बुंदेली कॉलम | बतकाव बिन्ना की | डॉ (सुश्री) शरद सिंह | प्रवीण प्रभात
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बतकाव बिन्ना की
स्कूल-काॅलेज के लिंगे गुटखा ने बिकहे, औे दारू...?
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
‘‘जो बड़ो अच्छो करो के स्कूल- काॅलेज के लिंगे गुटखा घांई चीजें ने बिकहे।’’ भौजी खुस होत भईं बोलीं।
‘‘औ का, तनक-तनक से बच्चा गुटखा खाबे से होन वारे नुकसान तो जानत नइयां, बाकी बड़ों खो देख के उनको सोई गुटखा खाबे की लत लग जात आए। औ फेर होत जे आए के जेब खर्च के लाने दए गए पइसा से बे गुटखा खरीदन लगत आएं। अब स्कूल-कालेज के लिंगे गुटखा ने मिलहें सो बे ने खरीद पैहें।’’मैंने कई। मोए जा खबर भौतई नोनी लगी हती।
‘‘हऔ, उन ओरन खों देखो जो मजूरी करत आंए। उनको तो काम ई नईं चलत गुटखा खाए बिना। मनो बे गुटखा नोईं कोनऊं इनर्जी को चूरन फांक रए होंए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘जेई से तो सई करो के गुटखा स्कूल-कालेज के लिंगे ने बिकहे।’’ मैंने कई।
‘‘औ दारू के अहातन को का हुइए?’’ भैयाजी ने पूछी।
‘‘दारू के अहातन को? उनके लाने तो अबे कछू नई कहो गओ।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘जेई तो! गुटखा के लाने जा कदम उठाओ गओ, भली करी। मनो दारू के ठेका के लाने सोई कछू सोचो होतो। देखत नइयां के कऊं स्कूल के लिंगे, तो कऊं कालेज के लिंगे, तो कऊं मंदिर के लिंगे अहातो खुलो धरो।’’ भैयाजी बोले।
‘‘सई कई आपने! उते तो देखो के ऊके आंगू एक बैंक आए औ बाजू में खेल परिसर आए। का बा जांगा दारू के अहातो के लाने ठीक आए?’’ भौजी बोलीं।
‘‘अरे भौजी, जे कओ के उते के दारूखोर हरें ईमानदार आएं। जो बे अहातों की तरफी छोड़ औ कोनऊं तरफी नईं हेरत आएं।’’ मैंने हंस के कई।
मोरी बात सुन के भैयाजी औ भौजी सोई हंसन लगीं।
‘‘ईमानदार दारूखोर!’’ भौजी को मोरी बात भौत पोसाई। बे दोहरात भईं हंसन लगीं।
‘‘औ का भौजी! बाकी मोय जे नईं पतो के उते बाजू में खेलबे खों जाबे वारे मोड़ा-मोड़ी कित्ते ईमानदार आएं? बे अहाते में ढूंकत आएं के नईं?’’ मैंने ऊंसई हंस के कई।
‘‘सई कई भूसा के ऐंगर लुघरिया धरी उते तो। अब भूसा उड़ के लुघरिया पे ने गिरे तो अच्छो! ने तो जै राम जी की!’’ भौजी बोलीं।
‘‘बिन्ना! मोय तो जे लगत आए के प्रसासन को जे सब नईं दिखात आए का?’’ भैयाजी बोले।
‘‘को जाने, बे ओरें धृतराष्ट्र घांईं अंधरा होंए? औ ने तो गांधारी घांई आंखन में पट्टी बांध रखी होए।’’ भौजी बोलीं।
‘‘सई कई भौजी! जो अपन सबई खों दिखात रैत आए, बस जे प्रसासन वारे काए नईं देख पात आएं?’’ मैंने सोई अचरज प्रकट करी।
‘‘अरे कछू नईं, दारू से अच्छो रेवेन्यू मिलत आए। जे ई से।’’ भैयाजी बोले।
‘‘अपन ओरन पे टैक्स सो ऊंसई मुतके लगा रखे आएं, सो दारू को रेवेन्यू तनक छोड़ो नईं जा सकत का? चलो, नईं छोड़ो जा सकत, मान लओ! सो, का अहातो इत्ते दूर नईं करो जा सकत आए का के उते मोड़ा हरें ने पौंच सकें। औ ने उनसे कोऊ रैवासी डिस्टर्ब हो सके।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘डिस्टर्ब की ने कओ! एक दार की किसां हम तुमें सुना रए। जे कोनऊं पांचेक साल पैले की बात आए। का भओ रओ के हम ओरें कटरा से बजारे कर के लौट रए हते। जेई कोऊं रात के नौ बजे हुइएं। बा रास्ते में अहातो परत आए न, उते एक मानुस रोड के बाजू में डरो हतो। तुमाई भौजी ने देखो तो मोसे कैन लगीं के गाड़ी रोको। मैंने पूछी काए? तो कैन लगीं के उते कोनऊं घायल डरो। मैंने अपनी फटफटिया रोकी औ मुंडी घुमा के तनक गौर से देखो सो मोए हंसी आ गई। जै बिगर परीं के उते कोऊं मरो जा रओ औ तुमें हंसी आ रई? तब मैंने इने समझाओ के बा कोनऊं घायल नोईं, बा दारूखोर आए जो टुन्न हो के उते डरो। बा चलती-फिरती 302 आए। इन्ने सुनीं सो जे तुरतईं बोलीं के चलो इते से। काए के लाने ठाड़े हो? मने पैले जेई बोलीं के ठैरो और फेर खुदई ठेन करन लगीं के काए ठैरे हो? तुमाई भौजी बी गज़बई की आएं।’’ भैयाजी ने कई औ हंसन लगे।
‘‘सो, हमें का पतो रओ के बा टुन्न डरो, के कोनऊं घायल आएं?’’ भौजी सोई हंसत भई बोलीं। फेर खुदई तनक सीरियस होत भईं कैन लगीं के,‘‘अच्छो है बिन्ना के तुमाए भैयाजी खों जे लत नोंईं। तनक सोचो के जोन के घरे के लुगवा इत्तो पियत आएं उनके घरे का होत हुइए? उते घरवारी औ मोड़ा-मोड़ी बाट हेरत हुइएं औ जे इते पी-पा के सड़क पे लुढ़के डरे। औ कोऊ-कोऊ तो घरे पौंच के मार-पीट सोई करत आएं। कित्तो बुरौ लगत हुइए न उन ओरन को?’’
‘‘औ का भौजी! दारू-मारू कोनऊं अच्छी चीज थोड़े आए।’’ मैंने कई।
‘‘मनो जो हमें दारू की आदत होती तो तुम का कर लेतीं?’’ भैयाजी ने भौजी से पूछी। उने तनक ठिठोली सूझी।
‘‘हम आपके लाने अच्छो लट्ठ घुमा के देते। एकई दिनां में दारू-मारू सबई छूट जाती।’’ भौजी हाथ घुमा के एक्टिंग करत भई बोलीं।
उने देख के मोय तो हंसी फूट परी औ भैयाजी सोई हंसन लगे।
‘‘जेई से तो हमने कभऊं दारू खों छियो नईं। हमें पतो रओ के तुम तो हमाए प्रानई ले लैहो।’’ कैत भए भैया डरबे की एक्टिंग करन लगे।
‘‘मनो, जे तो सई आए भैयाजी कि जोन टाईप से गुटखा के लाने कओ गओ आए के बा स्कूल-कालेज के लिंगे ने बिके, ऊसई दारू के लाने बी भओ चाइए के ऊको अहातो शहर से बाहरे होए। जोन खों लगे सो शहर के बाहरे जाए। सिटी में पी के ने डरो रए। अरे, लुगाइयां, मोड़ियां सबई निकरत आएं उते से। जे ठीक नोंई।’’ मैंने भैयाजी से कई।
‘‘सई कई बिन्ना! मनो एक तो कोऊ विरोध नईं करत, औ जो कोनऊं बिरोध करे तो प्रसासन कांन में उंगरिया डार लेत आए। अपन ओरन के चिंचिंयाए से का हो रओ?’’ भैयाजी तनक निरास होत भए बोले।
‘‘अरे जी छोटो ने करो भैयाजी, हो सकत के कोनऊं दिनां ई तरफी सोई ध्यान दओ जाए।’’ मैंने भैयाजी खों समझाओ।
‘‘हऔ, सई कई।’’ भौजी ने मोरी बात पे हामी भरी।
बाकी बतकाव हती सो बढ़ा गई, हंड़ियां हती सो चढ़ा गई। अब अगले हफ्ता करबी बतकाव, तब लों जुगाली करो जेई की। मनो सोचियो जरूर के गुटखा के लाने जैसो नियम बनाओ ऊंसई कोऊ दिनां दारू के लाने सोई नियम बने। जै राम जी की!
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