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My Editorials - Dr Sharad Singh

Wednesday, November 6, 2024

चर्चा प्लस | लोक कथाओं में रचे-बसे हैं गहरे मानव मूल्य | डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | सागर दिनकर

चर्चा प्लस
लोक कथाओं में रचे-बसे हैं गहरे मानव मूल्य
- डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
        लोक कथाएं वाचिक परंपरा की अनमोल देन हैं। वाचिक अर्थात लिखित नहीं, वरन वचनों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित। दुर्भाग्यवश अब कथाएं कहने-सुनने का चलन कम होता जा रहा है। परिवार के विखंडन ने बच्चों से वे बुजुर्ग छीन लिए हैं जो उन्हें कथाएं सुनाते। सुनाई जाने वाली यही कथाएं लोक में प्रचलित हो कर लोककथा बन जाती हैं। ये भोली-भाली रोचक कथाएं अपने भीतर गहरे मानव मूल्य समेटे रहती हैं। तभी तो इन्हें सुनते हुए बड़े होने वाले व्यक्ति अधिक संवेदनशील हुआ करते थे। एक बार फिर आवश्यकता है लोक से मिली कथाओं को लोक को लौटाने की।  
     लोक कथाएं मानव मूल्यों पर ही आधारित होती हैं और उनमें मानव- जीवन के साथ ही उन सभी तत्वों का विमर्श मौजूद रहता है जो इस सृष्टि के के आधारभूत तत्व हैॅं और जो मानव-जीवन की उपस्थिति को निर्धारित करते हैं। जैसे- जल, थल, वायु, समस्त प्रकार की वनस्पति, समस्त प्रकार के जीव-जन्तु आदि।
लोक कथाओं में मानव मूल्य को परखने के लिए पहले उनकी विशेषताओं को देखना जरूरी है - 1.लोक कथाएं संस्कृति की संवाहक होती हैं। 2.लोक कथाओं की अभिव्यक्ति एवं प्रवाह मूल रूप से वाचिक होती है। 3. इसका प्रवाह कालजयी होता है यानी यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी प्रवाहित होती रहती है। 4. सामाजिक संबंधों के कारण लोककथाओं का एक स्थान से दूसरे स्थान तक विस्तार होता जाता है। 5. एक स्थान में प्रचलित लोक कथा स्थानीय प्रभावों के सहित दूसरे स्थान पर भी कही-सुनी जाती है। 6. लोकथाओं का भाषिक स्वरूप स्थानीय बोली का होता है। 7. इसमें लोकोत्तियों एवं मुहावरों का भी खुल कर प्रयोग होता है जो स्थानीय अथवा आंचलिक रूप में होते हैं। 8. कई बार लोक कथाएं कहावतों की व्याख्या करती हैं। जैसे बुन्देली सौंर कथा है-‘ आम के बियाओं में सगौना फूलो’। 9. लोक कथाओं में जनरुचि के सभी बिन्दुओं का समावेश रहता है। 10. इन कथाओं में स्त्री या पुरुष के बुद्धिमान या शक्तिवान होने के विभाजन जैसी कोई स्पष्ट रेखा नहीं होती है। कोई कथा नायक प्रधान हो सकती है तो कोई नायिका प्रधान। 11. विशेष रूप से बुन्देली लोक कथाओं में नायिका का अति सुन्दर होना या आर्थिक रूप से सम्पन्न होना पहली शर्त नहीं है। एक मामूली लड़की से मेंढकी तक कथा की नायिका हो सकती है और एक दासी भी रानी पर भारी पड़ सकती है। 12. लोक कथाओं का मूल उद्देश्य लोकमंगल हेतु रास्ता दिखाना और ऐसा आदर्श प्रस्तुत करना होता है जिससे समाज में प्रत्येक व्यक्ति को महत्व मिल सके। 13. कथ्य में स्पष्टता होती है। जो कहना होता है, वह सीधे-सीधे कहा जाता है, घुमा-फिरा कर नहीं। 14. उद्देश्य की स्पष्टता भी लोक कथाओं की अपनी मौलिक विशष्टिता है। सच्चे और ईमानदार की जीत स्थापित करना इन कथाओं का मूल उद्देश्य होता है, चाहे वह मनुष्य की जीत हो, पशु-पक्षी की या फिर बुरे भूत-प्रेत पर अच्छे भूत-प्रेत की विजय हो। 15. असत् सदा पराजित होता है और सत् सदा विजयी होता है। 16. आसुरी शक्तियों मनुष्य को परेशान करती हैं, मनुष्य अपने साहस के बल पर उन पर विजय प्राप्त करता है। वह साहसी व्यक्ति शस्त्रधारी राजा या सिपाही हो याह जरूरी नहीं है, वह गरीब लकड़हारा या कोई विकलांग व्यक्ति भी हो सकता है। 17. जो मनुष्य साहसी होता है, बड़ा देव, पीपर देव, दोज महारानी, आसमाई और देवता पुलुगा (अंडमानी जनजाति के देवता) भी उसकी सहायता करते हैं। 18. लगभग प्रत्येक गंाव में एक न एक ऐसा विद्वान होता है जिसके पास सभी प्रश्नों और जिज्ञासाओं के सटीक उत्तर होते हैं।जैसे कोरकू कथा में पड़ियार।

कोरकू सबसे प्राचीन जाति आस्ट्रिक जाति के माने जाते हैं। ये स्वयं को रावण का वंशज मानते हैं तथा महादेव को अपना इष्टदेव मानते हैं। मान्यता के अनुसार महादेव ने प्रथम पुरुष ‘मूला’ तथा प्रथम स्त्री ‘मुलई’ को बनाया। बैतूल जिले के सांवलीगढ़ एवं भंवरगढ़ को अपनी उत्पत्ति-स्थल मानते हैं। कोरकू के आदि पुरुषों ने विंध्य तथा सतपुडत्र के वनों में वृक्षों की जड़ें खोदने अथवा करोने का काम किया अतः वे कोरकू कहलाए। यह जनजाति मध्यप्रदेश सतपुड़ा के वनप्रांतों में छिंदवाड़ा, बैतूल जिले के भैंसदेही एवं चिचोली, होशंगरबाद जिले के हरदा, टिमरनी एव खिड़किया, पूर्व निमाड़ में हरसूद एवं बुरहानपुर में बसी हुई है। इनके अतिरिक्त महाराष्ट्र में अकोला, मेलघाट तथा मोरशी क्षेत्र में भी कोरकू बसे हुए हैं। इनके चार जाति समूह हैं-रूमा, पोतड़या, ढुरलिया तथा बोवई अथवा बोन्डई। मृतक की स्मृति में ‘मण्डो’ अर्थात् मृतक स्तम्भ लगाने तथा वृद्धाओं द्वारा मृत्यु-गीत गाने की प्रथा है। इनमें तलाक एवं विधवा विवाह का चलन है। इनके प्रमुख देवी-देवता हैं- महादेव, रावण, मेघनाथ, खनेरादेव, किलार मुठवा, खेड़ा देव, सूर्य-चन्द्र तथा नर्मदा एवं ताप्ती नदियां। कोरकुओं में ‘मूठ’ नामक जादू-टोने पर विश्वास किया जाता है। झाड़-फूंक करने वाले पुरुष को ‘पड़ियार’ तथा स्त्री को ‘भगटो-डुकरी’ कहते हैं। कोरकू बोली आस्ट्रिक भाषा परिवार की है। इनकी अपनी लिपि नहीं है। 
कोरकुओं में एक कथा प्रचलित है - एक कोरकू युवक ने सपने में देखा कि एक गोरे रंग की लड़की ने उसका प्रेम-निवेदन ठुकरा दिया। उसने कहा कि तुम्हारे जैसे काले लड़के के साथ भला कौन-सी गोरी लड़की प्रेम करना चाहेगी? तभी कोरकू लड़के की नींद टूट गई। उसका मन उदास हो गया। वह स्वयं को बदसूरत मान बैठा और उसे अपना जीवन व्यर्थ लगने लगा। लड़का अपने गांव के पड़ियार के पास पहुंचा। उसे अपने सपने के बारे में बताया। लड़केे की समस्या सुन कर पड़ियार ने लड़के को समझाया कि अभागे तुम नहीं, अभागी तो वह लड़की है जो तुम्हारे जैसे अपने से श्रेष्ठ लड़के को ठुकरा कर चली गई। लड़के ने पूछा-भला मैं उससे श्रेष्ठ कैसे हुआ? वह गोरी और मैं काला।
इस पड़ियार ने उसे समझाया कि जो पहले जन्म ले वह बाद में पैदा होने वाले से बड़ा और श्रेष्ठ माना जाता है या नहीं? लड़के ने कहा- हंा, बिलकुल माना जाता है। इस पर पड़ियार ने कहा कि - तो सुनो! देवता ने जब मनुष्य बनाना शुरू किया तो उसने पहले हमारे गांव की मिट्टी से हमें बनाया। बाद में मिट्टी कम पड़ने पर दूसरे जगह की मिट्टी मिला कर दूसरे मनुष्यों को बनाया। जब उसने हमें बनाया तो उसे हमें गढ़ने के लिए बहुत मेहनत और लगन की जरूरत पड़ी क्यों कि उसे मनुष्य बनाने का अभ्यास नहीं था। लेकिन जब उसने हमारे बाद दूसरे मनुष्यों को बनाया तो एक तो मिलावटी मिट्टी का प्रयोग किया। फिर जैसे-तैसे दूसरे मनुष्यों को बना दिया यानी उन्हें बनाने के लिए उसे अभ्यास हो चुका था और अब उसे विशेष श्रम या लगन की जरूरत नहीं थी। इस लिए अब तुम्हीं बताओ कि जब हमें देवता ने पहले बनाया, पूरी लगन और मेहनत से बनाया  और शुद्ध मिट्टी से बनाया तो हम दूसरे मनूष्यों से श्रेष्ठ हुए या नहीं?
पड़ियार की बात उस लड़के की समझ में आ गई। वह खुश हो गया और उसका आत्मविश्वास लौट आया।  इस कहानी को यदि वैज्ञानिक दृष्टि से परखा जाए तो यह एक श्रेष्ठ मनोचिकित्सा जैसी है। इसे यदि मातृभूमि के प्रति गौरव की भावना जगाने की कथा कही जाए तो यह उसकी बढ़िया मिसाल है। 

लोक कथाओं गूढ़ रहस्यों को बूझने का भी भरपूर प्रयास किया जाता है। इनमें पृथ्वी के जन्म की अनेक कथाएं मिलती हैं। यानी हर क्षेत्र की लोकभाषा या बोली में पृथ्वी के जन्म की एक अलग कथा। जैसे अंडमानी लोककथा में कहा गया है कि देवता पुलुगा ने जल, थल और आकाश के साथ पृथ्वी को बनाया। उरावं लोक कथा के अनंसार परमात्मा धरमेस ने मानव-संसार बसाने के लिए पृथ्वी बनाई।
अंडमानी शब्द चार अंडमानी जनजातीय समूहों के लिए प्रयुक्त होता है। ये चार समूह हैं- ग्रेट अंडमानी, ओंगी, जारवा तथा सेंटिनली। सर्वमान्य धारणा के अनुसार भौगोलिक परिवर्तन के कारण अंडमान द्वीप समूह आफ्रीका महाद्वीप से अलग हो गया जिसमें नेग्रिटोज़ बसे हुए थे। इसीलिए अंडमानियों की दैहिक संरचना नेग्रिटोज़ के समान है। इनका प्रमुख देवता ‘पुलुगा’ है। अंडमानियों में यह मान्यता है कि पुलुगा ने ही प्रथमपुरुष के रूप में तोमो को पैदा किया।  अंडमानी जनजाति में प्रमुख सात समुदाय हैं- अकाबोआ, अकाकोरा, अकाजेरू, अकावी आदि। वनोपज संग्रहण, जलाखेट एवं आखेट इनका पैतृक व्यवसाय है। ओंगी जड़ी-बूटी के अच्छे जानकार होते हैं। अंडमानियों की लोककथाओं में सूर्य, अग्नि, पृथ्वी, शहद, नारियल, कछुआ, सुअर, मछली, घनुष-बाण का प्रमुखता से उल्लेख मिलता है।

इसी प्रकार लखेर लोककथा में विश्वास किया गया है कि परमात्मा खंजागपा ने पृथ्वी का निर्माण किया। लखेर कुकी जनजाति के सदस्य हैं। ये मीजोरम पर्वतीय क्षेत्रा में निवास करते हैं। इनका एक बड़ा समुदाय कोलोडिन नदी के उत्तार तथा पूर्व में बसा हुआ है। ये ‘मारा-चिन’ बोली बोलते हैं जो साइनो-तिब्बती भाषा परिवार की है। इनके छः समुदाय हैं- त्लोंग्साई, हवथाई, झुचनानन्ग,सबेउ, लियालिया तथा हाइमा। लखेरों की सामाजिक व्यवस्था सुगठित है किन्तु युवक-युवतियों को विवाहपूर्व संबंध बनाने पर रोक नहीं है। वयस्क अवस्था में ही विवाह किए जाते हैं। लखेर खज़ांगपा देवता को मानते हैं तथा उनका मत है कि खज़ांगपा देव ने ही सृष्टि की रचना की है। वे मानते हैं कि देवता झेंग दुष्ट आत्माओं से रक्षा करते हैं।    
     एक वाक्य में कहा जाए तो लोक कथाएं हमें आत्म सम्मान, साहस और पारस्परिक सद्भावना के साथ जीवन जीने का तरीका सिखाती हैं।
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1 comment:

  1. लोक कथाओं के संसार से परिचित कराता सुंदर आलेख

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