’’ में वे सारे प्रश्न सामने रखती हैं जो वर्तमान जीवन से जुड़े हुए हैं। आधुनिक जीवनशैली ने प्रकृति से मनुष्य की दूरी किस प्रकार बढ़ा दी है इसे उन्होंने अपनी कविता ‘‘ओ बसन्त!’’ में पूरी गंभीरता से वर्णित किया है। कविता की कुछ पंक्तियां-
ओ बसन्त तुम मेरे घर तक
कैसे आओगे?
दूर-दूर तक पेड़ नहीं,
घर मल्टी में मेरा।
हवा बसन्ती को नभ छूते
मालों ने फेरा।
किरण अगर बरजोरी
खिड़की तक आ भी जाती।
ऊंची दीवारों की छाया
उसको डंस जाती।

कवियित्री ‘‘यक्ष उत्तर’’ कविता में उत्तरों की अनुत्तरिता को प्रश्नों के समकक्ष रखा है। उन्हीं के काव्यात्मक शब्दों में -
उत्तर जब हों यक्ष प्रश्न से
प्रश्नों ने स्वीकारे हैं।
प्रश्न खड़े हैं ठगे-ठगे से,
ये कैसे उत्तर पाये?
निर्धारित उत्तर सारे थे
प्रश्नों से पहले आये।
जब-जब हाथ बंधे उत्तर के
प्रश्न स्वयं से हारे हैं।

भौतिकतावाद की अंधी दौड़ से सबसे अधिक अभिशप्त है बचपन। बच्चा होश भी नहीं सम्हाल पाता है और उस पर बस्ते का भारी बोझ, नंबरों का दबाव और विलक्षणता प्रदर्शित करने का दायित्व लाद दिया जाता है। यही कारण है कि बचपन अपनी स्वाभाविकता खोता जा रहा है। इस बात को कवयित्री सीमाहरि ने अपनी ‘‘लौटा दो बचपन’’ कविता में यथार्थपरक शब्दों में कहा है-
हुए बोझ से बोझिल काँधे
बस्ते हैं भारी।
अंग्रेजी में हिंदी पढ़ना
कैसी लाचारी।
शिक्षा है व्यापार, लूटते
मात-पिता का धन।

कवयित्री को जितनी चिन्ता बचपन के रूप में मानव के भविष्य की है उतनी ही चिन्ता प्रकृति के निरंतर होते असीमित दोहन की भी है। ‘‘तेवर तुम्हारे’’ कविता में वे कहती हैं-
खजाने प्रकृति के सारे,
खड़े बाहें पसारे सब।
नहीं दोहन करो इतना
सभी जी भर तुम्हारे हैं।
हवा श्वासें लिये चलती
तुम्हारे ही लिए तो है।
धरा जलती अथक तपती
तुम्हारे ही लिए तो है।

सीमाहरि शर्मा के जनसरोकार जिन स्थितियों पर विचार करने का आग्रह करते हैं वे मन को द्रवित करने वाली हैं। इसका सटीक उदाहरण है ‘‘तारा’’ कविता। इसमें उन्होंने मज़दूर मां की बेटी का वर्णन किया है-
जर्जर छोर फ्रॉक का,
नन्हे भाई को पकड़ाकर।
नाजुक हाथों में गोदी के,
बालक को धकियाकर।
‘मजदूरी करने जाती हूँ
काम पड़ा है भारी’
नन्ही तारा को समझाकर,
कहती है महतारी।

संग्रह की सभी कविताएं पठनीय है तथा गहन चिंतन को विवश करती हैं। कवयित्री सीमाहरि शर्मा ‘‘यक्ष उत्तर’’ के रूप में अपनी सभी चिंताओं, अपने सभी सराकारों एवं मानव के उज्जवल भविष्य के प्रति अपनी सभी आकांक्षाओं को व्यक्त करने में पूर्णतः सफल हुई हैं। उनके भीतर की चिंतनशील कवयित्री को इस संग्रह की कविताओं में बखूबी देखा और उनके सृजन के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।
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