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My Editorials - Dr Sharad Singh

Tuesday, February 11, 2025

पुस्तक समीक्षा | लोकप्रियता से प्रेरित ‘‘सदा अटल’’ का दूसरा संस्करण रोचक परिवर्द्धन के साथ | समीक्षक डाॅ (सुश्री) शरद सिंह | आचरण

आज 11.02.2025 को 'आचरण' में प्रकाशित -
पुस्तक समीक्षा  
लोकप्रियता से प्रेरित ‘‘सदा अटल’’ का दूसरा संस्करण रोचक परिवर्द्धन के साथ 
- समीक्षक डाॅ. (सुश्री) शरद सिंह
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पुस्तक    - सदा अटल
संपादन   - अभिषेक तिवारी
प्रकाशक  - अटल फाउण्डेशन, 63, प्रकृति एन्क्लेव, इन्दौर, मध्यप्रदेश - 452016         
मूल्य   - मुद्रित नहीं (हार्ड बाउंड) 
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    आज जब साहित्यिक पुस्तकों के प्रति रुझान कम होने तथा पुस्तकें कम पढ़े जाने को ले कर चिंता व्यक्त की जाती है, ऐसे समय में किसी एक व्यक्ति के व्यक्तित्व को रेखांकित करने वाली संस्मरणों की पुस्तक का लगभग साल भर में ही दूसरा संस्करण आ जाना सुखद विषय है। ऐसा कैसे संभव हुआ, जब इसके कारणों पर मैंने विचार किया तो दो कारण स्पष्ट रूप से मुझे समझ में आए। पहला कारण तो यह कि जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व पर यह पुस्तक केन्द्रित है वह भारतीय राजनीति का सबसे अधिक लोकप्रिय राजनेता रहा है अर्थात ‘‘भारत रत्न’’ अटल बिहारी वाजपेयी। विरोधी भी जिनकी प्रशंसा करते थे तथा उनकी उद्बोधन कला के मुरीद थे। दूसरा कारण यह कि पुस्तक के कलेवर को इतनी कुशलता से एवं श्रम के साथ तैयार किया गया कि उसके द्वारा स्व. अटल जी के जीवन के अनेक अनछुए पहलू सामने आए जो निश्चित रूप से पाठकों के लिए रुचिकर रहे। साथ ही कुछ बातें और भी इस पुस्तक के संदर्भ में सामने रखी जा सकती हैं कि किसी पुस्तक की लोकप्रियता के लिए ज़रूरी नही है कि उसका संपादक दीर्घ अनुभव प्राप्त हो। आवश्यक है कि उसमें अपने कर्म के प्रति निष्ठा और लगन हो। जोकि इस पुस्तक में स्पष्ट दिखाई दी जिसका नाम है ‘‘सदा अटल’’। 
          ‘‘सदा अटल’’ के प्रथम संस्करण के प्रति पाठकों की रुचि ने यह स्थिति निर्मित कर दी कि लगभग साल भर की अवधि में दूसरा संस्करण हाल ही में प्रकाशित किया गया है। इस संस्करण में प्रथम संस्करण की कुछ प्रमुख सामग्री हैं, साथ ही उसमें परिवर्द्धन करते हुए कई और संस्मरण जोड़े गए हैं। जिससे इस दूसरे संस्करण की उपादेयता और बढ़ गई है। पुस्तक का आमुख भी प्रथम संस्करण से भिन्न नया रखा गया है। इस बार भी मुखपृष्ठ चित्ताकर्षक है। कव्हर पर अटल जी का स्मित मुखमंडल अत्यंत सौम्य, सहज एवं जीवंत है, मानो अभी अटल जी स्वयं अपनी कोई काव्य पंक्तियां सुना उठेंगे। यह छायाचित्र अटल जी के व्यक्तित्व को पूरी तरह व्याख्यायित करने में सक्षम है। इसे संयोजित किया है रुचि मिश्रा ने। 
       संपादक अभिषेक तिवारी ने अपने संपादकीय में लिखा है कि ‘‘सदा अटल के प्रथम संस्करण को पाठकों से मिली अद्वितीय सराहना, समर्थन और वरिष्ठों के आशीर्वाद ने हमें ‘सदा अटल’ पुस्तक के द्वितीय संस्करण को प्रकाशित करने की प्रेरणा दी। यह हमारे लिए गर्व और आभार का विषय है कि यह संस्करण अटल जी के व्यक्तित्व, उनके विचारों और उनकी जीवनगाथा को और अधिक विस्तार से प्रस्तुत करने का एक माध्यम बनेगा। अटल बिहारी वाजपेयी - यह नाम केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक ऐसा युग है जो भारतीय राजनीति, साहित्य, और मानवीय मूल्यों के सर्वोत्तम आदर्शों को समेटे हुए है। उनकी जन्म शताब्दी वर्ष पर ‘सदाअटल’ पुस्तक का द्वितीय संस्करण हमारी ओर से एक विनम्र श्रद्धांजलि है।’’     
      लगभग वर्ष भर पूर्व जब ‘‘सदा अटल का प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ था तथा पुस्तक की समीक्षा मैंने की थी उस समय मैंने बतौर समीक्षक यही लिखा था कि ‘‘आज जब भारतीय राजनीति दल-बदल का पर्याय बनती जा रही है, ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री और ‘‘भारत रत्न’’ अटल बिहारी वाजपेयी की राजनीतिक दृढ़ता तीव्रता से याद आती है। अटल जी के राजनीतिक जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आए, उन्हें जेल भी जाना पड़ा किन्तु उन्होंने न तो अपने दल को छोड़ा और न विचारों को बदला। इसीलिए उन्हें सदैव अटल रहने वाले राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में स्मरण किया जाता है।’’ वस्तुतः यह भारतीय राजनीति का एक ऐसा ध्रुव सत्य है जो यदि सौ वर्ष बाद भी अटल जी पर कुछ लिखा जाएगा तो इन्हीं शब्दों में उनकी अटलता तो व्यक्त किया जाएगा।  
         ‘‘सदा अटल’’ का संपादन किया है अभिषेक तिवारी ने। इसके प्रथम संस्करण में मात्र 130 पृष्ठ थे किन्तु दूसरा संस्करण 256 पृष्ठों का है। दूसरे संस्करण में सह सम्पादक हैं सागर, मध्यप्रदेश की श्यामलम संस्था के अध्यक्ष उमाकांत मिश्र। जिससे संपादक मंडल और समृद्ध हो गया है। पुस्तक की सामग्री का श्रमसाध्य संकलन किया है पूर्वा मिश्रा तिवारी ने तथा प्राची शुक्ला ने। मुखपृष्ठ पर अटल फाउण्डेशन की अध्यक्ष माला वाजपेयी तिवारी का नाम भी अंकित है जो फाउण्डेशन के प्रति उनके योगदान को परिलक्षित करता है। 
        इस हार्डबाउंड पुस्तक का इस बार भी मूल्य मुद्रित नहीं किया गया है जो कि विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि जहां आजकल प्रकाशक कागज की बढ़ती कीमतों एवं मुद्रण पर आने वाले खर्चों का रोना रोते रहते हैं, वहीं इस पुस्तक का मूल्य नहीं लिया जाना अपने आप में रेखांकित किए जाने का विषय है।  
       ‘‘राष्ट्रवादी व्यक्तित्व’’ श्रृंखला के अंतर्गत मैं अटल बिहारी वाजपेयी जी की जीवनी लिख चुकी हूं, जो सन् 2016 में सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई थी। एक लंबे अंतराल के बाद जब अभिषेक तिवारी के संपादन में ‘‘सदा अटल’’ पुस्तक के प्रथम संस्करण के जरिए उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से मेरा एक बार फिर गुज़रना हुआ। और अब दूसरे संस्करण ने मुझे भी उनके जीवन के कई रोचक संस्मरणों से परिचित कराया। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें अटल जी के जीवन के अनछुए एवं अनमोल किस्से सहेजे गए हैं। अटल जी के परिजन एवं समकालीन लोगों के उनसे जुड़े संस्मरण हैं तथा कई महत्वपूर्ण एवं लगभग दुर्लभ छायाचित्र हैं। पुस्तक के प्रथम ब्लर्ब में अटलजी की दृढ़निश्चयी काव्य पंक्तियां दी गई हैं- ‘‘टूटे हुए सपनों की /कौन सुने सिसकी /अन्तर की चीर व्यथा /पलकों पर ठिठकी /हार नहीं मानूंगा /रार नहीं ठानूंगा /काल के कपाल पर /लिखता-मिटाता हूं/गीत नया गाता हूं।’’ - सचमुच, ‘‘भारत रत्न’’ अटल बिहारी ने हार कभी नहीं मानी। उनकी दृढ़ता को देखते हुए उनके विरोधी भी उनकी प्रशंसा किया करते थे। 
       ‘‘सदा अटल’’ पुस्तक के नाम में भी एक रोचक तथ्य मौजूद अटल जी के बड़े भाई का नाम था सदा बिहारी वाजपेयी। अतः दोनों भाइयों के नाम के मिलाप से भी ‘‘सदा अटल’’ बनता है। यानी अटल जी के व्यक्तित्व, विचार एवं परिवार तीनों के तत्व पुस्तक के नाम में समाहित हैं।
अटल फाउण्डेशन की अध्यक्ष माला वाजपेयी तिवारी ने उल्लेख किया है कि -‘‘ सदा-अटल ये दोनों ही नाम, मेरे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों के नाम.... सदा बिहारी वाजपेयी जी मेरे पिता और अटल बिहारी वाजपेयी जी मेरे छोटे चाचाजी। मेरे दादा जी स्व. पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी जी और दादी जी कृष्णा वाजपेयी जी के 4 पुत्र और 3 पुत्रियां थीं। सबसे बड़े अवध बिहारी, दूसरे सदा बिहारी, तीसरे प्रेम बिहारी और चौथे अटल बिहारी, 3 पुत्रियां विमला, कमला और उर्मिला, 7 भाई बहिनों का प्यार सा परिवार! आज दोनों को याद करते हुए जैसे पुनः बचपन में पहुंच गई, वो शिंदे की छावनी की संकरी गलियां, वो घर के बाहर का बड़ा सा चबूतरा, मेरे घर का आंगन, एलिजा बाग.... मानो कल की ही बात हो।’’
      अटल जी को अपने परिवार से बहुत लगाव था वह परिवार के सभी भतीजे-भतीजियो, भांजे-भांजियों, नाती-पोतों को बहुत प्यार करते है थे उनके पढ़ाई के बारे में चिंता रखना, भतीजीयो के विवाह में परिवार का फर्ज अदा करना साथ ही किसी भी सदस्य के बीमार होने पर उन्हें उचित इलाज के लिए अपने पास दिल्ली बुला लेना। अमूमन सभी नाती-पोतों को वे नाम से पुकारते थे उन्हें विशेष तौर पर परिवार की सबसे छोटी बिटिया माला वाजपेयी से स्नेह था। दोनों में चाचा-भतीजी के साथ-साथ मित्रता का व्यवहार था। 
       पुस्तक में इसके बाद अटल जी का राजनीतिक जीवन, कार्यकाल, प्रमुख रचनाओं के नाम, अन्य महत्वपूर्ण कार्य, उनका कवित्व पक्ष, पुरस्कार आदि की भी संक्षेप में जानकारी दी गई है। अटल जी के संबंध में उनके निकटतम रहे लालकृष्ण आडवाणी के रोचक संस्मरण दिए गए हैं। जिसका एक अंश इस प्रकार है-‘‘एक किस्सा था अटल जी पहली बार सांसद बने थे। भाजपा नेता जगदीश प्रसाद माथुर और अटलजी दोनों एक साथ चांदनी चौक में रहते थे। पैदल ही संसद जाते-आते थे। छह महीने बाद अटल जी ने रिक्शे से चलने को कहा तो माथुर जी को आश्चर्य हुआ। उस दिन उन्हें बतौर सांसद छह महीने की तनख्वाह एक साथ मिली थी। माथुर जी के शब्दों में यही हमारी ऐश थी।’’ 
       पुस्तक में जिन विशिष्ट व्यक्तियों के संदेश, संस्मरण तथा लेख दिए गए हैं वे हैं- महामहिम द्रौपदी मुर्मु  राष्ट्रपति भारत सरकार, नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री भारत सरकार, लालकृष्ण आडवाणी पूर्व उप प्रधानमंत्री भारत सरकार, नितीन गडकरी केन्द्रीय सड़क परिवह एवं राजमार्ग मंत्री, भारत सरकार, आरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल बिहार, बंडारू दत्तात्रेय राज्यपाल, हरियाणा, मंगुभाई पटेल राज्यपाल मध्यप्रदेश, आनंदीबेन पटेल राज्यपाल उत्तर प्रदेश, सी.पी. राधाकृष्णन गवर्नर महाराष्ट्र, गुलाब चन्द कटारिया राज्यपाल पंजाब, शान्ता कुमार पूर्व केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार, शिवराजसिंह चैहान केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री, मुख्तार अब्बास नकवी पूर्व केन्द्रीय कैबिनेट मंत्री, भारत सरकार, डॉ. प्रमोद पांडुरंग सावंत, मुख्यमंत्री गोवा, प्रो. डॉ. मानिक साहा चीफ मिनिस्टर त्रिपुरा, नीतीश कुमार मुख्यंत्री, बिहार, दिग्विजय सिंह संसद सदस्य-राज्य सभा एवं पूर्व मुख्यमंत्री म.प्र., कर्ण सिंह राज्यसभा पूर्व सदस्य, भारतीय राजनेता, शत्रुघ्न सिन्हा पूर्व केन्द्रीय मंत्री भारत सरकार एवं अभिनेता, अमजद अली खान पदम् भूषण एवं प्रसिद्ध सरोद वादक, डॉ फारुख अब्दुल्ला संसद सदस्य, रेखा प्रमोद महाजन, मुंबई, सरयू राय सदस्य-झारखंड विधान सभा, जमशेदपुर, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी रिटा. डिप्टी जनरल, ऑल इण्डिया रेडियो, कबीन्द्र पुरस्थकाय मॉस कम्यूनिकेशन, शंकर लालवानी संसद सदस्य (लोक सभा) इन्दौर-म.प्र., पद्मजा फेनानी जोगलेकर  पद्मश्री - शास्त्रीय गायिक, डॉ. दिनेश शर्मा राज्य सभा सांसद, भाजपा, सत्यनारायण सत्तन  राष्ट्रीय कवि एवं राजनेता, टी.एच. चैधरी पद्मश्री फाउंडर सीएमडी वीएसएनएल, डॉ के लक्ष्मण मेंबर ऑफ पार्लियामेंट राज्य सभा,  बाबू सिंह रघुवंशी  पूर्व प्रदेश मंत्री, प्रवक्ता भाजपा. म.प्र., दलपत सुराणा  वरिष्ठ राजनेता, राजस्थान, राजगोपाल सिंह वर्मा  उपन्यासकार, भीखू संघसेना इंटरनेशनल बुद्धिस्ट लीडर, निखिल मेसवानी ईडी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, स्वामी चिदान्द सरस्वती अध्यक्ष-परमार्थ निकेतन ऋषिकेष, सुरेन्द्र मोहन पाठक  थ्रिलर अपराध उपन्यासकार, बृजेश मिश्रा  गायक, प्रियंका शक्ति ठाकुर रंगकर्मी, संजय पुजारी महाकाल मंदिर उज्जैन, गुलशन बजाज सूरत, जस्टिस सुशील कुमार गुप्ता पूर्व न्यायधीश, उच्च न्यायलय, प्रो. आनन्दप्रकाश त्रिपाठी अध्यक्ष-हिन्दी एवं संस्कृत विभाग, सागर, संतोष वैश शिकागो, यू.एस.ए. अक्षय अनुग्रह - सहायक प्राध्यापक बिहार, स्व. डॉ. विन्देश्वर पाठक संस्थापक-सुलभ स्वच्छता आन्दोलन, स्व. शरद यादव (जनता दल-यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष। 
‘‘श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी के सारगर्भित भाषण’’ शीर्षक से अटल जी के कुछ प्रमुख भाषणों को रखा गया है। इसके बाद ‘‘अटल जी के बारे में वो बड़ी बातें, जिसने उन्हें बनाया बेहद खास’’ में अटल जी से जुड़े कुछ और तथ्य दिए गए हैं। 
      अटल जी का कवित्व पक्ष भी अत्यंत लोकप्रिय रहा अतः बीच-बीच में उनकी कविताएं सहेजी गई हैं। पुस्तक में कई दुर्लभ एवं आत्मीय तस्वीरें हैं जैसे प्रमोद महाजन के साथ ठहाके लगाते हुए, पं. दीनदयाल उपाध्याय, साईं बाबा, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाला साहेब ठाकरे आदि के साथ की तस्वीरें। 
      ‘‘सदा अटल’’ का यह दूसरा संस्करण भी अत्यंत रोचक और अटल जी पर नई सामग्रियों से परिपूर्ण है। आशा की जा सकती है कि यह संस्करण भी पाठकों में लोकप्रिय होगा।             
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