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My Editorials - Dr Sharad Singh

Friday, October 4, 2024

शून्यकाल | देवी दुर्गा को भी बहुत प्रिय है मोटा अनाज जौ | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | नयादौर

दैनिक "नयादौर" में मेरा कॉलम "शून्यकाल" -                                                                 देवी दुर्गा को भी बहुत प्रिय है मोटा अनाज जौ
  - डाॅ (सुश्री) शरद सिंह
    नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही जौ के बीज ‘‘ज्वारे’’ के रूप में बोए जाते हैं। क्या आप जानते हैं कि जौ कितना महत्वपूर्ण अनाज है? आप कहेंगे कि हाँ! आजकल इसे मोटे अनाज के रूप में खाने पर जोर दिया जा रहा है। इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए भी ज्वार की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस की जा रही है। लेकिन क्या आप यह भी जानते हैं कि हमारे वैदिक साहित्य में इसे ‘‘ब्रह्मा का अन्न’’ माना गया है। वेदों में उल्लेख है कि धरती पर सबसे प्राचीन अनाज जौ है। इसीलिए इसे यज्ञ, हवन और जवारों में भी पवित्र अनाज के रूप में शामिल किया जाता है और देवी मां दुर्गा को भी मोटा अनाज जौ बहुत प्रिय है।
वर्तमान में पूरे विश्व में खाद्य समस्या और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए मोटे अनाज के उपयोग और उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है। हमारे देश भारत में भी मोटे अनाज को खाद्यान्न के मूल आधार के रूप में देखा जा रहा है। ये मोटे अनाज हैं जौ, बाजरा, रागी आदि। ये सभी अनाज पहले हमारे भोजन की थाली में शामिल होते थे। लेकिन आधुनिकता और पाश्चात्य भोजन शैली के कारण ये हमारी भोजन की थाली से दूर होते चले गए। जबकि हमारे देश में, चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों, सभी जानते हैं कि नवरात्रि की शुरुआत में श्ज्वारेश् बोए जाते हैं। यह एक तरह का धार्मिक अनुष्ठान है। इन बीजों को बोने का एक अर्थ यह भी है कि इससे देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और अच्छी फसल का आशीर्वाद देती हैं। हालांकि इस संबंध में देश के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं। लेकिन सभी का मानना है कि देवी मां को जौ के बीज चढ़ाने से वे प्रसन्न होती हैं। इसका सीधा सा मतलब है कि देवी मां दुर्गा को भी मोटा अनाज जौ पसंद है। यह धरती पर उगाए जाने वाले सबसे पुराने अनाजों में से एक है। प्राचीन काल से ही इसका इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता रहा है। संस्कृत में इसे ‘‘यव’’ कहा जाता है। इसका उत्पादन मुख्य रूप से रूस, यूक्रेन, अमेरिका, जर्मनी, कनाडा और भारत में होता है।

नवरात्रि में जौ बोने का विशेष महत्व है। नवरात्रि में कलश और घटस्थापना के साथ ही घट में जौ (कभी-कभी गेहूं) बोया जाता है। मां दुर्गा को यह बहुत पसंद है। आइए जानते हैं क्या है इसका रहस्य। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा की जाती है और व्रत रखे जाते हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में लोग अपने घरों में अखंड ज्योति जलाते हैं। साथ ही माता रानी के नौ रूपों की पूजा भी करते हैं। नवरात्रि में कलश स्थापना और जौ का बहुत महत्व होता है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना के साथ ही जौ बोए जाते हैं। कहा जाता है कि इसके बिना मां अम्बे की पूजा अधूरी रहती है। कलश स्थापना के साथ जौ बोने की परंपरा काफी पुराने समय से चली आ रही है। ऐसे में आइए आज जानते हैं कि नवरात्रि में जौ क्यों बोए जाते हैं और इसके पीछे क्या धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक महत्व है?

जौ को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने इस सृष्टि की रचना की तो वनस्पतियों में सबसे पहली फसल श्जौश् ही थी। इसीलिए नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना के समय सबसे पहले जौ की पूजा की जाती है और कलश में भी इसे स्थापित किया जाता है। जौ को सृष्टि की पहली फसल माना जाता है, इसलिए जब भी देवी-देवताओं की पूजा या हवन किया जाता है तो जौ को ही अर्पित किया जाता है। यह भी कहा जाता है कि जौ अन्न यानी ब्रह्मा के समान है और अन्न का हमेशा सम्मान करना चाहिए। इसलिए पूजा-पाठ में जौ का प्रयोग किया जाता है। नवरात्रि में कलश स्थापना के दौरान बोए गए जौ दो-तीन दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं, लेकिन अगर ये अंकुरित न हों तो यह भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है। ऐसी मान्यता है कि अगर दो-तीन दिन बाद भी अंकुर न निकलें तो इसका मतलब है कि कड़ी मेहनत के बाद ही फल मिलेगा। इसके अलावा अगर जौ उग आए हैं लेकिन उनका रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा है तो इसका मतलब है कि आने वाला साल आधा तो ठीक रहेगा, लेकिन बाद में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। अगर बोए गए जौ सफेद या हरे रंग के उग रहे हैं तो इसे बहुत शुभ माना जाता है। इसका मतलब है कि पूजा सफल रही। आने वाला पूरा साल खुशियों से भरा रहेगा। नवरात्रि के दिनों में कलश के सामने मिट्टी के बर्तन में जौ या गेहूं बोया जाता है और उसकी पूजा भी की जाती है। बाद में जब नौ दिन में जवारे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी मां के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं के लिए जब भी हवन किया जाता है तो उसमें जौ का बहुत महत्व होता है। जौ बोने से बारिश, फसल और व्यक्ति के भविष्य का भी अनुमान लगाया जाता है। कहा जाता है कि अगर जौ सही आकार और लंबाई में नहीं उगते हैं तो साल छोटा रहेगा और फसल भी कम होगी। इसका असर भविष्य पर पड़ता है। बोए गए जौ का रंग भी शुभ और अशुभ संकेत देता है। ऐसा माना जाता है कि अगर जौ का ऊपरी आधा भाग हरा और निचला आधा भाग पीला है, तो इसका मतलब है कि आने वाला साल आधा अच्छा होगा और आधा मुश्किलों से भरा होगा। ऐसा माना जाता है कि अगर 2 से 3 दिन में जौ अंकुरित हो जाएं तो यह बहुत शुभ होता है और अगर आदि जौ नवरात्रि के अंत तक जौ नहीं उगते हैं, तो इसे अच्छा नहीं माना जाता है। हालाँकि, कभी-कभी ऐसा होता है कि अगर जौ को ठीक से नहीं बोया है, तो भी जौ नहीं उगते हैं। इसके साथ ही, अगर जौ का रंग हरा है या सफेद हो गया है, तो इसका मतलब है कि आने वाला साल बहुत अच्छा होगा। इतना ही नहीं, देवी भगवती की कृपा से आपके जीवन में अपार सुख और समृद्धि आएगी। ऐसा कहा जाता है कि नवरात्रि के दौरान बोए गए जौ जितने अधिक बढ़ते हैं, उतनी ही अधिक देवी दुर्गा की कृपा बरसती है। यह इस बात का भी संकेत है कि व्यक्ति के घर में सुख और समृद्धि आएगी।

जौ बोने की रस्म हमें अपने भोजन और अनाज का हमेशा सम्मान करना सिखाती है। इसका वैज्ञानिक पहलू यह है कि इस तरह खेती से न जुड़ा व्यक्ति भी खेती के काम को समझ पाता है। यहां तक कि परिवार के बच्चे भी ज्वार बोने और उसे हरा-भरा रखने में जरूरी सावधानियों को जान और समझ पाते हैं। स्वस्थ ज्वारे खेती के लिए मौसम को समझने में भी मदद करते हैं। जरा सोचिए जौ का मोटा अनाज कितना महत्वपूर्ण है, जिसे देवी मां को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने उगाया जाता है और फिर नौ दिन बाद उन ज्वारों को देवी मां के साथ जल में विसर्जित कर दिया जाता है। यानी उन अनाजों को देवी मां के साथ ही भेज दिया जाता है, जैसे विदाई के समय रास्ते में किसी मेहमान को खाने के लिए खाना पैक करके दिया जाता है। ऐसे महत्वपूर्ण अनाजों को हमें अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाने में कोई हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए। वैज्ञानिक भी कहते हैं कि मोटा अनाज स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। जौ जैसा मोटा अनाज खाने के बहुत लाभ हैं, जैसे- मोटे अनाज में प्रोटीन, खनिज, और विटामिन, चावल और गेहूं से तीन से पांच गुना ज्यादा होते हैं। मोटे अनाज में फाइबर काफी होता है, जिससे पाचन तंत्र बेहतर होता है। मोटे अनाज में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई) होता है, जिससे मधुमेह की रोकथाम में मदद मिलती है। मोटे अनाज में कैल्शियम, आयरन, और जिंक जैसे खनिज होते हैं। मोटे अनाज में मौजूद पोषक तत्व हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और कैल्शियम की कमी को रोकते हैं। मोटे अनाज में मौजूद फाइबर की वजह से लंबे समय तक पेट भरा रहता है, जिससे बार-बार खाने की जरूरत नहीं होती। मोटे अनाज खाने से एनीमिया का खतरा कम होता है। मोटे अनाज दिल के लिए भी अच्छे होते हैं। 

खाद्य विशेषज्ञ मोटे अनाज खाने का तरीका भी सुझाते हैं। उनके अुनसार मोटे अनाज को हमेशा भिगोकर या अंकुरित करके खाना चाहिए। मोटे अनाज में फिटिक एसिड होता है, जो शरीर में बाकी पोषक तत्वों को अवशोषित नहीं होने देता। लेकिन परंपरागत तरीकों से भी मोटे अनाज को खाया जा सकता है जैसे उबाल कर, पीस कर रोटी आदि के रूप में।

यही सब कारण हैं कि आजकल मोटे अनाज को स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताया जा रहा है। जलवायु परिवर्तन को देखते हुए भी ज्वार की खेती को बढ़ावा देने की जरूरत महसूस की जा रही है। वेदों में उल्लेख है कि धरती पर सबसे प्राचीन अनाज जौ और इसकी भांति मोटे अनाज की श्रेणी में आनेे वाले अन्न ही हमें स्वास्थ्य एवं खद्यान्न संकट से भी उबार सकते हैं। अतः इस नवरात्रि से गर्व के साथ याद रखिए कि देवी मां दुर्गा को भी मोटा अनाज जौ बहुत प्रिय है और हम इसे उनके आशीर्वाद के रूप में अपनी खाद्यचर्या में शामिल कर सकते हैं। 
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